जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
श्रीमति लाजवन्ती सोनी पत्नी स्व.श्री वासुदेव सोनी, जाति- सिंधी सोनी,आयु- लगभग 55 वर्ष, निवासी- मकान नम्बर 437/38, अर्जुन लाल सेठी काॅलोनी, परबतपुरा, बाईपास, अजमेर ।
- प्रार्थीया
ब्नाम
श्री कमल कुमार मनसुखानी पुत्र श्री किषनचन्द मनसुखानी(बिल्डिंग ठेकेदार), जाति- सिंधी, निवासी- मकान नम्बर-311, अर्जुन लाल सेठी काॅलोनी, परबतपुरा बाईपास, अजमेर ।
- अप्रार्थी
परिवाद संख्या 239/2014
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री पुखराज सोनी, अधिवक्ता, प्रार्थी
2. श्री रोषन मित्तल, अधिवक्ता, अप्रार्थी( बहस के समय
उपस्थित नहीं )
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 10.05.2016
1. प्रार्थीया ( जो इस परिवाद में आगे चलकर उपभोक्ता कहलाएगी) ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम , 1986 की धारा - 12 के अन्तर्गत अप्रार्थी के विरूद्व संक्षेप में इस आषय का पेष किया है कि उसने अपने एक मकान संख्या 2 ख 34, गांधी गृह को पूरा ध्वस्त कर नए सिरे से निर्माण किए जाने हेतु रू. 5,00,000/- में अप्रार्थी से एक करार किया । उक्त करार के तहत परिवाद की चरण संख्या 2 में वर्णितानुसार कार्य करना था । अप्रार्थी को उक्त कार्य दिनंाक 16.11.2013 से प्रारम्भ करके 3 माह में कार्य पूरा करना था ।
उपभोक्ता का आगे कथन है कि उसने अप्रार्थी को परिवाद की चरण संख्या 3 में अंकितानुसार राषि अदा की । इस प्रकार करार के अनुसार तय हुई राषि से भी ज्यादा राषि उसके द्वारा अदा कर देने के बावजूद भी अप्रार्थी ने कार्य पूरा नहीं किया । उसने कार्य पूरा करने के लिए अप्रार्थी को कहा किन्तु कोई सुनवाई नहीं की । अप्रार्थी ने दिनंाक 19.6.2014 को झूठे कथनों के आधार पर एक नोटिस भिजवाया तो उसने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 25.6.2014 को उक्त नोटिस का जवाब अपने अधिवक्ता के माध्यम से भिजवाया इसके बाद भी अप्रार्थी ने कार्य तय करार के अनुसार नहीं किया । उपभोक्ता ने अप्रार्थी द्वारा कार्य पूरा नहीं करके देने के कृत्य को सेवा में कमी बताते हुए परिवाद पेष कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की हैं । परिवाद के समर्थन में उपभोक्ता ने स्वयं का ष्षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी ने जवाब प्रस्तुत कर उसके व उपभोक्ता के मध्य परिवाद की चरण संख्या 1 व 2 में वर्णितानुसार कार्य करने के तथ्य को स्वीकार करते हुए कथन किया है कि उसने उपभोक्ता के मकान में सम्पूर्ण कार्य लिखित करार के अनुसार किया है । अप्रार्थी का यह भी कथन है कि उपभोक्ता ने करार में अंकित ष्षर्तो के विपरीत उससे अत्यधिक काम करवा लिया । जिसकी राषि रू. 1,40,000/- का भुगतान उपभोक्ता ने आज दिवस तक भी नहीं किया है और उक्त राषि के भुगतान से बचने के लिए मिथ्या आधारों पर यह परिवाद प्रस्तुत किया है , जो निरस्त होने योग्य है । अन्त में परिवाद खारिज किए जाने की प्रार्थना करते हुए जवाब के समर्थन में अप्रार्थी ने स्वयं का ष्षपथपत्र पेष किया है ।
3. यहां यह उल्लेखनीय है कि अप्रार्थी की ओर से जवाब प्रस्तुत किए जाने के बाद सुनवाई के दौरान दिनांक 12.4.16 को उनकी ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ हैं । आगामी पेषी दिनंाक 4.5.2016 को भी उनकी ओर से कोई उपस्थित नहीं होने पर न्याय हित में उपभोक्ता पक्ष की बहस इस परन्तुक के साथ सुनी गई कि यदि आज निर्णय तिथि से पूर्व अप्रार्थी की ओर से उपस्थिति दी जाकर बहस की जाएगी तो तदनुसार बहस सुनी जाकर निर्णय पारित किया सकेगा । क्योंकि इस निर्णय के लिखाने तक अप्रार्थी की ओर से बहस हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ है । अतः न्याय हित में पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेख एवं उपभोक्ता पक्ष के तर्को के साथ साथ गुणावगुण पर इस परिवाद का अंतिम रूप से निस्तारण किया जा रहा है ।
4. उपभोक्ता पक्ष की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया है कि अप्रार्थी द्वारा ठेके पर लिए गए कार्य को ठेका राषि से अधिक राषि लेने पर भी उसके मकान का कार्य पूरा नहीं किया गया है । अतः उनकी घोर लापरवाही एवं उदासीनता के कारण हुई क्षतिपूर्ति के लिए उसे वांछित अनुतोष दिलाया जावें ।
5. हमनें प्रस्तुत तर्कों पर पत्रावली में उपलब्ध अभिलेख के संदर्भ में अवलोकन कर विचार किया है ।
6. चूंकि अप्रार्थी की ओर से उपभोक्ता के साथ उसके मकान में निर्माण कार्य हेतु लिखित करार की स्वीकृति सामने आई है । अतः सर्वप्रथम यह सिद्व रूप से प्रकट हुआ है कि उभय पक्षकारान के मध्य उपभोक्ता के मकान के निर्माण हेतु किसी प्रकार का कोई अनुबन्ध हुआ । चूंकि अप्रार्थी ने अपने जवाब में यह अभिकथित किया है कि स्वयं उपभोक्ता द्वारा लिखित करार में अंकित षर्तो के विपरीत अप्रार्थी से अत्यधिक काम करवाया । अतः यह स्थिति भी इस तथ्य को सिद्व करती है कि तत्समय पक्षकारों के मध्य सर्वप्रथम उपभोक्ता के उक्त निर्माण कार्य को किए जाने बाबत् उक्त करार किया गया था । अतः इसकी समय सीमा दिनांक 16.11.2013 से प्रारम्भ होना तय पाई गई थी ।
7. अब मुख्य विवाद का बिन्दु यह रह गया है कि क्या उक्त करार के मुताबिक अप्रार्थी द्वारा निर्माण कार्य पक्षकारान के मध्य हुए करार के अनुसार निर्माण कार्य नहीं किया गया जिसकी भरपाई के लिए अप्रार्थी जिम्मेदार है ? क्या उपभोक्ता द्वारा उक्त तयषुदा निर्माण कार्य से बढकर और निर्माण कार्य करवाया गया जिसकी अदायगी के लिए उपभोक्ता जिम्मेदार है ?
8. उपभोक्ता की ओर से अपने अभिवचनों के समर्थन में किसी अन्य ठेकेदार रामलाल का ठेकानामा प्रस्तुत हुआ है । जिसमें उसने उपभोक्ता के प्रष्नगत मकान के निर्माण कार्य में अप्रार्थी की अनियमितताओं का उल्लेख किया है एवं नए सिरे से तयषुदा षर्तों के अनुसार निर्माण कार्य करने हेतु उभय पक्षकारान के मध्य रजामंदी हुई है । प्रष्नगत निर्माण कार्य के पेटे समय समय पर किए गए भुगतान के संदर्भ में भी उपभोक्ता की ओर से 5 लाख व इससे अधिक राषि के भुगतान का उल्लेख है, जिसमें अप्रार्थी के स्वीकृतिस्वरूप हस्ताक्षर बताए गए हंै । पत्रावली में इस तथ्यात्मक स्थिति का खण्डन नहीं है । हालांकि अप्रार्थी की ओर से उपभोक्ता के साथ तयषुदा करार के मुताबिक कार्य किए जाने के अलावा अधिक कार्य किए जाने का प्रतिवाद लिया गया है । किन्तु किसके द्वारा यह कार्य किया गया ? किस प्रकार उक्त निर्माण कार्य तयषुदा षर्तो से अधिक था ? इस बाबत् न तो खुलासा किया गया है और ना ही अन्य किसी दस्तावेजी साक्ष्य से सिद्व किया गया है । परिवाद प्रस्तुत किए जाने से पूर्व अप्रार्थी की ओर से उसके अधिवक्ता द्वारा इस आषय का हालांकि नोटिस उपभोक्ता को भिजवाया गया है । किन्तु इस नोटिस का उपभोक्ता की ओर से जवाब भी दिया गया है । मात्र नोटिस दिए जाने से किसी भी पक्षकार को अपने पक्ष कथन को समर्थित होना नहीं माना जा सकता । इसे समुचित साक्ष्य से समर्थित होना आवष्यक है । इसके विपरीत उपभोक्ता ने निर्माण कार्य के पेटे अप्रार्थी को किए गए भुगतान, बकाया रहे काम के संदर्भ में किसी अन्य ठेकेदार से करवाए गए काम का ठेकानामा, आर्किटेक्ट की रिपोर्ट इत्यादि से यही परिलक्षित होता है कि प्रारम्भ में हुए करार के अनुरूप निर्माण कार्य नहीं किया गया हैं। हालांकि अप्रार्थी की ओर से उपभोक्ता के विरूद्व निर्माण औजार चोरी होने तथा इस संबंध में न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या 3, अजमेर के यहां फौजदारी प्रकरण परिवाद के रूप में प्रस्तुत किया जाना बताया गया है । किन्तु इसके क्या परिणाम रहे तथा इसका क्या निष्कर्ष रहा , ये स्पष्ट नहीं किया गया है और ना ही इनसे किसी प्रकार की कोई उपधारणा कायम की जा सकती है । उपभोक्ता की ओर से घटिया निर्माण कार्य किए जाने बाबत् जो फोटोग्राफ््स प्रस्तुत किए गए है, में भी निर्माण कार्य की गुणवत्ता के बारे में एक सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
9. कुल मिलाकर जो स्थिति सामने आई है, उसके अनुसार अप्रार्थी द्वारा जो निर्माण कार्य किया गया है, वह गुणवत्ता की दृष्टि से कमजोर व उभय पक्षकारों के मध्य हुए करार के अनुसार नहीं होना पाया जाता है । इस प्रकार अप्रार्थी ने सेवा में कमी का परिचय दिइया है । परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है एव आदेष है कि
:ः- आदेष:ः-
10. (1) उपभोक्ता अप्रार्थी से रू. 95,000 /- प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी ।
(2) उपभोक्ता अप्रार्थी से मानसिक क्षतिपूर्ति के पेटे रू.10,000 /- एवं परिवाद व्यय के पेटे रू. 5000/- भी प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी ।
(3) क्रम संख्या 1 लगायत 2 में वर्णित राषि अप्रार्थी उपभोक्ता को इस आदेष से दो माह की अवधि में अदा करें अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से उपभोक्ता के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावे ।
आदेष दिनांक 10.05.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष