राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1787/2016
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या 340/2015 में पारित आदेश दिनांक 30.04.2016 के विरूद्ध)
Amity University Uttar Pradesh, Sector 125, Noida District Gautam Budh Nagar through its Deputy Director General Sh. Naresh Chandra.
...................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
1. Kamal Kumar Manjhani S/o late Sadhuram Manjhani
2. Palak Manjhani d/o Sh. Kamal Kumar Manjhani both resident of House No. C-119/840A, Jaiteypur South, District Gorakhpur.
................प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एश्वर्य प्रताप सिंह,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 08.10.2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-340/2015 कमल कुमार मंझानी व एक अन्य बनाम एमेटी विश्वविद्यालय में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, गोरखपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 30.04.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
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''परिवादीगण का परिवाद विरूद्ध विपक्षी स्वीकार किया जाता है। परिवादीगण विपक्षी से 109500.00 (एक लाख नौ हजार पांच सौ रू0) की क्षतिपूर्ति की धनराशि प्राप्त करने के अधिकारी है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय व आदेश के दिनांक से एक माह की अवधि के अंतर्गत समस्त धनराशि परिवादीगण को प्रदान करे अथवा बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से मंच में जमा करे, जो परिवादीगण को दिलाई जा सके। नियत अवधि में आदेश का परिपालन न किए जाने की स्थिति में परिवादीगण समस्त आज्ञप्ति की धनराशि पर 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज परिवाद प्रस्तुत करने के दिनांक से अंतिम वसूली तक विपक्षी से प्राप्त करने का अधिकारी होगा एवं समस्त आज्ञप्ति की धनराशि विपक्षी से विधि अनुसार वसूल की जाएगी।''
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एश्वर्य प्रताप सिंह उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थीगण की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस
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कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-2, प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-1 की पुत्री है। उसने वर्ष 2014-15 में बीएएलएलबी के कोर्स के लिए अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉं आवेदन किया। तब इन्टरव्यू के बाद उसे उक्त कोर्स में प्रवेश की अनुमति दी गयी और 1,22,500/-रू0 फीस जमा कराया गया। प्रवेश के समय अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा उसे बताया गया कि कैम्पस के अन्दर ए0सी0 हास्टल उपलब्ध कराया जाएगा, परन्तु हास्टल की स्थिति संतोषजनक नहीं थी। प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-2 ने हास्टल की खराब स्थिति और गन्दगी देखकर हास्टल में रहने से मना कर दिया। फिर भी अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा कहा गया कि यही हास्टल और बेड लेना पड़ेगा, जिसके लिए प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-2 तैयार नहीं हुई। अन्तत: विवश होकर उसने अपने प्रवेश हेतु जमा धनराशि की मांग की। तब काफी प्रयास के बाद प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-2 को अपीलार्थी/विपक्षी ने 20,000/-रू0 वापस किया और शेष धनराशि 1,02,500/-रू0 वापस करने से इन्कार कर दिया। अत: विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और फीस की अवशेष धनराशि 1,02,500/-रू0 वापस दिलाए जाने की मांग की है। साथ ही मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति और वाद व्यय की भी मांग की है।
अपीलार्थी/विपक्षी जिला फोरम के समक्ष नोटिस तामीला के बाद भी उपस्थित नहीं हुआ है। अत: जिला फोरम ने उसके विरूद्ध एकपक्षीय रूप से कार्यवाही करते हुए एकपक्षीय निर्णय और आदेश पारित किया है।
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अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि आक्षेपित निर्णय और आदेश अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध जिला फोरम ने एकपक्षीय रूप से सुनवाई का अवसर दिए बिना पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद पत्र में कथित विवाद उपभोक्ता विवाद नहीं है और प्रत्यर्थी/परिवादीगण धारा-2 (1) (डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं हैं। अत: जिला फोरम ने परिवाद का संज्ञान लेकर जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है, वह अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है। अत: निरस्त किए जाने योग्य है।
मैंने अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी जिला फोरम के समक्ष नोटिस तामीला के बाद भी उपस्थित नहीं हुआ है और लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया है। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से कर आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि शैक्षणिक संस्था में जमा फीस की वापसी हेतु परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है क्योंकि शैक्षणिक संस्था द्वारा उपलब्ध करायी गयी सेवा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-2 (1) (ओ) के अन्तर्गत सेवा नहीं है।
उल्लेखनीय है कि परिवाद पत्र के कथन से यह स्पष्ट है कि
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प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-2 ने जो 1,22,500/-रू0 फीस जमा किया है, उसमें शिक्षा शुल्क के साथ ही हास्टल की फीस भी शामिल है। हास्टल की फीस में लाजिंग और फूडिंग दोनों सम्मिलित है या नहीं यह आक्षेपित निर्णय और आदेश एवं परिवाद पत्र के कथन से स्पष्ट नहीं है। आक्षेपित निर्णय और आदेश एवं परिवाद पत्र के कथन से यह भी स्पष्ट नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-2 ने हास्टल के मद में कितनी फीस जमा की है।
अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा सन्दर्भित माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा P.T. Koshy and Anr. vs. Ellen Charitable Trust and Ors. SLP (Civil) No. 22532 of 2012 और Maharshi Dayanand University vs. Surjeet Kaur 2010 (11) SCC 159 के वाद में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर शिक्षा संस्था द्वारा शैक्षणिक कार्य हेतु ली गयी फीस के सम्बन्ध में परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है, परन्तु वर्तमान वाद में यह विचारणीय बिन्दु है कि छात्र से भुगतान प्राप्त कर विद्यालय द्वारा उपलब्ध करायी गयी आवास व भोजन की व्यवस्था उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-2 (1) (ओ) के अन्तर्गत सेवा की श्रेणी में आती है या नहीं। अत: सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हूँ कि अपीलार्थी/विपक्षी को अपना लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाए और उसके बाद जिला फोरम उभय पक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर पुन: विधि के अनुसार निर्णय और आदेश पारित करे।
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उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए यह प्रकरण जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित किया जाता है कि जिला फोरम अपीलार्थी/विपक्षी को लिखित कथन प्रस्तुत करने का अवसर देकर उभय पक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर प्रदान करेगा और उसके बाद पुन: विधि के अनुसार निर्णय और आदेश पारित करेगा।
उभय पक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक 28.11.2018 को उपस्थित हों।
जिला फोरम हाजिरी हेतु निश्चित उपरोक्त तिथि से 30 दिन का समय अपीलार्थी/विपक्षी को लिखित कथन प्रस्तुत करने हेतु प्रदान करेगा और उसके बाद पुन: समय लिखित कथन हेतु नहीं दिया जाएगा तथा विधि के अनुसार परिवाद का निस्तारण उपरोक्त प्रकार से किया जाएगा।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000/-रू0 अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को वापस की जाएगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1