राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-९००/२००६
(जिला मंच (द्वितीय), मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0-१२९/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १६-०९-२००५ के विरूद्ध)
१. पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लि0 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर, विक्टोरिया पार्क, मेरठ।
२. एक्जक्यूटिव इंजीनियर, ईयूडीडी, प्रथम, मुरादाबाद।
............. अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
कैलाश चन्द्र पुत्र श्री मंगल सेन निवासी लाइन पार, दिल्ली रोड, मझोला, जिला मुरादाबाद। ............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- ३१-१२-२०१९.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच (द्वितीय), मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0-१२९/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १६-०९-२००५ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार प्रत्यर्थी/परिवादी विद्युत कनेक्शन सं0-२७५०/०८५००७ विद्युत भार ०२ किलोवाट का उपभोक्ता था। परिवादी ने दिनांक २२-०२-२००३ को अपीलार्थी सं0-२ को एक पत्र इस आशय का प्रेषित किया कि जिस मकान में परिवादी का विद्युत कनेक्शन लगा हुआ है उसमें परिवादी नहीं रहता और लगभग ०६ माह से विद्युत उपयोग नहीं कर रहा है और स्थाई रूप से विद्युत कनेक्शन विच्छदित करने का अनुरोध किया। अपीलार्थी के कर्मचारियों द्वारा दिनांक ०३-०७-१९९३ को विद्युत विच्छेदन कर दिया गया और ०८-०८-१९९३ को साइट से विद्युत मीटर हटा लिया गया किन्तु सीलिंग प्रमाण पत्र परिवादी को उपलब्ध नहीं कराया। अपीलार्थीगण का यह दायित्व था कि वे विद्युत कनेक्शन के विच्छेदन के ०६ माह तक परिवादी द्वारा यदि कनेक्शन को पुनर्स्थापित नहीं कराया जाता है तो नियमानुसार बकाया का कार्यालय ज्ञापन अपीलार्थीगण जारी करते किन्तु अपीलार्थीगण ने
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कार्यालय ज्ञापन जारी नहीं किया एवं फर्जी विद्युत बिल प्रेषित किया। परिवादी को दिनांक २८-०१-२००२ को एक बिल दिनांकित ०३-०१-२००२ प्राप्त हुआ जिसके माध्यम से १,२१,९३०/- रू० की मांग की गई। परिवादी ने उक्त बिल का प्रतिवाद किया तथा जिला मंच में परिवाद सं0-२७/२००२ योजित किया जो दिनांक ०७-०८-२००४ को परिवादी की अनुपस्थिति में खण्डित हो गया। परिवादी ने दिनांक २७-०९-२००४ को अपीलार्थी सं0-२ से पुन: अनुरोध किया तथा बताया कि बिल दिनांकित ०३-०१-२००२ में मीटर रीडिंग ७७१८ अंकित है तथा मीटर रीडर से मीटर रजिस्टर तलब कर लिया जाय। मीटर रीडिंग के अनुसार ही बिल जारी करना बाध्यता है। अपीलार्थीगण के कर्मचारियों द्वारा अनुचित धनराशि की मांग की गई एवं बसूली प्रमाण पत्र जारी करने की धमकी दी गई। दिनांक १०-०२-२००५ को तहसील मुरादाबाद के कर्मचारी परिवादी के निवास पर आये एवं बताया कि १,२१,०००/- रू० का बसूली प्रमाण पत्र जारी किया गया है। परिवादी ने अपीलार्थी सं0-२ से पुन: अनुरोध किया किन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई। अत: दिनांक ०३-०७-१९९३ से पूर्व मीटर रीडिंग के अनुसार परिवादी द्वारा जमा धनराशि समायोजित करते हुए कार्यालय ज्ञापन जारी किए जाने के अनुतोष के साथ एवं वाद व्यय तथा क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए प्रश्नगत परिवाद योजित किया गया।
अपीलार्थीगण द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच में प्रस्तुत किया गया। अपीलार्थीगण के कथनानुसार परिवादी द्वारा परिवाद सं0-२७/२००० जिला मंच में योजित किया जो दिनांक ०७-०८-२००४ को खण्डित हो गया। उसका पुनर्स्थापन नहीं कराया गया। परिवादी ने आदेश दिनांक ०७-०८-२००४ को निरस्त करने हेतु प्रकीर्ण वाद सं0-६७/२००४ योजित किया जो आदेश दिनांक ०४-०१-२००५ द्वारा खण्डित कर दिया गया। अत: दूसरा परिवाद कालबाधित एवं अपोषणीय है। परिवादी के विरूद्ध बसूली प्रमाण पत्र जारी किया जा चुका है। परिवादी ने विद्युत कनेक्शन का बकाया नहीं दिया जिसके कारण दि० २०-११-२००१ को अवर अभियन्ता द्वारा विद्युत कनेक्शन काट दिया गया था। उस समय परिवादी का मकान बन्द था अत: मीटर रीडिंग नहीं ली जा सकी। परिवादी नवम्बर, २००१ तक विद्युत प्रयोग करता रहा था। परिवादी ने सीलिंग प्रमाण पत्र दाखिल नहीं किया।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हुए
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अपीलार्थीगण को निर्देशित किया कि अपीलार्थीगण निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर प्रश्नगत कनेक्शन से सम्बन्धित डिमाण्ड नोटिस व आर0सी0 निरस्त करें तथा बिल दिनांकित ०३-०४-२००२ में अंकित धनराशि को भी निरस्त करें। अपीलार्थीगण परिवादी से ४००७ यूनिट के विद्युत चार्जेज व अन्य चार्जेज बसूल करने के अधिकारी हैं। अपीलार्थीगण ०३-०७-१९९३ से पूर्व की विद्युत बकाया का ४००७ यूनिट के आधार पर विद्युत चार्जज व अन्य चार्जेज लगाकर कार्यालय ज्ञापन जारी करें। कार्यालय ज्ञापन प्राप्त हो जाने के बाद परिवादी एक माह के अन्दर देय धनराशि अदा करे। इसके अतिरिक्त यह भी आदेशित किया गया कि परिवादी ५००/- रू० वाद व्यय पाने का अधिकारी है।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई।
हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन के तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ। आदेश दिनांक ०५-०६-२०१८ द्वारा प्रत्यर्थी पर नोटिस की तामील पर्याप्त मानी गई।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का उचित परिशीलन न करते हुए तथा प्रश्नगत परिवाद के सन्दर्भ में अपीलार्थी द्वारा प्रेषित किए गये प्रतिवाद पत्र के अभिकथनों पर विचार न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत परिवाद के तथ्यों से समान तथ्यों के आधार पर परिवादी द्वारा पूर्व में एक परिवाद सं0-२७/२००२ योजित किया गया। अपीलार्थी द्वारा उक्त परिवाद के विरूद्ध अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया था। उक्त परिवाद में भी परिवादी ने उसके विरूद्ध जारी बिल को चुनौती दी थी किन्तु उक्त परिवाद, परिवादी द्वारा पैरवी न किए जाने के कारण परिवादी की अनुपस्थिति में आदेश दिनांक ०७-०८-२००४ को निरस्त किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने आदेश दिनांक ०७-०८-२००४ को निरस्त करने हेतु प्रार्थना पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया जिसे जिला मंच द्वारा प्रकीर्ण वाद सं0-६७/२००४ के रूप में दर्ज किया गया। इस प्रार्थना पत्र के विरूद्ध अपीलार्थीगण
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द्वारा आपत्ति प्रस्तुत की गई। जिला मंच ने उभय पक्ष को सुनने के उपरान्त यह प्रकीर्ण वाद आदेश दिनांक ०४-०१-२००५ द्वारा निरस्त कर दिया। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि पूर्व परिवाद सं0-२७/२००२ दिनांक २१-०२-२००२ को योजित किया गया तथा परिवादी ने समान वाद कारणों के आधार पर दूसरा प्रश्नगत परिवाद वर्ष २००५ में योजित किया। समान वाद कारणों के आधार पर दूसरा परिवाद पोषणीय नहीं माना जा सकता। साथ ही दूसरा परिवाद कालबाधित भी हो चुका था। अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थीगण के कथनानुसार परिवादी ने विद्युत कनेक्शन से नवम्बर, २००१ तक विद्युत का उपयोग किया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला मंच द्वारा पूर्व परिवाद में पारित आदेश दिनांक ०७-०८-२००४ तथा प्रकीर्ण वाद में पारित आदेश दिनांक ०४-०१-२००५ के विरूद्ध कोई अपील अथवा पुनरीक्षण याचिका योजित नहीं की।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में बल है। यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रश्नगत परिवाद से पूर्व परिवाद सं0-२७/२००२ योजित किया था। इस परिवाद में परिवादी ने अपीलार्थीगण द्वारा जारी किए गये १,२१,९३०/- रू० के बिल को अवैध बताया था। यह परिवाद दिनांक ०७-०८-२००४ को निरस्त किया गया। आदेश दिनांक ०७-०८-२००४ को निरस्त करने एवं परिवाद को पुनर्स्थापित किए जाने हेतु परिवादी द्वारा योजित प्रकीर्ण वाद भी जिला मंच द्वारा आदेश दिनांक ०४-०१-२००५ द्वारा निरस्त कर दिया गया।
प्रश्नगत प्रस्तुत परिवाद में भी प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थीगण द्वारा १,२१,९३०/- रू० के विद्युत बिल की बसूली हेतु जारी किए गये बसूली प्रमाण पत्र को अवैध बताया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक ०३-०७-१९९३ से पूर्व की मीटर रीडिंग के अनुसार तथा परिवादी द्वारा जमा समस्त धनराशि समायोजित करते हुए अपीलार्थीगण द्वारा कार्यालय ज्ञापन/अन्तिम बिल जारी किए जाने का अनुतोष चाहा है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत परिवाद समान वाद कारणों के आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा योजित दूसरा परिवाद है। समान वाद कारणों के आधार पर दूसरा परिवाद पोषणीय नहीं माना जा सकता।
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अंसल हाउसिंग एण्ड कन्स्ट्रक्शन लि0 बनाम इण्डियन मशीनरी कम्पनी, III (2013) CPJ 304 (NC) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि समान तथ्यों एवं समान वाद कारण के आधार पर दूसरा वाद पोषणीय नहीं माना जा सकता। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा निर्णीत इस मामले में भी पूर्व योजित परिवाद, परिवादी की अनुपस्थिति के कारण निरस्त हुआ तथा परिवादी द्वारा समान तथ्यों पर दूसरा परिवाद योजित किया गया जिसे जिला मंच द्वारा स्वीकार किया गया किन्तु मा0 राष्ट्रीय आयोग ने समान तथ्यों के आधार पर योजित दूसरे परिवाद को अपोषणीय मानते हुए जिला मंच द्वारा पारित आदेश को अपास्त किया गया।
यह भी उल्लेखनीय नहै कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा पहला परिवाद २१-०२-२००२ को योजित किया गया जबकि समान वाद कारणों के आधार पर प्रश्नगत दूसरा परिवाद वर्ष २००५ में योजित किया गया। इस प्रकार दूसरा परिवाद कालबाधित हो चुका है। जिला मंच ने इन तथ्यों पर ध्यान न देते हुए त्रुटिपूर्ण प्रश्नगत निर्णय पारित किया है, अत: अपास्त किए जाने योग्य है। अपील तद्नुसार स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच (द्वितीय), मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0-१२९/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १६-०९-२००५ अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-२.