राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-959/1996
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, सोनभद्र द्वारा परिवाद संख्या-64/1994 में पारित आदेश दिनांक 06.06.1996 के विरूद्ध)
Allahabad Bank, Branch Robertsganj, Distt. Sonbhadra.
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
Katwaru R/o Adhwar, Post, Parasi Dubey, Pargana Badhar, The. Robertsganj, Distt. Sonbhadra.
प्रत्यर्थी/परिवादी.
समक्ष:-
1. माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :
माननीय श्रीमती बाल कुमारी] सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय :
परिवाद संख्या-64/1994 कतवारू बनाम् इलाहाबाद बैंक में जिला मंच, सोनभद्र द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 06-06-1996 के विरूद्ध यह अपील अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत की गयी है। विवादित निर्णय इस प्रकार है :-
'' उपरोक्त विवेचना के अनुसार शिकायत विपक्षी बैंक के विरूद्ध स्वीकार की जाती है। बैंक के कर्मचारियों को निर्देशित किया जाता है कि वह 15 दिन के अंदर शिकायतकर्ता के सामान की जॉंच-पड़ताल करके उसके नुकसान का जायजा लेकर उसका भुगतान शिकायतकर्ता को करे। भुगतान से विपक्षी इन्श्यारेन्स कम्पनी को मुक्त किया जाता है। ''
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संक्षेप में इस केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने आटा चक्की टुल्लू पम्प व इंजन हेतु मु0 10,000/-रू0 का ऋण विपक्षी बैंक के यहॉं से सन् 1990 में लिया था। उसे 33 प्रतिशत छूट मिलनी चाहिए थी। क्योंकि वह लघु सीमान्त कृषक है। इस सारे सामान का बीमा बैंक ने विपक्षी इन्श्यारेंस कम्पनी के यहॉं आश्वासन के अनुसार कराया फिर 23 मई, 1990 को मडई में आग लग जाने के कारण सारा सामान जल गया। परिवादी ने एफ0आर0आर0 लिखाया और बैंक को भी सूचित किया। फील्ड आफीसर ने मुआयना भी किया। फिर बीमा राशि के भुगतान का आश्वासन भी दिया। कार्यवाही कुछ नहीं की। तब परिवादी ने जिलाधिकारी महोदय के यहॉं दरख्वास्त दी और जिलाधिकारी महोदय ने बैंक अधिकारियों को आवश्यक कार्यवाही हेतु आदेशित किया किन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गयी। तब परिवादी ने यह शिकायत योजित की है। परिवादी का यह कथन है कि विपिक्षीगण के पार्ट पर यह सेवा की कमी है तथा इस कमी के निवारण की याचना उसने की है।
जहॉं तक इश्योरेंस कम्पनी का प्रश्न है कवर नोट इश्योरेंस कम्पनी का तो मात्र एक वर्ष के लिए था और वह वर्ष 1991 में समाप्त हो गया था और उस एक वर्ष की अवधि में इश्योरेंस कम्पनी को किसी ने इस घटना से सूचित नहीं किया। यह इश्योरेंस कम्पनी के विरूद्ध मामला कालबधित हो गया है ऐसी दशा में इश्योरेंस कम्पनी तो बीमा की धनराशि को देने के लिए बाध्य नहीं है।
बैंक ने ही यह बीमा कराया था। बीमा उन्होंने स्वेच्छा से नहीं कराया था बल्कि कानूनन बीमा कराना उनकी कर्तव्य था। बीमा करानेसे उनकी राशि भी सुरक्षित रहीं। जब परिवादी ने आगजनी की एफ0आई0आर0
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दिखाया जिस तथ्य को बैंक ने झुठलाने की बात नहीं की है। बी0डी0ओ0 ओर ए0डी0ओ0 को भी सूचित किया गया जिस कथन को परिवादी ने अपने शपथ पत्र से समर्थित किया है।
पीठ के समक्ष अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया।
हमने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क सुने तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने साक्ष्यों तथा तथ्यों की अनदेखी कर विधि विरूद्ध आदेश पारित किया है। अपीलार्थी ने कुछ कथनों को स्वीकार किया तथा कुछ को अस्वीकार किया है और यह कहा है कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने अपीलार्थी/विपक्षी से 10,000/-रू0 का ऋण आटा चक्की आदि के लिए लिया था और फ्लोर मिल से संबंधित आग लगने व सामान नष्ट होने की कोई सूचना अपीलार्थी को नहीं थी और मई, 1994 में रू0 16,330/- की वसूली भेजी गयी फिर भी परिवादी ने बैंक का भुगतान नहीं किया है और जिला फोरम ने साक्ष्यों के विरूद्ध जो आदेश पारित किया है उसे निरस्त कर अपील स्वीकार की जाये।
अविवादित रूप से परिवादी के जिम्मे बैंक के ऋण के बावत धनराशि बकाया थी एवं इस संदर्भ में बैंक ने वसूली के बावत रिकवरी सर्टीफिकेट निर्गत किया। बैंक को प्रश्नगत घटना की सूचना दिये जाने का साक्ष्य परिवादी/प्रत्यर्थी की ओर से प्रस्तुत नहीं किया गया है। बीमा की अवधि अविवादित रूप से समाप्त हो चुकी थी अत: बीमा कम्पनी का कोई दायित्व भुगतान के लिए नहीं है। जिला फोरम द्वारा इस संदर्भ में स्पष्ट मत दिया
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गया है। अत: यह कहना कि बैंक बीमा कराने के लिए जिम्मेदार है स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
घटना मई, 1990 की अभिवचित है एवं प्रश्नगत परिवाद वर्ष 1994 में योजित किया गया है अत: परिवाद स्वत: कालबाधित होना भी प्रथमदृष्टया प्रकट होता है। बैंक की सेवा में कमी होना स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। यह बात सफलतापूर्वक कही जा सकती है कि प्रत्यर्थी द्वारा ऐसा कोई प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि विपक्षी/अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में कमी की गयी है।
सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर पीठ इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि जिला फोरम द्वारा विपक्षी/अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध जो आदेश पारित किया गया है वह न्यायसंगत नहीं है। अत: अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार करते हुए जिला उपभोक्ता फोरम, सोनभद्र द्वारा परिवाद संख्या-64/1994 में पारित आदेश दिनांक 06.06.1996 अपास्त किया जाता है। तद्नुसार प्रश्नगत परिवाद खण्डित किया जाता है। वाद व्यय पक्षकार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
( जितेन्द्र नाथ सिन्हा ) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0