KHARPATTU filed a consumer case on 08 May 2019 against K.G.S.G.BANK in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/74R/2014 and the judgment uploaded on 16 May 2019.
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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 74 सन् 2014
प्रस्तुति दिनांक 03.04.2014
निर्णय दिनांक 08/05/2019
1/1.सूर्यनाथ उम्र लगo 60 वर्ष पुत्र स्वo रामसरन निवासी ग्राम- बुढ़ावेहुसामिद्दीनपुर, पोस्ट- सरदहाबाजार, तहसील- सगड़ी, जिला- आजमगढ़......मृतक
1/3. कालिका प्रसाद उम्र लगभग 45 वर्ष
1/5. रामवृक्ष उम्र लगभग 34 वर्ष
पुत्रगण खरपत्तू निवास ग्राम- बुढ़ावेहुसामिद्दीनपुर, पोस्ट- सरदहाबाजार, तहसील- सगड़ी, जिला- आजमगढ़।
.......................................................................................परिवादीगण।
बनाम
.........................................................................................विपक्षीगण।
उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव
अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-
परिवादीगण ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि विपक्षी संख्या 01 के यहां बचत खाता संख्या 21516 था। शिकायतकर्ता ने अपने बचत खाता उपरोक्त में विपक्षी संख्या 03 द्वारा 30,000/- रुपये का दिया गया चेक संख्या 729221 विपक्षी संख्या 01 के यहां बचत खाता संख्या 21516 में दिनांक 09.10.2012 को जमा किया गया। काफी दिनों तक जब चेक उपरोक्त की धनराशि शिकायतकर्ता के खाता में नहीं आयी तो P.T.O.
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उसने विपक्षी संख्या 01 से सम्पर्क किया तो उसने बताया कि वह प्रयास कर रहा है। भुगतान हो जाएगा। शिकायतकर्ता अपने लड़के रामचन्द्र के माध्यम से बैंक विपक्षी संख्या 02 के प्रबन्धक से सम्पर्क किया तो उन्होंने कहा कि आवश्यक कार्यवाही की जाएगी। दिनांक 17.08.2013 को शिकायतकर्ता के लड़के रामचन्दर् का हस्ताक्षर प्रमाणित करते हुए विपक्षी संख्या 01 ने विपक्षी संख्या 02 को पत्र लिखते हुए चेक की धनराशि की वसूली के सन्दर्भ में सूचना देने को कहा। शिकायतकर्ता के लड़के रामचन्द्र के द्वारा दिए पत्र दिनांकित 17.08.2013 के देने के पश्चात् भी विपक्षीगण ने कोई कार्यवाही नहीं किया तो उसने विपक्षी संख्या 01 से पुनः सम्पर्क किया और उन्होंने पुनः विपक्षी संख्या 02 को पत्र दिनांक 05.10.2013 को लिखा, जिसका जवाब न मिलने पर 18.10.2013 को विपक्षी संख्या 01 ने विपक्षी संख्या 02 को पुनः पत्र लिखा तो उसने चेक प्राप्त करने से इन्कार किया। शिकायतकर्ता ने विपक्षी संख्या 03 से पुनः चेक बनवाने के लिए प्रार्थना पत्र दिया, लेकिन उसने इन्कार कर दिया। उसके खाते में जमा 30,000/- रुपये का भुगतान नहीं हुआ है, जो सेवा में कमी है। अतः विपक्षीगण को आदेशित किया जाए कि वह शिकायतकर्ता को चेक संख्या 729221 की धनराशि 30,000/- रुपया समय से भुगतान न होने की वजह से हुई आर्थिक क्षति के सम्बन्ध में 10,000/- रुपया क्षतपूर्ति मय 18% वार्षिक ब्याज की दर से अदा करे, मानसिक व शारीरिक क्षति हेतु 20,000/- रुपया दे। शिकायतकर्ता धारा 10 (अ) (ब) में वर्णित धनराशि 80,000/- रुपया तथा भुगतान में विलम्ब के लिए 18% वार्षिक ब्याज दिलाया जाने के लिए आदेश प्रदान किया जाए।
परिवादीगण द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 5/1 काशी गोमती संयुक्त ग्रामीण बैंक द्वारा जारी 30,000/- रुपये चेक की छायाप्रति, विपक्षी संख्या 01 द्वारा कागज संख्या 5/2 ता 5/4 आवेदन पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 5/5 काशी गोमती संयुक्त ग्रामीण बैंक के खाते का विवरण प्रस्तुत किया गया है। उसके द्वारा कोई नोटिस नहीं दी गयी है। P.T.O.
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विपक्षी संख्या 02 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत कर यह कहा गया है कि वह एक स्व-वित्त पोषित संस्था है। परिवाद पत्र का पैरा 01 की जानकारी न होने पर अस्वीकार है। परिवाद पत्र के पैरा 4 – 5 की जानकारी न होने के कारण उत्तर देना संभव नहीं है। परिवाद पत्र के पैरा 4 के कथन के सम्बन्ध में विपक्षी संख्या 02 को यह विपक्षी संख्या 02 का यह कहना है कि परिवाद के साथ संलग्न पत्र दिनांकित 17.08.2013 के अवलोकन से यह पता चलता है कि विपक्षी संख्या 01 ने विपक्षी संख्या 02 को उक्त पत्र वास्ते वसूली हेतु चेक संख्या 729221 धनराशि रुपया 30,000/- का वसूली का प्रेषित किया गया था। जो कि दिनांक 20.08.2013 को शाखा में प्राप्त हुई। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि चूंकि पूर्व में ऐसी कोई भी चेक विपक्षी संख्या 02 को विपक्षी संख्या 01 से प्राप्त नहीं हुई थी। अतः परिवादी की सहायता एवं सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से एवं उक्त तथाकथित चेक को अपने बैंक में खोजवाने के उद्देश्य से उत्तरदाता विपक्षी संख्या 02 ने उक्त पत्र प्राप्त कर लिया। परिवाद पत्र के पैरा 05 में यह वर्णन कथन के सम्बन्ध में विपक्षी संख्या 02 का यह कहना है कि विपक्षी संख्या 01 द्वारा परिवादी के पुत्र रामचन्द्र द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक 17.08.2013 के प्राप्त होने के पश्चात् विपक्षी संख्या 02 ने अपनी शाखा में विपक्षी संख्या 01 द्वारा कथित रूप से प्रेषित तथाकथित चेक को खोजने का प्रयास किया गया, परन्तु उपलब्ध बैंक अभिलेखों के अनुसार विपक्षी संख्या 01 द्वारा प्रेषित चेक संख्या 729221 विपक्षी संख्या 02 को कभी प्राप्त ही नहीं हो सका। जहाँ तक विपक्षी संख्या 01 द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक 05.10.2013 व 18.10.2013 का प्रश्न है, चूंकि उत्तरदाता/विपक्षी संख्या 02 को परिवादी का ऐसा कोई चेक नहीं मिला। अतः विपक्षी संख्या 02 ने दिनांक 18.10.2013 के नीचे ही यह अंकित कर दिया कि उपर्युक्त चेक संख्या 729221 को आपके द्वारा दिनांक 12.10.2012 को हमारी शाखा पर भेजी गयी थी वह हमारे रिकार्ड के अनुसार हमें प्राप्त नहीं हुआ है। परिवाद पत्र के पैरा 6 से इन्कार है। परिवाद पत्रके पैरा 7 के कथन जानकारी के अभाव में अस्वीकार है। परिवाद पत्र के पैरा 8 , 9 अस्वीकार है। परिवादी कोई भी अनुतोष पाने के P.T.O.
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लिए अधिकृत नहीं है। अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि परिवादी का विपक्षी संख्या 02 के शाखा में विपक्षी संख्या 03 का खाता है। जिसमें चेक की सुविधा है और खाते के चेक का गमन किया जाता है, तो नियमानुसार बैंक उसका भुगतान करता है। विपक्षी संख्या 02 के जानकारी में यह नहीं है कि चेक संख्या 729221 उसके पास पहुंचा है अथवा नहीं। अतः परिवाद निरस्त किया जाए।
विपक्षी संख्या 01 ने जवाबदावा प्रस्तुत कर परिवाद पत्र में किए गए कथनों से इन्कार किया है और अतिरिक्त कथन में यह कहा है कि उसे परिवादी को अनुतोष देने का कोई क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। अतः परिवाद पत्र खारिज किया जाए।
विपक्षी संख्या 01 द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी संख्या 01 ने प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 19/1, 19/2 चेक की छायाप्रति, कागज संख्या 19/3 विपक्षी संख्या 02 को भेजे गए चेक के प्रमाणपत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 19/3 विपक्षी संख्या 01 द्वारा भेजे गए पत्रों का प्रमाणपत्र, कागज संख्या 19/6 रसीद, कागज संख्या 19/7 ता 19/11 लिखे गए पत्रों की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।
सुनवाई के दौरान कोई भी पक्ष उपस्थित नहीं आया।
अतः पत्रावली का अवलोकन किया तो इस सन्दर्भ में यदि हम “परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 45ए.” का अवलोकन करें तो इसमें यह लिखा था कि यदि किसी व्यक्ति की चेक की अवधि समाप्त हो गयी है तो वह दूसरा प्रार्थना पत्र चेक प्राप्त होने के लिए प्रस्तुत कर सकता है। यह धारा इस परिवाद पत्र के तथ्य एवं परिस्थितियों में पूरी तरह से ग्राह्य है। यदि परिवादी को चेक नहीं मिल रहा है तो उसका यह कर्तव्य था कि वह दूसरा चेक बनवा लेता। हमारे विचार से चेक गायब होने से कोई आर्थिक नुकासन नहीं है। उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।
P.T.O.
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आदेश
परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 08/05/2019
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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