राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या– 275/2013 सुरक्षित
(जिला उपभोक्ता फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0 460/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11-01-2013 के विरूद्ध)
राघवेन्द्र कुमार दीक्षित पुत्र श्री राम किशोर दीक्षित, निवासी- मकान नं0 118/454, कैलाशपुरी, कानपुर नगर। ..अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
कानपुर डेव्लपमेंट अथारिटी, मोतीझील, कानपुर, द्वारा वाइस चेयरमैंन।
...प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थिति : श्री आलोक सिन्हा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थिति : श्री एन0सी0 उपाध्याय, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक-31-08-2016
माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0 460/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11-01-2013 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है, जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
“उपरोक्त कारणों से परिवादी द्वारा प्रस्तुत वाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि निर्णय के 30 दिन के अंदर परिवादी द्वारा मूल रसीदों को प्रस्तुत किये जाने के पश्चात परिवादी को रूपया 44531-00, 18 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज सहित अदा कर देवे। इस ब्याज की अदायगी अप्रैल 2005 से लेकर सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी के अंतिम दिन तक होगी। इसके अलावा विपक्षी को यह भी निर्देशित किया जाता है कि क्षतिपूर्ति के रूप में परिवादी को उक्त समय के अन्दर रूपया 20,000-00 और अदा कर देवे।”
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि समाचार पत्र में दिनांक 16-01-1999 को प्रकाशन कराये जाने के पश्चात दबौली वेस्ट योजना के अर्न्तगत परिवादी ने 30,000-00रूपये दिनांक 29-01-1999 को जमा किया था तथा परिवादी को नियमानुसार भूखण्ड सं0-एमआईजी-3 स्कीम-3 के अर्न्तगत आवंटित किया गया था। आवंटित भूखण्ड का कुल मूल्य रूपया 99,000-00 था, जिसका ¼ धनराशि पंजीकरण धनराशि को समायोजित करते हुए 30 दिन के अन्दर जमा कर दिया था। शेष ¾ धनराशि रूपया 4760-00 त्रैमासिक किश्तों में जमा होना था, जिसे
(2)
परिवादी लगातार दिनांक 28-03-2005 तक जमा करता रहा। सम्पूर्ण धनराशि जमा करने के पश्चात परिवादी ने आवंटित भूखण्ड के पंजीकरण के सम्बन्ध में सम्पर्क किया, लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। इस सम्बन्ध में परिवादी ने दिनांक 21-03-2006, 12-05-2006 , 01-06-2006, 3-07-2006 तथा 28-08-2006 को पत्र भेजे। विपक्षी द्वारा किसी प्रकार की कार्यवाही न किये जाने पर विपक्षी ने अंतत: यह बताया कि परिवादी को आवंटित भूखण्ड विवादित होने के कारण वैकल्पिक भूखण्ड दिये जाने की सूची में परिवादी का नाम सम्मिलित कर लिया गया है, अध्यक्ष का अनुमोदन होना शेष है। परिवादी ने सूचना के अधिकार के अर्न्तगत जब विवरण मांगा तो पत्र दिनांक 02-06-2007 से यह जानकारी में आया कि परिवादी को आवंटित भूखण्ड श्याम सिंह को दिनांक 31-03-1997 को आवंटित कर उसका विक्रय पत्र भी श्याम सिंह के नाम सम्पादित किया जा चुका है तथा श्याम सिंह को कब्जा भी दिया जा चुका है। इस कारण परिवादी का नाम वैकल्पिक भूखण्ड दिये जाने की सूची में सम्मिलित किया गया है। इसके बावजूद विपक्षी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस कारण वाद का कारण उत्पन्न हुआ। अत: परिवादी द्वारा प्रस्तुत वाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जावे।
जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रतिवादी ने प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें परिवादी के कथनों को अस्वीकार कर यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी को भूखण्ड सं0-3 दबौली वेस्ट का आवंटन अभिलेखों में आयी भूल के कारण किया गया था। परिवादी ने विक्रय पत्र सम्पादित किये जाने के सम्बन्ध में कभी विपक्षी से सम्पर्क नहीं किया था। परिवादी का नाम वैकल्पिक भूखण्ड दिये जाने की सूची में सम्मिलित किया गया। अंतिम रूप लेने से पहले ही परिवादी ने यह वाद प्रस्तुत कर दिया है। इस कारण परिवादी के पक्ष में कोई कार्यवाही नहीं की गई है। परिवादी ने अपना वाद गलत तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया है। अत: प्रस्तुत वाद निरस्त किये जाने योग्य है।
इस सम्बन्ध में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एन0सी0 उपाध्याय, की बहस सुनी गई तथा जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांकित 11-01-2013 का अवलोकन किया गया एवं अपील आधार का भी अवलोकन किया और दोनों पक्षो के तरफ से दाखिल लिखित बहस का भी अवलोकन किया गया।
(3)
अपील आधार में कहा गया है कि वादी ने 30,000-00 रूपये दिनांक 29-01-1990 को जमा किया था। के0डी0ए0 द्वारा एम0आई0जी0-।।। दबौली वेस्ट में एलाटमेंट पत्र दिनांक 12-03-1999 से एलाट किया गया, जिसमें प्लाट की कीमत 99,000-00 रूपये जमा किया गया और 24 त्रैमासिक किश्तों में 4,760-00 प्रति किश्त जमा करना था। किश्त दिनांक 01-06-1999 से शुरू होना था। परिवादी ने सारी किश्तें जमा कर दिये और अन्तिम किश्त दिनांक 28-03-2005 को जमा किया और के0डी0ए0 के पास सेलडीड व कब्जा के लिए गया, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया। परिवादी ने तमाम पत्र लिखे, उसके बाद जवाब न मिलने पर परिवादी ने सूचना अधिकार अधिनियम के अर्न्तगत सूचना एकत्र किया और के0डी0ए0 के पत्र दिनांकित 16-01-2006 से पता चला कि परिवादी का नाम वैकल्पिक भूखण्ड एलाटमेंट के लिस्ट में है, क्योंकि जो परिवादी को प्लाट एलाट किया गया था, वह विवादित हो गया है और के0डी0ए0 दिनांक 29-01-2007 को एक दूसरे को पहले से एलाट कर चुका था तथा उनकी गलती से वादी को एलाट हो गया, जबकि वह पहले श्याम सिंह को एलाट हो चुका था, जिसकी विक्रय पत्र भी लिखी जा चुकी थी और उसका कब्जा भी दिया जा चुका था। अपील आधार में यह भी कहा गया है कि जिला उपभोक्ता फोरम ने परिवादी का परिवाद स्वीकार किया है, लेकिन उसके साक्ष्यों को स्वीकार नहीं किया गया। वादी ने परिवाद पत्र, परिवादी का शपथ पत्र, परिवाद संशोधन प्रार्थना पत्र व अन्य अभिलेखों की फोटो कापी दाखिल किया है जो संलग्नक-1 से 5 है और अपील आधार में कहा है कि जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांकित 11-01-2013 को निरस्त किया जाय और उसके द्वारा मांगी गई पूर्ण अनुतोष को स्वीकार किया जाय।
परिवादी द्वारा पेश किये गये परिवाद पत्र जो संलग्नक-1 के रूप में जिसमें अनुतोष (अ) में दर्शाये गये है कि विपक्षी को निर्देशित किया जाय कि परिवादी को इसी क्षेत्र में उसी धनराशि पर उतने ही वर्गमीटर का भूखण्ड देकर उसका निबन्धन कराकर कब्जा दिया जाय और यह अनुतोष भी मांगा गया है कि परिवादी को विपक्षी से आर्थिक मानसिक व शारीरिक क्षतिपूर्ति हेतु 50,000-00 रूपये दिलाया जाय और लिखित बहस में इसी तथ्यों को दोहराया गया है। पत्रावली में संलग्नक-4 प्रार्थना पत्र अर्न्तगत धारा-6 नियम 17 सी.पी.सी. के अर्न्तगत जिला उपभोक्ता फोरम, कानपुर नगर में परिवाद सं0-460/2007 में दिया गया था, जिसमें विपक्षी द्वारा आवंटित प्लाट में निबन्धक कब्जे व क्षतिपूर्ति हेतु अनुतोष की मांग की है। विपक्षी अपने जवाब में प्लाट उपलब्ध न होने की दशा में वैकल्पिक भूखण्ड दिये जाने हेतु कथन किया है।
(4)
ऐसी स्थिति में बाद बहस माननीय फोरम ने वैकल्पिक भूखण्ड न दे पाने पर उसके बावत कोई अनुतोष उल्लिखित न होने पर उक्त अनुतोष के सम्बन्ध में परिवाद पत्र में संशोधन हेतु आदेशित किया है और माननीय फोरम में उक्त आदेश के तहत निम्नलिखित संशोधन किया जाना अपरिहार्य हो गया है और वाद पत्र में उल्लिखित संशोधन अनुतोष (अ) के बाद अनुतोष अ-1 बढ़ा दिया जाय जो निम्न प्रकार है:- (अ-1) में यह कि विपक्षी द्वारा उक्त आवंटित् प्लाट के एवज में वैकल्पिक भूखण्ड न दे पानेपर विवादित आवंटित प्लाट की मौजूदा समय पर जिलाधिकारी महोदय द्वारा निर्धारित मूल्य के अनुसार प्रतिवर्गमीटर के हिसाब से विवादित प्लाट की कीमत दिलायी जावे।
इस सम्बन्ध में जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय का अवलोकन किया गया। जिला उपभोक्ता फोरम ने अपने निर्णय में कहा है कि परिवादी तथा विपक्षी के मध्य मुख्य रूप से यह विवाद है कि क्या परिवादी को आवंटित भूखण्ड का विक्रय पत्र सम्पादित किये जाने योग्य है और यदि नहीं तो क्या जिलाधिकारी द्वारा निर्धारित मूल्य के आधार पर परिवादी आवंटित भूखण्ड का मूल्य प्राप्त करने का अधिकारी है। परिवादी ने अपने कथनों के समर्थन में शपथ पत्र तथा अभिलेखों को प्रस्तुत किया है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र तथा अभिलेखों से स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा रूपया 30,000-00 दिनांक 29-01-1999 को जमा कराये जाने के पश्चात विपक्षी ने परिवादी के पक्ष में नियमानुसार भूखण्ड सं0-3 एम0आई0जी0 योजना सं0-3 दबौली वेस्ट के अर्न्तगत आवंटित किया गया था। परिवादी ने ¼ धनराशि मांगी गई अवधि के अन्दर जमा कर दिया था तथा अनुमानित शेष धनराशि 4760-50 की त्रैमासिक किश्तों में दिनांक 28-03-2005 तक अदा कर दिया था। समस्त धनराशि अदा करने के पश्चात जब परिवादी ने विक्रय पत्र सम्पादित करने के सम्बन्ध में विपक्षी से सम्पर्क किया तो अंतत: यह जानकारी दी गई कि परिवादी को जो भूखण्ड आवंटित किया गया था, वह दिनांक 31-03-1997 को श्याम सिंह के पक्ष में आवंटित किया गया था और उसका विक्रय पत्र सम्पादित किया जा चुका है। इस प्रकार उक्त भूखण्ड दोहरे आवंटन के कारण विवादित हो गया है। परिवादी का नाम वैकल्पिक भूखण्ड देने की सूची में सम्मिलित कर लिया गया है। इस कारण आवंटित भूखण्ड का विक्रय पत्र परिवादी के पक्ष में सम्पादित नहीं किया जा सकता है। इस कारण परिवादी के पक्ष में आवंटित भूखण्ड का विक्रय पत्र सम्पादित नहीं किया गया। विपक्षी ने अपना जवाबदावा तथा शपथ पत्र प्रस्तुत करते हुए यह स्पष्ट रूप से कथन किया है कि उक्त का
(5)
आवंटन भूलवश हो गया था। इसी कारण परिवादी के पक्ष में आवंटित भूखण्ड विवादित हो गया। परिवादी द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी के पक्ष में आवंटन हेतु प्रदेशनपत्र दिनांक 12-03-1999 को जारी किया गया था, जबकि विपक्षी द्वारा जारी पत्र दिनांक 29-01-2007 से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी को आवंटित भूखण्ड पहले ही दिनांक 31-03-1997 को श्याम सिंह को आवंटित किया जा चुका था और उसका विक्रय पत्र भी सम्पादित होकर कब्जा दिया जा चुका है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि परिवादी के आवंटन से पूर्व ही परिवादी को आवंटित भूखण्ड दूसरे को आवंटित किया जा चुका है। इस कारण परिवादी के पक्ष में आवंटन गलत तरीके से विपक्षी द्वारा किया गया, इसमें परिवादी की कोई गलती नही है, इसके लिए विपक्षी स्वयं उत्तरदायी है। विपक्षी द्वारा दिये गये पत्र से भी यह स्पष्ट होता है कि परिवादी को अभी तक सूचना के बावजूद भूखण्ड न तो आवंटित किया गया है और न ही इसकी कोई सूचना विपक्षी द्वारा परिवादी को दी गई। विपक्षी ने इस सम्बन्ध में सद्भभावी तरीके से कोई कार्य नहीं किया है। परिवादी द्वारा वाद प्रस्तुत कर देने के बावजूद विपक्षी परिवादी के पक्ष में वैकल्पिक भूखण्ड आवंटित कर सूचित कर सकता था, लेकिन विपक्षी ने मात्र केवल यह सहारा लिया है कि वाद प्रस्तुत किये जाने के कारण परिवादी के पक्ष में वैकल्पिक भूखण्ड आवंटन की कार्यवाही नहीं की जा सकी। विपक्षी का यह कथन उचित नहीं है।
इस प्रकार से जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय से यह स्पष्ट है कि परिवादी को जो भूखण्ड आवंटित किया गया था वह दिनांक 31-03-1997 को श्याम सिंह के पक्ष में आवंटित किया गया था और उसका विक्रय पत्र भी सम्पादित किया जा चुका है। यह भी कहा गया है कि विपक्षी ने अपने जवाबदावा शपथ पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया है कि उक्त आवंटन भूलवश हो गया था इसी कारण परिवादी के पक्ष में आवंटित भूखण्ड विवादित हो गया।
जिला उपभोक्ता फोरम ने समस्त पहुलओं को देखते हुए यह पाया है कि परिवादी के द्वारा कुल मिलाकर 44,531-00 अदा किया गया था और जिला उपभोक्ता फोरम ने इसी रकम को वापस करने के आदेश और उस पर अप्रैल 2005 से 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज और मानसिक कष्ट के लिए अलग से 20,000-00 रूपये का आदेश किया है। अत: हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्ता के द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह विधि सम्मत् है, उसमें हस्तक्षेप किये जाने की कोई गुंजाइश नहीं है, अलग से और कोई अनुतोष अपीलकर्ता/परिवादी को दिलाना उचित नहीं है। अपीलकर्ता की अपील खारिज किये जाने योग्य है।
(6)
आदेश
अपीलकर्ता की अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
(आर0सी0 चौधरी) ( राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य,
आर.सी.वर्मा, आशु.
कोर्ट नं0-3