छत्तीसगढ़ राज्य
उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग, पण्डरी, रायपुर
अपील क्रमांकः FA/13/42
संस्थित दिनांकः 05.01.13
1. श्रीमती शीला मेहता, पत्निः श्री अशोक मेहता,
उम्र लगभग 58 वर्ष, निवासीः दरोगापारा, रायगढ़,
तह. एवं जिला रायगढ़ (छ.ग.)
2. श्रीमती वर्षा मेहता, पत्निः श्री अरविंद मेहता,
उम्र लगभग 52 वर्ष, निवासीः दरोगापारा, रायगढ़,
तह. एवं जिला रायगढ़ (छ.ग.) .....अपीलार्थीगण
विरूद्ध
के.एल.रीयल इस्टेट प्रा. लि.,
द्वाराः डायरेक्टर, बजरंग जिंदल,
आ. कुन्दनलाल जिंदल, उम्र 56 वर्ष,
निवासीः डभरा रोड, खरसिया,
जिला रायगढ़ (छ.ग.) .....उत्तरवादी
समक्षः
माननीय न्यायमूर्ति श्री आर. एस. शर्मा, अध्यक्ष
माननीय सुश्री हीना ठक्कर, सदस्या
माननीय श्री डी. के. पोद्दार, सदस्य
पक्षकारों के अधिवक्ता
अपीलार्थीगण की ओर से श्री तारकेश्वर नंदे, अधिवक्ता उपस्थित।
उत्तरवादी अनुपस्थित।
आदेश
दिनांकः 27/02/2015
द्वाराः माननीय सुश्री हीना ठक्कर, सदस्या
अपीलार्थीगण द्वारा यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, रायगढ़ (छ.ग.) (जिसे आगे संक्षिप्त में ’’जिला फोरम’’ संबोधित किया जाएगा) द्वारा प्रकरण क्रमांक 152/2012 ’’श्रीमती शीला मेहता एवं अन्य विरूद्ध के.एल.रीयल इस्टेट प्रा. लि.’’ में पारित आदेश दिनांक 19.11.2012 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है। जिला फोरम द्वारा अपीलार्थीगण की परिवाद को निरस्त कर दिया गया।
2. अपीलार्थीगण की परिवाद का संक्षेप सार इस प्रकार है कि परिवादीगण ने वि.प. के ब्राउज़र में ज्ञापित लेआउट प्लान व प्रस्तावित सुविधाओं से आकर्षित होकर वि.प. से दो प्लाट नं.203, 204 क्षेत्रफल 1800, 1803 वर्गफुट का क्रय किया एवं उसमें मकान का निर्माण किया। परिवादिनी ने प्लाट के दोनों तरफ सड़क एवं एक ओर गार्डन बनाया जाना था इस कारण क्रय किया था किन्तु वि.प. ने गार्डन के लिए छोड़ी गई जगह पर भवन निर्माण का कार्य प्रारंभ कर दिया व उस स्थान पर गार्डन बनाने से इंकार कर दिया जबकि वि.प. द्वारा लेआउट प्लान में उस स्थान पर गार्डन दर्शाते हुए भी अनुमति प्राप्त की थी। इस प्रकार गार्डन के लिए छोड़े गए स्थान पर भवन निर्माण की तैयारी करना सेवा में कमी की श्रेणी में आता है। अतः जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर यह अनुतोष प्रदान करने की प्रार्थना की गई कि वि.प. को यह निर्देश दिया जावे कि गार्डन के लिए छोड़े गए स्थान पर अन्य कोई दूसरा निर्माण कार्य व उपयोग न करें। इस संबंध में परिवादिनीगण द्वारा एक आवेदन पत्र अंतर्गत् धारा 13 (3) (ख) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत् प्रस्तुत कर यह निवेदन किया गया कि विचारण कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान वि.प. उक्त उद्यान के स्थान पर कोई निर्माण कार्य न करें उसे रोकने हेतु अंतिम निषेधाज्ञा पारित किए जावे।
3. विद्वान जिला फोरम द्वारा उक्त परिवाद प्रस्तुती के पश्चात् परिवाद की प्रचलनशीलता एवं परिसीमा के संबंध में प्रारंभिक तर्क श्रवण कर विनिश्चय किया कि परिवादिनीगण ’उपभोक्ता’ की श्रेणी में नहीं आते हैं एवं न ही परिवादी ’’उपभोक्ता विवाद’’ प्रतितोषण की श्रेणी में आता है व परिवाद निरस्त किया गया।
4. हमारे समक्ष अपीलार्थीगण की ओर से श्री तारकेश्वर नंदे द्वारा तर्क प्रस्तुत किए गए। उत्तरवादी अनुपस्थित रहा।
5. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री तारकेश्वर नंदे द्वारा मुख्यतः यह तर्क किया कि जिला फोरम द्वारा प्रारंभिक स्तर पर ही परिवाद को निरस्त कर त्रुटि किया गया है। जबकि परिवाद एक उपभोक्ता विवाद है। प्रकरण के तथ्यों व संलग्न दस्तावेजों पर विचार किए बिना विनिश्चय नहीं किया जाना था। जिला फोरम द्वारा इस तथ्य को भी अनदेखा किया गया है कि उत्तरवादी द्वारा कॉलोनी का निर्माण लेआउट योजना के अनुसार नहीं किया जा रहा था। चूंकि अपीलार्थीगणों ने दो प्लॉट उत्तरवादी से क्रय किए थे। अतः वे उत्तरवादी के उपभोक्ता है। जिला फोरम द्वारा इस तथ्य को अनदेखा किया गया है कि उत्तरवादी ने लेआउट के अनुसार निर्माण न कर अनुचित व्यापारिक व्यवहार किया है। अपील स्वीकार कर आलोच्य आदेश अपास्त करने की प्रार्थना की गई।
6. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा निम्नलिखित न्यायदृष्टांत पर विश्वास किया गयाः-
Narne Construction Pvt. Ltd. & Ors. Vs. Union of India and Ors., (2010)5 Supreme Court Cases 359.
7. In the light of the above pronouncement of this Court in LDA case the High Court was perfectly justified in holding that the activities of the appellant Company in the present case involving offer of plots for sale to its customers/members with an assurance of development of infrastructure/ amenities, layout approvals, etc. was a “service” within the meaning of clause (0) of Section 2(1) of the Act and would, therefore, be amenable to the jurisdiction of the fora established under the statute.
7. अपील के निराकरण के लिए सर्वप्रथम हमें यह सुनिश्चित करना है कि क्या परिवादीगण ’’उपभोक्ता’’ की श्रेणी में आते हैं व उनके द्वारा प्रस्तुत परिवाद अधिनियम में परिभाषित ’’परिवाद’’ की श्रेणी में आता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(1) (ग) में परिवाद, (घ) में उपभोक्ता को परिभाषित किया गया-
’’2(1) (ग)’’शिकायत’’ का तात्पर्य शिकायतकर्ता द्वारा लिखित में किये गये किसी आरोप से है कि-
(i) [ किसी व्यापारी अथवा सेवा प्रदान करने वाले ] द्वारा अनुचित व्यापार अभ्यास अथवा प्रतिबंधित व्यापार अभ्यास अपनाया गया;
(ii) उसके द्वारा खरीदा गया माल अथवा उसके द्वारा खरीदने की सहमति से प्रदान किया माल एक अथवा अधिक त्रुटियों से प्रभावित होता है;
(iii) किराये पर ली गई अथवा अपनाई गई अथवा किराये अथवा सहमति के लिए दी गई सहमति से सेवाएं किसी भी संबंध में कमी से प्रभावित होता है;
(iv) व्यापारी अथवा सेवा प्रदान करने वाले ने, जो भी मामला हो, शिकायत में वर्णित माल अथवा सेवा के लिए लिखित मूल्य से अधिक मूल्य प्राप्त किया-
(क) तत्समय प्रवृत किसी कानून के अन्तर्गत अथवा के द्वारा निर्धारित मूल्य;
(ख) उस माल को समाविष्ट करते किसी पैकेट अथवा माल पर प्रदर्शित मूल्य;
(ग) तत्समय प्रवृत किसी कानून के अन्तर्गत अथवा उसके द्वारा दर्शित की गई मूल्य सूची पर प्रदर्शित मूल्य;
(घ) पक्षकारों के बीच निश्चित किया गया मूल्य;
(v) माल जो कि जीवन और सुरक्षा के लिए खतरनाक होगा, जब जनता को बिक्री के लिए प्रयोग हेतु प्रस्तुत किया जाता है,-
(क) समय के क्रियान्वयन के लिए किसी कानून के अन्तर्गत अथवा के द्वारा उस माल की सुरक्षा से संबंधित किन्हीं मानकों के उल्लंघन में, जिसकी अनुपालना करने की आवश्यकता चाही गई;
(ख) यदि व्यापारी सभी आवश्यक प्रयासों को करने के बाद जान सकता था कि प्रस्तावित किया गया माल जनता के लिए असुरक्षित है;
(vi) सेवाएं जो खतरनाक है और जनता की सुरक्षा व जीवन के लिए खतरनाक प्रतीत होती है, जब सेवा प्रदान करने वाले द्वारा सेवा प्रस्तुत की जाती है, जिसे वह व्यक्ति जीवन और सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक प्रयासों को करने के बाद जान सकता था;
(घ) ’’उपभोक्ता’’ का तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जो-
(i) प्रतिफल के लिए किसी माल को खरीदता है जो कि चुका दिया गया अथवा चुकाने का वायदा किया गया अथवा आंशिक भुगतान कर दिया गया अथवा आंशिक भुगतान करने का वायदा किया गया अथवा किसी तरीके के अन्तर्गत भुगतान स्थगित किया गया और उन व्यक्तियों के अलावा उन मालों के किसी प्रयोग को सम्मिलित करता है जो उन मालों के लिए किसी प्रतिफल के लिए खरीदता है, जो चुका दिया अथवा चुकाने का वायदा किया अथवा आंशिक भुगतान कर दिया अथवा आंशिक भुगतान करने का वायदा किया अथवा किसी तरीके के अन्तर्गत भुगतान स्थगित किया, जब उस व्यक्ति के अनुमोदन के साथ उस माल का प्रयोग किया गया, लेकिन उस व्यक्ति को सम्मिलित नहीं करता, जो किसी व्यापारिक उद्देश्य के लिए अथवा पुनः बिक्री के लिए उस माल को प्राप्त करता हैः अथवा
(ii) प्रतिफल के लिए किसी माल को किराये पर लेता है अथवा प्राप्त करता है, जो कि चुका दिया गया अथवा चुकाने का वायदा किया गया अथवा आंशिक भुगतान कर दिया गया अथवा आंशिक भुगतान करने का वायदा किया गया अथवा किसी तरीके के अन्तर्गत भुगतान स्थगित किया गया और उस व्यक्ति के अलावा उन सेवाओं हेतु किसी हितकारी को सम्मिलित करता है, जिसने किराये पर ली गई अथवा प्राप्त की गई सेवाओं के प्रतिफल को चुका दिया अथवा चुकाने का वायदा किया अथवा आंशिक भुगतान कर दिया अथवा आंशिक भुगतान करने का वायदा किया अथवा किसी तरीके के अन्तर्गत भुगतान स्थगित किया, जब प्रथम वर्णित व्यक्ति के अनुमोदन द्वारा वे सेवाएं प्राप्त की गई, ख्लेकिन उस व्यक्ति को सम्मिलित नहीं करता, जो किसी व्यापारिक उद्देश्य के लिए उन सेवाओं को प्राप्त करता है;,
8. जिला फोरम के समक्ष परिवादी द्वारा क्रय किए गए माल में त्रुटि, परिवादी द्वारा ली गई सेवा में निम्नता, अनुचित व्यापारिक व्यवहार एवं प्रतिबंधित व्यापारिक व्यवहार किया गया हो एवं इसके अतिरिक्त माल व सेवा हेतु लिया गया प्रतिफल या मूल्य निर्धारित प्रदर्शित मूल्य से अधिक हो या ऐसा माल व सेवाएं जीवन या जनता की सुरक्षा के लिए खतरनाक प्रतीत हों। इस प्रकरण में परिवादिनियों द्वारा परिवाद मात्र इसलिए प्रस्तुत किया गया है कि उत्तरवादी द्वारा प्लॉट विक्रय हेतु प्रदर्शित लेआउट में उद्यान व सड़क हेतु स्थान आरक्षित किया गया था जिसके कारण परिवादिनियों द्वारा वह विशिष्ट प्लॉट क्रय किया गया था। परन्तु प्लॉट क्रय करने के उपरांत वि.प./उत्तरवादी द्वारा उद्यान के लिए आरक्षित स्थान में भवन निर्माण कार्य प्रारंभ करने की तैयारी की थी। अर्थात् परिवादिनियों को वि.प. से क्रय किए गए प्लॉट या निर्माण सेवा के संबंध में कोई आपत्ति नहीं है। परिवादिनियों को वास्तव में शिकायत लेआउट में दर्शित उद्यान हेतु स्थान में उद्यान न बनाकर अन्य निर्माण व उपयोग किए जाने से है। इस प्रकार हमारे मतानुसार, परिवादिनियों का परिवाद अधिनियम के अंतर्गत् परिवाद की श्रेणी में नहीं आता है न ही इस विवाद को निराकरित करने का अधिकार जिला फोरम को है। वि.प. के विरूद्ध शिकायत को उचित न्यायालय या सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत कर निराकरण करवाना था।
9. उपरोक्तानुसार प्रकरण के तथ्यों पर विचार विमर्श के उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जिला फोरम द्वारा पारित आदेश उचित व सही है। अपीलार्थीगण द्वारा प्रस्तुत अपील निराधार होने से निरस्त की जाती है। अपील व्यय के संबंध में कोई आदेश नहीं दिया जा रहा है।
(न्यायमूर्ति आर. एस. शर्मा) (सुश्री हीना ठक्कर) (डी. के. पोद्दार)
अध्यक्ष सदस्या सदस्य
/02/2015 /02/2015 /02/2015