ORDER | न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली। परिवाद संख्या 28 सन् 2013ई0 गोपालदास जायसवाल वयस्क पुत्र श्री गुरूचरन जायसवाल निवासी इस्टर्न बाजार मुगलसराय,जिला चन्दौली ...........परिवादी बनाम 1-काशी गोमती संयुक्त ग्रामीण बैंक शाखा अलीनगर, चन्दौली बजरिये शाखा प्रबन्धक काशी गोमती संयुक्त ग्रामीण बैंक। 2-शाखा प्रबन्धक काशी गोमती संयुक्त ग्रामीण बैंक शाखा अलीनगर जिला चन्दौली। .............................विपक्षीगण उपस्थितिः- माननीय श्री जगदीश्वर सिंह, अध्यक्ष माननीया श्रीमती मुन्नी देवी मौर्या सदस्या माननीय श्री मारकण्डेय सिंह, सदस्य निर्णय द्वारा श्री जगदीश्वर सिंह,अध्यक्ष 1- परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षीगण से आर्थिक क्षति के रूप में मु0 70000/- एवं मानसिक क्लेश के रूप में मु0 20000/-दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है। 2-परिवाद पत्र में परिवादी की ओर से संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी ने वर्ष 2004 में विपक्षी संख्या 1 से मु0 20000/- ऋण प्राप्त किया था जिसके बाबत विपक्षी के यहाॅं ऋण खाता संख्या 618127030014322 खोला। परिवादी ने विपक्षी से ऋण लेते समय जमानत के रूप में मु0 65000/- का साढ़े पांच वर्षीय किसान विकास पत्र पोस्ट आफिस मुगलसराय का जमा किया था। परिवादी ने विपक्षी से अपने ऋण खाते का पासबुक एवं स्टेटमेन्ट की मांग किया तो विपक्षी द्वारा परिवादी के ऋण खाते का पासबुक व स्टेटमेन्ट नहीं दिया। जिससे परिवादी ऋण का भुगतान करने में असमर्थ हो गया और ऋण का भुगतान नहीं कर सका। परिवादी ने रजिस्टर्ड प्रार्थना पत्र दिनांक 3-10-2012 एवं 8-11-2012 के द्वारा अपनी जानकारी के लिए ऋण खाते के स्टेटमेन्ट की मांग किया किन्तु विपक्षी ने ऋण खाते के स्टेटमेन्ट की कापी उपलब्ध नहीं कराया। परिवादी ने पुनः दिनांक 5-12-2012 को अपने ऋण खाते के स्टेटमेन्ट की मांग किया जिस पर विपक्षीगण द्वारा दिनांक 7-12-2012 को दिनांक 6-9-2009 से दिनांक 30-11-2012 तक का ऋण खाते का अधूरा स्टेटमेन्ट परिवादी को उपलब्ध कराया गया जबकि परिवादी द्वारा उक्त ऋण वर्ष 2004 में लिया गया था। विपक्षीगण द्वारा प्रेषित अधूरे ऋण खाते के स्टेटमेन्ट से परिवादी को ज्ञात हुआ कि परिवादी द्वारा ऋण लेते समय जमानत के तौर पर रखे हुए साढ़े पांच वर्षीय किसान विकास पत्र मु0 65000/- का भुगतान विपक्षीगण द्वारा बिना परिवादी को जानकारी अथवा सूचना दिये दिनांक 28-9-2012 को प्राप्त करके उपरोक्त ऋण खाते में समायोजित कर लिया गया है और परिवादी के ऊपर ऋण बकाया दिखाते हुए अधूरा स्टेटमेन्ट आफ एकाउण्ट प्रेषित किया गया है। जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि परिवादी के साथ 2 विपक्षीगण द्वारा धोखा-धड़ी किया गया है। परिवादी ने ऋण लेने के दिनांक से अब तक का पूरा ऋण खाता का स्टेटमेन्ट तथा योजना का विवरण व अनुदान राशि का सम्पूर्ण विवरण एवं जमानत के तौर पर रखे गये किसान विकास पत्र मु0 65000/- के भुगतान को लेकर विपक्षी बैंक द्वारा ऋण खाते में समायोजित कर लेने के उपरान्त किस आधार पर परिवादी के ऊपर बकाया दिखाया जा रहा है उसका विवरण विपक्षीगण से मांगा किन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई जबाब नहीं दिया गया। अतः विपक्षीगण का उपरोक्त कृत्य धोखा-धड़ी, उपेक्षात्मक, लापरवाही पूर्ण व मनमाना है।इस याचना के साथ परिवादी ने विपक्षीगण से उपरोक्त धनराशि दिलाये जाने की प्रार्थना की गयी है। 3- विपक्षीगण द्वारा जबाबदावा प्रस्तुत करते हुए संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी ने बैंक के आवश्यक कागजात पर हस्ताक्षर करके दिनांक 24-3-2004 को अनुबन्ध के मुताबिक अपना किसान विकास पत्र बन्धक रखकर मु0 45000/- का ऋण लिया था। अनुबन्ध के मुताबिक किसान विकास पत्र की धनराशि को ऋण में समायोजित कर लिया जायेगा और तद्नुसार ऋण की वसूली की जा सकती है। परिवादी के मांग पर बैंक द्वारा परिवादी के ऋण खाता संख्या 618127030014322 का स्टेटमेन्ट आफ एकाउण्ट दिया गया है। प्रारम्भ से बैंक में मैनुअल का प्रयोग किया जाता था तदोपरान्त कम्प्यूटर का प्रयोग हुआ। उक्त कम्प्यूटर का रिकार्ड जो बैंक में उपलब्ध है उसके मुताबिक परिवादी के ऊपर दिनांक 30-4-2013 तक मु0 26611/- बकाया है। बैंक रिकार्ड के सिस्टम बदलते रहने की वजह से दिनांक 6-9-2009 के पूर्व का स्टेटमेन्ट आफ एकाउण्ट दिया जाना सम्भव है। परिवादी का परिवाद पत्र मसला स्टापेल आफ इक्यूसेन्स से बाधित है। तद्नुसार परिवादी का परिवाद चलने योग्य नहीं है। इस आधार पर परिवादी के परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना विपक्षीगण द्वारा किया गया है। 4- परिवादी की ओर से फेहरिस्त के साथ अपने प्रार्थना पत्र मय रजिस्ट्री रसीद की प्रति कागज संख्या 5/1,नोटिस की प्रति मय रसीद के साथ 5/2ता 5/3,काशी ग्रामीण बैंक का पत्र 5/4,स्टेटमेन्ट आफ एकाउण्ट की प्रति 5/5,लीगल नोटिस की प्रति 5/7दाखिल किया गया है। विपक्षी बैंक की ओर से फेहरिस्त के साथ परिवादी का करार पत्र कागज संख्या 8/1,ऋण का स्टेटमेन्ट आफ एकाउण्ट 8/2 दाखिल किया गया है। विपक्षी बैंक की ओर से एक दूसरी फेहरिस्त से डी0पी0 नोट की प्रति कागज संख्या 11/2,ऋण अदायगी करार 11/3,स्टेटमेन्ट 12/1,सुरक्षित ऋण आवेदन पत्र 12/2,काशी ग्रामीण बैंक का पत्र 13 दाखिल किया गया है। 5- हम लोगों ने परिवादी एवं विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के बहस को सुना तथा पत्रावली का गम्भीरतापूर्वक अवलोकन किया है। 6- इस प्रकरण में सर्वप्रथम विचारणीय प्रश्न यह है कि परिवादी ने विपक्षी बैंक से कितनी धनराशि बतौर ऋण लिया था। परिवादी का कथन है कि उसने वर्ष 3 2004 में विपक्षी संख्या 1 से मात्र रूपया 20000/- का ऋण प्राप्त किया था। परिवादी द्वारा इस संदर्भ में कोई प्रलेखीय साक्ष्य नहीं दिया है कि उसने विपक्षी बैंक से कुल कितना ऋण लिया था। जो शपथ पत्र कागज संख्या 3/1 दाखिल किया गया है उसमे भी कोई उल्लेख नहीं है कि उसने कुल कितना ऋण विपक्षी बैंक से प्राप्त किया था। विपक्षी बैंक की ओर से कहा गया है कि परिवादी ने ऋण के अनुबंध प्रपत्र निस्तारित करके दिनांक 24-3-2004 को मु0 45000/- का ऋण प्राप्त किया था जो उसी तिथि को परिवादी के ऋण खाता में ट्रांसफर कर दिया गया था। इस संदर्भ में विपक्षी बैंक की ओर से परिवादी तथा बैंक द्वारा निष्पादित अनुबन्ध प्रपत्र दिनांकित 24-3-2004 की प्रमाणित छायाप्रति कागज संख्या 8/1 तथा प्रमीजरी नोट दिनांकित 24-3-2004 की प्रमाणित छायाप्रति कागज संख्या 20/3 दाखिल किया गया है। बहस के समय परिवादी के अधिवक्ता ने स्वीकार किया है कि उपरोक्त दोनों प्रपत्रों पर परिवादी के हस्ताक्षर हंै इन दोनों प्रपत्रों में परिवादी को मु0 45000/- ऋण 13 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से त्रैमासिक अन्तराल पर देने का उल्लेख अंकित है। अतः उक्त प्रलेखों से यह प्रमाणित होता है कि परिवादी ने मात्र मु0 20000/- ऋण प्राप्त करने का जो कथन अपने परिवाद में किया है वह गलत है वास्तव में परिवादी ने दिनांक 24-3-2004 को विपक्षी बैंक से मु0 45000/- का ऋण प्राप्त किया था यह तथ्य भी प्रमाणित तथा निर्विवादित है कि अनुबंध के समय परिवादी ने उपरोक्त ऋण के अदायगी की सुरक्षा हेतु पोस्ट आफिस द्वारा दिनांक 30-10-03 को जारी साढ़े पांच वर्षीय किसान विकास पत्र जिसमे मु0 10-10 हजार के कुल 6 किसान विकास पत्र तथा मु0 5 हजार का एक किसान विकास पत्र कुल मु0 65000/- विपक्षी बैंक में बन्धक के तौर पर जमा किया था। 7- परिवादी का यह कथन है कि अपने ऋण खाते का विवरण मांगने पर बैंक द्वारा कभी ऋण खाते का विवरण नहीं दिया गया है जिसकी वजह से वह ऋण की कोई धनराशि जमा नहीं कर पाया। इस प्रकार प्रमाणित पाया जाता है कि परिवादी ने विपक्षी बैंक से लिये गये उपरोक्त ऋण के भुगतान हेतु कभी कोई धनराशि जमा नहीं किया जिसके फलस्वरूप ऋण बढ़ता गया। यदि परिवादी द्वारा ऋण का कोई भुगतान नहीं किया जा रहा था तो परिवादी को डिफाल्टर होने की स्थिति में बैंक का दायित्व था कि वह बन्धक के तौर पर परिवादी ने जो मु0 65000/- का किसान विकास पत्र बैंक में दिया था इसके परिपक्वता की तिथि पर पोस्ट आफिस से इसका भुगतान प्राप्त करके उसी समय ऋण की धनराशि में समायोजन कर लेते। पत्रावली के परिशीलन से पाया जाता है कि सभी किसान विकास पत्र दिनांक 30-10-03 को परिवादी ने पोस्ट आफिस से लिया था। साढ़े पांच वर्ष के बाद अर्थात दिनांक 30-4-2009 को उक्त मु0 65000/-के किसान विकास पत्रों की परिपक्वता की धनराशि मु0 1,30000/- हो गयी। परिवादी ने कभी ऋण के भुगतान हेतु कोई धनराशि जमा नहीं किया तथा वह पूर्ण रूपेण डिफाल्टर था। अतः बैंक का उत्तरदायित्व था कि परिवादी के उपरोक्त किसान विकास पत्रों को विधि 4 अनुसार भुगतान प्राप्त करके उसके ऋण में समायोजित कर लेते। यदि ऋण की धनराशि अवशेष रहती तो इस बकाये की धनराशि को विधि अनुसार परिवादी से वसूलने की अग्रेतर कार्यवाही करते। यदि परिपक्व धनराशि दिनांक 30-4-09 को परिवादी के ऊपर बकाया ऋण की धनराशि से अधिक था तो ऋण की धनराशि काटते हुए अवशेष धनराशि परिवादी को वापस कर देने का दायित्व बैंक का था। पत्रावली के परिशीलन से पाया जाता है कि विपक्षी बैंक द्वारा विधि अनुसार तथा अनुबन्ध के शर्तो के अनुसार बन्धक रखे गये किसान विकास पत्रों के परिपक्वता की धनराशि दिनांक 30-4-2009 के बाद भी अपने पास रखे रहे, जिसका परिणाम यह हुआ कि 13 प्रतिशत वार्षिक दर से त्रैमासिक अन्तराल पर परिवादी के ऋण खाते में ब्याज लगता रहा और ऋण की धनराशि में उत्तरोत्तर बढ़ती रही। विपक्षी बैंक द्वारा ऋण का स्टेटमेन्ट दाखिल किया गया है उसके अनुसार दिनांक 31-8-2012 को परिवादी के ऋण खाते में मु0 1,53564/- बकाया हो गया था। तत्पश्चात दिनांक 28-9-2012 को विपक्षी बैंक ने परिवादी को बिना सूचना दिये ऋण करार पत्रों के शर्तो के अधीन बन्धक रखे गये उपरोक्त किसान विकास पत्रों का भुगतान मु0 1,31300/- पोस्ट आफिस से प्राप्त किया तथा इस धनराशि को उपरोक्त ऋण की धनराशि में समायोजन करते हुए मु0 22264/- का ऋण परिवादी के ऊपर अवशेष होना दर्शाया है बैंक की यह कार्यवाही नितान्त गैर जिम्मेदाराना तथा मनमाना पूर्ण रहा है। दिनांक 30-4-2009 को किसान विकास पत्रो की परिपक्वता अवधि पूर्ण हो जाने के बाद भी किसान विकास पत्रो को लगभग साढ़े तीन वर्ष तक बैंक ने अपने पास रखे रहा इस अवधि में परिवादी के उपरोक्त किसान विकास पत्रांे के परिपक्व धनराशि पर कोई भी ब्याज प्राप्त नहीं हुआ। जबकि इस दौरान साढ़े तीन वर्ष तक अनावश्यक ब्याज लगाकर ऋण की धनराशि मु0 1,53564/-हो गयी। इससे स्पष्ट है कि बैंक द्वारा उचित रूप से सेवा प्रदान नहीं की गयी है जबकि परिवादी के किसान विकास पत्र को बैंक ने ऋण की अदायगी हेतु बन्धक के रूप में रखा था तथा परिवादी ने ऋण के भुगतान में गम्भीर चूक किया था तो बैंक के अधिकारियों का दायित्व था कि किसान विकास पत्रों के परिपक्व होते ही उसके परिपक्वता की तिथि पर बैंक में बन्धक रखे गये किसान विकास पत्रों को पोस्ट आफिस में जमा करके उसका भुगतान प्राप्त करके ऋण में समायोजन कर लेने का बैंक के जिस अधिकारी के ऊपर दायित्व था उसने अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया तथा घोर लापरवाही किया जिसके लिए बैंक जिम्मेदार है। परिपक्वता की तिथि के बाद ब्याज में जो भी बढ़ोत्तरी हुई है उसके लिए परिवादी किसी भी स्थिति में जिम्मेदार नहीं है। 8- विपक्षी बैंक को इस फोरम ने आदेश भेजकर स्पष्ट रूप से पूछा था कि परिवादी द्वारा बन्धक रखे गये किसान विकास पत्रों के परिपक्वता की तिथि दिनांक 30-4-09 को परिवादी के ऋण खाते में ब्याज सहित कुल ऋण की धनराशि कितनी थी लेकिन विपक्षी बैंक द्वारा इसका कोई विवरण नहीं दिया गया। विपक्षी बैंक ने जो विवरण दिया है वह दिनांक 6-9-09 से तथा इसके बाद का है। 5 बार-बार मांगने और आदेश देने के बावजूद दिनांक 6-9-09 के पूर्व का विवरण विपक्षी बैंक ने नहीं दिया है। दिनांक 6-9-09 के बाद का प्रस्तुत विवरण कागज संख्या 20/2 के परिशीलन से पाया जाता है कि सितम्बर 2009 के महीने में परिवादी के ऋण खाते में मु0 1009/- ब्याज निर्धारित हुआ है। अक्टूबर 09 में ब्याज मु0 1273/-,नवम्बर 09 में मु0 1248/- तथा दिसम्बर 09 में मु0 1308/- ब्याज लगाया गया है इस तरह उत्तरोत्तर माहवारी ब्याज बढ़ता गया है इससे यह पाया जाता है कि सितम्बर 09 के पूर्व तथा दिनांक 30-4-09 के बाद माह मई,जून,जुलाई,अगस्त 09 में कुल 4 महीने में कम से कम मु0 4000/- से अधिक की वृद्धि परिवादी के ऋण खाते में ब्याज के रूप में हुई होगी। दिनांक 6-9-09 को कुल ऋण का बैलेन्स मु0 94294/-होना दर्शाया गया है इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि दिनांक 30-4-09 को अर्थात बन्धक रखे गये किसान विकास पत्रांे की परिपक्वता की तिथि पर परिवादी के ऋण खाते में कुल बैलेन्स लगभग मु0 90000/- था। साढ़े पांच वर्ष की परिपक्वता तिथि के बाद बन्धक रखे गये कुल मु0 65000/- का किसान विकास पत्र की परिपक्वता राशि मु0 1,30000/- हो गयी। इस परिपक्वता तिथि पर बैंक के ऊपर दायित्व था कि बन्धक रखे गये किसान विकास पत्रो को पोस्ट आफिस में जमा करके उपरोक्त मु0 1,30000/- की धनराशि प्राप्त कर लेते और इसमे उपरोक्त ऋण की धनराशि समायोजित करके शेष बची हुई धनराशि मु0 40000/- परिवादी को वापस कर देने का वैधानिक दायित्व विपक्षी बैंक के ऊपर था। विपक्षी बैंक द्वारा ऐसा न करके सेवा में कमी किया है जिसके लिए बैंक दोषी है। तद्नुसार हम लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि परिपक्वता की तिथि पर परिवादी के किसान विकास पत्रो की धनराशि मु0 1,30000/- में उक्त तिथि को कुल देय धनराशि मु0 90000/- का समायोजन मानते हुए ऋण समाप्त हो जाना तथा अवशेष धनराशि मु0 40000/- परिवादी को विपक्षी बैंक से दिलाया जाना न्यायोचित है। इस धनराशि पर दिनांक परिवाद प्रस्तुतीकरण की तिथि से आइन्दा भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से ब्याज भी दिलाया जाना न्यायोचित है इसके अतिरिक्त परिवादी को जो मानसिक शारीरिक परेशानी उठानी पड़ी है इस संदर्भ में उचित हर्जा व वाद व्यय दिलाया जाना न्यायसंगत है तद्नुसार परिवाद आंशिक तौर पर स्वीकार किये जाने योग्य है। आदेश प्रस्तुत परिवाद अंशतः स्वीकार किया जाता है विपक्षी बैंक को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी द्वारा बन्धक रखे गये किसान विकास पत्रो की परिपक्व धनराशि दिनांक 30-4-09 की तिथि पर मु0 1,30000/- का भुगतान बैंक को प्राप्त होना मानते हुए इसमे उक्त तिथि को परिवादी के कुल देय ऋण की धनराशि मु0 90000/- के भुगतान का समायोजन मानते हुए परिवादी के ऋण खाते को समाप्त करंे, तथा परिपक्वता की शेष धनराशि मु0 40000/- (मु0 1,30000- 90000) एवं इस पर परिवाद प्रस्तुतीकरण की तिथि से आइन्दा भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से ब्याज और मु0 5,000/-(पांच हजार) हर्जा तथा मु0 2000/-(दो हजार)वाद व्यय का भुगतान इस निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर परिवादी को करें। (मारकण्डेय सिंह) (मुन्नी देबी मौर्या) (जगदीश्वर सिंह) सदस्य सदस्या अध्यक्ष दिनांक 23-1-2015 | |