राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1604/1998
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्या-278/1995 में पारित आदेश दिनांक 24.02.1998 के विरूद्ध)
- Canara Bank (Main Branch) Apsara Complex, Aligarh, through Sri. N. Ramani, Chief Manager, Sri K. Balakrishnan, Senior Manager, Sri P.G. Iyer, Manager.
- Canara Bank, Circle Office, 4-Sapru Marg, Lucknow, through Sri M.D.Prabhu, Deputy General Manager.
- Canara Bank (H.O) 112, J.C.Road, Banglore, through Sri J.V.Shetty, Chairman and managing Director.
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 ता 3
बनाम
- M/s Kayees Metchems Pvt. Ltd., Kanwariganj, Aligarh, through its Managing Director, Akhilesh Chandra. प्रत्यर्थी/परिवादी
- M/s Swastika Enterprises (India) 5-444, Gooter Road, Aligarh..
प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-4
समक्ष:-
1. माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
1- अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
2- प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 14-12-2015
माननीय श्रीमती बाल कुमारी सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय
अपीलार्थी ने प्रस्तुत अपील विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम, अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्या-278/1995 में पारित आदेश दिनांक 24.02.1998 के विरूद्ध प्रस्तुत की है। वर्तमान प्रकरण में विद्धान सदस्य डॉ0 श्रीमती माया वर्मा द्वारा दिनांक 28-01-1998 को निर्णय पारित करते हुए निम्न लिखित आदेश पारित किया है:-
'' विपक्षी संख्या-1 से 3 तक को आदेश दिया जाता है कि वह वादी को हुये व्यापारिक नुकसान के रूप में 50,000/-रू0 तथा दावा के दिनांक 20-03-1995 से भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देना होगा।
मानसिक उत्पीड़न के रूप में 10,000/-रू0 एवं वाद व्यय के 1200/-रू0 वादी को आदेश प्राप्ति के 30 दिन के अंदर अदा करेंगे।
आदेश का पालन न करने पर धारा-27 सी0पी0 एक्ट 1986 के अन्तर्गत कार्यवाही अमल में लाई जायेगी।
उक्त आदेश का अनुमोदन जिला मंच के अध्यक्ष द्वारा दिनांक 24-02-1998 को किया गया अत: परिवाद का बहुमत निर्णय उपरोक्त है।
जिला मंच के दूसरे सदस्य द्वारा मामला संदर्भित करने पर परिवाद खण्डित किया गया जो प्रश्नगत परिवाद का माइनोट्री का आदेश है।
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार है उसकी फर्म कई समूहों की फर्म है जो मै0 कालीचरन, अलीगढ़ में है जिसके केनरा बैंक मुख्य शाखा अलीगढ़ में विभिन्न करेंट एकाउन्ट, सेविंग एकाउण्ट आदि है। बैंक हमेशा सर्विस चार्ज करती रही है।
वादी की फर्म का 80 लाख रूपया तक सावधि जमा विपक्षी संख्या-1 की बैंक में रहा है और लाखों तक रूपये रहे हैं। वादी की फर्म नान फैरस मेटल बनाते है और आयात-निर्यात का कार्य करते हैं। मै0 स्वास्तिक इं0 प्राइजेज (इण्डिया) जो जिम्मेदार फर्म है, ब्रास बिल्डर्स, ब्रास का निर्यात करती है और उपरोक्त बैंक से विभिन्न प्रकार से व्यापार करती है तथा विपक्षी संख्या-1 के यहॉं उसका खाता संख्या-298 है और बैंक इससे भी सर्विस चार्जेज लेती है। विपक्षी संख्या-1 केनरा बैंक के मैनेजर को एक अथार्टी लेटर दिनांक 06-04-1994 को इस आशय का दिया गया था कि उसके एक्सपोर्ट बिल नं0-141 दिनांक 22 मार्च, 1994 एवज में मु0 तीन लाख पिच्चासी हजार एक सौ पैसठ रूपये आये तो उस रूपये को वादी मै0 कईज मेट0 प्रा0 लि0 के चालू खाता संख्या-2537 में स्तान्तरित कर दिया जाये क्योंकि विपक्षी संख्या-4 ने वादी से लोन लिया था और विपक्षी संख्या-4 बैंक मैनेजर/अधिकारियों के बताने पर इसी अथारिटीलेटर द्वारा विपक्षी संख्या-1 की बैंक से किया करता था। और विपक्षी संख्या-2 के निर्देशानुसार बैंक रूपये का हस्तान्तरण करती रही और उससेइस कार्य के लिए बैंक सर्विस चार्ज लिया करती थी। विपक्षी संख्या-4 के खाते में 2981 रूपया आ गया और उक्त धनराशि को अथारिटी लेटकर द्वारा ट्रान्सफर नहीं किया गया और कहा गया कि मै0 स्वास्तिक इण्टर प्राइजेज का चेक ले आये उसके द्वारा ही रूपया ट्रान्सफर किया जायेगा। इसलिए यह परिवाद योजित किया गया है।
विपक्षी संख्या-1 ने अपना जवाब दाखिल किया और उसका कथन है कि वह ऐसे अथारिटी लेटर द्वारा रूपया स्थानान्तरित नहीं करती है। विपक्षीगणोंनेवादी एवं प्रतिवादी को अथारिटी लेटर द्वारा उपरोक्त रूपयो के भुगतान का आश्वासन नहीं दिया था। बैंक ने पहले भी अथारिटी पत्रों से रूपया पक्षकारों का ट्रान्सफर किया था किन्तु ऐसी गलतियों को बैंक बार-बार नहीं दोहरायेगा। विपक्षीगण ने वादी को पत्र द्वारा सूचित कर दिया था कि चेक के द्वारा रूपया ट्रान्सफर कराये। विपक्षी संख्या-4 द्वारा चेक देने पर उपरोक्त रूपया वादी को ट्रान्सफर कर दिया। अब कोई झगड़ा शेष नही है। वादी विपक्षी संख्या-1 का ग्राहक नहीं है तथा विपक्षीगणों ने वादीकेसाथ कभी गलत व्यवहार नहीं किया है। बैंक नियमानुसार ही रूपया खातों में ट्रान्सफर करती है। वादी का इससे कोई नुकसान नहीं हुआ है। वादी ने गलत एवं फर्जी दावा विपक्षी संख्या-4 से मिलकर किया है। जो कि 5000/-रू0 हर्जे सहित खारिज किया जाए।
वर्तमान प्रकरण में यह पाया जाता है कि अधिकार पत्र के माध्यम से रूपया स्थानान्तरित किये जाने का नियम नहीं है और पहले ऐसा किया गया है तो इस आधार पर पुन: बिना नियम के ऐसा करना उचित नहीं है। इस संदर्भ में जिला मंच द्वारा दिया गया निर्णय त्रुटिपूर्ण है।
वर्तमान प्रकरण में अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने परिवादी/प्रत्यर्थी को सूचित कर दिया था कि चेक के द्वारा रूपया ट्रांसफर कराये एवं अधिकार पत्र के द्वारा रूपया ट्रान्सफर कराना नियमानुसार नहीं है। वर्तमान प्रकरण में अभिवचित धनराशि का स्थानान्तरण किया जा चुका है।
पीठ इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि जिला मंच द्वारा बहुमत द्वारा पारित आदेश दिनांक 24-02-1998 उपरोक्त त्रुटिपूर्ण है अत: निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता फोरम, अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्या-278/1995 में पारित आदेश दिनांक 24.02.1998 निरस्त किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगा।
( राम चरन चौधरी ) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-5 प्रदीप मिश्रा