दिनांक:09-11-2015
परिवादिनी ने यह परिवाद इस आशय से योजित किया है कि उसके पति के नाम जारी चेक संख्या 013861 का धन रू0 33000/- मय ब्याज उसके खाते में जमा किया जाय तथा उसे आर्थिक, मानसिक, शारीरिक उत्पीड़न के लिए क्षतिपूर्ति रूप में रू0 15,000/- विपक्षी गण से दिलाये जायॅ।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन संक्षेप में इस प्रकार है कि उसके पति सच्चिदानन्द के नाम विपक्षी सं03 द्वारा जारी चेक संख्या 013861 बावत रू0 33,000/-, को परिवादिनी के पति ने दिनांक 01-06-2011 को विपक्षी सं01 के यहॉ अपने खाता संख्या 4460 में जमा किया था। विपक्षी सं01 परिवादिनी के पति को बार-बार दौड़ाता रहा और परिवादिनी के पति की मृत्यु के उपरांत, परिवादिनी को भी बार-बार दौड़ाया लेकिन उक्त चेक की धनराशि उसके खाते में जमा नहीं की। परिवादिनी ने दिनांक 05-05-2012 व 28-05-2012 को विपक्षी को नोटिस भी दी लेकिन उक्त चेक की धनराशि अब तक उसके खाते में जमा नहीं की गयी। परिवादिनी को यह बताया जाता रहा कि उक्त चेक विपक्षी सं02 के यहॉ भेजी गई है, इसलिए वह विपक्षी सं0 02 से सम्पर्क करे लेकिन सम्पर्क करने के बावजूद, विपक्षी सं02 ने भी कोई सन्तोष जनक उत्तर नहीं दिया गया। अत: परिवादिनी ने यह परिवाद योजित किया। परिवादिनी की ओर से यह भी कहा गया है कि उसने अपेक्षित न्याय शुल्क जमा कर दी हैं ।
विपक्षी सं01 की ओर से अपने प्रतिवाद पत्र में कहा गया है कि परिवादिनी ने असत्य कथनों के आधार पर परिवाद योजित किया है। परिवादिनी के पति ने जो चेक विपक्षी सं01 के यहॉ उगाही हेतु जमा की थी, उसे समय से भेज दिया गया था, उक्त चेक की धनराशि उगाही होकर प्राप्त होने पर दिनांक 05-09-2014 को परिवादिनी के खाते में जमा की जा चुकी है। विपक्षी सं01 द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई है। परिवादिनी के पति द्वारा जमा किया गया चेक, दिनांक 01-06-2011 को ही बड़ौदा उ0प्र0 ग्रामीण बैंक को उगाही हेतु भेज दिया गया था और इस हेतु विपक्षी सं01 द्वारा पैरवी की जाती रही है। परिवादिनी विपक्षी सं01 की उपभोक्ता नहीं है, इसलिए परिवाद खारिज होने योग्य है। परिवादिनी को यह जानकारी है कि उक्त चेक का धन उसके खाता सं0 4460 में जमा हो चुकी है। असत्य आधारों पर आधारित होने के कारण परिवाद पत्र खारिज होने योग्य है।
विपक्षी सं03 की ओर से अपने प्रतिवाद पत्र में कहा गया है कि परिवाद पत्र में किये गये कथन उसे स्वीकार नहीं हैं। विपक्षी सं03 द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई है। उसका प्रश्नगत चेक से कोई सरोकार नहीं है। उसके द्वारा प्रश्नगत चेक जारी नहीं की गई थी, इसलिए उसे रू0 5000/- विशेष हर्जा दिलाया जाय।
पर्याप्त तामीली के बावजूद विपक्षी सं0 02 की ओर से कोई प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है।
परिवादिनी ने परिवाद पत्र के कथनों के समर्थन में अपना शपथ पत्र 29ग प्रस्तुत करने के साथ ही सूची कागज सं0 5ग के जरिेये 4 अभिलेख पत्रावली पर उपलब्ध किये हैं और उसकी ओर से लिखित बहस पत्रावली पर उपलब्ध की गई है ।
विपक्षी सं01 की ओर से अपने कथनों के समर्थन में दो अभिलेख पत्रावली पर उपलब्ध किये गये हैं ।
परिवाद पत्र तथा प्रतिवाद पत्रों का अवलोकन करने साथ ही परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत लिखित बहस का परिशीलन किया गया और पक्षों के विद्वान अधिवक्ता गण को विस्तार से सुना गया।
परिवाद पत्र में कहा गया है कि परिवादिनी के पति ने विपक्षी सं03 द्वारा जारी चेक सं0 013861 बावत रू0 33,000/- दिनांक 01-06-2011 को विपक्षी सं01 के यहॉ अपने खाता सं0 4460 में जमा की थी। विपक्षी सं01 द्वारा उक्त चेक अपने यहॉ दिनांक 01-06-2011 को उगाही हेतु जमा किया जाना स्वीकार किया गया है। विपक्षी ने यह कथन किया है कि उक्त चेक की धनराशि उगाही होकर प्राप्त होने के उपरांत दि0 05-09-2014 को प्राप्त हो गई थी और इसे परिवादिनी के खाता सं0 4460 में उसी दिन जमा कर दिया गया था। परिवादिनी की ओर से बहस के दौरान उक्त चेक की धनराशि उक्त खाते में जमा किये जाने के तथ्य को स्वीकार किया गया है। उक्त खाते में उक्त चेक की धनराशि जमा होने के तथ्य को साबित करने के लिए विपक्षी सं01 ने सुसंगत खाते की प्रति प्रस्तुत की गई है। इस प्रकार उपलब्ध तथ्यों तथा साक्ष्यों से साबित है कि प्रश्नगत चेक की धनराशि उगाही होकर प्राप्त होने के उपरांत विपक्षी सं01 द्वारा परिवादिनी के सुसंगत खाते में दिनांक 05-09-2014 को जमा कराई जा चुकी है।
परिवाद पत्र में कहा गया है कि उक्त चेक विपक्षी सं03 द्वारा उसके पति के पक्ष में जारी की गई थी लेकिन इस तथ्य का विपक्षी सं03 की ओर से अपने प्रतिवाद पत्र में खण्डन किया गया है और कहा गया है कि प्रश्नगत चेक से उसका कोई वास्ता सरोकार नहीं रहा है और उक्त चेक उसके द्वारा जारी नहीं की गई थी। उसे परिवादिनी ने अनावश्यक रूप से पक्षकार बनाया है। मामले के तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि उक्त कथित चेक विपक्षी सं03 द्वारा न तो जारी की गई थी और न उसका उक्त चेक से कोई सम्बन्ध था। ऐसी दशा में विपक्षी सं03 को अनावश्यक रूप से पक्षकार बनाया जाना स्थापित है।
परिवादिनी की ओर से कहा गया है कि प्रश्नगत चेक की धनराशि परिवादिनी के के खाते में अत्यंत विलम्ब से जमा की गई है, इसलिए उक्त धनराशि पर उसे विपक्षी सं01 से ब्याज दिलाया जाय। उपलब्ध अभिलेखों से प्रकट है कि प्रश्नगत चेक बड़ौदा उ0प्र0 ग्रामीण बैंक द्वारा जारी की गई थी। प्रकट है कि उक्त चेक का विपक्षी सं02 से कोई सम्बन्ध नहीं रहा था। विपक्षी सं01 का कहना है कि उक्त चेक की धनराशि सम्बन्धित बैंक से उगाही होकर प्राप्त होने के उपरांत दि0 05-09-2014 को अविलम्ब परिवादिनी के सुसंगत खाते में जमा की जा चुकी है । यह भी कहा गया है कि प्रश्नगत चेक की धनराशि उगाही हेतु दिनांक 01-06-11 को ही विपक्षी सं01,2 द्वारा भेज दी गई थी। परिवादिनी की ओर से ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है, जिससे यह स्थापित हो सके कि विपक्षी सं01 ने उगाही हेतु चेक भेजने तथा उगाही होकर धन प्राप्त होने के बाद इसे परिवादिनी के खाते में जमा करने में विलम्ब किया हो । ऐसी स्थिति में विपक्षी सं01 द्वारा सेवा में कोई त्रुटि किया जाना स्थापित नहीं है। उपलब्ध तथ्यों से यह प्रकट होता है कि बड़ौदा उ0प्र0 ग्रामीण बैंक, जिसके द्वारा प्रश्नगत चेक परिवादिनी के पति के नाम जारी की गई थी, द्वारा उक्त चेक की धनराशि विपक्षी सं01 को भेजने में विलम्ब किया गया है। ऐसी स्थिति में विलम्ब के लिए उत्तरदायित्व उक्त बड़ौदा उ0प्र0 ग्रामीण बैंक का प्रकट होता है। परिवादिनी ने उक्त कथित बैंक को पक्षकार नहीं बनाया है। इसलिए उससे परिवादिनी को कोई धनराशि ब्याज अथवा क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाना सम्भव नहीं है।
उपरोक्त विवेचन से प्रकट है कि परिवादिनी के पति ने प्रश्नगत चेक उगाही हेतु विपक्षी सं01 के यहॉ दि0 01-06-2011 को जमा कर दी थी। विपक्षी सं01 के अनुसार उसने उक्त चेक को उगाही हेतु उसी दिन सुसंगत बैंक को भेज दी थी और सुसंगत बैंक ने उक्त चेक की धनराशि प्राप्त होने के उपरांत दिनांक 05-09-2014 को परिवादिनी के खाते में जमा कर दिया। इस प्रकार विपक्षी सं01 द्वारा सेवा में त्रुटि किया जाना स्थापित नहीं है। विपक्षी सं02 द्वारा भी सेवा में कोई त्रुटि किया जाना स्थापित नहीं होता है। विपक्षी सं03 का प्रश्नगत चेक से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं रहा है। उसे अनावश्यक रूप से परिवादिनी द्वारा पक्षकार बनाया गया है। परिवादिनी द्वारा उस बैंक को पक्षकार नहीं बनाया गया है, जिसने उसके पति के नाम प्रश्नगत चेक जारी की थी। प्रश्नगत चेक की धनराशि स्वीकृत रूप से परिवादिनी के खाते में जमा हो चुकी है। ऐसी स्थिति में परिवादिनी कोई अनुतोष पाने की अधिकारिणी नहीं है और उसका परिवाद खारिज होने योग्य है। परिवादिनी ने विपक्षी सं03 को अनावश्यक रूप से पक्षकार बनाया है, इसलिए विपक्षी सं03 को परिवादिनी से वाद व्यय के रूप में रू0 1,000/- दिलाना उचित है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद खारिज किया जाता है। परिवादिनी को निर्देश दिया जाता है कि वह वाद व्यय व क्षतिपूर्ति के रूप में विपक्षी सं03 को रू0 1,000/- एक माह के अन्दर अदा करे ।
इस निर्णय की एक-एक प्रति पक्षकारों को नि:शुल्क दी जाय। निर्णय आज खुले न्यायालय में, हस्ताक्षरित, दिनांकित कर, उद्घोषित किया गया।