राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१२०१/२०१४
(जिला मंच, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-३१६/२००९ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २६-०४-२०१४ के विरूद्ध)
मै0 कोटक महिन्द्रा ओल्ड म्यूचुअल लाइफ इंश्योरेंस लि0 द्वारा अधिकृत अधिकारी, चतुर्थ तल, विनय भव्य कॉम्प्लेक्स, १५९ ए, सीएसटी रोड, कलीना, सान्ताक्रुज ईस्ट, महाराष्ट्र।
..................... अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
ज्योति त्रिपाठी, निवासी ०७/५०(७), तिलक नगर, कानपुर नगर, यू.पी.।
.................... प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री अर्जुन कृष्ण विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री सुनील अवस्थी विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : २८-१०-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-३१६/२००९ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २६-०४-२०१४ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार उसके स्व0 पति मनीष त्रिपाठी ने अपीलार्थी बीमा कम्पनी से बीमा पालिसी सं0-००३५५८२८ ली थी। दुर्भाग्यवश उसके पति का देहान्त दिनांक १८-०९-२००६ को फोर्टिस अस्पताल नई दिल्ली में हो गया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक १८-११-२००६ को बीमा दावा अपीलार्थी बीमा कम्पनी को प्रेषित किया। बीमा कम्पनी ने प्रारम्भ में अपने पत्र दिनांक ३०-०-२००७ द्वारा उसका बीमा दावा स्वीकार नहीं किया तथा ४९,२५०/- रू० का एच0डी0एफ0सी0 बैंक का एक चेक उसे प्रेषित किया, जिसका भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने प्राप्त नहीं किया। निरन्तर पत्राचार के उपरान्त अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने अपने पत्र दिनांक ०६-०९-२००८ द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी का बीमा दावा स्वीकार किया किन्तु मात्र ५०,०००/- रू०
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का चेक बीमा दावा के पूर्ण भुगतान हेतु प्रेषित किया, जिसका भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने प्राप्त नहीं किया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार उसके पति द्वारा प्राप्त की गयी बीमा पालिसी में बीमित धनराशि १६.०० लाख रू० थी और इस पालिसी के अन्तर्गत उसके पति ने बतौर प्रथम प्रीमियम ९९,३८६/-रू० अदा किया था। प्रीमियम हेतु धनराशि १५ वर्षों तक प्रति वर्ष जमा की जानी थी। अत: बीमा दावा ५०,०००/- रू० स्वीकार करने का औचित्य नहीं था। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति को अपीलार्थी के एजेण्ट द्वारा यह आश्वस्त किया गया था कि प्रश्नगत बीमा पालिसी के अन्तर्गत बीमित धनराशि १६.०० लाख रू० है, जो पालिसी की अवधि में बीमाधारक की मृत्यु के उपरान्त उसकी पत्नी (नामित) को प्राप्त होगी। बीमाधारक को यह नहीं बताया गया था कि मात्र ५०,०००/- रू० ही पालिसी के जारी रहने की अवधि के मध्य बीमाधारक की मृत्यु पर उसकी पत्नी को प्राप्त होंगे। अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा अनुचित व्यापार प्रथा कारित की गयी है। अत: बीमित धनराशि १६.०० लाख रू० मय ब्याज की अदायगी एवं क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच में योजित किया गया।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने जिला मंच के समक्ष प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया। अपीलार्थी बीमा कम्पनी के कथनानुसार उनके द्वारा कोई अनुचित व्यापार प्रथा कारित नहीं की गयी और न ही सेवा में त्रुटि की गयी। बीमा पालिसी की शर्तों के अनुसार भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रेषित किया गया।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी का परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थी को निर्देशित किया कि निर्णय के ४५ दिन के अन्दर अपीलार्थी, प्रत्यर्थी/परिवादिनी को १६.०० लाख रू० अदा करे। यदि उक्त अवधि के मध्य यह धनराशि अदा नहीं की जाती है तो परिवादिनी परिवाद प्रस्तुत करने के दिनांक ३१-०३-२००९ से सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी तक ०८ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अर्जुन कृष्ण तथा प्रत्यर्थी के विद्वान
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अधिवक्ता श्री सुनील अवस्थी के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
उल्लेखनीय है कि जिला मंच द्वारा पारित निर्णय दिनांक २६-०४-२०१४ के विरूद्ध यह अपील दिनांक ०६-०६-२०१४ को योजित की गयी। यद्यपि दिनांक ०५-०८-२०१४ को पारित आदेशानुसार यह अपील सुनवाई हेतु अंगीकृत की जा चुकी है, किन्तु अपीलार्थी द्वारा अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा किए जाने हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है। इस प्रार्थना पत्र के विरूद्ध प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा आपत्ति प्रेषित की गयी है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा किए जाने के सन्दर्भ में प्रस्तुत प्रार्थना पत्र के अभिकथनों के अनुसार अपीलार्थी को प्रश्नगत निर्णय की नि:शुल्क प्रति जिला मंच द्वारा प्राप्त नहीं करायी गयी, अत: अपीलार्थी के लखनऊ के स्थानीय अधिवक्ता ने अपील की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने हेतु जिला मंच में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। प्रश्नगत निर्णय की प्रमाणित प्रति दिनांक ०५-०५-२०१४ को अपीलार्थी को उपलब्ध करायी गयी। तदोपरान्त अपील तैयार करके कम्पनी के मुम्बई स्थित कार्यालय को भेजी गयी, जहॉं से लखनऊ के अधिवक्ता को अपील दिनांक ०२-०६-२०१४ को स्पीड पोस्ट द्वारा भेजी गयी। अपीलार्थी के लखनऊ स्थित स्थानीय अधिवक्ता अपील योजित किए जाने की अधिकतम समयावधि दिनांक ०४-०६-२०१४ तक अपील प्रस्तुत नहीं कर सके, बल्कि ०२ दिन विलम्ब से दिनांक ०६-०६-२०१४ को अपील योजित की गयी। अपील के प्रस्तुतीकरण में जानबूझकर कोई विलम्ब नहीं किया गया है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार उसने प्रश्नगत निर्णय की प्रमाणित प्रति हेतु आवेदन दिनांक २६-०४-२०१४ को किया था। नि:शुल्क प्रति दिनांक ०२-०५-२०१४ को तैयार हो गयी और नि:शुल्क प्रति प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा दिनांक ०२-०५-२०१४ को प्राप्त की गयी, जबकि अपीलार्थी ने प्रमाणित प्रति प्राप्त करने हेतु दिनांक ०५-०५-२०१४ को प्रार्थना पत्र प्रेषित किया। क्योंकि नि:शुल्क प्रति दिनांक ०२-०५-२०१४ को ही तैयार हो गयी थी, अत: अपील प्रस्तुत करने की समय सीमा की गणना दिनांक ०२-०५-२०१४ से ही की जायेगी।
उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली के नियम ४(१०) के अनुसार जिला मंच
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द्वारा प्रत्येक पक्ष को निर्णय की नि:शुल्क प्रति उपलब्ध कराना अपेक्षित है। हाउसिंग बोर्ड हरियाणा बनाम हाउसिंग बोर्ड कालोनी वैलफेयर एसोसिएशन व अन्य, ए0आई0आर0 १९९६ एससी ९२ के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया कि उपभोक्ता संरक्षण नियमावली में उपभोक्ता मंच द्वारा निर्णय की प्रति प्रत्येक पक्षकार को उपलब्ध कराने के विशिष्ट प्राविधान के कारण प्रत्येक जिला मंच का यह दायित्व है कि निर्णय की प्रति प्रत्येक पक्षकार को उपलब्ध करायी जाय। ऐसी परिस्थिति में सम्बन्धित पक्षकार द्वारा निर्णय की प्रति प्राप्त करने के दिनांक से परिसीमा अवधि की गणना की जायेगी। प्रत्यर्थी/परिवादिनी का यह कथन नहीं है कि दिनांक ०५-०५-२०१४ से पूर्व अपीलार्थी को प्रश्नगत निर्णय की नि:शुल्क प्रति जिला मंच द्वारा प्राप्त करा दी गयी थी। स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादिनी यह स्वीकार करती है कि प्रश्नगत निर्णय की प्रमाणित प्रति हेतु उसने आवेदन प्रेषित किया था और उसके आवेदन पर नि:शुल्क प्रति दिनांक ०२-०५-२०१४ को तैयार हो गयी थी। अत: यह तिथि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के सापेक्ष्य ही प्रभावी मानी जायेगी, क्योंकि निर्विवाद रूप से अपीलार्थी को जिला मंच द्वारा नि:शुल्क प्रति उपलब्ध नहीं करायी गयी। अत: दिनांक ०५-०५-२०१४ जिस तिथि को अपीलार्थी को नि:शुल्क प्रति उपलब्ध करायी गयी उस तिथि से अपील के प्रस्तुतीकरण की समय सीमा की गणना की जायेगी। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार अपील के प्रस्तुतीकरण में मात्र ०२ ही दिन का विलम्ब हुआ। इस ०२ दिन के विलम्ब को क्षमा करने हेतु अपीलार्थी द्वारा प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है। प्रार्थना के अभिकथनों को अपीलार्थी द्वारा अधिकृत श्री अनुराग कुमार शुक्ला ने अपने शपथ पत्र में सत्यापित किया है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब का पर्याप्त स्पष्टीकरण अपीलार्थी द्वारा प्रेषित किया गया है, अत: अपील के प्रस्तुतीकरण में हुआ विलम्ब क्षमा किया जाता है।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत परिवाद में प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने बीमाधारक स्व0 मनीष त्रिपाठी के सभी उत्तराधिकारियों के नाम दर्शित नहीं किए हैं। बीमा पालिसी के अन्तर्गत नामित व्यक्ति ही समस्त बीमित धनराशि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं माना जा सकता। इस सन्दर्भ में उनके द्वारा
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श्रीमती सरबती देवी व अन्य बनाम श्रीमती ऊषा देवी, (१९८४) १ एससीसी ४२४ के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया। उल्लेखनीय है कि मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये उपरोक्त निर्णय के तथ्य एवं परिस्थितियॉं प्रस्तुत मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों से भिन्न हैं। प्रत्यर्थी/परिवादिनी का प्रश्नगत पालिसी के अन्तर्गत नामित होना निर्विवाद है। बीमाधारक स्व0 मनीष त्रिपाठी के किसी अन्य विधिक उत्तराधिकारी ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी को सम्पूर्ण बीमित धनराशि की अदायगी न किए जाने के सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं की है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस सन्दर्भ में डिवीजनल मैनेजर एल0आई0सी0 बनाम उमा देवी, १९९१ (२) सीपीजे ५१६ के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया। इस निर्णय में मा0 राष्ट्रीयआयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि बीमा पालिसी के अन्तर्गत बीमाधारक द्वारा नामित व्यक्ति को बीमित धनराशि प्राप्त कराने हेतु अधिकृत किया जाता है। अत: बीमाधारक की मृत्यु के उपरान्त नामित व्यक्ति बीमाधारक की सहमति से सेवा प्राप्त करने हेतु अधिकृत व्यक्ति होता है। तद्नुसार वह उपभोक्ता माना जायेगा। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी को परिवाद योजित करने का अधिकार प्राप्त नहीं था।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत पालिसी ‘’ UNIT LINKED ENDOWMENT ASSURANCE PLAN ‘’ था। इस प्लान के अन्तर्गत निवेशित धनराशि बाजार में निवेशित की जाती है, जिसका मूल्य समय-समय पर बाजार की स्थिति के अनुसार निर्धारित होता है, अत: बीमाधारक द्वारा उस पालिसी के अन्तर्गत किया गया निवेश व्यावसायिक प्रयोजन हेतु किया गया निवेश होने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादिनी उपभोक्ता नहीं मानी जा सकती।
उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत पालिसी के अवलोकन से यह विदित होता है कि स्वयं अपीलार्थी यह स्वीकार करता है कि प्रश्नगत प्लान के अन्तर्गत बीमाधारक का जीवन बीमा भी किया गया और इस बीमा के अन्तर्गत बीमा की अवधि के मध्य बीमाधारक की
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मृत्यु होने पर ५०,०००/- रू० की अदायगी की जायेगी। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि बीमाधारक द्वारा किया गया निवेश व्यावसायिक प्रयोजन हेतु किया गया और प्रत्यर्थी/परिवादिनी उपभोक्ता नहीं मानी जा सकती।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच ने तथ्यों का उचित परिशीलन न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। विक्षन जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय में यह मत व्यक्त किया है कि कोई भी व्यक्ति मात्र ५०,०००/- रू० मृत्यु लाभ प्राप्त करने हेतु ९९,३८६/- रू० प्रति वर्ष देय प्रीमियम की पालिसी प्राप्त नहीं करेगा। विद्वान जिला मंच ने यह मत मामले के वास्तविक तथ्यों की अनदेखी करते हुए व्यक्त किया।
प्रश्नगत प्लान के अन्तर्गत बीमाधारक द्वारा निवेश ०२ भागों में किया जाना था। प्रश्नगत प्लान के अन्तर्गत ९९,०३५/-रू० प्रति वर्ष देय प्रीमियम बाजार में निवेशित किया जाना था। १५ वर्ष तक प्रति वर्ष इस प्रीमियम की धनराशि की अदायगी पर न्यूनतम १६.०० लाख रू० निवेशक को अदा किया जाना था। यदि १५ वर्ष की समाप्ति पर बाजार की दर के अनुसार फण्ड वैल्यू १६.०० लाख रू० से अधिक होगी तो निवेशक १६.०० लाख रू० से अधिक वास्तविक मूल्य प्राप्त करने का अधिकारी होगा। इसके अतिरिक्त जीवन बीमा के सन्दर्भ में प्रति वर्ष २५०.८० रू० बीमाधारक द्वारा बतौर प्रीमियम जमा किया जाना था। यदि १५ वर्ष की अवधि के मध्य बीमाधारक की मृत्यु हो जाती है तो बीमाधारक ५०,०००/- रू० प्राप्त करने का अधिकारी होगा। प्रश्नगत प्लान के अन्तर्गत ९९,०३५/- रू० प्रीमियम की अदायगी जीवन बीमा के सन्दर्भ में प्राप्त नहीं की गयी। क्योंकि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति बीमाधारक की मृत्यु प्रश्नगत प्लान प्राप्त करने के लगभग ०१ वर्ष बाद ही हो गयी, अत: प्लान के अन्तर्गत निवेशित धनराशि की कुल फण्ड वैल्यू ४९,२५०/- रू० की अदायगी हेतु चेक प्रत्यर्थी/परिवादिनी को भुगतान हेतु प्रेषित किया गया। इसके अतिरिक्त ५०,०००/- रू० भुगतान हेतु बीमा पालिसी के सन्दर्भ में प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रेषित किया गया। अपीलार्थी द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की
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गयी।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थी के एजेण्ट ने बीमाधारक को यह बताया था कि प्रश्नगत पालिसी एक जीवन बीमा पालिसी है और जीवन बीमा निगम की पालिसी से बेहतर है, क्योंकि इस पालिसी के अन्तर्गत पालिसी की परिपक्वता अवधि १५ वर्ष के मध्य बीमाधारक की मृत्यु हो जाने की स्थिति में १६.०० लाख रू० नामित व्यक्ति (बीमाधारक की पत्नी) को प्राप्त होगा। इसके अतिरिक्त ५०,०००/- रू० का भी भुगतान किया जायेगा। अपीलार्थी के अभिकत्ता ने प्रश्नगत पालिसी में अन्तर्निहित छिपी हुई शर्तों को बीमाधारक को नहीं बताया। प्लान का स्वरूप अत्यधिक क्लिष्ट बनाया गया, जो सामान्य व्यक्ति की समझ से परे था। अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने अनुचित व्यापार प्रथा कारित की जो निम्नलिखित तथ्यों से प्रमाणित होता है :-
१. प्रस्ताव फार्म में सम एश्योर्ड (एस.ए.-१) के रूप में १६.०० लाख रू० दर्शित था एस.ए.-२ के रूप में ५०,०००/- रू० दर्शित है।
२. प्रस्ताव फार्म के पैरा-१० में सम एश्योर्ड १६.०० लाख रू० दर्शित है।
३. रिन्यूअल प्रीमियम पेमेण्ट नोटिस दिनांकित २१-०८-२००६ में बेसिक सम एश्योर्ड १६.०० लाख रू० दर्शित है।
४. दिनांक ०३-०६-२००८ के नोटिस के उत्तर में अपीलार्थी ने सम एश्योर्ड १६.०० लाख रू० स्वीकार किया है।
५. पालिसी अभिलेख के पृष्ठ-५ में यह उल्लिखित है कि बीमाधारक की मृत्यु पर भविष्य के सभी प्रीमियम की अदायगी माफ कर दी जायेगी।
६. प्रश्नगत प्लान से सम्बन्धित प्रोस्पेक्टस में बीमा को प्लान के अन्तर्गत महत्वपूर्ण बताया गया है।
७. आई0आर0डी0ए0 के सर्कुलर नं0-३२/आई.आर.डी.ए./एक्ट/दिसम्बर ५ दिनांकित ३१-१२-२००५ के अनुसार बीमित धनराशि ५०,०००/- रू० नहीं मानी जा सकती।
जहॉं तक प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क का प्रश्न है कि प्रश्नगत
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पालिसी बीमाधारक को भृमित कर जारी की गयी, अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि बीमाधारक एक शिक्षित व्यक्ति था। प्रश्नगत प्लान प्राप्त करने से पूर्व प्रस्ताव फार्म पर उसके द्वारा हस्ताक्षर किए गये। प्रश्नगत प्लान के अन्तर्गत यदि बीमाधारक प्लान की शर्तों से सन्तुष्ट नहीं था तब वह १५ दिन के फ्री लुक पीरियड के मध्य पालिसी निरस्त करा सकता था तथा धनराशि वापस प्राप्त कर सकता था, किन्तु बीमाधारक ने प्रश्नगत पालिसी प्राप्त करने के उपरान्त फ्री लुक पीरियड के अन्दन इस विकल्प का उपयोग नहीं किया और न ही अपने जीवनकाल में बीमाधारक का यह कथन रहा कि प्रश्नगत बीमा पालिसी उसे भृमित करके प्राप्त करायी गयी है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने हमारा ध्यान प्रश्नगत प्लान से सम्बन्धित प्रपोजन फार्म, जिसे अपील के साथ पृष्ठ सं0-५६ पर दाखिल किया गया है, में वर्णित प्रोडक्ट डिटेल्स की ओर आकृष्ट किया, जिसके पैरा-३ में प्रोडक्ट का नाम कोटक फ्लैक्सी प्लान दर्शित है तथा निवेश के सन्दर्भ में यह स्पष्ट रूप से दर्शित किया गया है कि इस प्लान के अन्तर्गत इन्वेस्टमेण्ट पोर्सन (एस.ए.-१/पी-१) की अवधि १५ वर्ष होगी, सम एश्योर्ड १६.०० लाख रू० होगा तथा प्रीमियम ९९,०३५/- रू० होगा। इंश्योरेंस पोर्सन (एस.ए.-२/पी-२) की समयावधि १५ वर्ष होगी। सम एश्योर्ड ५०,०००/- रू० होगा तथा वार्षिक प्रीमियम २५०.८० रू० होगा। उन्होंने हमारा ध्यान इस तथ्य की ओर भी आकृष्ट किया कि प्रश्नगत पालिसी की शर्तों के अनुसार डेथ बेनीफिट एवं मेच्योरिटी बेनीफिट को निम्नप्रकार से वर्णित किया गया है :-
- DEATH BENEFIT : Fund value (based on total annual investment premium paid till date) + Rs. 50,000/- (life insurance eligibility) in the event of death of Life assured before ending of 15 years term.
- MATURITY BENEFIT : higher of the Fund Value in main account of rs 16 Lakhs + Fund Value in supplementary account, eligibility in the event of expiry of 15 years term and payment of all premiums provided that the Life Insured survives on the date of maturity.
प्रपोजल फार्म में उल्लिखित उपरोक्त तथ्यों एवं प्रश्नगत पालिसी में उल्लिखित उपरोक्त शर्तों के आलोक में यह स्पष्ट है कि निवेशकर्ता बीमाधारक द्वारा निवेशित कुल
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धनराशि में से ९९,०३५/-रू० बाजार में प्रति वर्ष निवेशित किया जायेगा। प्लान के अनुसार १५ वर्ष की परिपक्वता अवधि बीत जाने पर न्यूनतम १६.०० लाख रू० बीमाधारक को प्रदान किया जायेगा। यदि १५ वर्ष की अवधि बीत जाने पर इस निवेशित प्रीमियम की फण्ड वैल्यू १६.०० लाख रू० से अधिक होगी तो उस अधिक धनराशि का भुगतान प्लानधारक को किया जायेगा। इसके अतिरिक्त बीमाधारक द्वारा निवेशित की गयी धनराशि में से २५०.८० रू० जीवन बीमा के सन्दर्भ में निवेशित किये जायेंगे। यदि १५ वर्ष की परिपक्वता अवधि के मध्य बीमाधारक की मृत्यु हो जायेगी तब उसे ५०,०००/- रू० बतौर बीमित धनराशि की अदायगी की जायेगी।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रस्ताव फार्म तथा प्रश्नगत पालिसी के अन्तर्गत १६.०० लाख रू० सम एश्योर्ड के रूप में दर्शित किया गया है। ऐसी परिस्थिति में सम एश्योर्ड १६.०० लाख रू० माना जायेगा। पालिसी की शर्तों में अस्पष्टता की स्िथति में शर्तों का विश्लेषण इस प्रकार किया जायेगा कि जिसमें उपभोक्ता का हित हो। अपने इस तर्क के समर्थन में प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रथम अपील सं0-४०९/२००५ नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड व अन्य बनाम मै0 पदमावती ज्वैलर्स के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिऐ गये निर्णय दिनांकित ०६-०८-२००७ पर विश्वास व्यक्त किया गया।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित उपरोक्त निर्णय का लाभ प्रस्तुत प्रकरण के सन्दर्भ में प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्राप्त नहीं कराया जा सकता, क्योंकि प्रश्नगत प्रकरण में पालिसी की शर्तें अस्पष्ट नहीं हैं। प्रस्ताव फार्म तथा पालिसी में दर्शित शर्तों के अनुसार निवेशित धनराशि किस प्रकार निवेशित की जायेगी इसका स्पष्ट विवरण दर्शित किया गया है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा के आलोक में ही मामले पर विचार किया जाना सम्भव है। उपभोक्ता मंच स्वयं कोई नई शर्त निर्मित नहीं कर सकता। यह सत्य है कि प्रश्नगत पालिसी के अन्तर्गत सम एश्योर्ड कई स्थानों पर १६.०० लाख रू० दर्शित है, किन्तु इसे पक्षकारों के मध्य निष्पादित
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संविदा के आलोक में ही पढ़ा जायेगा। सम एश्योर्ड १६.०० लाख रू० किस परिस्थिति में होगा इसका स्पष्ट विवरण पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा में दर्शित है। प्रश्नगत संविदा की शर्तों के अनुसार ९९,०३५.०० रू० के प्रीमियम की अदायगी जीवन बीमा पालिसी के सन्दर्भ में किया जाना नहीं वर्णि है, बल्कि यह धनराशि बाजार में निवेशित की जानी है और बाजार मूल्य के अनुसार इस निवेशित धनराशि का भुगतान किया जाना है। सम एश्योर्ड १६.०० लाख रू० (न्यूनतम भुगतान) १५ वर्ष की परिपक्वता अवधि पूर्ण होने पर किया जाना है। ऐसी परिस्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि बीमाधारक द्वारा किये गये निवेश के अन्तर्गत १५ वर्ष से पूर्व पालिसीधारक की मृत्यु होने की स्थिति में १६.०० लाख रू० बीमित धनराशि के रूप में बीमाधारक को अदा की जानी थी तथा ५०,०००/- रू० का अतिरिक्त भुगतान किया जाना था। इस सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि परिवाद के अभिकथनों में स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने पालिसी की शर्तों के अनुसार १६.०० लाख रू० बीमित धनराशि के साथ ५०,०००/- रू० अतिरिक्त धनराशि की अदायगी किए जाने का अभिकथन नहीं किया है। यह अभिकथन सर्व प्रथम अपील के स्तर पर किया जा रहा है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क प्रश्नगत संविदा की शर्तों के अनुरूप नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता ने रिट याचिका सं0-८८७९ (एम/बी)/२०१३ डॉ0 वीरेन्द्र पाल कपूर बनाम यूनियन आफ इण्डिया व अन्य के मामले में मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा दिए गये निर्णय दिनांकित २९-०५-२०१४ पर विश्वास व्यक्त किया। मा0 उच्च न्यायालय द्वारा पारित इस निर्णय में “ SBI – “ UNIT PLUS II – Single”, में पालिसी की शर्तें अनुचित पाते हुए पालिसी की संविदा को अवैध व शून्य घोषित कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि यह निर्णय अनुच्छेद २२६ के अन्तर्गत योजित रिट याचिका में पारित किया गया है। प्रश्नगत परिवाद में स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने प्रश्नगत पालिसी को शून्य घोषित किए जाने का कोई अनुतोष नहीं चाहा है और न ही ऐसा कोई अनुतोष उपभोक्ता मंच प्रदान कर सकता है। ऐसी
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परिस्थिति में यह स्पष्ट है कि मा0 उच्च न्यायालय द्वारा निर्णीत उपरोक्त मामले के तथ्य प्रस्तुत मामले के तथ्यों से भिन्न हैं, अत: उपरोक्त निर्णय का लाभ प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रदान नहीं किया जा सकता।
अपीलार्थी द्वारा सेवा में कमी किए जाने के सन्दर्भ में उल्लेखनीय है कि यह तथ्य निर्विवाद है कि बीमाधारक स्व0 मनीष त्रिपाठी की मृत्यु दिनांक १८-०९-२००६ को हो गयी। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने बीमा दावा दिनांक १८-११-२००६ को अपीलार्थी बीमा कम्पनी के समक्ष प्रस्तुत किया। अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने अपने पत्र दिनांकित ३०-०९-२००७ द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी का बीमा दावा इस आधार पर स्वीकार नहीं किया कि उसके द्वारा वांछित अभिलेख प्राप्त नहीं कराये गये, किन्तु फण्ड वैल्यू के रूप में ४९,२५०/-रू० के भुगतान हेतु एक चेक प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रेषित किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी का यह कथन है कि निरन्तर पत्राचार के उपरान्त अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने बीमा दावा अपने पत्र दिनांक ०६-०९-२००८ द्वारा स्वीकार किया किन्तु बीमित धनराशि के रूप में मात्र ५०,०००/- रू० के भुगतान हेतु चेक प्रेषित किया। इस सन्दर्भ में अपीलार्थी का यह कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी को बीमाधारक की चिकित्सा के सन्दर्भ में अस्पताल के अभिलेख उपलब्ध कराने हेतु कई पत्र भेजे गये किन्तु यह अभिलेख प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा उपलब्ध नहीं कराये गये। तदोपरान्त प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा एक नोटिस इस आशय का भेजा गया कि अभिलेख उसके पास उपलब्ध नहीं हैं। चिकित्सा से सम्बन्धित अभिलेख अपीलार्थी अस्पताल से प्राप्त कर सकता है। तदोपरान्त प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अधिकार पत्र प्राप्त कराए जाने पर सम्बन्धित अभिलेख फोर्टिस अस्पताल से अपीलार्थी द्वारा प्राप्त किए गये। अस्पताल से अभिलेख प्राप्त करने के उपरान्त बीमा दावा पर पुनर्विचार किया गया तथा पालिसी की शर्तों के अनुसार अपीलार्थी ने पत्र दिनांकित ०६-०९-२००८ द्वारा ५०,०००/- रू० का चेक भुगतान हेतु प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रेषित किया।
स्वयं अपीलार्थी यह स्वीकार करता है कि प्रश्नगत पालिसी के अन्तर्गत परिपक्वता अवधि १५ वर्ष से पूर्व निवेशक/बीमाधारक की मृत्यु हो जाने पर ९९,०३५/- रू०
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प्रति वर्ष निवेशित धनराशि के सापेक्ष बाजार की दरों के अनुसार फण्ड वैल्यू का भुगतान निवेशक को किया जायेगा। इसके अतिरिक्त जीवन बीमा के सन्दर्भ में की गयी २५०.८० रू० की प्रीमियम की अदायगी के सापेक्ष ५०,०००/- रू० की अदायगी बीमित धनराशि के रूप में बीमाधारक को की जायेगी। जब प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रेषित बीमा दावा के सन्दर्भ में निवेशक/बीमाधारक की मृत्यु के कारण फण्ड वैल्यू के रूप में ४९,२५०/- रू० के भुगतान हेतु चेक प्रेषित किया गया तब अस्पताल के अभिलेखों के उपलब्ध न कराये जाने के आधार पर ५०,०००/- रू० बीमित धनराशि की अदायगी न किए जाने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। अस्पताल के अभिलेख प्राप्त न कराने के आधार पर बीमित धनराशि की अदायगी एक वर्ष तक अपीलार्थी द्वारा अनावश्यक रूप से रोकी गयी।
हमारे विचार से सर्व प्रथम बीमाधारक की मृत्यु के उपरान्त बीमा दावा निरस्त करके एवं लगभग एक वर्ष तक बीमित धनराशि की अदायगी न करके अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है। प्रश्नगत पालिसी के सन्दर्भ में प्रस्तुत किए गये प्रस्ताव पत्र में बीमाधारक ने अपनी आयु ३८ वर्ष होनी बतायी है। मृत्यु के समय उसकी आयु लगभग ३९ वर्ष होनी बतायी गयी है। एक व्यक्ति की इतनी अल्प आयु में असामयिक मृत्यु के बाबजूद तथा इस तथ्य के परिप्रेक्ष्य में कि ९९,०३५/- रू० निवेशित किए जाने के बाद फण्ड वैल्यू के रूप में मात्र ४९,२५०/- रू० का ही भुगतान किया जाना है, प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्लान की शर्तो के अनुसार बीमित धनराशि ५०,०००/- रू० की अदायगी बिना किसी तर्कसंगत आधार के रोका जाना अपीलार्थी बीमा कम्पनी की संवेदनहीनता का द्योतक है।
उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी का यह कथन है कि अपीलार्थी द्वारा ५०,०००/- रू० का एक अन्य चेक भी प्रत्यर्थी/परिवादिनी को भुगतान हेतु प्रेषित किया गया। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता यह स्पष्ट नहीं कर सके कि यह भुगतान अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को क्यों प्रेषित किया गया। मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के आलोक में हमारे विचार से अपीलार्थी द्वारा उपरोक्त सेवा में त्रुटि के कारण ५०,०००/- रू० बतौर क्षतिपूर्ति प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दिलाया जाना न्यायसंगत होगा।
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प्रश्नगत निर्णय विद्वान जिला मंच ने मामले के सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्िथतियों का उचित परिशीलन न करते हुए पारित किया है। प्रश्नगत निर्णय अपास्त किए जाने योग्य है। अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-३१६/२००९ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २६-०४-२०१४ अपास्त करते हुए अपीलार्थी को निर्देशित किया जाता है कि फण्ड वैल्यू के रूप में ४९,२५०/- रू०, बीमित धनराशि के रूप में ५०,०००/- रू० एवं क्षतिपूर्ति के रूप में ५०,०००/- रू० निर्णय की तिथि के ३० दिन के अन्दर अपीलार्थी, प्रत्यर्थी/परिवादिनी को अदा करे। निर्धारित अवधि में यह धनराशि अदा न किए जाने की स्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादिनी अपीलार्थी से उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर ०८ प्रतिशत वार्षिक साधारण्ा ब्याज भी प्रापत करने की अधिकारिणी होगी।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय-भार अपना-अपना वहन करेंगे।
पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.