Uttar Pradesh

Kanpur Nagar

cc/1023/2002

Satindra Swaroop - Complainant(s)

Versus

KDA - Opp.Party(s)

10 Jun 2016

ORDER

 
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।
 
   अध्यासीनः   डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष
पुरूशोत्तम सिंह...............................................सदस्य
               
 
 
उपभोक्ता वाद संख्या-1023/2002
षतीन्द्र स्वरूप पुत्र स्व0 श्री लालबिहारी निवासी मकान नं0-57, नानकारी आई0आई0टी0, कानपुर नगर।
                                  ................परिवादी
बनाम
कानपुर विकास प्राधिकरण, मोतीझील, कानपुर नगर द्वारा उपाध्यक्ष।
                           ...........विपक्षी
परिवाद दाखिला तिथिः 16.10.2002
निर्णय तिथिः 13.06.2017
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1.   परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि परिवादी को आवंटित प्रष्नगत भवन विपक्षी से, जो कि परिवादी को वर्श 1990 में मिलना चाहिए था, का अवमूल्यन करते हुए ब्याज रहित अवषेश सामान्य किष्तों में दिलाया जाये, वर्श 1990 से कब्जा न मिल पाने के कारण परिवादी द्वारा किराये के मकान में रहकर खर्च की गयी राषि रू0 48,000.00 दिलायी जाये, वर्श 1990 से भागदौड़ तथा अन्य खर्चों में व्यय की गयी धनराषि रू0 15000.00 दिलायी जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि परिवादी को विपक्षी के पत्र सं0-4134/डी/सेल दिनांकित 02.07.90 द्वारा विपक्षी की रतनपुर निर्बल आय वर्ग योगना के अंतर्गत भवन सं0-ई/736 आवंटित किया गया, जिसका वास्तविक मूल्य रू0 41,281.00 व क्षेत्रफल 52 वर्गमीटर है। आवंटन पत्र भवन के कुल मूल्य का एक चौथाई धनराषि रू0 10320.25 में पूर्व में जमा रजिस्ट्रेषन षुल्क की धनराषि रू0 1000.00 घटाकर निर्धारित राषि रू0 9320.25 एवं लीज रेन्ट रू0 1661.00 दिनांक 20.08.90 को तथा अन्य व्यय रू0 20.00 दिनांक 26.10.90 को यूको बैंक षाखा आर्यनगर में जमा कर दिया तथा आवंटन सम्बन्धी समस्त औपचारिकतायें स्टाम्प तथा सीलिंग षपथपत्र आदि पूर्ण  कर दी गयी थी। 
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विपक्षी के आवंटन पत्र के अनुसार औपचारिकतायें पूर्ण करने के उपरांत भवन के कब्जे हेतु अधिकार पत्र दिया जाना था तथा उसके अनुसार आवंटित भवन का कब्जा परिवादी को दिया जाना था। परिवादी द्वारा समस्त औपचारिकताओं को पूर्ण करने के उपरान्त भी विपक्षी द्वारा परिवादी को प्रष्नगत भवन का कब्जा व अधिकार पत्र नहीं दिया गया। विपक्षी के द्वारा पत्र सं0-सेल बी/1126 दिनांकित 05.06.91 के द्वारा अनुचित रूप से रू0 92.00 ब्याज जमा करने हेतु मांग की गयी जिस पर परिवादी द्वारा वस्तु स्थिति ज्ञात करते हुए अनुचित ब्याज की राषि रू0 92.00 माफ किये जाने हेतु कई बार लिखित व मौखिक अनुरोध किया, लेकिन विपक्षी द्वारा इस सम्बन्ध में न तो कोई कार्यवाही की गयी और न ही कोई उत्तर दिया गया और न ही कब्जे से सम्बन्धित कोई कार्यवाही पूर्ण की गयी। इसके उपरांत संयुक्त सचिव जोन-2 द्वारा पत्र 11.09.98 के द्वारा परिवादी को सूचित किया गया कि अवषेश धनराषि रू0 42,038.83, 15 प्रतिषत ब्याज तथा 3 प्रतिषत दण्ड ब्याज सहित दिनांक 30.09.98 तक जमा करें, जो कि लिफाफे में गलत नाम अंकित होने के कारण परिवादी को विलम्ब से प्राप्त हुआ। परिवादी एक अल्प आय वर्ग का व्यक्ति है, जिसके लिए रू0  42,038.38 एवं 18 प्रतिषत ब्याज सहित दिनांक 30.09.98 तक जमा करना संभव नहीं था। इसलिए परिवादी द्वारा समय-सीमा बढ़ाने तथा नियमानुसार उचित अवषेश किष्तों की धनराषि बताने हेतु दिनांक 26.09.98 को अनुरोध किया गया-जिस पर संयुक्त सचिव जोन-2 के द्वारा अपने पत्रांक-229/डी/जे एस प्प्ध्99.2000 दिनांकित 22.10.99 द्वारा अवषेश किष्तों की धनराषि रू0 16,031.73 तथा दण्ड ब्याज रू0 13,707.13 की मांग की गयी। परिवादी द्वारा दिनांक 29.10.99 को विपक्षी के कार्यालय में संपर्क किया गया एवं वस्तु स्थिति से अवगत कराते हुए अनुरोध किया कि दण्ड ब्याज की राषि रू0 13,707.13 उचित नहीं है, क्योंकि प्राधिकरण स्तर पर कार्यवाही न किये जाने के परिणामस्वरूप उक्त भवन के अनुबन्ध में देरी हुई, जिस पर संतुश्ट होकर उन्होंने रू0 16,031.00 जमा किये जाने के निर्देष दिये। जिस पर परिवादी द्वारा दिनांक 20.10.99 को रू0 16,031. 
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बुक सं0-733 रसीद सं0-87 द्वारा जमा किये गये तथा उस अवधि में लगातार रू0 433.00 के हिसाब से माह 11 सन् 2001 तक कुल 62 किष्तें की अदायगी परिवादी द्वारा की जा चुकी है। परिवादी द्वारा कब्जे की कार्यवाही के सम्बन्ध में कई बार लिखा गया, परन्तु विपक्षी द्वारा इस सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं की गयी। बल्कि अनुचित तरीके से धन अदायगी की मांग की जाती रही। इसके उपरांत षासनादेष सं0-3058/ 9/आ/1/01/57डी0सी0/2002 दिनांकित 27.07.02 के अनुसार विपक्षी कार्यालय द्वारा दिनांक 20.08.02 को दैनिक जागरण समाचार पत्र में प्रकाषित किया गया कि जिन आवंटियों द्वारा अनुबन्ध नहीं कराया गया है, वह विज्ञापन की तिथि से एक माह के अंदर अनुबन्ध करा लें। जिसके सम्बन्ध में परिवादी ने पत्र दिनांक 21.08.02 के द्वारा अनुबन्ध की कार्यवाही एवं कब्जा दिलाये जाने हेतु अनुरोध किया। तदोपरांत विपक्षी द्वारा दिनांक 24.08.2002 को अपने पत्र के द्वारा परिवादी को सूचित किया कि परिवाद भवन के मद में जमा धनराषि वापस प्राप्त कर ले, जो कि सरासर नाइन्साफी है और विपक्षी द्वारा की गयी सेवाओं में कमी का प्रत्यक्ष उदाहरण है। परिवादी को आर्थिक, मानसिक व षारीरिक क्षति हुई। फलस्वरूप परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
3. विपक्षी की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके, परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि परिवादी द्वारा आवंटन पत्र के अनुसार किष्तों की अदायगी न किये जाने के कारण परिवादी के भवन का अनुबन्ध नहीं किया जा सका। वर्तमान में उत्तर प्रदेष सरकार ने यह व्यवस्था दी है कि ई.डब्लू.एस. वर्ग का कोई आवंटी अपने आवंटित भवन की पूरी धनराषि जमा करके रू0 500.00 पर फ्रीहोल्ड निबन्धन कराकर कब्जा प्राप्त कर सकता है। परिवादी को विपक्षी द्वारा दिनांक 11.09.98, 07.06.01, 27.03.02, 05.04.02 एवं 24.08.02 को धनराषि जमा करने हेतु पत्र प्रेशित किये गये, लेकिन परिवादी द्वारा धनराषि जमा नहीं की गयी। इससे स्वयमेंव स्पश्ट होता है कि विपक्षी द्वारा 
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सेवा देने में कोई कमी नहीं की गयी है। वास्तविकता यह है कि परिवादी द्वारा ब्याज के रू0 92.00 जमा नहीं किये गये, जिस कारण अनुबन्ध पत्र पर परिवादी के हस्ताक्षर नहीं हुए है, जिसके कारण अनुबन्ध पत्र निश्पादित नहीं किया गया। परिवादी ने रू0 92.00 ब्याज के माफ किये जाने के लिए विपक्षी के कार्यालय से संपर्क किया था, किन्तु ब्याज माफी का अधिकार प्राधिकरण के पास नहीं है। इस कारण परिवादी का ब्याज माफ नहीं किया गया। आवंटन पत्र में जो भी षर्ते निर्धारित की जाती है, उन षर्तों के विपरीत एक मामले में जाना प्राधिकरण के लिए सम्भव नहीं है। परिवादी से विपक्षी द्वारा रू0 92.00 ब्याज के मांगे गये थे, लेकिन परिवादी द्वारा वह धनराषि जमा नहीं की गयी। विपक्षी द्वारा दिनांक 11.09.98 को परिवादी को सूचित किया गया था कि वह अवषेश धनराषि रू0 42,038.83 15 प्रतिषत ब्याज एवं 3 प्रतिषत दण्ड ब्याज के साथ दिनांक 30.09.98 तक प्राधिकरण कोश में जमा कर दे। परिवादी का यह कथन स्वीकार है कि लिफाफे में गलत नाम अंकित होने के कारण परिवादी को वह पत्र काफी विलम्ब से प्राप्त हुआ। परिवादी द्वारा दिनांक 26.09.98 को विभाग में एक पत्र इस आषय का प्रेशित किया गया था कि वह रू0 42,038.83, 18 प्रतिषत ब्याज सहित दिनांक 30.09.98 तक जमा करने में असमर्थ है। परिवादी का यह कथन गलत है कि परिवादी द्वारा दिनांक 29.10.99 को विपक्षी से संपर्क करने पर एवं ब्याज धनराषि रू0 13707.13 माफ किये जाने का अनुरोध करने पर प्राधिकरण द्वारा कहने पर, परिवादी ने किष्तों के रू0 16,031.00 विपक्षी के यहां जमा किये गये थे। विपक्षी इस बात से इंकार करता है कि परिवादी रू0 433.00 के हिसाब से नवम्बर 2001 तक कुल 62 किष्तों की अदायगी कर चुका है। इस सम्बन्ध में विपक्षी का कथन है कि परिवादी द्वारा ब्याज और दण्ड ब्याज से बचने के लिए गलत उद्देष्य से मा0 फोरम में परिवाद दाखिल किया गया है। परिवादी को जो आवंटन पत्र जारी किया गया था, उस आवंटन पत्र में यह लिखा था कि भवन की कीमत की 3/4 धनराषि 15 प्रतिषत ब्याज के 433.20 प्रति किष्त की दर से 180 किष्तों में देय होगी। आवंटन पत्र दिनांक 02.07.90 
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में यह भी लिखा था कि निर्धारित तिथि पर किष्त जमा न करने पर 6 प्रतिषत अतिरिक्त दण्ड ब्याज देय होगा। प्राधिकरण के नियमों के अनुसार विलम्बित अवधि की देय तिथि तक मूल किष्तों की धनराषि में घटाया जाता है, उस आधार पर परिवादी की 62 किष्तें जमा नहीं बनती हैं। परिवादी द्वारा विपक्षी द्वारा भेजे गये पत्र दिनांकित 27.03.02 के अनुपालन में रू0 1,13,419.81 जमा नहीं किया गया है। भवन की पूरी रकम अदा करने पर परिवादी के पक्ष में निबन्धन की कार्यवाही किये जाने के पष्चात उसे भवन का कब्जा दे दिया जायेगा। विपक्षी द्वारा दिनांक 20.08.02 को अनुबन्ध हेतु प्रकाषन कराया गया था। यह प्रकाषन परिवादी के मामले में लागू नहीं होता है। क्योंकि परिवादी का आवंटन दिनांक 02.07.90 का है। अतः परिवाद सव्यय खारिज किया जाये।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
4. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 02.11.06 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में कागज 1/1 लगायत् 1/71 दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5. विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में एन0एन0 सिंह, अनु सचिव का षपथपत्र दिनांकित 09.08.07 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में कागज सं0-2/1 लगायत् 2/8 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
निष्कर्श
6. फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं विपक्षी द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया।
उभयपक्षों की ओर से उपरोक्त प्रस्तर-5 व 6 में वर्णित षपथपत्रीय व अन्य अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं। पक्षकारों की ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त साक्ष्यों में से मामले को निर्णीत करने में सम्बन्धित साक्ष्यों का ही आगे उल्लेख किया जायेगा।
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उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि प्रस्तुत मामले में निम्नलिखित विचारणीय वाद बिन्दु बनते हैंः-
1. क्या परिवादी वर्श 1990 में उसे प्राप्त होने वाले, उसके पक्ष में आवंटित प्रष्नगत प्लाट का अवमूल्यन करते हुए ब्याज रहित अवषेश सामान्य किष्तों में प्राप्त करने का अधिकारी है, यदि हां तो प्रभाव?
2. क्या परिवादी वर्श 1990 से प्रष्नगत भवन का कब्जा न मिल पाने के कारण परिवादी द्वारा किराये के मकान पर रहकर खर्च की गयी धनराषि रू0 48,000.00 प्राप्त करने का अधिकारी है, यदि हां तो प्रभाव?
3. क्या परिवादी का परिवाद कालबाधित है, यदि हां तो प्रभाव?
4. क्या परिवादी द्वारा प्रष्नगत प्लाट की कीमत अदा करने में डिफाल्टर रहा है, यदि हां तो प्रभाव?
5. क्या परिवादी कोई अनुतोश प्राप्त करने का अधिकारी है, यदि हां तो प्रभाव?
विचारणीय वाद बिन्दु संख्या-01
7. यह वाद बिन्दु सिद्ध करने का भार परिवादी पर है। परिवादी की ओर से यह कहा गया है कि उसके द्वारा दिनांक 20.08.90 तक प्रष्नगत प्लाट से सम्बन्धित धनराषि व अन्य व्यय विपक्षी के यूको बैंक षाखा आर्यनगर में जमा कर दिया गया था तथा समस्त औपचारिकतायें स्टाम्प तथा सीलिंग षपथपत्र आदि पूर्ण कर दिये गये थे। परिवादी वर्श 1990 में, उसे प्राप्त होने वाले, उसके पक्ष में आवंटित प्लाट का अवमूल्यन करते हुए ब्याज रहित अवषेश सामान्य किष्तों में प्राप्त करने का अधिकारी है। किन्तु विपक्षी के द्वारा अनुचित रूप से रू0 92.00 ब्याज जमा करने की मांग की गयी, जिससे परिवादी वस्तु स्थिति की जानकारी करते हुए अनुचित ब्याज की राषि रू0 92.00 माफ किये जाने हेतु कई बार लिखित व मौखिक अनुरोध किया, लेकिन विपक्षी द्वारा इस सम्बन्ध में न तो कोई कार्यवाही की गयी और न ही कोई उत्तर दिया गया और न ही  कब्जे से सम्बन्धित 
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कोई कार्यवाही पूर्ण की गयी। बल्कि विपक्षी के संयुक्त सचिव के पत्र दिनांकित 11.09.98 के द्वारा परिवादी से अवषेश धनराषि रू0 42,038.83,  15 प्रतिषत ब्याज तथा 3 प्रतिषत दण्ड ब्याज सहित दिनांक 30.09.98 तक जमा करने का निर्देष दिया गया, जो कि परिवादी को लिफाफे में गलत नाम अंकित होने के कारण विलम्ब से प्राप्त हुआ, इसलिए परिवादी द्वारा समय-सीमा बढ़ाने तथा नियमानुसार अवषेश किष्तों की धनराषि बताने हेतु दिनांक 26.09.98 को अनुरोध किया गया। तदोपरांत विपक्षी द्वारा किष्तों की धनराषि रू0 16,031.73 तथा दण्ड ब्याज रू0 13,707.13 बतायी गयी। परिवादी द्वारा दण्ड ब्याज की राषि उचित न मानते हुए उसे समाप्त करने का अनुरोध किया गया और यह कहा गया कि प्राधिकरण स्तर पर कार्यवाही न किये जाने के परिणामस्वरूप उक्त भवन के अनुबन्ध में देरी हुई। जिस पर संतुश्ट होकर विपक्षी ने रू0 16,031.00 जमा किये जाने के निर्देष दिये। परिवादी द्वारा दिनांक 20.10.99 को रू0 16,031.00 जमा किये गये थे। विपक्षी द्वारा उपरोक्त कथन का खण्डन किया गया है। फोरम द्वारा उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से फोरम का यह मत है कि परिवादी के उपरोक्त कथन से स्वयं परिवादी का उपरोक्त कथन ही विरोधाभाशी प्रतीत होता है। क्योंकि एक तरफ परिवादी द्वारा रू0 92.00 ब्याज विपक्षी द्वारा लगाया जाना अनुचित बताया गया है और दूसरी तरफ विपक्षी द्वारा उक्त धनराषि को माफ किये जाने के बारे में यह कहा गया है कि परिवादी द्वारा कई बार लिखित व मौखिक अनुरोध, उक्त रू0 92.00 का ब्याज माफ किये जाने का विपक्षी से किया गया। उक्त ब्याज की मांग परिवादी द्वारा विपक्षी के पत्र दिनांकित 05.06.91 से बतायी गयी है। जब परिवादी को दिनांक 05.06.91 के पत्र से यह ज्ञात हो गया कि विपक्षी द्वारा रू0 92 ब्याज की अनुचित मांग की जा रही है, तो वर्श 1991 से मुकद्मा दाखिल करने की तिथि 16.10.02 तक परिवादी मात्र विपक्षी से उक्त धनराषि माफ किये जाने हेतु पत्राचार किया जाता रहा। परिवादी के स्वयं के द्वारा किये गये कथन से स्पश्ट होता       है कि विपक्षी द्वारा दिनांक 11.09.98 को परिवादी से अवषेश  धनराषि की 
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मांग मय ब्याज 15 प्रतिषत तथा 3 प्रतिषत दण्ड ब्याज की गयी थी। परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में यह तो कहा गया है कि विपक्षी द्वारा रू0 92.00 ब्याज की गलत मांग की गयी है। किन्तु इस सम्बन्ध में कोई स्पश्ट कथन नहीं किया गया कि विपक्षी द्वारा ब्याज के रूप में रू0 92.00 किस प्रकार से गलत मांगे गये थे। परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के प्रस्तर-15 के उप प्रस्तर-’’अ’’ में यह कहा गया है कि, ’’परिवादी को आवंटन पत्र के अनुसार भवन सं0-736/1550 ई.डब्लू.एस. रतनपुर का कब्जा जो कि वर्श 1990 में परिवादी को मिलना चाहिए था, का अवमूल्यन करते हुए ब्याज रहित अवषेश सामान्य किष्तों में दिलाया जावे।’’ यह भी अस्पश्ट है। परिवादी द्वारा अनुतोश में प्रष्नगत भवन के पंजीकरण की बात कहीं पर भी नहीं लिखी गयी है। परिवादी द्वारा अपने उपरोक्त कथन के समर्थन में कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। विधि का यह प्रतिपादित सिद्धांत है कि जिन तथ्यों को अन्य प्रलेखीय साक्ष्यों के माध्यम से स्पश्ट किया जा सके, उन तथ्यों को मात्र षपथपत्रीय साक्ष्य के आधार पर प्रमाणित नहीं माना जायेगा। 
जबकि विपक्षी की ओर से परिवादी द्वारा आवंटन पत्र के अनुसार किष्तों की अदायगी न किये जाने का कारण बताते हुए यह कहा गया है कि विपक्षी द्वारा दिनांक 11.09.98, 07.06.01, 27.03.02, 05.04.02, 24.08.02 तथा 20.02.15 को अवषेश धनराषि जमा करने हेतु पत्र प्रेशित किये जाने के बावजूद परिवादी द्वारा अवषेश धनराषि जमा न किये जाने के कारण अनुबन्ध सम्पादित नहीं हो सका। विपक्षी द्वारा रू0 92.00 ब्याज को युक्ति-युक्त बताते हुए यह कहा गया है कि परिवादी द्वारा रू0 92.00 ब्याज माफ किये जाने के आधार पर परिवादी, विपक्षी के कार्यालय से संपर्क किया था, किन्तु ब्याज माफी का अधिकार प्राधिकरण के पास नहीं है, इसलिए परिवादी का ब्याज माफ नहीं किया गया। विपक्षी द्वारा परिवादी को अपने पत्र दिनांकित 11.09.98 के द्वारा रू0 42,038.83, 15 प्रतिषत ब्याज तथा 3 प्रतिषत दण्ड ब्याज के साथ दिनांक 30.9.98 तक प्राधिकरण कोश में जमा कर देने के लिए लिखा गया था।  विपक्षी द्वारा  अपने कथन 
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के समर्थन में पत्र दिनांकित 11.09.98, 07.06.01, 27.03.02, 05.04.02, 24.08.02 तथा 20.02.15 की छायाप्रतियॉं प्रस्तुत की गयी हैं, जिनसे विपक्षी के कथन की पुश्टि होती है।
अतः उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों के आलोक में उपरोक्त विचारणीय वाद बिन्दु परिवादी के विरूद्ध तथा विपक्षी के पक्ष में निर्णीत किया जाता है।
विचारणीय वाद बिन्दु संख्या-02
8. यह विचारणीय वाद बिन्दु भी सिद्ध करने का भार परिवादी पर है। परिवादी द्वारा यह कथन किया गया है कि चूॅकि विपक्षी द्वारा परिवादी की ओरसे प्रष्नगत भवन से सम्बन्धित समस्त धनराषि जमा किये जाने के बावजूद कब्जा व दखल व अनुबंध सम्पादित नहीं किया गया है, इसलिए परिवादी को किराये का भवन लेकर रहना पड़ा, जिसके लिए परिवादी याचित धनराषि प्राप्त करने का अधिकारी है। इस सम्बन्ध में परिवादी की ओर से किराये की रसींदे प्रस्तुत की गयी है। किन्तु परिवादी की ओर से प्रलेखीय साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कागज सं0-1/5 के अवलोकन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा प्रष्नगत भवन में रह रहा है। क्योंकि कागज सं0-1/5 पत्र द्वारा परिवादी वहक संयुक्त सचिव विक्रय (विपक्षी) उक्त पत्र में परिवादी द्वारा विपक्षी के संयुक्त सचिव से यह अनुरोध किया गया है कि कालोनी में बिजली, पानी की सुविधा षीघ्र उपलब्ध कराने का कश्ट करे, जिससे कानपुर की गरीब जनता को रहने की सुविधा प्राप्त हो सके। उक्त पत्र में यह भी कहा गया है कि अनुबन्ध न होने के कारण मैं रकम जमा करने में भी रूचि नहीं ले रहा हूॅ। जबकि अनुतोश में अनुबन्ध याचित नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त परिवादी की ओर से प्रस्तुत कागज सं0-1/71 निवास प्रमाण पत्र जारी द्वारा उपजिलाधिकारी सदर कानपुर नगर के अवलोकन से प्रमाणित होता है कि जयपाल पुत्र मोती लाल प्रष्नगत भवन में रह रहा है। परिवादी की ओर से प्रस्तुत पावर ऑफ एटार्नी कागज सं0-1/64 लगायत 1/70 से स्पश्ट होता है कि श्री जयपाल, परिवादी द्वारा नियुक्त एटार्नी है। इस प्रकार परिवादी के स्वयं के कथन व साक्ष्य आपस में विरोधाभाशी हैं।
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अतः उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों से सिद्ध होता है कि प्रष्नगत भवन में परिवादी का कब्जा है। अतः उपरोक्त विचारणीय वाद बिन्दु परिवादी के विरूद्ध तथा विपक्षी के पक्ष में निर्णीत किया जाता है।
विचारणीय वाद बिन्दु संख्या-03
9. यह विचारणीय वाद बिन्दु सिद्ध करने का भार विपक्षी पर है। विपक्षी की ओर से परिवाद कालबाधित होने के सम्बन्ध में यह कथन किया गया है कि प्रष्नगत भवन विपक्षी द्वारा दिनांक 02.07.90 को आवंटित किया गया और प्रस्तुत परिवाद वर्श 2002 में दाखिल किया गया है, जो कि कालबाधित है और इसी आधार पर खारिज होने योग्य है। इस सम्बन्ध में परिवादी की ओर से यह कथन किया गया है कि चूॅकि अभी तक विपक्षी लगातार परिवादी को डिमाण्ड नोटिस भेजता रहा है। इसलिये परिवाद कालबाधित नहीं है।
अतः उपरोक्तानुसार उपरोक्त विचारणीय बिन्दु के सम्बन्ध में उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि विपक्षी लगातार परिवादी को डिमाण्ड नोटिस भेजता रहा है। इसलिए परिवाद कालबाधित नहीं है।
अतः उपरोक्त विचारणीय वाद बिन्दु विपक्षी के विरूद्ध तथा परिवादी के पक्ष में निर्णीत किया जाता है।
विचारणीय वाद बिन्दु संख्या-04
10. यह वाद बिन्दु सिद्ध करने का भार विपक्षी पर है। विपक्षी की ओर से यह कथन किया गया है कि परिवादी द्वारा आवंटन पत्र की षर्तों के अनुसार किष्तों की अदायगी समय से नहीं की गयी। परिवादी किष्तो की धनराषि अदा करने में डिफाल्टर रहा है। विपक्षी द्वारा अपने उपरोक्त कथन के समर्थन में परिवादी को प्रेशित पत्र 11.09.98, 07.06.01, 27.03.02, 05.04.02, 24.08.02 तथा 20.02.15 की छायाप्रतियॉं प्रस्तुत की गयी हैं। परिवादी द्वारा प्रष्नगत भवन से सम्बन्धित धनराषि विपक्षी के कार्यालय में दिनांक 20.08.90 तक जमा किया जाना बताया गया है। किन्तु उपरोक्त 
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वाद बिन्दु सं0-1 के विचारण के दौरान यह निश्कर्श आ चुका है कि परिवादी विपक्षी के द्वारा आरोपित ब्याज की धनराषि रू0 92.00 अदा नहीं की गयी है। विपक्षी द्वारा प्रेशित अग्रिम डिमाण्ड नोटिस दिनांकित 30.09.98 में दिनांक 11.09.98 के आलोक में भी वांछित धनराषि अदा नहीं की गयी है।
अतः उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों व उपरोक्त कारणों से उपरोक्त विचारणीय वाद बिन्दु विपक्षी के पक्ष में तथा परिवादी के विरूद्ध निर्णीत किया जाता है।
विचारणीय वाद बिन्दु संख्या-05
11. उपरोक्त विचारणीय वाद बिन्दुओं में दिये गये निश्कर्श के आधार पर फोरम इस निश्कर्श पर पहुॅचता है कि परिवादी द्वारा यह स्पश्ट नहीं किया जा सका है कि उसके द्वारा रू0 92.00 ब्याज की धनराषि क्यों नहीं अदा की गयी है और विपक्षी के डिमाण्ड नोटिस दिनांकित 11.09.98 के माध्यम से मांगी गयी अवषेश धनराषि क्यों नहीं अदा की गयी? जबकि विपक्षी के द्वारा फोरम के आदेष दिनांक 26.09.12 का उल्लेख करते हुए अपने मौखिक कथन व लिखित बहस में यह कहा गया है कि परिवादी को कितनी धनराषि देनी है, यह मा0 फोरम के द्वारा दिनांक 26.09.12 को आदेष पारित किया गया था। मा0 फोरम के द्वारा पारित आदेष दिनांक 26.09.12 के अनुपालन में विपक्षी द्वारा डिमाण्ड पत्र दिनांक 20.02.15 में कुल धनराषि रू0 2,84,409.00 दिनांक 15.03.15 तक प्राधिकरण कोश में जमा करने की बात कही है, किन्तु परिवादी ने जानबूझकर निर्धारित धनराषि जमा नहीं की गयी है और न ही निबन्धन हेतु कोई कार्यवाही की गयी है।
उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों के आलोक में फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किये जाने योग्य है कि परिवादी, विपक्षी विभाग द्वारा बतायी गयी धनराषि रू0 2,84,409.00 जमा  करके,  प्रष्नगत भवन का विधिक कब्जा व  दखल
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तथा रजिस्ट्रेषन करवा सकता है। जहां तक परिवादी की ओर से याचित अन्य उपषम का सम्बन्ध है- उक्त याचित उपषम के लिए परिवादी द्वारा कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण परिवादी द्वारा याचित अन्य उपषम के लिए परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
ःःःआदेषःःः
12. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर परिवादी रू0 2,84,409.00 विपक्षी विभाग में जमा करके, प्रष्नगत भवन का पंजीकरण, भौतिक, विधिक कब्जा व दखल विपक्षी से प्राप्त कर सकता है। विपक्षी को आदेषित किया जाता है कि विपक्षी परिवादी द्वारा प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर परिवादी द्वारा उपरोक्त धनराषि अदा करने पर अविलम्ब प्रष्नगत भवन का पंजीकरण, भौतिक व विधिक कब्जा व दखल परिवादी को उपलब्ध करायें।
प्रस्तुत मामले के तथ्यों, परिस्थितियों को दृश्टिगत रखते हुए यह स्पश्ट किया जाता है कि उभयपक्ष अपना-अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
 
     ( पुरूशोत्तम सिंह )                   (डा0 आर0एन0 सिंह)
         वरि0सदस्य                             अध्यक्ष
  जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश               जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश       
       फोरम कानपुर नगर                         फोरम कानपुर नगर।
 
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
 
     ( पुरूशोत्तम सिंह )                   (डा0 आर0एन0 सिंह)
         वरि0सदस्य                             अध्यक्ष
  जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश               जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश       
       फोरम कानपुर नगर                         फोरम कानपुर नगर।  
 

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