राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२६४८/२००६
(जिला फोरम/आयोग, अलीगढ़ द्वारा परिवाद सं0-२९/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१-०७-२००६ के विरूद्ध)
मै0 अशोका लीलेण्ड फाइनेंस लि0, ६ के.एम., भीकमपुर, अलीगढ़-दिल्ली जी0टी0 रोड, अलीगढ़ द्वारा ब्रान्च मैनेजर, वर्तमान में द्वारा लीगल एक्जक्यूटिव, मै0 अशोका लीलेण्ड फाइनेंस लि0, २११, सरन चेम्बर्स, पार्क रोड, लखनऊ।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
कंचन सिंह पुत्र श्री लाल सिंह निवासी २४५, मुरारी नगर, खुर्जा, जिला बुलन्दशहर, वर्तमान निवासी ग्राम व पोस्ट शिभाना, जिला अलीगढ़। ...........प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आशुतोष मिश्रा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- ०९-११-२०२१.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत जिला फोरम/आयोग, अलीगढ़ द्वारा परिवाद सं0-२९/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१-०७-२००६ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रश्नगत निर्णय विधि विरूद्ध और तथ्यों के विपरीत है। ऋण की धनराशि और ब्याज के सम्बन्ध में गलत निष्कर्ष दिया गया। परिवादी ऋण की अदायगी में आदतन चूक करता रहा है। चेक अनादरित होने के सम्बन्ध में धनराशि काटी गई है। हायर परचेज एग्रीमेण्ट के अन्तर्गत दुपहिया वाहन लिया गया। ऋण की अदायगी न करने के कारण अपीलार्थी को अधिकार था कि वह उसे अपने संरक्षण में ले ले। परिवादी को कई बार अनुस्मारक पत्र भेजे गए लेकिन उसके द्वारा ऋण अदा न करने पर दिनांक १०-०५-२००४ को अन्तिम बार नोटिस दी गई कि
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वह १२,३११/- रू० जमा कर दे नहीं तो वाहन को पुन: कब्जे में ले लिया जाएगा। बकाया धनराशि १२,३११/- रू० थी लेकिन विद्वान जिला फोरम ने केवल ५,२०६/- रू० का अनुतोष दिया है। अत: ऐसी स्थिति में वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१-०७-२००६ को अपास्त किया जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया। पर्याप्त तामीला के बाबजूद प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
हमने प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया। विद्वान जिला फोरम ने निर्णय में यह लिखा है – ‘’ पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री का अवलोकन किया गया। पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि वादी द्वारा विभिन्न चेकों के माध्यम से विपक्षी के पैसे का भुगतान किया जा चुका है, जिसकी रसीदें पत्रावली पर उपलब्ध हैं। वादी का कहना है कि दो चेकों का भुगतान करने के लिए वह तैयार है उसका विपक्षी भुगतान लेकर उसकी गाड़ी उसको वापस करे। इसके विपरीत विपक्षी का कहना है कि वादी व उसके बीच एग्रीमेण्ट थी कि एग्रीमेण्ट के अनुसार यदि समय से भुगतान नहीं किया जाता है तो विपक्षी वादी से वाहन लेकर बिक्री करने के लिए स्वतन्त्र है। अपने इस कथन के समर्थन में विपक्षी ने कोई एग्रीमेण्ट दाखिल नहीं किया है जिससे उनका कथन प्रमाणित हो। ‘’
इसके पश्चात् विद्वान जिला फोरम ने निम्नलिखित निर्णय पारित किया :-
‘’ परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि यदि वादी इस आदेश के पारित होने के २० दिन के अन्दर अवशेष रूपया ५२०६/- विपक्षी कार्यालय में जमा करता है तो विपक्षी धनराशि जमा होने के १० दिन के अन्दर वादी की मोटर साईकिल सही हालत में उसको वापस करेंगे। साथ ही मानसिक संताप के ५०००/- रू० ववाद व्यय के रूप में १०००/- रू० भी वादी को भुगतान करेंगे। बाद गुजरने मियाद ०८ प्रतिशत वार्षिक की दर से दण्डनीय ब्याज देय होगा। ‘’
विद्वान जिला फोरम ने माना है कि ५,२०६/- रू० बकाया है और उसका भुगतान
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किया जाए किन्तु मानसिक सन्ताप के मद में ५,०००/- रू० की अदायगी का आदेश दिया जाना उचित नहीं है क्योंकि इस मामले में परिवादी द्वारा बार-बार चूक की गई है और उसे ऐसी स्थिति में मानसिक सन्ताप नहीं हो सकता। अत: इन परिस्थितियों में ५,०००/- रू० मानसिक सन्ताप का आदेश अपास्त होने योग्य है। अपील तद्नुसार आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला फोरम/आयोग, अलीगढ़ द्वारा परिवाद सं0-२९/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१-०७-२००६ के अन्तर्गत मानसिक सन्ताप के मद में ५,०००/- रू० दिए जाने का आदेश रद्द किया जाता है। शेष निर्णय की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.