राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 73/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, झांसी द्वारा परिवाद सं0- 133/2015 में पारित आदेश दि0 26.11.2015 के विरूद्ध)
- M/s Ansal housing and construction Ltd. Through its Managing Director Registered office : 15 U.D.F. Indra prakash 21, Barahkhamba road, New Delhi.
- M/s Ansal housing and construction Ltd. Site office : Opposite sakhi ke Hanuman, Distt. Jhansi Through it’s Manager.
………..Appellants
Versus
Kedar nath arya S/o Shri Musaddi lal arya R/o Dr. D.L. Gautam hospital, main road, Hansari, Distt. Jhansi.
………… Respondent
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : सुश्री सुचिता सिंह,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 27.11.2018
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 133/2015 केदारनाथ आर्य बनाम प्रबंध निदेशक अंसल हाउसिंग एण्ड कंसट्रक्शन लि0 व एक अन्य में जिला फोरम, झांसी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 26.11.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
“परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाता है, और विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह एक माह के अन्दर यूनिट पूर्ण रूप से तैयार कर उसका कब्जा परिवादी को प्रदान करें, एवं रजिस्ट्री करावें, एवं परिवादी द्वारा जमा की गयी अधिक धनराशि मु0124747/-रू0 वापिस करें। अगर एक माह के अन्दर विपक्षी उपरोक्त आदेश का पालन नहीं करेगा तो सम्पूर्ण जमा धनराशि पर 16 प्रतिशत ब्याज परिवाद दाखिल के दिनांक से रजिस्ट्री और कब्जा हस्तांतरण के दिनांक तक अदा करेगा।“
जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता सुश्री सुचिता सिंह उपस्थित आयीं हैं। नोटिस तामीला के बाद भी प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है, अत: अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुनकर अपील का निस्तारण किया जा रहा है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को आवंटित यूनिट का बेसिक प्राइस 20,80,000/-रू0 है और प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपनी जमा धनराशि 19,35,200/-रू0 पर दि0 25.06.2013 से यूनिट की रजिस्ट्री न करने तक 21 प्रतिशत ब्याज दिलाये जाने व भौतिक कब्जा दिलाये जाने का निवेदन किया है। साथ ही 20,000/-रू0 मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति भी मांगा है। इस प्रकार परिवाद का मूल्यांकन मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा अम्बरीश शुक्ला आदि बनाम फेरस इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड 2016 (4) सी0पी0आर0 83 के वाद में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर 20,00,000/-रू0 से अधिक है। अत: परिवाद जिला फोरम की आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से स्पष्ट रूप से अपने लिखित कथन में आपत्ति की गई है, फिर भी जिला फोरम ने परिवाद ग्रहण कर आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरुद्ध है।
मैंने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवाद में ही प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्पष्ट कथन किया है कि उसे आवंटित प्रश्नगत यूनिट का बेसिक सेल प्राइस 20,80,000/-रू0 है और परिवाद पत्र में उसने निम्न अनुतोष चाहा है:-
- यह कि जमासुदा रकम 19,35,200/-रू0 दिनांक 25.06.2013 से यूनिट की रजिस्ट्री न करने तक 21 प्रतिशत ब्याज सहित दिलाया जावे एवं भौतिक कब्जा भी दिलाया जावे।
- यह कि मानसिक कष्ट के तहत 20,000/-रू0 दिलाया जावे।
- यह कि परिवाद खर्चे के तहत 10,000/-रू0 दिलाया जावे।
- यह कि अन्य मुआवजा जो न्यायालय की राय में उचित
समझा जावे वह भी दिलाया जावे।
परिवाद पत्र के कथन एवं याचित अनुतोष के आधार पर मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा अम्बरीश शुक्ला आदि बनाम फेरस इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड 2016 (4) सी0पी0आर0 83 के वाद में दिये गये निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए परिवाद का मूल्यांकन 20,00,000/-रू0 से अधिक है। अत: परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है। जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय से स्पष्ट है कि विपक्षी ने स्पष्ट रूप से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन में कहा है कि परिवादी ने 20,80,000/-रू0 की धनराशि के आधार पर कब्जा प्राप्त करने के अनुतोष के साथ यह परिवाद दाखिल किया है। साथ ही 20,000/-रू0 मानसिक कष्ट के लिए और 10,000/-रू0 वाद व्यय के लिए तथा 19,35,200/-रू0 पर 21 प्रतिशत ब्याज मांगा है। अत: परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार जिला फोरम को नहीं है।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि परिवाद का मूल्यांकन 20,00,000/-रू0 से अधिक है जब कि जिला फोरम का आर्थिक क्षेत्राधिकार 20,00,000/-रू0 के मूल्यांकन तक ही सीमित है। अत: परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है, फिर भी जिला फोरम ने परिवाद में आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अधिकार रहित और विधि विरुद्ध है। अत: अपील स्वीकार कर जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अपास्त किया जाना और परिवाद परिवादी को सक्षम फोरम में प्रस्तुत करने की छूट के साथ निरस्त किया जाना विधि सम्मत है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अपास्त कर परिवाद प्रत्यर्थी/परिवादी को इस छूट के साथ निरस्त किया जाता है कि वह विधि के अनुसार राज्य आयोग के समक्ष अपना परिवाद प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थीगण को वापस की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1