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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 122 सन् 2014
प्रस्तुति दिनांक 09.07.2014
निर्णय दिनांक 11.01.2019
विष्णु सहाय पाठक पुत्र स्वo श्रीशचन्द्र पाठक, निवासी ग्राम व पोस्ट- पठकौली, थाना- कोतवाली, शहर- आजमगढ़।
......................................................................................परिवादी।
बनाम
- केoएनo लाल, मेमोरियल हॉस्पिटल ग्राम- लच्छिरामपुर, पोस्ट- हीरापट्टी, थाना- कोतवाली, शहर- आजमगढ़ द्वारा प्रोपराइटर।
- डॉक्टर पंकज कुमार राय, एमoबीoबीoएसo, एमoडीo (मेडिसीन), केoएनo लाल, मेरोरियल हॉस्पिटल ग्राम- लच्छिरामपुर, पोस्ट- हीरापट्टी, थाना- कोतवाली, शहर- आजमगढ़।
.............................................................................विपक्षीगण।
उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव
अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि दिनांक 04.09.2013 को सर्दी जुकाम व हल्के बुखार से पीड़ित था। दिनांक 05.09.2013 को वह डॉक्टर पंकज कुमार राय जो केoएनo मेमोरियल हॉस्पिटल, लच्छिरामपुर में प्राइवेट प्रेक्टिस करते हैं। उन्होने अपनी बीमारी के इलाज के लिए उन्हें फीस देकर अपना उपचार कराया और मेडिकल हॉल से दवा लिया। उस दवा से कोई फायदा न होने पर दिनांक 07.09.2013 को वह पुनः डॉक्टर पंकज कुमार राय को दिखाया। दिनांक 07.09.2013 को डॉक्टर पंकज कुमार राय के अनुसार उसे मलेरिया था और उसे आईoजीoएमo व आईoजीoजीo की जाँच कराया। जिसके बाद उसे मलेरिया की दवा Lumerax-80 जिसमें Artemether-80 mg. एवं Lumefantrine-480 mg. नामक साल्ट होते हैं। जो छः गोली की स्ट्रीप में आता है और सुबह-शाम एक दिन में दो गोली खाना था। उक्त दवा दिनांक 07.09.2013 को एक गोली एवं दिनांक 08.09.2013 को सुबह एक गोली खाने के बाद उसे सरदर्द, कफ प्रकोप, अनियन्त्रित उल्टी, सुस्ती,
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चक्कर आने पर डॉक्टर राय से सम्पर्क करने पर उनके द्वारा कहा गया कि मलेरिया की दवा खाइए कोई दिक्कत नहीं आएगी। दिनांक 10.09.2013 को सुबह आखिरी गोली खाने के बाद पूर्व की परेशानियों के साथ-साथ शाम को पेट में गैस बनना, चक्कर आना, घबराहट आने लगी तो उसे सदर अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टर ने भर्ती कर तुरन्त आधे घण्टे में पी.जी.आई. लखनऊ रिफर कर दिया और वहाँ पर डॉक्टर द्वारा उसे सहारा हॉस्पिटल भेज दिया गया। जहाँ पर वह दिनांक 11.09.2013 को भर्ती हुआ। मलेरिया की दवा Lumerax-80 देने पर उसका फेफड़ा, लीवर एवं गुर्दा (मल्टी ऑर्गनस) फेल होने लगा और वह बेहोशी में जाने लगा। उसे मलेरिया नहीं था, लेकिन फिर भी डॉक्टर राय द्वारा उसे मलेरिया की दवा दी गयी। सहारा अस्पताल में मेरे भाई राजेन्द्र पाठक द्वारा वहाँ के डॉक्टरों को मलेरिया के दवा लेने की बात बताने पर जब वहाँ के पैथालॉजिस्ट डॉक्टर सुरभि गुप्त द्वारा दिनांक 11.09.2013 को खून लेकर उसकी जांच करायी गयी तो उसमें मलेरिया नहीं पाया गया। डॉक्टर राय द्वारा धन अर्जन हेतु मलेरिया न रहते हुए मलेरिया की दवा देने के कारण उसका आर.बी.सी. टूटने लगा और प्लेटलेट काउंट- 39000 हो गया। जबकि उसकी नार्मल वैल्यू 150000-400000 तक होती है। डॉक्टर राय द्वारा गलत ढंग से मलेरिया की दवा खिलाने के कारण उसकी किडनी फेल होने लगी जिसकी जाँच सहारा अस्पताल के डॉक्टर सुरभि गुप्ता द्वारा दिनांक 11.09.2013 को समय 5.11ए.एम. पर जांच करने पर सीरम यूरिया- 101 तथा सीरम क्रीटनाइन 1.76 जबकि यूरिया की नार्मल वैल्यू 13-43 तथा क्रीटनाइन की 1.2 होती है जो लगातार बढ़ कर किडनी फेल करती रही। दिनांक 11.09.2013 से दिनांक 18.10.2013 के बीच कुल 34 बार जाँच की गयी और दवा देने के बावजूद भी उसका फेल होना नहीं रुका। दिनांक 19.09.2013 को सीरम यूरिया 509 तथा सीरम क्रीटनाइन 6.22 हो गया। दिनांक 20.09.2013 को दो बार 22,24, तथा दिनांक 26.09.2013 कुल पांच बार डायलिसिस की गयी। जबकि वह स्वस्थ, किडनी, ब्लड प्रेशर, शुगर आदि का मरीज था ही नहीं
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दिनांक 18.10.2013 को जब क्रीटनाइन की नार्मन वैल्यू 0.93 हो गयी तब वह दिनांक 20.10.2013 को विकलांगता हाथ पांव में मोशनलेश की स्थिति में आ गया और यह कहा गया कि इसकी दवा लम्बी चलेगी और धीरे-धीरे इसमें गति व ताकत आयेगी और उसे अस्पताल से डिस्टार्ज कर दिया गया। मलेरिया की दवा के कुप्रभाव से फेफड़ा फेल होने तथा कफ व फ्लूड से फेफड़ा भर जाने के कारण दिनांक 13.09.2013 व 14.09.2013 को दो दिन ऑक्सीजन पर रखने के बाद भी फेफड़ा द्वारा पूरा ऑक्सीजन न ले पाने के कारण दिनांक 15.09.2013 से 30.09.2013 कुल 16 दिन वेन्टीलेटर पर उसे रखा गया। 26 दिन बेहोश होने के कारण फेफड़े व गले से कफ व फ्लूड न निकल पाने के कारण निकालने के लिए दिनांक 13.09.2013 से दिनांक 08.10.2013 तक कुल 66 बार नेबुलाइजेशन करना पड़ा तथा फेफड़े में कफ व अन्य संक्रमण की जानकारी हेतु दिनांक 11.09.2013 से 05.10.2013 के बीच कुल 36 बार एक्स-रे करना पड़ा। मलेरिया न होने पर मलेरिया की दवा खाने से लीवर फंक्सन भी गड़बड़ हो गया। शरीर में मल्टी ऑर्गर काम न करने तथा मलेरिया की दवा खाने से आर.बी.सी. टूटने के कारण हीमोग्लोबिन नार्मल वैल्यू कम हो गयी और उसे 6 बार खून चढ़ाना पड़ा। सहारा अस्पताल में उसे 39 दिन भर्ती रहना पड़ा। जिसमें 26 दिन मेडिकल आई.सी.यू. में तथा 13 दिन अन्य मिनी आई.सी.यू. में रहने के बाद 40वें दिन हाथ पांव क्रियाहीन की दशा में डिस्टार्ज होकर घर आना पड़ा। डॉक्टर राय ने इलाज में लापरवाही बरता था। अतः डॉक्टर राय से उसे 19,67,528/- रुपया क्षतिपूर्ति दिलवाया जाए। परिवाद के साथ परिवादी ने इलाज पर होने वाले खर्च का विवरण भी दिया है।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 5/2 केoएनoलाल मेमोरियल हॉस्पिटल का पर्चा, कागज संख्या 5/4 सहारा हॉस्पिटल का पर्चा, कागज संख्या 5/5 डिवीजन डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल आजमगढ़ का पर्चा
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इसके पश्चात् रसीद रजिस्ट्री भारतीय डॉक प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया है। कागज संख्या 31/4 केoएनo लाल मेमोरियल मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल एण्ड ट्रामा सेंटर के बोर्ड की छायाप्रति, भिन्न-भिन्न दवाओं के प्रभाव का पर्चा, कागज संख्या 39/5 ता कागज संख्या 39/9 सहारा हॉस्पिटल के पर्चे की छायाप्रति, बिल समरी सहारा हॉस्पिटल द्वारा जारी इलाज में खर्च हुए धनराशि का प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी संख्या 01 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया गया है। अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि विपक्षी संख्या 01 केoएनo लाल मेमोरियल हॉस्पिटल ग्राम-लच्छिरामपुर का प्रोपराइटर है, जिसकी देख-रेख व प्रबन्धन का कार्य श्री शशिकान्त यादव करते हैं। डॉक्टर पंकज कुमार राय एम.डी. हैं। विपक्षी संख्या 01 के हॉस्पिटल पर प्राइवेट शाम 5.00 से 7.00 बजे तक पार्ट टाइम करते हैं और फीस लेकर मरीजों को देखते हैं। डॉक्टर पंकज राय द्वारा लिखे गए प्रिक्रिप्सन पर हॉस्पिटल का कोई दायित्व नहीं है। अतः परिवाद खारिज किया जाए।
प्रतिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत नहीं है।
कागज संख्या 17 डॉक्टर पंकज कुमार राय द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उन्होंने परिवाद में किए गए कथनों से इन्कार किया है और विशेष कथन में यह कहा है कि परिवादी को यह परिवाद दाखिल करने का कोई अधिकार हासिल नहीं था। विपक्षी संख्या 02 एम.बी.बी.एस., एम.डी. (मेडिसीन) का डिग्रीधारक है एवं मेडिकल विधिशास्त्र के नियमों, दिशा-निर्देशों के तहत पूर्णतया सावधानी बरतते हुए मरीजों की आवश्यक जाँच सलाह देकर एवं जाँच रिपोर्ट प्राप्त होने पर ही उसकी सद्भावपूर्ण चिकित्सा होती है। वह सन् 2009 से आजमगढ़ में अपनी सेवा प्रदान कर रहा है। अगस्त, 2013 से वह सुपर स्पेस्लिटी केयर सिविल लाइन आजमगढ़ में अपनी क्लीनिक पर मरीजों की देख-रेख नियमित रूप से करता आ रहा है। वह विपक्षी संख्या 01 के हॉस्पिटल पर शाम 05.00 बजे से 07.00
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बजे तक पार्ट टाइम मरीजों की देख-भाल निःशुल्क करता है। ऐसी स्थिति में वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(डी) के अन्तर्गत नहीं आता है। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में किसी भी फीस का जिक्र नहीं किया है। न तो फीस की कोई रसीद प्रस्तुत किया है। अतः उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उसके ऊपर लागू नहीं होता है। वाद पत्र के साथ संलग्न पर्चा देखने पर पता चलता है कि दिनांक 05.09.2013 को विष्णु सहाय पाठक नामक मरीज विपक्षी संख्या 01 के परिसर में आकर विपक्षी संख्या 02 से निःशुल्क उपचार हेतु उपस्थित हुआ। उसके लक्षण को देखते हुए उसके फायदे के लिए सद्भावपूर्वक कुछ दवा लेने की सलाह दिया। उसने दवा लेकर उसका सेवन किया अथवा नहीं उसकी जानकारी उसे नहीं है। दिनांक 05.09.2013 के पुश्त पर प्रवृष्टि को देखते हुए स्पष्ट है कि परिवादी दिनांक 07.09.2013 को पुनः निःशुल्क उपचार हेतु उपस्थित हुआ। उसकी हालत देखकर उसे मलेरिया, आई.जी.एम. व आई.जी.जी.की जाँच हेतु सलाह दिया। वादी जाँच किस पैथालॉजी से कराकर लाया उसके विषय में वह नहीं बता सकता, लेकिन उसका वर्णन अथवा उसे पत्रावली में उसके द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है। परिवादी को Lumerax-80 देने की सलाह दी गयी। जिसे उसने परिसर में स्थित दवाखाने से खरीदा। चूंकि परिवादी अस्पताल में भर्ती नहीं था। अतः उसके द्वारा दवा सेवन किए जाने अथवा सेवन न किए जाने के विषय में जानकारी नहीं है। दिनांक 07.09.2013 के पश्चात् परिवादी विपक्षी संख्या 02 के पास नहीं आया। जाँच रिपोर्ट दिनांक 11.09.2013 के अनुसार परिवादी को मलेरिया पैरासाइट पाया गया। जो मलेरिया की दवा Lumerax-80 का ही प्रभाव है इसका कथन परिवादी ने गलत कहा है। यह दवा भारत की रजिस्ट्रीकृत बहुप्रतिष्ठित कम्पनी इप्सा लेबोरेटरीज लिमिटेड कान्दीवली मुम्बई द्वारा निर्मित दवा है, जिसे मेडिकल साइंस के अनुसार मरीज पर मलेरिया का संभावित लक्षण पाये जाने पर भी दिया जा सकता है क्योंकि उक्त दवा का कोई साइटइफेक्ट नहीं है। यदि मरीज अन्य रोग से भी पीड़ित है तो उस अन्य रोग की वजह से मरीज प्रभावित
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होता है और वह उस दवा से प्रभावित नहीं होता है। यदि मरीज किसी अन्य बीमारी से ग्रसित हो गया हो तो उसका कोई उत्तरदायी विपक्षी संख्या02 नहीं है। विपक्षी संख्या 02 ने परिवादी से कोई परामर्श शुल्क नहीं लिया और उसे दवा जाँच रिपोर्ट देखकर ही दी गयी थी। अतः परिवाद खारिज किया जाए।
विपक्षी संख्या 02 ने कोई शपथ पत्र नहीं दिया है।
उभय पक्षो द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस व मौखिक बहस को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी ने मौखिक रूप से अपने परिवाद पत्र में जो कहा है वह यह है कि उसे Lumerax-80 दवा देने के कारण ही उसकी तबियत खराब हुई थी।
विपक्षीगण की ओर से प्रापर्टीज एन्टी मलेरिया ड्रग्स की दवाओं के प्रभाव के विषय में एक विवरण प्रस्तुत किया गया है। जिसमें इस पर्चा में ल्यूमेफेन्ट्राइन दवा के विषय में विवरण प्रस्तुत किया गया है जिसमें यह लिखा हुआ है कि यह दवा काफी प्रभावशाली है और इसका कोई असर लीवर पर नहीं पड़ता है। परिवादी की ओर दवाओं के कार्य व प्रभाव के विषय में एक पर्चा प्रस्तुत की गयी है। जिसमें Lumerax-80 के विषय में लिखा गया है। जिसमें इसके प्रभाव के बारे में कोई भी विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया है। सेफ्टी एलर्ट के विषय में भी दिया गया है कि उसमें यह कहा गया है कि गर्भावस्था में इसे नहीं देना चाहिए। इससे पेपेटिक अथवा रेनर इनसफिसिएन्सी हो सकती है और इसमें इसकी डोज का भी विवरण दिया गया है। प्रस्तुत पर्चा नम्बर 5/2 जो दिनांक 07.09.2013 का है। जिसके अवलोकन से मरीज दिनांक 07.09.2013 को विपक्षी संख्या 02 के पास आया था। उसे Lumerax-80 दिया गया था। चूंकि विपक्षी द्वारा प्रस्तुत प्रापर्टीज ऑफ एन्टी मलेरिया ड्रग्स के विषय में जो पर्चा लिखा गया है उस पर्चे के अनुसार Lumerax दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है और परिवादी द्वारा अपने जाँच के सम्बन्ध में कोई पर्चा भी दाखिल नहीं किया गया है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने केoएनo लाल मेमोरियल मल्टी स्पेस्लिटी हॉस्पिटल से अपनी जाँच
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करवाया था। इस सन्दर्भ में यदि हम एक न्याय निर्णय “कुशुम शर्मा व अन्य बनाम बत्रा हॉस्पिटल मेडिकल रिसर्ज सेन्टर (2010) (3) एस.सी.सी. 480” का अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अवधारित किया है कि उपचार करने वाले डॉक्टर के पास पर्याप्त डीग्री होनी चाहिए और यह निर्विवाद है कि विपक्षी संख्या 02 एक एम.डी. डॉक्टर है और उसके पास इलाज करने हेतु पर्याप्त डिग्री है। इस सन्दर्भ में यदि हम एक अन्य न्याय निर्णय “मल्होत्रा (एम.एस.) बनाम डॉक्टर ए.कृपलानी एवं अन्य (2009) 4 एस.सी.सी. 450 का अवलोकन करें तो स न्याय निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायलय ने यह अवधारित किया है कि जब तक यह सिद्ध न कर दिया जाए कि डॉक्टर इलाज करने में नेग्लीजेन्ट रहा है। जिसे सिद्ध करने का भार परिवादी के ऊपर है तब तक उस डॉक्टर को नेग्लीजेन्स के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इस सन्दर्भ में यदि हम एक आर अन्य न्याय निर्णय “कृपानी एफ.डी. सूजा बनाम मोहम्मद इस्फाक (2009) सी.पी.जे. 352 एस.सी.” का यदि अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायलय ने यह अवधारित किया है कि यदि डॉक्टर दवा देने के लिए आवश्यक योग्यता रखता हो और रोग के डायग्नोसिस में कुछ गलती हो जाती है तो भी ऐसी स्थिति में उसे मेडिकल नेग्लीजेन्सी के लिए उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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दिनांक 11.01.2019
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)