Uttar Pradesh

StateCommission

A/629/2022

Virendra Nath Shukla - Complainant(s)

Versus

Kanpur Development Authority - Opp.Party(s)

Pramendra Verma

12 Jul 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/629/2022
( Date of Filing : 08 Jul 2022 )
(Arisen out of Order Dated 28/03/2022 in Case No. C/2007/384 of District Kanpur Nagar)
 
1. Virendra Nath Shukla
S/o Sri Bachu lal Shukla R/o 1/2 Gulmohar Vihar Joohi Kanpur
...........Appellant(s)
Versus
1. Kanpur Development Authority
Kanpur Nagar
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 12 Jul 2022
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-629/2022

(मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्‍या 384/2007 में पारित आदेश दिनांक 28.03.2022 के विरूद्ध)

वीरेन्‍द्र नाथ शुक्‍ला पुत्र श्री बच्‍चू लाल शुक्‍ला, निवासी-सी-1/2 गुलमोहर विहार, जूही, कानपुर नगर।

                                 ........................अपीलार्थी/परिवादी

बनाम

उपाध्‍यक्ष, कानपुर विकास प्राधिकरण, कानपुर नगर।

                                       ...................प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य। 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रमेन्‍द्र वर्मा,  

                            विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

दिनांक: 12.07.2022

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत अपील अपीलार्थी वीरेन्‍द्र नाथ शुक्‍ला द्वारा इस न्‍यायालय के सम्‍मुख जिला उपभोक्‍ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद                संख्‍या-384/2007 वीरेन्‍द्र नाथ शुक्‍ला बनाम उपाध्‍यक्ष, कानपुर विकास प्राधिकरण में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.03.2022 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी।

प्रश्‍नगत निर्णय और आदेश के द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग ने उपरोक्‍त परिवाद खारिज कि฻या है।

हमारे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्‍ता                  श्री प्रमेन्‍द्र वर्मा को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।

संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा आवासीय प्रयोजन हेतु भवन सं0-सी.1/2  ब्‍लॉक  डब्‍लू्.  योजना  गुलमोहर

 

 

-2-

बिहार में प्रत्‍यर्थी/विपक्षी प्राधिकरण के यहॉं आवंटित कराया था, जिसकी अनुमानित कीमत 1,15,000/-रू0 थी तथा यह कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा उक्‍त भवन रहने योग्‍य हालत में तैयार करके अपीलार्थी/परिवादी को दिया जाना था, परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा प्रश्‍नगत भवन में अधूरा निर्माण करके सेवा में कमी की गयी।

अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा मेनगेट, ऊपरी मंजिल में जाने पर लोहे का गेट, 09 अदद दरवाजे, कच्‍चा सहन, कच्‍चा आंगन, बिजली का मीटर लगाने का स्‍थान, शीशे न लगाया जाना आदि कमियों के साथ अपीलार्थी/परिवादी को भवन का कब्‍जा दिया गया, जिस कारण अधूरे कार्य को पूरा कराने में अपीलार्थी/परिवादी को करीब 20,000/-रू0 खर्च करना पड़ा। इस प्रकार प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को 20,000/-रू0 की क्षति पहुँचायी गयी, जिसकी क्षतिपूर्ति लिए प्रत्‍यर्थी/विपक्षी उत्‍तरदायी है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा अपने अधिवक्‍ता के माध्‍यम से प्रत्‍यर्थी/विपक्षी को दिनांक 19.01.2007 को रजिस्‍टर्ड नोटिस भेजा गया, जो प्रत्‍यर्थी/विपक्षी पर तामील हुआ, परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा उक्‍त नोटिस का न तो जवाब दिया गया तथा न ही धनराशि अदा की, जिससे क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रत्‍यर्थी/विपक्षी प्राधिकरण के विरूद्ध जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख परिवाद योजित करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।

प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख जवाबदावा प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें कहा गया कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को उपरोक्‍त भवन का कब्‍जा दे दिया गया है तथा परिवाद का कोई वादकारण पैदा नहीं हुआ।

प्रत्‍यर्थी/विपक्षी का कथन है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा दिनांक 09.04.1985 को आवंटन पत्र द्वारा उपरोक्‍त भवन अपीलार्थी/परिवादी को आवंटित किया गया, जिसकी अनुमानित कीमत 1,15,000/-रू0 दर्शायी गयी तथा यह कि 30 दिन के अन्‍दर 25,000/-रू0 द्वितीय किस्‍त व उसके अगले दो माह के अन्‍दर 25,000/-रू0 तृतीय किस्‍त तथा अगले दो माह में 25,000/-रू0 चौथी किस्‍त तथा अगले  दो  माह  में  25,000/-रू0

 

 

-3-

कुल बढ़ी हुई धनराशि कब्‍जा व निबन्‍धन के पूर्व जमा करना था, परन्‍तु अपीलार्थी/परिवादी द्वारा धनराशि जमा नहीं की गयी। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को दिनांक 20.12.1988, दिनांक 11.02.1991, दिनांक 31.10.1991 व दिनांक 02.11.1991 को अवशेष धनराशि जमा करने हेतु सूचना दी गयी। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा दिनांक 01.11.1991 को एक प्रार्थना पत्र प्रत्‍यर्थी/विपक्षी को दिया गया कि उसकी आर्थिक स्थिति अच्‍छी नहीं है। अत: दिनांक 01.11.1991 को प्रेषित नोटिस की धनराशि को जमा करने हेतु अवसर चाहा, परन्‍तु फिर भी धनराशि जमा नहीं की। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा पुन: दिनांक 03.04.1995 एवं दिनांक 10.12.1996 को अपीलार्थी/परिवादी को नोटिस दिया गया तथा यह कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा अंत में ब्‍याज सहित धनराशि प्राधिकरण के खाते में जमा की गयी तथा दिनांक 23.01.2004 को फ्रीहोल्‍ड डीड अपीलार्थी/परिवादी के पक्ष में प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा निष्‍पादित किया गया तथा भवन का कब्‍जा दिया गया।

प्रत्‍यर्थी/विपक्षी का कथन है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है, अत: अपीलार्थी/परिवादी को किसी क्षतिपूर्ति का कोई प्रश्‍न नहीं है तथा परिवाद खारिज किये जाने योग्‍य है।

     विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त अपने निर्णय में निम्‍न तथ्‍य अंकित किये हैं:-

     ''उभय पक्षों के मध्‍य विवाद मात्र यह है कि विपक्षी द्वारा जो भवन का कब्‍जा परिवादी को दिया गया, उसमें शर्त के अनुसार भवन निर्माण में सुविधायें नहीं थी, जैसा कि कहा गया कि मेनगेट नहीं था, ऊपरी मँजिल में जाने के लिये जीने में लोहे का गेट नहीं था, दरवाजे नहीं थे, कच्‍चा व सहन कच्‍चा था इत्‍यादि। यद्यपि परिवादी द्वारा अपने परिवाद में कहीं यह उल्‍लेख नहीं किया गया कि परिवादी को भवन का कब्‍जा विपक्षी द्वारा कब दिलाया गया, जबकि विपक्षी के कथनानुसार परिवादी द्वारा समस्‍त धनराशि अदा करने के बाद परिवादी के पक्ष में दिनांक 23.01.2004 को फ्रीहोल्‍ड डीड निष्‍पादित की गई और उसी समय कब्‍जा दे दिया गया। परिवादी द्वारा कब्‍जा प्राप्‍त किया गया। इस बिन्‍दु पर कोई विवाद नहीं है। विपक्षी के अनुसार शर्तों के मुताबिक भवन पूर्ण करके कब्‍जा दिया गया था। यदि कोई कमी होती तो परिवादी कब्‍जा लेने से

 

 

-4-

इन्‍कार कर सकता था या कब्‍जा लेते समय उक्‍त आपत्तियॉं दर्ज करा सकता था, परन्‍तु ऐसा कुछ भी परिवादी के द्वारा नहीं किया गया। विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का एक तर्क यह भी है कि परिवादी द्वारा एक बार कब्‍जा ले लेने के उपरान्‍त विपक्षी का कोई भी दायित्‍व भवन के सम्‍बन्‍ध में नहीं होता है और कब्‍जा प्राप्‍त करने के बाद यदि परिवादी द्वारा अपने ढँग से कोई निर्माण परिवर्धन कराया जाता है तो उसका दायित्‍व विपक्षी पर नहीं है। इस प्रकार यह कहा गया है कि परिवाद आधारहीन है। निश्चित रूप से जब परिवादी ने भवन का कब्‍जा प्राप्‍त कर लिया है और यदि उसमें कोई परिवर्तन कराया जाता है तो उसके लिये विपक्षी उत्‍तरदायी नहीं है। विपक्षी की ओर से सेवा में कोई कमी प्रतीत नहीं हो रही है और न ही साबित है। तद्नुसार परिवाद आधारहीन है और खारिज होने योग्‍य है।''

सम्‍पूर्ण तथ्‍यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध प्रपत्रों एवं जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्‍त हम इस मत के हैं कि विद्वान  जिला  उपभोक्‍ता  आयोग  द्वारा  समस्‍त  तथ्‍यों  का  सम्‍यक

अवलोकन/परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्‍त विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया, जिसमें हस्‍तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं हैं।

अतएव, प्रस्‍तुत अपील अंगीकरण के स्‍तर पर निरस्‍त की जाती है।

आशुलिपि‍क से अपेक्षा की जाती है कि‍ वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

        (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)               (सुशील कुमार)    

                अध्‍यक्ष                        सदस्‍य

 

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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