राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(सुरक्षित)
परिवाद संख्या:151/2001
- ओमप्रकाश सिंह पुत्र श्री नगीना सिंह, निवासी- साकीनान ग्राम-मझौवां, पोस्ट पथदेवा, जिला देवरिया।
- उपेन्द्र सिंह पुत्र श्री नगीना सिंह, निवासी- साकीनान ग्राम-मझौवां, पोस्ट पथदेवा, जिला देवरिया।
- संजय सिंह, पुत्र श्री नगीना सिंह, निवासी- साकीनान ग्राम-मझौवां, पोस्ट पथदेवा, जिला देवरिया।
.......................परिवादीगण
बनाम
- , लखनऊ द्वारा अधीक्षक।
2- प्रोफेसर ए0एम0 कार हेड आफ डिपार्टमेन्ट न्यूरोलोजी, किंगजार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ।
- , किंगजार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ।
- , किंगजार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ। .......................विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादीगण की ओर से उपस्थित : परिवादी सं0-3 श्री संजय सिंह,
स्वयं।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 10.10.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवादीगण ने प्रस्तुत परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध निम्न अनुतोष प्रदान किये जाने हेतु योजित किया है:-
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1. यह कि प्रतिपक्षीगण को निर्देशित किया जाये कि वे हम परिवादीगण को हमारे माताजी के मृत्यु के समय में प्रत्येक परिवादी को दो-दो लाख रूपये यानि कुल 06 लाख रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में दिलवाया जाये।
2. यह कि प्रतिपक्षीगण से वाद-व्यय एवं अधिवक्ता फीस के मद में पॉंच हजार रूपये तथा मानसिक एवं शारीरिक कष्ट के मद में नब्बे हजार रूपये सामूहिक रूप से हम परिवादीगण को दिलवाया जाये।
3. यह कि प्रतिपक्षीगण से दवा एवं अन्य खर्चे के मद में 30,000/-रूपये हम परिवादीगण को दिलवाया जाये।
4. यह कि प्रतिपक्षी संख्या-1 को निर्देशित किया जाये कि वे प्रतिपक्षी संख्या-2, 3 व 4 के विरूद्ध व्यक्तिगत रूप से कार्यवाही करें। ताकि भविष्य में ऐसी त्रुटि पुन: किसी अन्य मरीज के साथ न हो सके।
5. यह कि राज्य आयोग की राय में कोई अन्य अनुतोष जो दिलवाया जाना आवश्यक हो उसे भी दिलवाया जाये।
परिवाद की अन्तिम सुनवाई के समय परिवादीगण की ओर से परिवादी संख्या-3 श्री संजय सिंह, स्वयं उपस्थित हुए। विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि परिवादीगण की माता जी के पेट में तेज दर्द की शिकायत हुई, जिस पर उन्हें विपक्षी संख्या-1 के अस्पताल में दिनांक 04.01.2001 को दिखाया गया तथा डाक्टर के परामर्श पर जॉंच करायी गयी तथा जॉचोंपरान्त डाक्टर द्वारा परिवादीगण की
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माता जी को प्रोफेसर एस0एस0डी0 जायसवाल को दिखाने हेतु कहा गया। परिवादीगण ने आवश्यक शुल्क जमा करके दिनांक 22.02.2001 को प्रोफेसर एस0एस0डी0 जायसवाल को दिखाया, जिस पर उनके द्वारा भी जॉंच कराने का निर्देश देते हुए यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के डाक्टर को दिखाने हेतु सलाह दी।
परिवादीगण ने नियत शुल्क जमा करके दिनांक 16.03.2001 को डा0 दिवाकर दलेला को दिखाया और उनके द्वारा भी जॉंच लिखी गयी और परिवादीगण द्वारा अपनी माता जी की जॉंच करायी गयी और डाक्टर की राय के अनुसार दवाईयों का सेवन प्रारम्भ किया गया। पुन: दिनांक 22.03.2001 को डा0 दिवाकर दलेला द्वारा परिवादीगण की माता को देखा गया तथा एक सप्ताह बाद आने को कहा गया, दी गयी दवाईयों को समय से खाते रहने को कहा गया व मरीज को भर्ती करने की सलाह दी गयी।
परिवादीगण ने पैसों का इन्तजाम करके दिनांक 12.04.2001 को विपक्षी संख्या-1 के आन्कोलोजी डिपार्टमेंट में अपनी माता जी को भर्ती कराया, जिसके लिए दिनांक 12.04.2001 को 300/-रू0 व 30/-रू0 जमा कर रसीद प्राप्त की। परिवादीगण की माता जी की जॉंच की गयी और दवायें लिखी गयी, साथ ही तीन दिन इंजेक्शन लगना भी लिखा गया, जिस पर दिनांक 19.04.2001 एवं 20.04.2001 को परिवादीगण की माता जी को इंजेक्शन लगाये गये, किन्तु दिनांक 21.04.2001 को इंजेक्शन नहीं लगाया गया तथा दिनांक 22.04.2001 को भी रविवार के अवकाश के कारण परिवादीगण की माता जी को इंजेक्शन नहीं लग सका। दिनांक 23.04.2001 को प्रात: 5.00 बजे परिवादीगण की माता जी का सम्पूर्ण बाया अंग कार्य करना बंद कर दिया।
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दिनांक 23.04.2001 को प्रोफेसर आई0डी0 शर्मा द्वारा परिवादीगण की माता जी को देखकर न्यूरोलोजी व मेडिसिन विभाग के डाक्टरों को ट्रान्सफर लेने व मरीज की स्थिति देखने के लिए लिखा। उसी दिन दो डाक्टर आये और उन लोगों ने सी0टी0 स्कैन कराने को कहा, जो चरक पैथालोजी से सी0टी0 स्कैन होकर सायं 04:00 बजे रिपोर्ट मिली। विपक्षी संख्या-2 एवं 3 द्वारा आन्कोलोजी डिपार्टमेंट से मरीज को ट्रान्सफर नहीं लिया गया, जिससे इलाज नहीं हो सका। दिनांक 27.04.2001 को परिवादीगण की माता पूर्णरूपेण अचेत हो गयी, जिसके बाद विपक्षी संख्या-3 द्वारा मेडिसिन डिपार्टमेंट में ट्रान्सफर चार दिन बाद ले लिया गया, जबकि विपक्षी संख्या-2 द्वारा मात्र दिनांक 24.04.2001 को बिना देखे मरीज को एक दिन की दवा लिखी और कभी भी मरीज के पास नहीं आये। विपक्षी संख्या-2 व 3 की लापरवाही तथा जिम्मेदारी पूर्वक कार्य न करने के कारण परिवादीगण की माता जी की बीमारी बढ़ गयी और अन्तत: दिनांक 30.04.2001 को उनकी मृत्यु हो गयी, जो कि विपक्षीगण की सेवा में कमी है। अत: विवश होकर परिवादीगण ने परिवाद इस न्यायालय के सम्मुख योजित किया है।
विपक्षी संख्या-2 व 4 की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करते हुए परिवाद पत्र के अधिकांश कथनों को अस्वीकार करते हुए कथन किया कि परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की परिधि में नहीं आता है, अत: परिवाद पोषणीय नहीं है, साथ ही यह भी कथन किया गया कि परिवादीगण की माता जी का कैंसर की चौथी और अंतिम स्टेज पर भी समुचित इलाज चिकित्सालय द्वारा किया गया है। उनकी ओर से सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की गयी है।
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विपक्षी संख्या-3 की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करते हुए परिवाद पत्र के अधिकांश कथनों को अस्वीकार करते हुए कथन किया गया कि परिवादीगण की माता जी कभी भी उनकी मरीज नहीं रही हैं तथा न ही उनके द्वारा मरीज का इलाज किया गया है। उनकी ओर से सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की गयी है।
परिवादीगण की ओर से परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में शपथ पत्र एवं चिकित्सालय में फीस अदा करने की रसीदें एवं दवा/जॉंच रिपोर्ट की प्रतियॉं प्रस्तुत की गयी हैं।
विपक्षीगण की ओर से अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र एवं अन्य आवश्यक साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं।
हमारे द्वारा परिवादी संख्या-3 श्री संजय सिंह को विस्तारपूर्वक सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
परिवादी संख्या-3 श्री संजय सिंह को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त यह पाया गया कि परिवादीगण की माता जी को कैंसर था, जो चौथी स्टेज पर था, साथ ही परिवादीगण की माता जी का समुचित इलाज मेडिकल कालेज के डाक्टरों द्वारा किया गया। परिवादीगण द्वारा जो दवा व जॉंचों पर धनराशि खर्च की गयी है, वह मरीज को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हेतु किया गया है। परिवादीगण की माता जी की अनेकों डाक्टर द्वारा शीघ्र लाभ के उद्देश्य से जॉंच आदि करायी गयी है ताकि मरीज जल्दी-से-जल्दी ठीक हो सके, न कि परिवादीगण एवं माताजी को परेशान करने की नियत से। चूँकि परिवादीगण की माता जी को कैंसर आखिरी स्टेज पर था, अत: उपचार के दौरान उन्हें बचाया नहीं जा सका। इसमें किसी भी प्रकार
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की चिकित्सीय सेवा में कमी परिलक्षित नहीं होती है।
उल्लेखनीय है कि विपक्षी संख्या-2, 3 व 4, जिनके द्वारा परिवादीगण की माता जी का इलाज किया जाना उल्लिखित किया गया है, उस समय उपरोक्त विपक्षीगण विपक्षी चिकित्सालय के0जी0एम0यू0 में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत् थे अर्थात् लगभग 24 वर्ष पूर्व विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत् रहने के साथ निश्चित रूप से विपक्षी संख्या-2, 3 व 4 द्वारा लगभग 20 वर्ष पूर्व अवकाश ग्रहण किया जा चुका होगा। उनकी उपलब्धता आदि के संबंध में भी किसी पक्षकार द्वारा किसी भी स्थिति से अवगत नहीं कराया गया।
अत: समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए हमारे विचार से विपक्षीगण की सेवा में किसी भी प्रकार की कोई कमी परिलक्षित नहीं होती है। तदनुसार परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जाता है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1