Uttar Pradesh

Kanpur Nagar

cc/512/2013

divya p patel - Complainant(s)

Versus

kanpur institute of technology - Opp.Party(s)

09 Feb 2015

ORDER

CONSUMER FORUM KANPUR NAGAR
TREASURY COMPOUND
 
Complaint Case No. cc/512/2013
 
1. divya p patel
naya ganj kanpur
...........Complainant(s)
Versus
1. kanpur institute of technology
rooma kanpur nagar
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. RN. SINGH PRESIDENT
 HON'BLE MR. PURUSHOTTAM SINGH MEMBER
 HON'BLE MRS. SUNITA BALA AWASTHI MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

 

                                                               जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम कानपुर नगर

अध्यासीनः     डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष    
    श्रीमती सुनीताबाला अवस्थी...................वरि.सदस्या
    पुरूशोत्तम सिंह..............................................सदस्य

उपभोक्ता परिवाद संख्याः-512/2013

कु0 दिव्या पी0 पटेल, पुत्री श्री प्रमोद पटेल निवासिनी मकान नं0-54/27 नयागंज, कानपुर नगर।
                                           ................परिवादिनी
बनाम
कानपुर इन्स्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलाॅजी, ए-1, यू0पी0 एस.आई.डी.सी. इंडस्ट्रियल एरिया, रूमा, कानपुर नगर द्वारा डायरेक्टर।
                               ..............विपक्षी
परिवाद दाखिल होने की तिथिः 07.10.2013
निर्णय की तिथिः 26.11.2015
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1.    परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि परिवादिनी को विपक्षी से परिवादिनी द्वारा जमा की गयी षक्षा षुल्क रू0 1,02,950.00 मय 12 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से दिनांक 02.08.12 से भुगतान की तिथि तक दिलायी जाये तथा मानसिक व षारीरिक कश्ट हेतु रू0 50,000.00 तथा परिवाद खर्च के रूप में रू0 11,000.00 दिलाये जाये।
2.    परिवाद पत्र के अनुसार, संक्षेप में परिवादिनी का कथन यह है कि परिवादिनी ने विपक्षी के षिक्षण संस्थान में वर्श 2012-13 में बी.टेक. प्रथम वर्श के लिए दिनांक 02.07.12 को रू0 10,000.00 तथा दिनांक 02.08.12 को षेश धनराषि रू0 92,950.00 जमा की गयी थी। किन्तु दिनांक 03.08.12 को अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गयी। फलस्वरूप डाक्टर की राय के अनुसार परिवादिनी को अपने इलाज हेतु दिनांक 23.08.12 को मुम्बई जाना पड़ा। दिनांक 21.08.12 को परिवादिनी ने विपक्षी को पत्र भेजकर उक्त फीस रू0 1,02,950.00 वापस करने की मांग की गयी। किन्तु विपक्षी की ओर से कार्यवाही नहीं की गयी। तब परिवादिनी के पिता द्वारा दिनांक 29.10.12 को रिमाइण्डर भेजा गया।  परिवादिनी के पिता कई बार 
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विपक्षी संस्थान के चक्कर लगाते रहे। दिनांक 15.06.13 को विपक्षी को एक विधिक नोटिस भी भेजी गयी। परिवादिनी की ओर से जनसूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत, परिवाद पत्र के प्रस्तर-10 में उल्लिखित निम्न प्रष्नों का उत्तर मांगा गया, जो इस प्रकार हैंः-
1.    स्पेज व िजीम ैजनकमदज ूीव ूमतम ंकउपजजमक प् ठण्ज्मबण् ;ब्ैद्ध बवनतेम पद जीम उवदजी व ि।नहनेज.ैमचजमउइमत 2012 ूपजी दंउमे ंदक कंजम व िंकउपेेपवदण्
2.    ज्ीम कंजम व िूीपबी ठण्ज्मबण् ;ब्ैद्ध बवनतेम बसंेेमे बवउउमदबमकण्
3.    ज्ीम दनउइमत व िजीम ेजनकमदजे ठण्ज्मबण् ;ब्ैद्ध बवनतेम वित जीम ेमेेपवद 2012.2013ण्
4.    ।जजमदकंदबम तमबवतक वित जीम उवदजी व ि।नह.ेमच पद ठण्ज्मबण् ;ब्ैद्ध बवनतेम दंउम व िजीम ंहमद....पदंदबपंससल ंपकमक ंदक ंििपसपंजपवद इवकलण्
5.    ॅंपजपदह सपेज व िजीम चतवेचमबजपअम ेजनकमदजे वित जीम ेमेेपवद 2012.13 बवउउमदबपदह पद रनसल 2012ण्
    किन्तु विपक्षी द्वारा परिवादिनी को उपरोक्त प्रष्नों का उत्तर नहीं दिया गया। विपक्षी द्वारा परिवादिनी की फीस वापस न करके उत्तर प्रदेष टेक्निकल यूनिर्वसिटी के नियमों व प्राविधानों के अनुसार एवं राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग के विभिन्न निर्णयों में पारित आदेषों के विपरीत कार्यवाही की गयी है। फलस्वरूप परिवादिनी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
3.     विपक्षी की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि विष्वविद्यालय की गाइड लाइन के अनुसार अगर किसी व्यक्ति का प्रवेष तय समय सीमा के अंदर हो जाता है और अगर वह प्रवेष नहीं चाहता है, तो समय-सीमा प्रवेष के समाप्त होने से पूर्व अगर दूसरा छात्र प्रवेष ले ले तो फीस वापस की जा सकती है। संस्थान में किसी अन्य छात्र ने तय समय-सीमा समाप्ति पर या उसके उपरान्त प्रवेष नहीं लिया। यह कहना असत्य है कि परिवादिनी द्वारा दी गयी विधिक नोटिस का समुचित उत्तर नहीं दिया गया है। परिवादिनी का यह कथन असत्य है कि उसके पिता को अनावष्यक रूप  से दौड़ाया गया है। 
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उपरोक्त के अतिरिक्त विपक्षी द्वारा अपने अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि ए.आई.सी.टी.आई. के फीस वापसी के दिषा-निर्देष के सम्बन्ध में एक नोटिफिकेषन ए.आई.सी.टी.आई./डी.जी.पी./06 (02)/2009 के अनुसार पाठ्यक्रम प्रारम्भ होने के पूर्व यदि कोई विद्यार्थी प्रवेष छोड़ देता है तो उस मामले में प्रतीक्षा सूची वाले अभ्यर्थी को खाली सीट की जगह प्रवेष दिया जाना चाहिए। ऐसे विद्यार्थी जो कार्यक्रम छोड़ना चाहते हो, उन्हें संस्थानों द्वारा अधिकतम रू0 1000.00 का प्रकमण षुल्क काटकर संपूर्ण एकत्रित षुल्क की राषि लौटायी जाये। संस्थानों को यह अनुमति नहीं है कि वे विद्यार्थी के विद्यालय/संस्थान छोड़ने का मूल प्रमाण पत्र रोक कर रखे। यदि कोई विद्यार्थी पाठ्यक्रम प्रारम्भ करने के बाद छोड़ देता है और उसके परिणाम स्वरूप सीट खाली होती है तथा प्रवेष की अंतिम तिथि तक खाली सीट किसी अन्य अभ्यर्थी से भर ली जाती है तो संस्थान एकत्रित षुल्क से अनुपातिक आधार पर मासिक षुल्क तथा अनुपातिक हास्टल षुल्क, जो लागू हो की कटौती करके षेश राषि वापस करेगा। विपक्षी संस्थान ने किसी प्रकार की सेवा में कोई कमी नहीं की है। अतः प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जाये।
6.    परिवादिनी की ओर से जवाबुल जवाब प्रस्तुत करके विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये जवाब दावा में उल्लिखित कथन का खण्डन किया गया है तथा स्वयं के द्वारा अपने परिवादपत्र में उल्लिखित तथ्यों की पुनः पुश्टि की गयी है और यह कहा गया है कि श्री एस.एन.एस. चैहान जिन्होंने विपक्षी की तरफ से जवाब दावा उक्त वाद में दाखिल किया है, वह जवाब दावा दाखिल करने हेतु सक्षम नहीं है। क्योंकि उन्होंने विपक्षी की ओर से कोई ऐसा कागजात जैसे पावर आफ अटार्नी पत्रावली में दाखिल नहीं की गयी है। विपक्षी ने यू0पी0टी0यू0 लखनऊ एवं मिनिस्ट्री आॅफ ह्यूमन रिसोर्सेज व युनिवर्सिटी ग्रांट कमीषन के नियमों का कोई भी पालन नहीं किया है। विपक्षी ने परिवादिनी को फीस वापस न करके अपने स्वयं के नियम व षर्ते बना ली है, जो कतई माने जाने योग्य नहीं है।
परिवादिनी की ओर से दाखिल किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
7.     परिवादिनी ने अपने कथन के समर्थन में स्वंय का षपथपत्र दिनांकित 26.12.14  तथा अभिलेखीय  साक्ष्य के रूप में  परिवादिनी द्वारा 
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जमा की गयी धनराषि रू0 10000.00 से सम्बन्धित प्राप्ति रसीद की प्रति, फीस डिपोजिट स्लिप की प्रति, डा0 श्रीमती सपना षाह द्वारा इलाज के सम्बन्ध में दी गयी रिपोर्ट की प्रति, परिवादिनी द्वारा विपक्षी को दिये गये प्रार्थनापत्र की प्रति, श्रीराम मंगलम नर्सिंगहोम द्वारा रिपोर्ट की प्रति, विपक्षी को पे्रशित पत्र की प्रति, नोटिस की प्रति, डा0 निर्भय सिंह निदेषक द्वारा उमेष कुमार पाण्डे एडवोकेट को प्रेशित पत्र की प्रति, सार्वजनिक सूचना की प्रति, विपक्षी द्वारा परिवादिनी को प्रेशित पत्र दिनांकित 16.07.13 की प्रति, बैंक आॅफ बड़ौदा द्वारा जारी प्रमाण पत्र की प्रति तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से दाखिल किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
8.     विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में एस.एन.एस. चैहान, प्रषासनिक अधिकारी का षपथपत्र दिनांकित 20.02.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में परिवादिनी को प्रेशित पत्र दिनांकित 16.07.13 की प्रति, जवाब नोटिस की प्रति, सार्वजनिक सूचना की प्रति, रजिस्ट्रेषन फार्म की प्रति, रसीद दिनांकित 02.07.12 की प्रति, फार्म नं0-440 की प्रति, के.आई.टी. के कैलेण्डर की प्रति तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
ःःनिष्कर्शःः

9.     फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक परिषीलन किया गया। 
10.    उभयपक्षों को सुनने तथा उभयपक्षों की ओर से प्रस्तुत लिखित बहस के अवलोकन से यह विदित हेाता है कि प्रस्तुत मामले में विवाद इस विशय का है कि परिवादिनी स्वयं के द्वारा जमा की गयी फीस विपक्षी संस्थान से प्राप्त करने की अधिकारिणी है अथवा नहीं।
    उपरोक्त विशय के सम्बन्ध में परिवादिनी की ओर से विधि निर्णय निपुण नागर बनाम सिमबियोसिस इंस्टीट्यूट आॅफ इंटरनेषलन बिजनिस प् ;2009द्ध ब्च्श्र 3 ;छब्द्ध में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है, जिसमें मा0 राश्ट्रीय आयोग  द्वारा यह विधिक 
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सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि जहां पर षिक्षार्थी के द्वारा अपनी सीट समर्पित कर दी गयी हो और उक्त सीट षिक्षण संस्थान द्वारा अन्य षिक्षार्थी से, सम्बन्धित सत्र के लिए भर ली गयी हो। ऐसी दषा में षिक्षण संस्थान को षिक्षार्थी द्वारा जमा की गयी फीस वापस करनी होगी। परिवादिनी की ओर से विधि निर्णय इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ होटल मैनेजमेन्ट एवं अन्य बनाम रेषमी दत्ता प्प् ;2011द्ध ब्च्श्र 274 ;छब्द्ध में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर से फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है, जिसमें मा0 राश्ट्रीय आयोग द्वारा यह विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि जहां पर षिक्षण सत्र प्रारम्भ हो गया हो और 3 दिन विद्यार्थी ने सत्र में अपनी उपस्थिति भी दर्ज की, किन्तु बाद में उसे यह ज्ञात हुआ कि प्रवेष के लिए प्रकाषन में दिये गये वायदों के अनुसार सत्र पूर्ण नहीं हो पायेगा और तब षिक्षार्थी के द्वारा जमा की गयी षिक्षण षुल्क वापस मांगी गयी। उक्त दषा में मा0 राश्ट्रीय आयोग द्वारा विद्यार्थी की षिक्षा षुल्क प्रष्नगत षिक्षण सत्र के लिए, वापस किया जाना न्यायसंगत बताया। परिवादिनी की ओर से ही विधि निर्णय प्ट ;2010द्ध ब्च्श्र 318 ;छब्द्ध में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है, जिसमें षिक्षार्थी का प्रवेष प्रथम संस्थान में होने के पष्चात षिक्षार्थी ने दूसरे संस्थान में प्रवेष ले लिया और प्रथम संस्थान से धन वापसी की मांग की। उक्त मामले में भी मा0 राश्ट्रीय आयेाग द्वारा संस्थान को षिक्षार्थी के द्वारा जमा की गयी षिक्षा षुल्क वापसी का आदेष दिया गया। परिवादिनी की ओर से विधि निर्णय प्प्प् ;2010द्ध ब्च्श्र 310 ;छब्द्ध में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है। उक्त मामले में भी षिक्षार्थी द्वारा एक दिन भी कक्षा में उपस्थिति दर्ज नहीं करायी गयी थी। प्रष्नगत षिक्षण सत्र से स्वयं को, षुल्क जमा करने के एक सप्ताह के अंदर ही वापस करके षिक्षा षुल्क एवं प्रमाण पत्रों की मांग की गयी जो कि मा0 राश्ट्रीय आयेाग द्वारा स्वीकार किया गया। परिवादिनी की ओर से ही विधि निर्णय संदीप पाल सिंह बनाम पंजाब एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी एवं अन्य प्ट ;2011द्ध ब्च्श्र 388 ;छब्द्ध में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर  से फोरम का ध्यान  आकृश्ट किया गया है,  जिसमें मा0 
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....6....

राश्ट्रीय आयोग द्वारा यह विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि जहां पर विपक्षी षिक्षण संस्थान को कोई हानि न हुई हो, वहां पर विद्यार्थी द्वारा जमा की गयी षिक्षा षुल्क को वापस किया जाना चाहिए। 
    उपरोक्त विधि निर्णयों में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत के आलोक में परिवादिनी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी षिक्षण संस्थान के द्वारा परिवादिनी को उसके द्वारा षिक्षा षुल्क के रूप में जमा की गयी धनराषि अदा करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त विपक्षी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि विष्वविद्यालय की गाइड लाइन के अनुसार अगर किसी व्यक्ति का प्रवेष तय समय सीमा के अंदर हो जाता है और अगर वह प्रवेष नहीं चाहता है, तो समय-सीमा प्रवेष के समाप्त होते ही अगर दूसरा छात्र प्रवेष ले ले तो फीस वापस की जा सकती है। संस्थान में किसी अन्य छात्र ने तय समय-सीमा समाप्त होने के पष्चात परिवादिनी के स्थान पर किसी अन्य छात्र, छात्रा ने प्रवेष नहीं लिया। अपितु पिछले कई वर्श से कई संस्थान कम प्रवेष से परेषान हैं तथा कई संस्थान बंद हो चुके हैं। विपक्षी की ओर से अपने जवाब दावा में विधि निर्णय ’’प्रिंसिपल हिमाचल डेन्टल काॅलेज (प्राईवेट) बनाम सुनील कुमार षर्मा ;1999द्ध 3 ब्च्श्र 211 ;भ्च्द्ध का उल्लेख किया गया है, किन्तु विपक्षी की ओर से उपरोक्त विधि निर्णय की कोई प्रति प्रस्तुत नहीं की गयी है। विपक्षी की ओर से अपनी लिखित बहस में उपरोक्त विधि निर्णय का उल्लेख किया गया है और यह उल्लिखित किया गया है कि उक्त विधि निर्णय में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि संस्थान के नियमों के अनुसार ही षिक्षा षुल्क वापस की जा सकती है।
    उपभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि इस सम्बन्ध में किसी भी पक्ष के द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है कि सम्बन्धित षिक्षण सत्र 2012-13 में परिवादिनी कुमारी दिव्या पटेल के स्थान पर किसी दूसरे विद्यार्थी का प्रवेष लिया गया है या नहीं। इस सम्बन्ध में परिवादिनी की ओर से विधि निर्णय गोपाल कृश्ण जी बनाम मोहम्मद हाजी लतीफ ।प्त् 1968 ैनचतमउम  ब्वनतज 1413 में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया
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गया है, जिसमें मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा साक्ष्य अधिनियम 1872 सेक्सन 114 जी0 एवं धारा-103 की व्याख्या करते हुए यह कहा गया है कि, ’’यदि कोई पक्ष अमुक साक्ष्य जो उसके पास हैं, न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत न करे तो न्यायालय उक्त पक्ष के विपरीत यह अवधारणा करने के लिए बाध्य है कि उक्त प्रष्न को साबित करने का भार उक्त पक्ष पर है।’’ प्रस्तुत मामले में परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र के प्रस्तर-10 में इस बात का स्पश्ट उल्लेख किया गया है कि विपक्षी षिक्षा संस्थान से उसके द्वारा 5 बिन्दुओं पर जनसूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना मांगी गयी, किन्तु विपक्षी संस्थान द्वारा वांछित सूचना परिवादिनी को नहीं दी गयी। परिवादिनी द्वारा विपक्षी संस्थान से जो सूचनायें मांगी गयी है, उन सूचनाओं के अवलोकन से विदित होता है कि यदि विपक्षी, परिवादिनी को वांछित सूचनाओं का जवाब दे देता तो परिवादिनी यह साबित कर सकती थी कि प्रष्नगत षिक्षण सत्र में परिवादिनी के स्थान पर किसी अन्य विद्यार्थी का प्रवेष विपक्षी संस्थान द्वारा किया गया है या नहीं। विपक्षी द्वारा वांछित सूचना न देने के कारण फोरम मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा उपरोक्त विधि निर्णय में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत से प्ररेणा लेकर यह अवधारणा करने के लिए विवष है कि परिवादिनी को वांछित सूचना न देने पर विपक्षी पर यह सिद्ध करने का भार आता है कि प्रष्नगत षिक्षा सत्र के लिए परिवादिनी कुमारी दिव्या पटेल के स्थान पर किसी अन्य विद्यार्थी का प्रवेष लिया गया, या नहीं। विपक्षी द्वारा अपने जवाब दावा में तथा लिखित बहस में मात्र यह कहा गया है कि परिवादिनी के स्थान पर प्रष्नगत षिक्षा सत्र के लिए किसी अन्य विद्यार्थी ने प्रवेष नहीं लिया, किन्तु अपने उपरोक्त कथन को साबित करने के लिए विपक्षी द्वारा कोई सारवान तथ्य अथवा कोई सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये गये हैं। ऐसी दषा में फोरम, परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किये गये तर्कों से सहमत होने के लिए बाध्य है कि प्रष्नगत षिक्षा सत्र के लिए परिवादिनी के स्थान पर निष्चित रूप से किसी अन्य विद्यार्थी को प्रवेष दिया गया होगा। परिवादिनी की सीट प्रष्नगत षिक्षा सत्र के लिए रिक्त नहीं रही है। परिवादिनी द्वारा षिक्षा षुल्क जमा करने के पष्चात विष्वविद्यालय की गाइड लाइन       के अनुसार, समय-सीमा के अंदर गंभीर रूप से बीमार हो जाने के कारण
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जमा की गयी षिक्षा षुल्क वापसी की मांग की गयी है। परिवादिनी की ओर से अन्य अभिलेखीय साक्ष्य यथा षुल्क जमा किये जाने की रसीद व बीमारी से सम्बन्धित प्रस्तुत किये गये प्रपत्र, विधिक नोटिस से विपक्षी की ओर से कोई इंकार नहीं किया गया है। उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों एवं उपरोक्तानुसार दिये गये निश्कर्श के आधार पर फोरम इस मत का है कि परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप से उसके द्वारा जमा की गयी षिक्षा षुल्क वापसी के लिए स्वीकार किये जाने योग्य है। परिवादिनी का परिवाद, परिवाद व्यय के लिऐ भी स्वीकार किये जाने योग्य है। जहां तक परिवादिनी द्वारा अन्य याचित उपषम यथा मानसिक व षारीरिक कश्ट के लिए है, परिवादिनी की ओर से उक्त के सम्बन्ध में कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण, उक्त याचित उपषम के लिए परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।    
ःःःआदेषःःः
11.    परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि, प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षी, परिवादिनी द्वारा जमा की गयी षिक्षा षुल्क बावत षिक्षा सत्र 2012-13 रू0 1,02,950.00 में से रू0 1000.00 प्रकमण षुल्क काटकर षेश धनराषि रू0 1,01,950.00 मय 8 प्रतिषत वार्शिक ब्याज के, प्रस्तुत परिवाद योजित करने की तिथि से तायूम वसूली अदा करे तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय भी अदा करे।

(श्रीमती सुनीताबाला अवस्थी)    (पुरूशोत्तम सिंह)   (डा0 आर0एन0 सिंह)
       वरि0सदस्या                सदस्य              अध्यक्ष
    जिला उपभोक्ता विवाद       जिला उपभोक्ता विवाद  जिला उपभोक्ता विवाद
       प्रतितोश फोरम                प्रतितोश फोरम         प्रतितोश फोरम
       कानपुर नगर।                 कानपुर नगर।         कानपुर नगर।

    आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।


        (श्रीमती सुनीताबाला अवस्थी)    (पुरूशोत्तम सिंह)   (डा0 आर0एन0 सिंह)
       वरि0सदस्या                सदस्य              अध्यक्ष
    जिला उपभोक्ता विवाद       जिला उपभोक्ता विवाद  जिला उपभोक्ता विवाद
       प्रतितोश फोरम                प्रतितोश फोरम         प्रतितोश फोरम
       कानपुर नगर।                 कानपुर नगर।         कानपुर नगर।

 
 
परिवाद संख्या-512/2013
25.11.2015- कार्तिक पूर्णिमा अवकाष
26.11.2015
मुकद्मा पुकारा गया। निर्णय सुनाया गया।
ःःःआदेषःःः
    परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि, प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षी, परिवादिनी द्वारा जमा की गयी षिक्षा षुल्क बावत षिक्षा सत्र 2012-13 रू0 1,02,950.00 में से रू0 1000.00 प्रकमण षुल्क काटकर षेश धनराषि रू0 1,01,950.00 मय 8 प्रतिषत वार्शिक ब्याज के, प्रस्तुत परिवाद योजित करने की तिथि से तायूम वसूली अदा करे तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय भी अदा करे।

        (श्रीमती सुनीताबाला अवस्थी)    (पुरूशोत्तम सिंह)   (डा0 आर0एन0 सिंह)
       वरि0सदस्या                सदस्य              अध्यक्ष

 

 
 
[HON'BLE MR. RN. SINGH]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. PURUSHOTTAM SINGH]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. SUNITA BALA AWASTHI]
MEMBER

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