(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2780/2000
Unit Trust of India, A Corporate Incorporated Under Unit Trust Of India Act 1963 & Having Corporate Office at Marine Chambers, 4th Floor, 13, Sir Vithaldas Trackersey Marg, New Marine Lines, Mumbai 400020 and Others.
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
Kum. Neha Agarwal Represented through her father & natural guardian Shri Sanjay Agarwal C/o Shri M.B. Agarwal, Katra Poonam, Jaat Ganj, Moradabad.
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से : श्री अरूण टण्डन, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 12.03.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-28/2000, कु0 नेहा अग्रवाल बनाम यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया व अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, प्रथम मुरादाबाद द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 29.06.2000 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। अपील पर बहस करने के लिए अपीलार्थीगण की ओर से वे अधिवक्ता उपस्थित नहीं हैं, जिनके द्वारा वकालतनामा प्रस्तुत किया गया है और कनिष्ठ अधिवक्ता बहस करने के लिए तत्पर नहीं हैं। अत: केवल प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अरूण टण्डन की बहस सुनी गई तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
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2. परिवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ने अपने शेयर पुन: खरीद हेतु विपक्षी संख्या-2 को पंजीकृत डाक से दिनांक 03.02.1991 को अपना नया पता, कु0 नेहा अग्रवाल 2/303 बुद्ध बिहार, आवास विकास मंडोला मुरादाबाद वर्णित करते हुए आवेदन पत्र भेजा था, किंतु विपक्षी संख्या-2 ने परिवादिनी के पूर्व पते पर ही पत्र भेजा। दिनांक 23.04.1999 के संदर्भ में पुन: चेक का अवितरण होना लिखा और पुन: दिनांक 02.07.1999 के पत्र द्वारा प्रमाणित हस्ताक्षरों की मांग की गई, जबकि पूर्व में यही हस्ताक्षर मान लिए गए थे। अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भेजे जाने के पश्चात अंकन 11,280/- रूपये का चेक परिवादिनी को भेजा गया, जो विरोध के साथ प्राप्त किया गया, क्योंकि चेक जारी करने की तिथि दिनांक 14.10.1999 को शेयर का मूल्य 24/- रूपये प्रति इकाई से कम नहीं था। इस प्रकार विपक्षी संख्या-2 द्वारा कम मूल्य का चेक भेजा गया। इसी अंतर को प्राप्त करने के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
3. विपक्षीगण को यह तथ्य स्वीकार है कि परिवादिनी द्वारा प्रेषित पुन: खरीद का पत्र प्राप्त हुआ था और उस समय प्रचलित मूल्य के अनुसार अंकन 11,280/- रूपये का चेक बनाकर पूर्व पते पर दिनांक 20.02.1999 को भेजा गया था, जो अवितरित वापस आ गया। पुन: दिनांक 25.05.1999 को चेक भेजा गया, वह भी अवितरित वापस आ गया। यह भी उल्लेख किया गया कि श्री संजय अग्रवाल के द्वारा प्रेषित हस्ताक्षरों में आंशिक भिन्नता के कारण प्रमाणित हस्ताक्षर की मांग की गई थी, इसके पश्चात दिनांक 27.10.1999 को धनराशि प्रेषित कर दी गई, जो परिवादिनी द्वारा प्राप्त कर ली गई, इसलिए परिवाद अनावश्यक रूप से प्रस्तुत किया गया है, जो हर्जे सहित खारिज किया जाना चाहिए।
4. दोनों पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग ने यह निष्कर्ष दिया कि विपक्षी संख्या-2 ने
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केवल अंकन 11,280/- रूपये का भुगतान किया, जबकि अंकन 14,400/- रूपये का भुगतान होना चाहिए था। तदनुसार अंकन 3,120/- रूपये की धनराशि को 18 प्रतिशत ब्याज सहित अदा करने का आदेश दिया गया है तथा मानसिक क्षति के रूप में अंकन 1,000/- रूपये पत्राचार आदि पर खर्च अंकन 550/- रूपये और वाद खर्च अंकन 1100/- रूपये अदा करने का भी आदेश दिया गया है।
5. इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा तथ्यों के विपरीत निष्कर्ष दिया गया है और मनमाना आदेश पारित किया गया है। इस बिन्दु पर विचार नहीं किया गया कि मूल रूप से फरवरी 1999 में मूल वारण्ट परिवादिनी को प्रेषित कर दिया गया था, जो डाक विभाग द्वारा वापस लौटा दिया गया था। इसके पश्चात मई 1999 को भी मूल वारण्ट भेजा गया, इसलिए डाक विभाग के द्वारा त्रुटि कारित की गई है न कि अपीलार्थी द्वारा।
6. अनेग्जर संख्या-5, 6, 7 एवं 8 के द्वारा वारण्ट प्रेषित किए गए, जो परिवादिनी पर तामील नहीं हो सके और अदम तामील वापस प्राप्त हुए। प्रथम बार दिनांक 03.02.1999 को प्रेषित किए गए, इसके बाद पुन: उपरोक्त वर्णित तिथियों पर परिवादिनी को देय राशि के चेक प्रेषित किए गए, परन्तु परिवादिनी को अंतिम रूप से दिनांक 27.10.1999 को भेजा गया चेक परिवादिनी द्वारा प्राप्त कर लिया गया, जो पत्र जिसके साथ चेक मौजूद था, प्रेषित किया गया, उसकी डाक रसीद पत्रावली के साथ दाखिल की गई है, जो दस्तावेज संख्या-43, 53 एवं 54 है। अत: इन दस्तावेजों से यह तथ्य स्थापित होता है कि अपीलार्थी द्वारा समय पर ही परिवादिनी को देय राशि का चेक प्रेषित किया गया। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग ने अपने निर्णय में इस तथ्य पर कोई निष्कर्ष नहीं दिया कि अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2 द्वारा लिखित कथन में वर्णित पत्र जिसके साथ परिवादिनी को देय धनराशि
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के चेक संलग्न थे, प्रेषित नहीं किए गए। निर्णय में यह भी उल्लेख किया गया है कि डाक विभाग द्वारा चेक अवितरित वापस लौटाने का कोई कारण दर्शित नहीं किया गया। इस प्रकार इस तथ्य को निर्णय में स्वीकार किया गया है कि डाक विभाग के स्तर से लापरवाही कारित हो सकती है साथ ही इस बिन्दु पर कोई निष्कर्ष नहीं दिया गया कि अंतिम भुगतान की तिथि को प्रत्येक शेयर का मूल्य 24/- रूपये हो चुका था यथार्थ में इस बिन्दु पर कोई निष्कर्ष ही मौजूद नहीं है कि दिनांक 27.10.1999 को शेयर का मूल्य अंकन 24/- रूपये था या कोई अन्य मूल्य था, इसलिए अंकन 3,120/- रूपये का अंतर निकालने पर भी कोई कारण निर्णय में अंकित नहीं किया गया।
7. उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष यह है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा केवल कल्पना पर आधारित निर्णय/आदेश पारित किया गया है और डाक विभाग को उत्तरदायी मानने के बावजूद विपक्षी संख्या-2 के विरूद्ध अंकन 3,120/- रूपये तथा अन्य क्षतिपूर्ति अदा करने का आदेश पारित किया गया है, जो विधिसम्मत नहीं है और अपास्त होने योग्य है। अपील तदनुसार स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
8. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 29.06.2000 अपास्त किया जाता है।
9. उभय पक्ष अपना अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2