(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील सं0 :- 2165/2006
(जिला उपभोक्ता आयोग, महोबा द्वारा परिवाद सं0-161/2003 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 26/05/2006 के विरूद्ध)
- Sami Ahmad Son of Late Sri Sardar Khan R/O Bhatipura, District-Mahoba, Ex-president of U.P. Government Roadways Sahkari Samiti, Mahoba.
- Mohd. Sayeed Son of Sri Anwarul Islam Secretary, U.P. Government Roadways Sahkari Samiti, Mahoba.
- Appellants
Versus
Kashi Prasad Son of Sri Pyarelal R/O Mohalla Hatwara, Near Bus Stand District-Mahoba.
समक्ष
- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति:
अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री एम0एच0 खान
प्रत्यर्थी की ओर विद्वान अधिवक्ता:- श्री संजय कुमार वर्मा
दिनांक:- 25.10.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- यह अपील जिला उपभोक्ता आयोग, महोबा द्वारा परिवाद सं0-161/2003 काशी प्रसाद बनाम समी अहमद व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 26/05/2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए परिवादी से वसूली गयी अधिक राशि 23,800/-रू0 वापस लौटाने का आदेश 12 प्रतिशत ब्याज के साथ पारित किया है।
- परिवाद के तथ्यो के अनुसार परिवादी उत्तर प्रदेश सहकारी समिति महोबा का सदस्य था, जहां से 33,000/-रू0 का ऋण प्राप्त किया था, जिसकी वसूली परिवादी के वेतन से काटकर होती थी। परिवादी ने खुद 4,000/-रू0 जमा किये थे तथा परिवादीगण के वेतन से 73,200/-रू0 कटकर जमा हुए है, इस प्रकार अधिक राशि जमा करायी गयी है।
- विपक्षी का कथन है कि अंकन 32,400/-रू0 ब्याज होता है, इस प्रकार कुल 65,400/-रू0 परिवादी को जमा करना चाहिए था, परंतु परिवादी की तैनाती राठ डिपो से कटौती अनावश्यक रूप से कटौती होकर सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक, वित्त कार्यालय झांसी को भेजी जाती रही और अधिक धनराशि परिवादी क्षेत्रीय प्रबंधक, वित्त कार्यालय, झांसी से प्राप्त कर सकता है और विपक्षी सं0 3 पर कोई दायित्व नहीं बनता।
- पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग ने विपक्षी सं0 1 एवं 3 को उत्तरदायी मानते हुए उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया, जिसे सचिव मो0 सईद द्वारा चुनौती दी गयी है।
- अपील के ज्ञापन तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि अपीलार्थीगण के विरूद्ध अंकन 23,800/-रू0 की राशि की वापसी का आदेश अवैध है। ऋण वापसी से अपीलार्थीगण का कोई संबंध नहीं है, इसलिए अपीलार्थी के विरूद्ध यह आदेश पारित नहीं किया जा सकता, जबकि परिवादी की ओर से यह बहस की गयी है कि अपीलार्थीगण के विरूद्ध भी जो आदेश पारित किया गया है, वह विधि-सम्मत है।
- परिवाद के विवरण से स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा विपक्षी सं0 1 से ऋण प्राप्त किया गया है। परिवादी के वेतन से कटौती भी विपक्षी सं0 1 द्वारा प्राप्त की गयी है, इसलिए मात्र सचिव होने के नाते विपक्षी सं0 3 के विरूद्ध आदेश पारित करने का वैधानिक औचित्य नहीं था, इसलिए विपक्षी सं0 3 के विरूद्ध पारित किया गया आदेश अपास्त होने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि अपीलार्थी सं0 2/विपक्षी सं0 3 सचिव, मोहम्मद सईद के विरूद्ध पारित आदेश अपास्त किया जाता है। शेष निर्णय/आदेश पुष्ट किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
उभय पक्ष अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0 2