राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-429/2012
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया
बनाम
श्रीमती केतकी पत्नी श्री देशराज
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी0एस0 बिसारिया,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 05.04.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, उन्नाव द्वारा परिवाद संख्या-80/2010 श्रीमती केतकी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 15.12.2011 के विरूद्ध योजित की गयी है। प्रस्तुत अपील विगत लगभग 12 वर्ष से लम्बित है।
मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिनी के पिता स्वर्गीय राम बिहारी द्वारा पालिसी संख्या-217151572 विपक्षीगण से ली गयी थी। परिवादिनी उपरोक्त पालिसी में नामिनी थी। परिवादिनी के पिता द्वारा एक गाय क्रय की गयी थी, जिसे घर में खूंटे से बांधने के दौरान वे गिर गये, जिससे उनके दाहिने पैर का कूल्हा टूट गया। परिवादिनी द्वारा अपने पिता का बहुत इलाज
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कराया गया, परन्तु अन्त में परिवादिनी के पिता की दिनांक 14.12.2008 को मृत्यु हो गयी। परिवादिनी द्वारा बीमा राशि हेतु दावा प्रस्तुत किया गया, जिसे बीमा निगम द्वारा गलत आधारों पर अस्वीकार किया गया। अत: क्षुब्ध होकर परिवादिनी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी बीमा निगम द्वारा मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि बीमा धारक द्वारा बीमा प्रस्ताव दिनांक 06.11.2006 को भरा गया तथा प्रथम प्रीमियम की राशि 1186/-रू0 जमा की गयी। दिनांक 06.11.2006 के प्रश्नों के दिये गये उत्तर को सत्य मानते हुए विपक्षी द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किया गया था। बीमा धारक की मृत्यु की सूचना परिवादिनी के पत्र द्वारा दिनांक 12.01.2009 को प्राप्त होने पर जांच करायी गयी, जिसमें यह पाया गया कि बीमा धारक द्वारा पालिसी लेने के समय एक प्रीमियम का भुगतान किया गया था, उसके बाद बीमा धारक द्वारा कोई प्रीमियम जमा नहीं किया गया तथा पालिसी लैप्स हो गयी।
विपक्षी का कथन है कि दिनांक 01.12.2008 को बीमा धारक द्वारा सभी बकाया 8 किश्तों में भुगतान कर पालिसी को पुर्नजीवित कराया तथा पुर्नजीवित होने के 14 दिन बाद उसकी मृत्यु हो गयी। अत: यह दावा अल्पावधि मृत्यु दावे की श्रेणी में आता है। जांच में यह पाया गया कि बीमा धारक टी0बी0 से पीडि़त था तथा इसका इलाज भी उसने कराया था। दिनांक 01.12.2008 को पालिसी का पुन: प्रवर्तन कराने हेतु बीमा धारक द्वारा अपने स्वास्थ्य के संबंध में गलत उत्तर दिया गया। बीमा धारक दिनांक 01.12.2008 के पूर्व से ही टी0बी0 से पीडि़त था। विपक्षी बीमा निगम द्वारा उचित रूप से बीमा दावा अस्वीकार किया गया। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
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विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्त परिवाद निर्णीत करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया है:-
''परिवाद एतदद्वारा स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वे परिवादिनी को पालिसी संख्या-217151572 के सम्बन्ध में मु0 रूपये 1,60,000/- की राशि का भुगतान करें। इस राशि पर परिवादिनी दिनांक 31-3-2009 से अदायगी की तिथि तक 18 प्रतिशत सालाना साधारण ब्याज पाने की अधिकारिणी होगी।
परिवादिनी विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति के रूप में 20,000/-रूपये की राशि तथा परिवाद व्यय के रूप में 3,000/-रूपये की राशि पाने की अधिकारिणी होगी।''
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया का कथन है कि वास्तव में बीमा पालिसी में सम एश्योर्ड की धनराशि 60,000/-रू0 उल्लिखित की गयी है, जिसके विरूद्ध जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा बिना किसी तथ्य का संज्ञान लेते हुए उपरोक्त पालिसी में 60,000/-रू0 सम एश्योर्ड के स्थान पर 1,60,000/-रू0 की धनराशि के भुगतान हेतु आदेश पारित किया गया।
मेरे विचार से अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया के कथन में बल है। तथ्यों एवं जिला उपभोक्ता आयोग के निर्णय का समर्थन करते हुए आदेश में उल्लिखित भुगतान हेतु धनराशि 1,60,000/-रू0 के स्थान पर 60,000/-रू0 भुगतान हेतु आदेशित किया जाना उचित है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया का कथन है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा ब्याज की देयता अत्यधिक व बिना किसी उल्लेख के 18 प्रतिशत सालाना निर्धारित
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की गयी है, जो मेरे विचार से अत्यधिक है, जिसे घटाकर 08 प्रतिशत सालाना साधारण ब्याज की देयता निर्धारित किया जाना उचित है।
इसके साथ ही क्षतिपूर्ति के रूप में धनराशि 20,000/-रू0 को घटाकर 10,000/-रू0 किया जाना न्यायोचित पाया जाता है। परिवाद व्यय के रूप में 3,000/-रू0 की धनराशि समुचित प्रतीत होती है।
तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता आयोग, उन्नाव द्वारा परिवाद संख्या-80/2010 श्रीमती केतकी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 15.12.2011 को संशोधित करते हुए बीमा राशि 60,000/-रू0 (साठ हजार रूपये) के भुगतान हेतु आदेशित किया जाता है तथा इस राशि पर दिनांक 31.03.2009 से अदायगी की तिथि तक 08 (आठ) प्रतिशत सालाना साधारण ब्याज की देयता निर्धारित की जाती है। इसके साथ ही क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000/-रू0 (दस हजार रूपये) की देयता निर्धारित की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग का शेष आदेश यथावत् रहेगा।
अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को सम्पूर्ण आदेशित/देय धनराशि का भुगतान इस निर्णय की तिथि से 45 दिन में किया जावे अन्यथा की स्थिति में सम्पूर्ण आदेशित/देय धनराशि पर 10 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज देय होगा।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस
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निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1