Uttar Pradesh

StateCommission

A/1869/2015

Adhishashi Abhiyanta Vidyut Vitaran Khand - Complainant(s)

Versus

Km. Reena Jain - Opp.Party(s)

Deepak Mehrotra

28 Jul 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1869/2015
( Date of Filing : 14 Sep 2015 )
(Arisen out of Order Dated 13/07/2015 in Case No. C/21/2015 of District Maharajganj)
 
1. Adhishashi Abhiyanta Vidyut Vitaran Khand
Maharajganj
...........Appellant(s)
Versus
1. Km. Reena Jain
Maharajganj
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 28 Jul 2022
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील सं0- 1869/2015

 

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, महाराजगंज द्वारा परिवाद सं0- 21/2015 में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 13.07.2015 के विरुद्ध)

 

Adhishasi Abhiyanta, Vidyut Vitran khand, Maharajganj, District Maharajganj.                                                                          

                                                          ……..Appellant/Opposite Party 

 

Versus

 

Km. Reena Jaiswal adult D/o Sri Bhagwati Jaiswal, Resident of Basdila Bazar, Post Kamasin Khurd, Police Station Paniyara, Tehsil Sadar, District Maharajganj.                                                                                     

                                                             ……Respondent/Complainant  

 

समक्ष:-

     माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

     माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

   

अपीलार्थी की ओर से  : श्री दीपक मेहरोत्रा,

                     विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से    : श्री नंद किशोर पटेल,

                   विद्वान अधिवक्‍ता। 

 

दिनांक:- 05.08.2022

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित

 

निर्णय

1.        परिवाद सं0- 21/2015 कुमारी रीना जायसवाल बनाम अधिशासी अभियंता विद्युत वितरण खण्ड, महाराजगंज में जिला उपभोक्‍ता आयोग, महाराजगंज द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 13.07.2015 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

2.        विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश के माध्‍यम से परिवाद एकपक्षीय रूप से स्‍वीकार करते हुए  प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के इलाज के मद में हुए खर्च के निमित्‍त मु0 4,00,000/-रू0, उसकी पारिवारिक, सामाजिक प्रताड़ना के मद में मु0 3,90,000/-रू0 तथा वाद व्‍यय एवं अधिवक्‍ता शुल्‍क के मद में मु0 10,000/-रू0 कुल मु0 8,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति स्‍वीकृत किया है तथा अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया है कि आदेश के 45 दिन के अन्‍दर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के क्षतिपूर्ति की उक्‍त धनराशि की अदायगी सुनिश्चित करें। समयावधि के अन्‍दर आदेश का अनुपालन न करने की स्थिति में परिवाद योजित किये जाने की तिथि दिनांक 18.12.2014 से उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज भी देय होगा।   

3.        परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का कथन संक्षेप में इस प्रकार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पिता भगवती प्रसाद जायसवाल के नाम से वैधानिक विद्युत कनेक्‍शन सं0- 407830 है। दि0 14.07.2000 की सुबह 5:00 बजे अपीलार्थी/विपक्षी की त्रुटिपूर्ण सेवा की वजह से घरेलू बिजली के लिए अनुबंध 220 वोल्‍ट से अधिक 11000 वोल्‍ट की सप्‍लाई कर दी गई जिससे प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के घर के सभी विद्युत उपकरण आग लगने के कारण जल गए और शार्ट सर्किट के कारण लगी आग से प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी बुरीतरह जल गई जिससे उसकी दाहिनी आंख पूरीतरह नष्‍ट हो गई तथा पूरा चेहरा झुलस गया। इस घटना में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के घर के अतिरिक्‍त पूरे गांव में हाई वोल्‍टेज सप्‍लाई की वजह से अनेक विद्युत उपकरण पूरी तरह से नष्‍ट हो गए। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की जान बचाने के लिए उसे तुरन्‍त पनियरा बाजार, जनपद महाराजगंज स्थित डॉ0 यशराज नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया जहां लगातार चार माह चिकित्‍सा चली किन्‍तु अपेक्षित सुधार न होने के कारण उसे बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर में भर्ती कराया गया, जहां पर वर्ष 2000 से 2004 तक इलाज चला। तत्पश्‍चात उच्‍च चिकित्‍सा हेतु वर्ष 2004 से 2007 तक और उसके बाद वर्ष 2010 तक उसे बम्‍बई में रखा गया। वर्ष 2010 से 2014 तक बी0एच0यू0, वाराणसी में चिकित्‍सा हुई। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की चिकित्‍सा एवं प्‍लास्टिक सर्जरी तथा महानगरों में रहने एवं खाने आदि पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का लगभग 10,00,000/-रू0 व्‍यय हुआ। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी इस घटना से 70 प्रतिशत विकलांग हो गई। उक्‍त घटना से प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का सामाजिक, पारिवारिक व वैवाहिक जीवन समाप्‍त हो गया तथा वह अपने परिवार एवं समाज पर एक बोझ के रूप में जीवन व्‍यतीत कर रही है। इन परिस्थितियों में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने चिकित्‍सा आदि पर हुए व्‍यय के मद में 10,00,000/-रू0, मानसिक, शारीरिक व सामाजिक क्षतिपूर्ति हेतु 9,50,000/-रू0 तथा खर्चा मुकदमा व अधिवक्‍ता शुल्‍क के मद में मु0 50,000/-रू0 कुल 20,00,000/-रू0 अपीलार्थी/विपक्षी से दिलाये जाने हेतु परिवाद योजित किया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद योजित किए जाने में हुए विलम्‍ब को क्षमा किए जाने हेतु 05ग प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत किया जो स्‍वीकृत हुआ।  

4.        अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष न तो कोई उपस्थित हुआ और न ही प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया, अत: विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा उनके विरुद्ध परिवाद की सुनवाई एकपक्षीय रूप से की गई।

5.        विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अपीलार्थी/विपक्षी की अनुपस्थिति में परिवाद एकपक्षीय रूप से स्‍वीकार किया है, जिससे व्‍यथित होकर अपीलार्थी/विपक्षी ने यह अपील प्रस्‍तुत की है। 

6.        अपील में मुख्‍य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा गलत रूप से एकपक्षीय कार्यवाही अग्रसारित की गई। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष विभाग के पैनल अधिवक्‍ता उपस्थित थे तथा उनके द्वारा जवाबदावे का समय मांगा गया। विभाग द्वारा यह माना गया कि पैनल अधिवक्‍ता द्वारा परिवाद में पैरवी एवं कार्यवाही की जा रही है, किन्‍तु दुर्भाग्‍य से अधिवक्‍ता महोदय द्वारा न तो जवाबदावा प्रस्‍तुत किया गया न ही कोई पैरवी की गई, जिस कारण वाद एकपक्षीय रूप से अग्रसारित हो गया। परिवाद समय-सीमा से बाधित है, क्‍योंकि जिस दुर्घटना के सम्‍बन्‍ध में परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है वह दि0 14.07.2000 को घटित होना बतायी गई है तब परिवाद वर्ष 2015 में प्रस्‍तुत किया गया जो गम्‍भीर रूप से समय-सीमा से बाधित है, किन्‍तु विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद में यह आदेश पारित किया कि अन्तिम बहस के समय परिवाद के समय बाधित होने का बिन्‍दु उठाया जा सकता है यह आदेश गलत था। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद के समय-सीमा से बाधित होने के प्रश्‍न पर कोई निष्‍कर्ष भी नहीं दिया।

7.        प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के अनुसार उसके घर में अचानक हाई वोल्‍टेज आ गया जिस कारण दुर्घटना हुई, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के क्षेत्र के किसी भी उपभोक्‍ता अथवा घर से इस प्रकार की कोई शिकायत नहीं आयी। गांव के किसी व्‍यक्ति द्वारा भी कोई शिकायत नहीं की गई है। इस प्रकार अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी स्‍वयं अपनी लापरवाही से किसी विद्युत उपकरण को संचालित करते हुए घायल हो गई थी। इसके अतिरिक्‍त प्रत्‍यर्थी/परिवादी के वायरिंग में भी कोई दोष हो सकता है, जिस कारण उसे विद्युत शॉक लगा हो। वास्‍तव में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के घर अथवा उसके गांव-बसडीला बाजार में दि0 14.07.2000 को हाई वोल्‍टेज विद्युत प्रवाह की कोई घटना नहीं हुई थी। विद्युत दुर्घटना के सम्‍बन्‍ध में विवेचना/विश्‍लेषण उ0प्र0 राज्‍य की ''विद्युत सुरक्षा विभाग'' द्वारा किया जाता है जिससे हानि का आंकलन हो सकता है, किन्‍तु इस विभाग को कोई सूचना नहीं दी गई। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को समय-सीमा से बाधित अनुतोष प्रदान किया गया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने मुम्‍बई, वाराणसी व गोरखपुर आदि कई जगहों पर अपना इलाज होना बताया है, लेकिन इस सम्‍बन्‍ध में कोई चिकित्‍सीय प्रमाण अथवा अन्‍य चिकित्‍सीय दस्‍तावेज प्रस्‍तुत नहीं किए हैं। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा इलाज के लिए 4,00,000/-रू0 एवं पारिवारिक व सामाजिक प्रताड़ना के मद में 3,90,000/-रू0 मनमाने तौर पर दिए गए हैं। उपरोक्‍त आधारों पर परिवाद निरस्‍त किए जाने योग्‍य एवं प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश अपास्‍त किए जाने योग्‍य है।

8.        हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री दीपक मेहरोत्रा तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री नंद किशोर पटेल को सुना। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का परिशीलन किया।

9.        अपील में मुख्‍य रूप से परिवाद निरस्‍त किए जाने का आधार परिसीमा के आधार पर लिया गया। उक्‍त परिवाद लगभग घटना के 14 वर्ष के उपरांत प्रस्‍तुत किया गया है जब कि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 24A के अनुसार वाद का कारण उत्‍पन्‍न होने के 02 वर्ष के भीतर परिवाद प्रस्‍तुत हो जाना चाहिए, किन्‍तु इन दो वर्षों के उपरांत भी उपभोक्‍ता न्‍यायालय परिवाद ग्रहण कर सकता है, यदि परिवादी की ओर से समुचित कारण देरी का दर्शाया गया हो।

10.       प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा देरी का कारण यह दर्शाया गया है कि दि0 14.07.2000 को प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी विद्युत द्वारा आहत होने के उपरांत जुलाई 2000 से जुलाई 2004 तक चिकित्‍सा चली एवं उसे बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर जुलाई 2000 से 2004 तक अनवरत रखा गया एवं इसके उपरांत वर्ष 2004 से 2007 तक मुम्‍बई में उसकी लगातार चिकित्‍सा चली। तदोपरांत वर्ष 2007 से 2010 तक मुम्‍बई में ही रही। वर्ष 2010 से अक्‍टूबर 2014 तक वह बी0एच0यू0 के हॉस्पिटल, वाराणसी में चिकित्‍सा हेतु रही तथा अनेकों बार प्‍लास्टिक सर्जरी हुई। इस कारण वह वर्ष 2000 से वर्ष 2014 तक वाद प्रस्‍तुत नहीं कर सकी। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा दर्शाया गया उक्‍त कारण 14 वर्ष देरी से वाद प्रस्‍तुत किए जाने के लिए पर्याप्‍त प्रतीत नहीं होता है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से ऐसे दस्‍तावेज प्रस्‍तुत नहीं किए गए हैं, जिससे यह स्‍पष्‍ट हो सके कि इन 14 वर्षों में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की शारीरिक स्थिति ऐसी थी कि वह उपस्थित होकर अपना परिवाद प्रस्‍तुत करने में अक्षम थी। यद्यपि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा उठाया गया बिन्‍दु अत्‍यंत मार्मिक है, किन्‍तु देरी का पर्याप्‍त कारण साबित नहीं होता है, साथ ही यह भी साबित नहीं होता है कि यह दुर्घटना बिजली विभाग की लापरवाही से हुई जिसमें प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी आहत हुई है। इसके अतिरिक्‍त परिवाद परिसीमा के अन्‍दर प्रस्‍तुत न किए जाने का पर्याप्‍त कारण नहीं दर्शाया गया है विशेष कर लगभग 13 से 14 वर्षों की देरी को उचित प्रकार से स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है। अत: 13 वर्ष की देरी को प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्‍तुत किए गए साक्ष्‍य के आधार पर क्षमा किए जाने योग्‍य नहीं है एवं परिवाद समय-सीमा से बाधित होने के कारण स्‍वीकार किए जाने योग्‍य नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने इस बिन्‍दु पर कोई निष्‍कर्ष नहीं दिया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का परिवाद किन कारणों से पोषणीय है एवं किन आधारों पर परिवाद प्रस्‍तुत करने में हुई लगभग 14 वर्ष की देरी को क्षमा किया जा सकता है। अत: प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश अपास्‍त होने योग्‍य एवं अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।                

                          आदेश

11.       अपील स्‍वीकार की जाती है। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश अपास्‍त किया जाता है।       

          अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

          अपील में धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थी द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित इस निर्णय व आदेश के अनुसार अपीलार्थी को वापस की जावे।

          आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। 

                            

   (विकास सक्‍सेना)                              (राजेन्‍द्र सिंह)           

      सदस्‍य                                      सदस्‍य 

         

निर्णय आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

 

 (विकास सक्‍सेना)                               (राजेन्‍द्र सिंह)           

     सदस्‍य                                      सदस्‍य     

शेर सिंह, आशु0,

कोर्ट नं0-2

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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