// जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, बिलासपुर छ.ग.//
प्रकरण क्रमांक CC/2014/46
प्रस्तुति दिनांक 12/03/2014
लक्ष्मी प्रसाद भार्गव,
उम्र करीब 45 वर्ष, आ0स्व0 जवाहर लाल भार्गव,
निवासी ग्राम व पोस्ट मोपका, ग्राम पंचायत भवन के सामने,
थाना सरकंडा
तहसील व जिला बिलासपुर छ0ग0 ...आवेदक/परिवादी
विरूद्ध
कर्ण कल्याणी, उम्र करीब 60 वर्ष
आ. श्री नामालूम,
पता प्रो0 राकेश फर्नीचर मार्ट,
पातालेश्वर कालेज के पास, मस्तूरी
थाना व तहसील मस्तूरी,
जिला बिलासपुर छ0ग0 ......अनावेदक/विरोधीपक्षकार
आदेश
(आज दिनांक 20/05/2015 को पारित)
१. आवेदक लक्ष्मी प्रसाद भार्गव ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक के विरूद्ध सेवा में कमी के आधार पर पेश किया है और अनावेदक से 1,25,000/. रूपये क्षतिपूर्ति दिलाए जाने का निवेदन किया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि अनावेदक लकडी का कार्य करता है, आवेदक ग्राम मोपका में मकान निर्माण कराया, जिसके दरवाजा खिडकी जाली पल्ला के लिए उसने अनावेदक से संपर्क किया और उसे दो नग सागौन दरवाजा तथा 16 नग अन्य दरवाजा, चार नग जाली पल्ला एवं 22 नग खिडकी कसही लकडी से बनाने का सौदा तय किया, जिसका लागत अनावेदक द्वारा 1,45,000/. रूपये बताया गया, जिसमें से आवेदक उसे दिनांक 03/10/2013 को 70,000/- रूपये अग्रिम भुगतान किया । यह कहा गया है कि पांच माह बाद अनावेदक उसके मकान में 18 नग दरवाजा और चार नग जाली पल्ला और 22 नग खिडकी लगाकर चला गया, इस दौरान आवेदक अपने मकान से बाहर गया था वापस आने पर देखा कि मेन गेट पर एक नग सागौन दरवाजा पल्सा लकडी का लगाया गया था तथा शेष दरवाजा खिडकी जामुन लकडी का लगाया गया था, जबकि अनावेदक के साथ उसका सौदा कसही लकडी का हुआ था, अत: आवेदक इस संबंध में अनावेदक से शिकायत किया, किंतु अनावेदक गारंटी देने से इंकार कर दिया तब आवेदक उसे विधिक नोटिस देकर अग्रिम रकम वापस करने को कहा, जिसका कोई जवाब अनावेदक द्वारा नहीं दिया गया, अत: उसने अनावेदक की इस सेवा में कमी के लिए परिवाद पेश करते हुए उससे वांछित अनुतोष दिलाए जाने का निवेदन किया है ।
3. अनावेदक की ओर से जवाब पेश कर परिवाद का विरोध इस आधार पर किया गया कि उसके एवं आवेदक के मध्य 18 नग दरवाजा, चार नग जाली पल्ला और 22 नग खिडकी का सौदा हुआ था, जिसमें से मुख्य द्वार पर सागौन तथा शेष जामुन अथवा कसही लकडी का बनाकर देने का सौदा तय हुआ था, उसने आवेदक की उपस्थिति में ही और उसकी पूर्ण संतुष्टि पर उसके नवनिर्मित मकान पर दरवाजा, खिडकी फिट कराया था और शेष राशि दिए जाने का निवेदन किया, जो आवेदक द्वारा प्रदान नहीं किया गया, फलस्वरूप उसने उक्त रकम की वापसी के लिए श्रम न्यायालय के समक्ष आवेदन पेश किया है, जिसके कारण ही आवेदक शेष रकम की वापसी से बचने के लिए असत्य आधारों पर यह परिवाद पेश किया है, जो निरस्त किये जाने योग्य है ।
4. उभयपक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है । प्रकरण का अवलोकन किया गया ।
5. देखना यह है कि क्या आवेदक, अनावेदक से वांछित अनुतोष प्राप्त करने के अधिकारी है
सकारण निष्कर्ष
6. इस संबंध में कोई विवाद नहीं कि आवेदक एवं अनावेदक के मध्य 18 नग दरवाजा 4 नग जाली पल्ला और 22 नग खिडकी बनाने के संबंध में 1,45,000/.रूपये में सौदा तय हुआ था, जिसमें से आवेदक द्वारा अनावेदक को 70,000/. रूपये दिनांक 03/10/2013 को अग्रिम जमा किया गया।
7. आवेदक का कथन है कि अनावेदक के साथ हुए सौदे में 18 नग दरवाजा में से 2 नग दरवाजा सागौन का देना था और शेष का निर्माण कसही लकडी से किया जाना था, किंतु अनावेदक द्वारा केवल एक नग दरवाजा का निर्माण सागौन लकडी से किया गया तथा शेष जामुन की गीली लकडी से बनाया गया, जो एक सप्ताह में ही बेंड होने लगा । आवेदक अपने पक्ष समर्थन में अनावेदक द्वारा दिए गए रसीद दिनांक 03//10/2013 की कॉपी पेश किया है जिससे यह तो स्पष्ट होता है कि उसने अनावेदक को 18 नग दरवाजा, 4 नग जाली पल्ला और 22 नग खिडकी का आर्डर दिया था, किंतु उक्त रसीद से यह स्पष्ट नहीं होता कि उन दरवाजे खिडकी का निर्माण किस लकडी से किया जाना था । फलस्वरूप यह मान्य नहीं ठहराया जा सकता कि आवेदक ने अनावेदक से 18 नग में से 2 नग दरवाजे को सागौन लकडी से तथा शेष दरवाजा, जाली पल्ला एवं खिडकी को कसही लकडी से बनाने का सौदा तय किया।
8. आवेदक के परिवाद से ही यह स्पष्ट होता है कि अनावेदक पांच माह बाद 18 नग दरवाजा 4 नग जाली पल्ला और 22 नग खिडकी उसके मकान में लगा दिया था, आवेदक का कथन है कि वह उस दौरान बाहर चला गया था, आने पर देखा कि अनावेदक द्वारा केवल मेनगेट में दरवाजा सागौन का लगाया गया था तथा शेष दरवाजा, जाली पल्ला एवं खिडकी को जामुन की गीली लकडी से तैयार किया गया था, जो एक सप्ताह में ही बेंड होने लगा, किंतु इस संबंध में आवेदक किसी जानकार बढाई का कोई प्रमाणपत्र दाखिल नहीं किया है । फलस्वरूप यह तथ्य भी स्पष्ट नहीं हो पाता कि अनावेदक द्वारा मकान में गीली लकडी से काम किया गया था।
9. आवेदक के अनुसार, उसने अनावेदक को अपने अधिवक्ता जरिये विधिक नोटिस भेजकर अनावेदक को अपने द्वारा निर्मित खिडकी दरवाजा वापस ले जाकर अग्रिम रकम वापस किये जाने की मांग किया था, किंतु अनावेदक द्वारा उक्त नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया गया, बल्कि उसे मोबाईल से मस्तूरी आने पर देख लेने की धमकी दिया गया, किंतु इस संबंध में भी आवेदक द्वारा थाने में रिपोर्ट दर्ज करने संबंधी कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया है । इसके अलावा अनावेदक के जवाब से यह भी स्पष्ट होता है कि उसने आवेदक को नोटिस के जवाब में प्रतिउत्तर भेज कर उससे शेष रकम 75,000/. रूपये दिए जाने की मांग किया था, किंतु इस तथ्य को भी आवेदक अपने परिवाद में छिपाव किया है।
10. उपरोक्त कारणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि आवेदक मामले में सर्वप्रथम यही सिद्ध नहीं कर सका है कि उसने अनावेदक के साथ हुए सौंदे में 18 नग दरवाजे में से 2 नग दरवाजा सागौन तथा शेष दरवाजे एवं जाली पल्ला तथा खिडकी को कसही लकडी से बनाने का सौदा तय किया था। फलस्वरूप वह अनावेदक के विरूद्ध कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं । अत: उसका परिवाद निरस्त किया जाता है ।
11. प्रकरण की परिस्थिति में उभयपक्ष अपना अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे ।
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य