(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
अपील संख्या 1671/2002
(जिला मंच मेरठ द्वारा परिवाद सं0 444/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11/06/2002 के विरूद्ध)
यूनियन आफ इंडिया , डिपार्टमेंट आफ पोस्ट एच0पी0ओ0-1 मेरठ कैण्ट, द्वारा सीनियर पोस्ट मास्टर, हेड पोस्ट आफिस, मेरठ।
…अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
कैलाश चन्द्र आनन्द पुत्र स्व0 केदार नाथ आनन्द निवासी आफ 221-ई0 साकेत मेरठ।
.........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:
1. मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य ।
2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता डा0 उदयवीर सिंह।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 07-07-2015
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
प्रस्तुत अपील, परिवाद सं0 444/1999 कैलाश चन्द्र आनन्द बनाम सीनियर पोस्ट मास्टर, पोस्ट आफिस, मेरठ के विरूद्ध जिला फोरम, मेरठ द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11/06/2002 से क्षुब्ध होकर योजित की गई है।
प्रश्नगत परिवाद में जिला फोरम ने विपक्षी को आदेशित किया कि ‘’परिवादी को प्रश्नगत बचत पत्रों की परिपक्व धनराशि मु0 80,600/- रूपये परिपक्व तिथि से ता अदायगी अंतिम भुगतान 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज के साथ एक माह में अदा करे, इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादी को मु0 2005/- रूपये बतौर हर्जाना एवं मु0 2500/- रूपये इस परिवाद का व्यय भी अदा करे।‘’
परिवाद का कथन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी/प्रत्यर्थी कैलाश चन्द्र आनन्द ने मार्च 1990 में अपीलार्थी/पोस्ट आफिस में छ: वर्षीय राष्ट्रीय बचत पत्र हेतु अंकन 40,000/- रूपये संयुक्त हिन्दू परिवार (एच0यू0एफ0) के नाम जमा किया था। दिनांक 28/29/03/90 को उसे छ: वर्षीय राष्ट्रीय बचत पत्र प्रत्येक की कीमत अंकन 10,000/- रूपये एवं परिपक्वता मूल्य 20150/- रूपये उपलब्ध कराई गई थी जिनकी परिपक्वता की तिथि 28/03/96 थी। इस प्रकार
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प्रत्यर्थी/परिवादी ने चार राष्ट्रीय बचत पत्रों की कीमत अंकन 40,000/- रूपये अपीलार्थी को अदा की थी और ये प्रमाण पत्र दर्ज रजिस्टर में 1101/6 एफ पर दर्ज हुए थे। परिपक्वता की तिथि 28/03/1996 पर उसने अपीलार्थी को भुगतान हेतु उक्त राष्ट्रीय बचत पत्र प्रस्तुत किया और समस्त औपचारिकताएं भी पूरी की किन्तु अपीलार्थी ने उक्त बचत पत्रों का भुगतान नहीं किया और बाद में आने के लिए कहा गया। उसके बाद उसने अपीलार्थी के यहां जाकर अनेकों बार भुगतान हेतु प्रार्थना की। दिनांक 21/08/1996 को उसने अपीलार्थी के वरिष्ठ डाक अधीक्षक, डाक विभाग पत्र प्रेषित किया जिसने उससे उक्त बचत पत्रों की फोटो प्रतियां दाखिल करने को कहा जिसका अनुपालन उसके द्वारा कर दिया गया। डाक अधीक्षक, मेरठ द्वारा पत्र दिनांक 26/09/96 द्वारा उसे सूचित किया गया कि उक्त राष्ट्रीय बचत पत्र अनियमित रूप से जारी कर दिये गये। जिसका उत्तर उसने/प्रत्यर्थी दिनांक 18/10/96 को अपीलार्थी को दिया। उक्त राष्ट्रीय बचत पत्र जारी करने की तिथि से लेकर परिपक्वता की तिथि तक अपीलार्थी द्वारा किसी प्रकार की कोई आपत्ति इस संबंध में नहीं की गई। दिनांक 19/12/96 को अपीलार्थी द्वारा उसे एक पत्र भेजा गया कि विभाग द्वारा अपने अनियमितता दूर करने के लिए महानिदेशक, पोस्ट आफिस को मामला भेजा गया है। परिवादी/प्रत्यर्थी अनेक तिथियों पर अपीलार्थी से मिला तो उन्होंने हर बार यह बताया कि अभी मामला विचाराधीन है । उसने दिनांक 30/01/90 को अपीलार्थी को पत्र प्रेषित किया जिसकी प्रति सहायक पोस्ट मास्टर जनरल को भी भेजी थी जिसका उत्तर भी उसे दिया गया था। परिवादी/प्रत्यर्थी के उक्त राष्ट्रीय बचत पत्र दिनांक 28/03/96 को परिपक्व हो गये किन्तु अपीलार्थी द्वारा उनका भुगतान रोक दिया गया जिससे उसका आर्थिक नुकसान हुआ। अपीलार्थी की ओर से जिला पीठ के समक्ष आपत्ति प्रस्तुत किया गया जिसमें परिवाद पत्र के तथ्यों को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया और यह स्वीकार किया गया कि परिवादी/प्रत्यर्थी के हक में छ: वर्षीय राष्ट्रीय बचत पत्र संयुक्त हिन्दू परिवार (एच0यू0एफ0) के नाम भूल से जारी कर दिये गये थे। नियमानुसार एच0यू0एफ0 के कर्ता के नाम राष्ट्रीय बचत पत्र जारी नहीं किये जा सकते और जब इस गलती का पता चला तो परिवादी/प्रत्यर्थी को सूचित कर दिया गया। यदि कोई बचत पत्र अनियमित तरीके से जारी कर दिया जाता है तो उस पर ब्याज नहीं दिया जाता। विभाग द्वारा परिवादी/प्रत्यर्थी को यह कहा गया था कि व साधारण ब्याज प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकता है। वह राष्ट्रीय बचत
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पत्रों में दर्शायी गई धनराशि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अत: उसका दावा इस आधार पर निरस्त होने योग्य है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस विस्तारपूर्वक सुना गया। नोटिस का तामिला पर्याप्त होने के बावजूद प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने मार्च 1990 में छ: राष्ट्रीय बचत पत्र मूल्य 40,000/ रूपये खरीदे थे जो एच0यू0एफ0 के नाम से थे। राष्ट्रीय बचत पत्र (VIII) नियम 1989 के प्रावधान के विरूद्ध है। इसलिए राष्ट्रीय बचत पत्र के मूल्य के धनराशि को भुगतान किया जा सकता है। उस पर आपूर्ति होने वाले ब्याज को नहीं दिया जा सकता है। नियम 04 चैप्टर 15 नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (VIII ISSUE) नियमावली 1989 के अनुसार संयुक्त हिन्दू परिवार के नाम कोई राष्ट्रीय बचत पत्र निर्गत नहीं किया जा सकता है। अत: विभाग द्वारा नियमानुसार परिपक्वता धनराशि का भुगतान नहीं हो सकता है। विद्वान जिला फोरम द्वारा इस संबंध में बिना कोई निष्कर्ष दिये ही प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया है जो खण्डित होने योग्य है। आधार अपील एवं संपूर्ण पत्रावली का अवलोकन किया जिससे यह प्रतीत होता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने डाक विभाग से छ: वार्षिक राष्ट्रीय बचत पत्र मु0 40,000/ रूपये के ए0यू0एफ0 संस्था के नाम से खरीदा था संस्था के नाम से खरीदे जाने की स्थिति में राष्ट्रीय बचत पत्र पर परिपक्वता का लाभ मय ब्याज नहीं प्राप्त हो सकता है। मा0 नेशनल उपभोक्ता आयोग द्वारा निर्णीत रूलिंग 2010 (3) कंज्यूमर प्रोटेक्शन केसेज पेज 26 Revision Petition N0. 12 of 2010 Decided on 16.4.2010 Superintendent of Post Offices & Ors. Versus Helpline Grahak Mandal & Ans. प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि:-
‘’ Consumer Protection Act, 1986- Sections 2,12 and 17- National Savings Certificate (VIII issue) Rules, 1989- Rule 4- Interest on NSC not paid by petitioner/OP- Respondent/Complainant approached District Forum which had granted necessary relied Order was upheld by the State Commission giving rise to present revision petition- Held, as per Rule 4, NSC could not be purchased by HUF-So impugned Order is in Violation of said rule- Order set aside- Appeal allowed.’’
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भारत सरकार, वित्त मंत्रालय के पत्र सं0 एम0ओ0एफ0 (डी0ई0ए0) नोटिफिकेशन सं0 जी0एस0आर0-12 (ई) दिनांक 08/03/1995 के अनुसार 06 वर्षीय बचत पत्र केवल व्यक्तिगत नाम पर ही जारी किये जा सकते हैं।
उपरोक्त तथ्य एवं परिस्थितियों एवं विधि व्यवस्था के आलोक पर विचार करने के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि परिवादी/प्रत्यर्थी राष्ट्रीय बचत पत्र का अंकित मूल्य मात्र पाने का अधिकारी है। इससे संबंधित ब्याज पाने का अधिकारी नहीं है। अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला मंच मेरठ, द्वारा परिवाद सं0 444/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11/06/2002 उपरोक्त निष्कर्ष के अनुसार आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आदेशित किया जाता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी प्रश्नगत राष्ट्रीय बचत पत्र का अंकित मूल्य पाने का अधिकारी है। उसे इस धनराशि पर ब्याज मिलने का कोई अधिकार नहीं है। उभय पक्ष अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध कराई जाय।
(आलोक कुमार बोस) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
सुभाष चन्द्र कोर्ट नं0 4