Uttar Pradesh

Kanpur Nagar

cc/59/2008

prem lata - Complainant(s)

Versus

jyoti gupta - Opp.Party(s)

15 Feb 2016

ORDER

CONSUMER FORUM KANPUR NAGAR
TREASURY COMPOUND
 
Complaint Case No. cc/59/2008
 
1. prem lata
ratanpur gaon panki kanpur
...........Complainant(s)
Versus
1. jyoti gupta
HIG 39 B Block panki kanpur
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. RN. SINGH PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Sudha Yadav MEMBER
 HON'BLE MR. PURUSHOTTAM SINGH MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 15 Feb 2016
Final Order / Judgement

 


जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।

   अध्यासीनः      डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष    
    पुरूशोत्तम सिंह...............................................सदस्य
    सुधा यादव.....................................................सदस्या
    

उपभोक्ता वाद संख्या-59/2008
श्रीमती प्रेमलता पत्नी श्री अरूण कुमार कुरील निवासिनी मकान नं0-13, रतनपुर गांव, पोस्ट व थाना पनकी कानपुर नगर।
                                  ................परिवादिनी
बनाम
1.    डा0 ज्योति गुप्ता (एम0डी0) निवासिनी एच.आई.जी.-39 बी0 ब्लाक पनकी कानपुर-20 एवं क्लीनिक पता-573 बी0 ब्लाक पवन सिंह मार्केट एम.आई.जी. रोड, पनकी, कानपुर नगर।
2.    डा0 रेनू भाटिया आर0के0 सिन्धी संघ मैटरनिटी हास्पिटल ब्लाक नं0-11, गोविन्द नगर, कानपुर नगर-208006
3.    डा0 सी0के0 सिंह चॉदनी सिंह नर्सिंग होम प्रा0लि0 9/60 आर्य नगर, कानपुर नगर।
4.    नेशनल इष्ंयोरेन्स कपंनी लि0 ब्रांच ऑफिस सिविल लाइन्स कानपुर नगर द्वारा ब्रांच मैनेजर।
                             ...........विपक्षीगण
परिवाद दाखिल होने की तिथिः 10.01.2008
परिवाद निर्णय की तिथिः 19.08.2016

डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1.      परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि परिवादिनी को विपक्षीगण की लापरवाही व घोर उपेक्षा व धोखाधड़ी से किये गये इलाज के कारण व खर्च हेतु रू0 2,50,000.00, मानसिक व षारीरिक प्रताड़ना के लिए क्षतिपूर्ति रू0 2,00,000.00 तथा वाद खर्च रू0 30000.00 कुल रू0 4,80,000.00 तथा उस पर वास्तविक अदायगी की तिथि तक 18 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से, दिलाया जाये।
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2.     परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादिनी का कथन यह है कि परिवादिनी 15 सप्ताह गर्भ के साथ जुकाम, बुखार के इलाज हेतु विपक्षी सं0-1 डा0 ज्योति गुप्ता के क्लीनिक 573 बी0 ब्लाक पवन सिंह मार्केट एम.आई.जी. रोड पनकी, कानपुर नगर के पास दिनांक 04.04.06 को अपने पति अरूण कुरील के साथ आयी थी। विपक्षी सं0-1 द्वारा परिवादिनी का षारीरिक परीक्षण करके बच्चेदानी में सूचना व गॉंठ के कारण बुखार का आना बताते हुए षीघ्र गर्भपात कराने की राय दी गयी और यह कहा गया कि प्रैग्नेन्सी जारी रखने पर समय पूर्व गर्भपात हो जायेगा, जिससे परिवादिनी की मृत्यु भी संभव है। परिवादिनी द्वारा अपने पति की राय लेकर स्वयं की सहमति गर्भपात हेतु दे दी गयी। विपक्षी सं0-1 द्वारा परिवादिनी से गर्भपात कराने का रू0 1500.00 जमा करने के बाद उसे अपनी लाल रंग की मारूती कार 800 नं0- यू0पी0-78 यू0-7290 से सूर्या एस.एम.एस. अल्ट्रासाउण्ड सेंटर ई-184 पनकी बरगदिया पुरवा लेकर आयी। जहां पर परिवादिनी का अल्ट्रासाउण्ड कराकर व जानकारी प्राप्त करके विपक्षी सं0-1, परिवादिनी को अपनी क्लीनिक ले आयी और गर्भपात करना षुरू कर दिया। गर्भपात करने के दौरान परिवादिनी को अत्यंत दर्द हो रहा था। जिसे विपक्षी सं0-1 के द्वारा अनसुना कर दिया गया। आपरेषन के पष्चात परिवादिनी के बेहोष होने सहित पेषाब के रास्ते से खून आने के कारण विपक्षी सं0-1 ने अपनी नर्स को परिवादिनी के साथ पुनः सूर्या एस.एम.एस. अल्ट्रासाउण्ड सेंटर भेजकर फोन पर अल्ट्रासाउण्ड करने वाले डाक्टर से जानकारी ली। परिवादिनी के वापस आने के पष्चात विपक्षी सं0-1 ने परिवादिनी को अपना मोबाइल नं0-9415724059 देकर परिवादिनी को दूसरे दिन आकर दिखाने को कहा। परिवादिनी ने दूसरे दिन विपक्षी सं0-1 को पेट में अत्यधिक दर्द बताया तो विपक्षी सं0-1 ने परिवादिनी को कुछ दर्द निवारक इंजेक्षन सहित कुछ एण्टीबॉयटिक दवायें देकर, षाम तक अपने क्लीनिक में रखा। यही क्रम दिनांक 10.04.06 तक चलता रहा। विपक्षी सं0-1 ने दिनांक 10.04.06 को परिवादिनी की बिगड़ती हालत देखकर बताया कि  उसकी  बच्चेदानी व आंत फट गयी है 
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और परिवादिनी  को तुरंत आपरेषन की राय देते हुए डा0 रेनू भाटिया आर0के0 सिंधी संघ मैटरनिटी हास्पिटल गोविन्द नगर को दिखाने को कहा और यह भी कहा कि जो भी आपरेषन खर्च आयेगा, उसे स्वयं विपक्षी सं0-1 वहन करेगी। विपक्षी सं0-1 द्वारा अन्य डा0 से इलाज न कराने की सख्त राय दी गयी। परिवादिनी दिनांक 10.04.06 को डा0 रेनू भाटिया के यहां गयी, जहां दिनांक 11.04.06 को सुबह 9 बजे सर्जन डा0 आर0के0 अग्रवाल डा0 ज्योति अग्रवाल की मौजूदगी में आपरेषन किया गया। विपक्षी सं0-1 की लापरवाही व उपेक्षा के कारण परिवादिनी की फटी आंत से बदबूदार स्राव पेट में लगे टॉकों से आने लगा। जिसकी षिकायत करने पर विपक्षी सं0-2 ने सामान्य घटना बताकर टाल दी। परिवादिनी की बिगड़ती हालत को देखकर और विपक्षी सं0-1 व 2 की मिली भगत समझकर इलाज में लापरवाही देखकर परिवादिनी के पति ने परिवादिनी को डा0 सी0के0 सिंह अर्थात विपक्षी सं0-3 के चांदनी नर्सिंगीहोम ले गया, जहां पर विपक्षी सं0-3 के द्वारा परविदिनी के पति को यह बताया गया कि परिवादिनी का गर्भपात असावधानी से करने से इसकी लैट्रीन की आंत फट गयी है और फटी आंत सही से न जुड़ने से अब इसकी फटी आंत दोबारा सही ढंग से जोड़ना पडेगा, नहीं तो परिवादिनी की आंत में जहर फैलने से मृत्यु हो जायेगी। आपरेषन हेतु परिवादिनी के पति से दिनांक 17.04.06 को रू0 25000.00 जमा कराये गये, जिसमें रसीद केवल रू0 11000.00 की दी। दवाओं आदि पर परिवादिनी ने अलग से लगभग रू0 20000.00 खर्च किया था। विपक्षी सं0-3 ने परिवादिनी का आपरेषन कर उसकी लैट्रीन आंत को पेट के ऊपर से निकालकर इलाज षुरू कर दिया और दिनांक 04.05.06 तक अपने यहां इसी अवस्था में रखने के बाद विपक्षी सं0-3 ने परिवादिनी को नर्सिंगहोम से डिस्चार्ज कर 10-11 दिन बाद आने का कहा। परिवादिनी डिस्चार्ज होने पर उसी हालत में अपने पेट के ऊपर आंत को रखे हुए अपने जीजा मनोज कुरील निवासी 6/36 रानीबगीचा पुराने कानपुर नगर के यहां रही। जहां चांदनी नर्सिंगहोम में  कार्यरत कर्मचारी षिव प्रसाद मिश्रा आकर उसकी ड्रेसिंग आदि करते  रहे।
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विपक्षी सं0-3 ने परिवादिनी को अपने नर्सिंगहोम में दिनांक 15.05.06 को पुनः भर्ती कर उसका दिनांक 18.05.06 को तीसरी बार आपरेषन कर उसके पेट के ऊपर रखी हुई आंत को वापस पेट के अंदर कर दिया तथा दिनांक 24.05.06 को विपक्षी सं0-3 ने परिवादिनी को डिस्चार्ज कर दिया। उक्त आपरेषन हेतु विपक्षी सं0-3 ने रू0 20000.00 जमा कराये थे, जिसके एवज में चांदनी नर्सिंगहोम से परिवादिनी के पति को केवल रू0 8000.00 की रिसीविंग प्राप्त हुई। जबकि परिवादिनी के तीसरे आपरेषन में एक बार फिर दवाओं आदि पर अलग से खर्च लगभग रू0 20000.00 आया था। परिवादिनी का तीसरी बार आपरेषन के बाद भी पेट में लगे टांको से मलवा व बदबूदार पानी आने लगा। परिवादिनी के पति ने दिनांक 25.05.06 को विपक्षी सं0-3 से षिकायत की तो विपक्षी सं0-3 ने परिवादिनी के पति से संजय गांधी अस्पताल लखनऊ में भर्ती करने हेतु कहा तथा आगे इलाज करने से मना कर दिया। परिवादिनी का पति परिवादिनी को उसके जीजा के यहां रखकर ही आस-पास के डाक्टरों से व मेडिकल स्टोर से दवा इंजेक्षन आदि को पूंछ-पूंछ कर इलाज कराता रहा। आखिरकार एक दिन परिवादिनी का पति परिवादिनी को मरणासन्न हालत में दिनांक 09.08.06 को वापस अपने घर ले आया। परिवादिनी के पति के द्वारा विपक्षी सं0-1 द्वारा इलाज खर्च मांगने पर विपक्षी सं0-1 ने परिवादिनी के पति से सारे इलाज के पर्चे लेकर स्वयं के द्वारा किये गये इलाज के पर्चे निकाल लिये तथा आपरेषन का खर्च देने से मना कर दिया। परिवादिनी को मृत्यु तुल्य कश्ट विपक्षीगण की लापरवाही के कारण उठाना पड़ा और गर्भपात सहित तीन बार पेट का बड़ा आपरेषन कराना पड़ा, जिससे परिवादिनी को अब दूसरी संतान से वंचित होना पड़ेगा। जन सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत जानकारी करने पर दिनांक 02.01.08 को मुख्य चिकित्साधिकारी कानपुर नगर के द्वारा यह जानकारी दी गयी कि डा0 ज्योति गुप्ता की चिकित्सीय योग्यता बी.ए.एम.एस. व एम0डी0 आयुर्वेद है। विपक्षी सं0-1 डा0 ज्योति गुप्ता ने अपने पर्चे के ऊपर डा0 ज्योति गुप्ता एम.डी. स्त्री एवं प्रसूति रोग विषेशज्ञ लिख रखा है और यह डिग्री केवल एम.बी.बी.एस. डा0
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लिखने हेतु अधिकृत है न कि बी.ए.एम.एस. व एम.डी. आयुर्वेद डाक्टर। इस प्रकार विपक्षी सं0-1 द्वारा लोगों को धोखा देने की नियत से एम.डी. स्त्री एवं प्रसूति रोग विषेशज्ञ लिखा इलाज करती रही। इसके अलावा गर्भ समापन पंजीकरण न होने के बावजूद गर्भ समापन करके वह भी घोर लापरवाही व उपेक्षा के साथ परिवादिनी के साथ अन्याय व सेवा में कमी कारित की गयी है।
3.    विपक्षी सं0-1 की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र में अंकित अंतरवस्तु का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि दिनांक 04.04.06 को परिवादिनी के षारीरिक परीक्षण में यह पाया गया कि परिवादिनी को बुखार, पेट में दर्द और पार्सियल ब्लीडिंग समस्या है। जिसके लिए दवा लेने की राय देकर नुस्खे लिखकर तीन दिन बाद बुलाया गया। किन्तु परिवादिनी दिनांक 05.04.06 को ही पुनः उक्त समस्याओं को लेकर आयी। दिनांक 05.04.06 को नये नुस्खे लिखकर परिवादिनी को दो दिन बाद पुनः बुलाया गया। दिनांक 07.04.06 को परिवादिनी द्वारा अपनी षारीरिक समस्या पूर्ववत् बतायी गयी। दिनांक 07.04.06 को परिवादिनी को नई दवायें लिखकर किसी अन्य अपनी च्वाइस की लेडी डाक्टर को दिखाने की राय दी गयी। इसके बाद परिवादिनी कभी विपक्षी सं0-1 के पास नहीं आयी। परिवादिनी का यह कथन असत्य है कि विपक्षी सं0-1 आपरेषन के दौरान उपस्थिति रही है। विपक्षी सं0-1 को परिवादिनी के आगे के इलाज के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है और न ही तो परिवादिनी द्वारा आगे की कोई जानकारी दी गयी। विपक्षी सं0-1 की डिग्री सेन्ट्रल कौंसिल ऑफ इण्डिया द्वारा अधिकृत है तथा विपक्षी सं0-2 द्वारा एलोपैथिक इलाज करने हेतु अधिकृत है। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद विपक्षी सं0-1 को तंग एवं परेषान व धन उगाही की मंषा से प्रस्तुत किया गया है। इसका कारण यह है कि परिवादिनी द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री को तथा एस.सी., एस.टी. आयोग को षिकायत झूठे आधारों पर की गयी है।  सभी विभागों के द्वारा
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जांच करने पर षिकायत झूठी पायी गयी। परिवादिनी का जो इलाज विपक्षी सं0-1 द्वारा किया गया, वह आधुनिक चिकित्सा पद्धति/आधुनिक चिकित्सा विज्ञान द्वारा किया गया है। विपक्षी द्वारा परिवादिनी के इलाज में कोई उपेक्षा नहीं की गयी। परिवादिनी स्वच्छ हाथों से फोरम के समक्ष नहीं आयी है। विपक्षी सं0-1 द्वारा परविदिनी को किसी इलाज के लिए भरपाई देने का वायदा नहीं किया गया था। परिवादिनी द्वारा रू0 2,00,000.00 की क्षतिपूर्ति किस आधार पर मांगी गयी है-इसका कोई कारण नहीं बताया गया है और न ही आगणन प्रस्तुत किया गया है। अतः परिवादिनी का परिवाद उपरोक्त कारणों से खारिज किया जाये।
4.    विपक्षी सं0-2 की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और अतिरिक्त कथन में संक्षेप में यह कहा गया है कि विपक्षी सं0-2 के द्वारा परिवादिनी के इलाज में आपरेषन में कोई कमी कारित नहीं की गयी है, जो कि मुख्य चिकित्साधिकारी कानपुर नगर के द्वारा सधन जांच विषेशज्ञ की राय पर दी गयी रिपोर्ट से भी प्रमाणित है। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद विपक्षी सं0-2/उत्तरदाता से अवैधानिक धन उगाही की मंषा से झूठे एवं मनगढंत तथ्यों पर प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी सं0-2/उत्तरदाता के विरूद्ध कोई क्लेम बनता है, तो विपक्षी/उत्तरदाता की बीमा कंपनी से क्लेम दिलाया जा सकता है।
5.    विपक्षी सं0-3 की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके, परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि परिवादिनी को विपक्षी सं0-3 के उपरोक्त नर्सिंगहोम में दिनांक 16.04.06 को बड़ी बुरी हालत अवस्था में भर्ती किया गया तथा जांच के उपरान्त परिवादिनी के पति को उचित इलाज हेतु लैट्रिन/आंतों की गैपिंग हेतु आपरेषन करने हेतु सलाह देते हुए मरीज का सही तरीके से आपरेषन किया गया। विपक्षी सं0-3 के नर्सिंगहोम में सफलतापूर्वक आपेरषन कर पूर्ण रूप से ठीक होने के बाद डिस्चार्ज किया गया तथा परिवादिनी से कोई अतिरिक्त  चार्ज न लेते हुए 
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उसके जीवन को बचाया गया और एक डाक्टर के कर्तव्यों का पालन किया गया। परिवादिनी का विपक्षी सं0-3 द्वारा संतुश्टतापूर्वक इलाज किया गया विपक्षी सं0-3 ने परविदिनी के पति को संजय गांधी हास्पिटल लखनऊ में या अन्यत्र भर्ती कराकर इलाज कराने हेतु सलाह नहीं दी गयी। विपक्षी सं0-3 द्वारा परिवादिनी का अच्छी तरह से इलाज किया गया, जिससे उसको अन्यत्र इलाज कराने की आवष्यकता ही नहीं थी। विपक्षी सं0-3 द्वारा किये गये डाक्टर धर्म के कर्तव्यों का पालन पूर्ण रूप से किया गया। इसलिए परिवादिनी स्वस्थ्य एवं अच्छी स्थिति में है। न्यायहित में परिवादिनी का परिवाद सव्यय खारिज किया जाये।
6.    विपक्षी सं0-4 की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके, विपक्षी सं0-2 को चिकित्सा विषेशज्ञ मानते हुए विपक्षी सं0-2 की ओर से प्रस्तुत किये गये जवाब दावा को ही, विपक्षी सं0-4 के लिए आगे पढ़े जाने का कथन किया गया।
7.    परिवादिनी की ओर से जवाबुल जवाब प्रस्तुत करके, विपक्षी सं0-1, 2, 3 व 4 की ओर से प्रस्तुत किये गये जवाब दावा में उल्लिखित तथ्यों का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और स्वयं के द्वारा परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों की पुनः पुश्टि की गयी है और विपक्षी सं0-1 डा0 ज्योति गुप्ता के सम्बन्ध में अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि विपक्षी सं0-1 का यह कथन असत्य है कि परिवादिनी को उसके यहां ब्लीडिंग हो रही थी, इस कारण से आयी थी। वास्तविकता यह है कि परिवादिनी तो विपक्षी के यहां केवल बुखार बने रहने के चलते आयी थी, जिसे स्वयं विपक्षी सं0-1 भी स्वीकार कर रही है। विपक्षी सं0-2 के विरूद्ध अतिरिक्त कथन में परिवादिनी द्वारा संक्षेप में यह कहा गया है कि परिवादिनी का जवाब दावा तमाम प्रकार से झूठे तथ्यों पर आधारित है। विपक्षी सं0-3 के विरूद्ध अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि परिवादिनी, विपक्षी सं0-3 के यहां अपनी पंचर हुई लैट्रीन आंत को दोबारा जोड़ने हेतु भर्ती हुई थी न कि लैट्रीन की गैपिंग सही कराने हेतु भर्ती हुई थी। विपक्षी सं0-2 के द्वारा अपने जवाब दावा में उक्त कथन विपक्षी सं0-1 डा0 ज्योति गुप्ता के 
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द्वारा इलाज में किये गये उपेक्षा को छिपाने के लिए कही गयी है। विपक्षी सं0-3 के द्वारा डाक्टरी प्रोफेषन व निजी संबंधो के चलते डा0 ज्योति गुप्ता को बचाने के लिए उक्त कथन किया गया है। विपक्षी सं0-4 के सम्बन्ध में परिवादिनी द्वारा अपनी बीमारी के सम्बन्ध में जवाब दावा के प्रस्तर-2 में मुख्यतः यह कहा गया है कि जवाब दावा में लिखी गयी धारा-2 गलत तरीके से उल्लिखित है। जिस कारण से अस्वीकार है। परिवादिनी ने मय साक्ष्य अपने परिवाद को दाखिल किया है, जिससे कि मेडिकल निग्लेजेंसी के पुख्ता जवाब मिलते हैं।
परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
8.    परिवादिनी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 09.06.08, 30.06.10, 22.12.10, 09.08.16, 10.08.16 व 12.08.16 एवं अरूण कुमार कुरील तथा मनोज कुमार का षपथपत्र दिनांकित 30.06.10 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची के साथ संलग्न कागज सं0-1 लगायत् 102 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षी सं0-1 की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
9.    विपक्षी सं0-1 ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 03.07.16 व 09.08.16 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची कागज सं0-2 के साथ संलग्न कागज सं0-2/1 लगायत् 2/22 दाखिल किया है।
विपक्षी सं0-2 की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
10.    विपक्षी सं0-2 ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 30.06.10 व 13.10.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची बीमा पॉलिसी की प्रति व प्रीमियम जमा रसीद की प्रति दाखिल किया है।
विपक्षी सं0-3 की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
11.    विपक्षी सं0-3 ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 15.01.15 दाखिल किया है।
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12.    विपक्षी सं0-4 ने अपने कथन के समर्थन में न तो कोई षपथपत्र दाखिल किया है और न ही कोई अभिलेखीय साक्ष्य दाखिल किया है।
निष्कर्श
13.    फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया।
    उभयपक्षों को सुनकर एवं परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत लिखित बहस व उभयपक्षों की ओर से किये गये उपरोक्त वर्णित समस्त साक्ष्यों का तथा निर्णय में आगे वर्णित समस्त विधि निर्णयों का फोरम द्वारा अध्ययन किया गया।
    परिवादिनी की ओर से विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध लगाये गये तमाम आरोपों के सम्बन्ध में विपक्षी सं0-1 की ओर से स्वयं के द्वारा परिवादिनी का गर्भपात कराने से इंकार किया गया है। किन्तु यह स्वीकार किया गया है कि परिवादिनी उसके यहां दिनांक 04.04.06, 05.04.06 तथा 07.04.06 को इलाज कराने हेतु आयी। दिनांक 07.04.06 के पष्चात परिवादिनी को किसी लेडी डाक्टर से अपनी आगे की चिकित्सा कराने की राय देकर परिवादिनी की समस्त चिकित्सा की जानकारी होने से इंकार किया गया है। परिवादिनी के अनुसार विपक्षी सं0-1 द्वारा दिनांक 10.04.06 तक परिवादिनी का इलाज किया गया है। विपक्षी सं0-2 के द्वारा अपने जवाब दावा में विपक्षी सं0-1 के द्वारा किये गये किसी इलाज का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। किन्तु विपक्षी सं0-2 की ओर से प्रस्तुत किये गये प्रति षपथपत्र जो कि दिनांक 13.10.14 को फोरम में प्रस्तुत किया गया है, जिसके प्रस्तर-4 में विपक्षी सं0-2 के द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि परिवादिनी/पीड़िता के अल्ट्रासाउण्ड कराने से यह ज्ञात हुआ कि परिवादिनी का यूरेटस और आंत षल्य यंत्र से फट गयी है,          जिससे पस एवं मल पेरीटोनियल कैबिटी में जा चुका है। विपक्षी सं0-2 के 
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उपरोक्त प्रति षपथपत्र से यह भी स्पश्ट होता है कि  विपक्षी सं0-2 के द्वारा दिनांक 11.04.06 को परिवादिनी का आपरेषन डा0 पी0के0 अग्रवाल के द्वारा गया गया है। विपक्षी सं0-1 द्वारा अपने जवाब दावा में स्वीकार किया गया है कि परिवादिनी की हालत गंभीर होने के कारण उसे तत्काल किसी लेडी डाक्टर से अपना आपरेषन कराने की सलाह दी गयी है। यह राय विपक्षी सं0-1 द्वारा दिनांक 07.04.06 को दी गयी है और विपक्षी सं0-2 के द्वारा आपरेषन दिनांक 11.04.06 को किया गया है। परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र में यह कहा गया है कि विपक्षी सं0-1 के द्वारा परिवादिनी को यह बताया गया था कि यदि वह षीघ्र आपरेषन नहीं कराती है, तो उसकी जान को खतरा है। यदि दिनांक 07.04.06 के बाद परिवादिनी दिनांक 11.04.06 को अपना आपरेषन कराती तो निष्चित रूप से इसका उल्लेख कहीं न कहीं विपक्षी सं0-2 अवष्य करता और इस दौरान परिवादिनी की मृत्यु भी हो सकती थी। किन्तु परिवादिनी के कथनानुसार परिवादिनी दिनांक 10.04.06 तक विपक्षी सं0-1 के इलाज में रही है और परिवादिनी का आपरेषन विपक्षी सं0-2 द्वारा दिनांक 11.04.06 को किया गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि विपक्षी सं0-1 द्वारा यह झूठा कथन किया गया है कि दिनांक 07.04.11 के पष्चात उसके द्वारा परिवादिनी का कोई इलाज नहीं किया गया अथवा परिवादिनी उसके चिकित्सा नियंत्रण में नहीं रही। विपक्षी सं0-2 के उपरोक्त प्रति षपथपत्र में यह उल्लिखित है कि षल्य यंत्रों का प्रयोग करने से परिवादिनी का यूरेटस व आंत फट गयी है। विपक्षी सं0-1 व 2 के द्वारा यह नहीं बताया गया है कि उक्त आंत का फटना विपक्षी सं0-1 के अतिरिक्त अन्य किस डाक्टर से इलाज कराने से हुआ है? परिवादिनी अपने परिवाद पत्र में व अपने षपथपत्र में व प्रति षपथपत्र में व लिखित बहस में प्रत्येक स्थान पर यह कहती आ रही है कि उसकी आंत का फटना और यूरेटस का फटना, विपक्षी सं0-1 के गलत तरीके से इलाज करने व गलत तरीके से गर्भपात कराने से हुआ है। जिससे परिवादिनी के कथन को बल प्राप्त होता है। विपक्षी सं0-1 का कथन असत्य प्रतीत होता है।
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    विपक्षी सं0-1 की ओर से सूची के साथ जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी है। उक्त जांच तत्कालीन मुख्य चिकित्साधिकारी डा0 वी0सी0 रस्तोगी एवं अन्य 5 डाक्टरों के पैनल द्वारा की गयी हैं। उक्त जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करके विपक्षी सं0-1 की ओर से यह कहा गया है कि चूॅकि उक्त जांच में विपक्षी सं0-1 को दोशी नहीं पाया गया है, इसलिए विपक्षी सं0-1 निर्दोश है। विपक्षी सं0-1 की ओर से विधि निर्णय प्प् ;2015द्ध ब्च्श्र 465 ;छब्द्ध दलबीर सिंह बनाम लाला हरभगवान मेमोरियल एवं डा0 प्रेम हास्पिटल प्रा0लि0 एवं अन्य, विधि निर्णय प्प्प् ;2015द्ध ब्च्श्र 496 ;छब्द्ध रीना देवी बनाम नवजीवन हास्पिटल एवं डॉयग्नोस्टिक सेंटर एवं अन्य प्रस्तुत करके उक्त विधि निर्णयों में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट करते हुए यह कहा गया है कि विपक्षी सं0-1 योग्य डाक्टर है। उसके द्वारा चिकित्सा में कोई कमी कारित नहीं की गयी है। मा0 राश्ट्रीय आयोग का संपूर्ण सम्मान रखते हुए स्पश्ट करना है कि उपरोक्त विधि निर्णयों में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत तथ्यों की भिन्नता के कारण प्रस्तुत मामले में लागू नहीं होता है। क्योंकि प्रस्तुत मामले में विपक्षी सं0-2 रेनू भाटिया के द्वारा अपने षपथपत्र में कहा गया है कि परिवादिनी को यूरेटस और आंत फट जाने की समस्या उसके गर्भपात के दौरान किये गये गलत इंर्स्टूमेंटेसन के कारण हुई है। निर्णय में यह ऊपर वर्णित किया जा चुका है कि परिवादिनी की आंत एवं यूरेटस की समस्या विपक्षी सं0-1 डा0 ज्योति गुप्ता के कारण परिवादिनी का गर्भपात कराने के दौरान किये गये इंर्स्टूमेंटेसन के कारण हुई है। अतः उपरोक्त विधि निर्णय का लाभ विपक्षी सं0-1 को प्राप्त नहीं होता है।
    परिवादिनी की ओर से विपक्षी सं0-1 की ओर से प्रस्तुत की गयी उपरोक्त जांच रिपोर्ट व षपथपत्र के विरूद्ध प्रति षपथपत्र प्रस्तुत करके यह कहा गया है कि परिवादिनी को मुख्य चिकित्साधिकारी के यहां से अपना पक्ष रखने के लिए कभी कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ और न ही परिवादिनी के बयान अंकित कराये गये। पूरी जांच रिपोर्ट में कहीं पर यह नहीं बताया गया  कि आखिर  षपथपकर्ती/परिवादिनी के पेट में  लैट्रीन
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कैसे आयी व आंत कैसे पंचर हुई। अगर परिवादिनी कहीं से इलाज कराकर आयी थी, तो इसका भी उल्लेख जांच रिपोर्ट में नहीं दिया गया है। जांच रिपोर्ट बिल्कुल पुलिसिया तरीके से की गयी है, जिससे जांच रिपोर्ट झूठी एवं संदिग्ध प्रतीत होती है। परिवादिनी द्वारा विपक्षी सं0-1 को ही क्यों गर्भपात करने का दोशी बताया गया। जबकि परिवादिनी, विपक्षी सं0-1 से पूर्व में न तो कोई परिचय था और न ही कोई रंजिष थी। वास्तव में जांच कमेटी द्वारा केवल निजी जांच के चलते जांच रिपोर्ट तैयार की गयी है। थानाध्यक्ष द्वारा जो जांच रिपोर्ट तैयार की गयी है वह झूठी व लाभ के चलते तैयार की गयी है। विपक्षी सं0-2 ने अपने बयान/षपथपत्र में कहा है कि जब षपथकर्ती दिनांक 11.04.06 को आयी तो उससे पूछने पर एक सप्ताह पूर्व गर्भपात किया जाना बताया था। जिससे यह प्रमाणित होता है कि दिनांक 04.04.06 को विपक्षी सं0-1 द्वारा परिवादिनी का गर्भपात किया गया है। अतः विपक्षी सं0-1 की ओर से प्रस्तुत जांच रिपोर्ट मात्र एक रायकारी साक्ष्य है-जिस पर विष्वास नहीं किया जा सकता है।
    परिवादिनी की ओर से विधि निर्णय 2010 ;1द्ध ब्च्त् 1 ;छब्द्ध बी0 श्रीकान्त बनाम डा0 एच.एन. षिवकुमार तथा विधि निर्णय 2016 ;2द्ध ब्च्त् 557 ;छब्द्ध डा0 वी0के0 गुप्ता बनाम कृश्ण कुमार एवं अन्य में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है। मा0 राश्ट्रीय आयेग ने उपरोक्त विधि निर्णयों में विषेशज्ञ की राय को नहीं माना गया है और चिकित्सा में उपेक्षा के मामलों में डाक्टर की योग्यता और आधुनिक तरीके से इलाज करने के कार्य को बारीकी से देखा जाना चाहिए-यह विधिक सिद्धांत दिया गया है। मा0 राश्ट्रीय आयोग द्वारा उपरोक्त विधि निर्णयों में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत प्रस्तुत मामले के तथ्यों, परिस्थितियों के अनुकूल होने के कारण उपरोक्त विधि निर्णय में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत का लाभ परिवादिनी को प्राप्त होता है। अतः विपक्षी सं0-1 की ओर से प्रस्तुत की गयी उपरोक्त चिकित्सीय पैनल की जांच का कोई लाभ विपक्षी सं0-1 को प्राप्त नहीं होता है। विपक्षी सं0-1 की ओर से ही वरिश्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय द्वारा जारी जांच आख्या द्वारा क्षेत्राधिकारी कल्यानपुर कानपुर नगर दिनांक 12.05.07 प्रस्तुत 
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करके यह तर्क किया गया है कि चूॅकि उक्त जांच में भी विपक्षी सं0-1 को दोशी नहीं माना गया है। जबकि उक्त जांच परिवादिनी की षिकायत पर कराया गया है। अतः विपक्षी सं0-1 को दोशमुक्त किया जाये। उक्त पुलिस जांच कार्यवाही के सम्बन्ध में परिवादिनी की ओर से षपथपत्र दिनांकित 12.08.16 प्रस्तुत करके यह कहा गया है कि पुलिस रिपोर्ट में यह तो कह दिया गया है कि परिवादिनी कहीं और से एबोसन कराकर विपक्षी सं0-1 के पास आयी थी, किन्तु यह कहीं पर नहीं बताया गया है कि परिवादिनी कहांॅ से गर्भपात कराकर दिनांक 04.04.06 को विपक्षी सं0-1 के यहां आयी थी। जबकि यह कार्य पुलिस विभाग के जांच अधिकारी को करना चाहिए था। फोरम परिवादिनी की ओर से किये गये उक्त कथन से सहमत है। क्योंकि यदि परिवादिनी कहीं और से अपना गर्भपात कराकर आयी थी, तो निष्चित रूप से वह यह बता सकती थी। विपक्षी सं0-1 की ओर से कागज सं0-2/16 षासनादेष सं0-726/71 -2-2003-15वि.सि./2002 दिनांकित 24.02.03 एवं षासनादेष संख्या- 206 बी.वाई.-1206-48 दिनांकित 27.10.1950, कागज सं0-2/18 सचिव सेंट्रल कौंसिल ऑफ इण्डियन मेडिसीन नई दिल्ली के द्वारा जारी नोटीफिकेषन एवं अन्य नोटीफिकेषन दिनांक 22.01.04 दाखिल तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग एवं संसदीय प्रकरण भारत सरकार नई दिल्ली की ओर से समस्त मुख्यमंत्रियों को जारी पत्र दिनांक 16.01.04 की प्रति प्रस्तुत करके विपक्षी सं0-1 को दाखिल करके, एलोपैथिक की चिकित्सा करने के लिए तथा विपक्षी सं0-1 की डिग्री को उचित बताया गया है। परिवादिनी की ओर से उपरोक्त षासनादेषों पर नोटीफिकेषन के विरूद्ध कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये गये हैं। फोरम विपक्षी सं0-1 की षैक्षणिक डिग्री व एलोपैथिक इलाज करने की अनुमति के सम्बन्ध में कोई टिप्पणी नहीं करता है। उपरोक्तानुसार दिये गये निश्कर्श/कारण से फोरम इस मत का है कि विपक्षी सं0-1 परिवादिनी का गलत तरीके से गर्भपात करने से और उससे उत्पन्न हुई आंत व यूरेटस फटने की समस्या के लिए उत्तरदायी है।
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    विपक्षी सं0-2 की ओर से परिवादिनी के समस्त आरोपों को खारिज किया गया है और यह कहा गया है कि यदि फोरम यह पाता है कि विपक्षी सं0-2 के द्वारा परिवादिनी के आपरेषन में किसी प्रकार से कोई उपेक्षा, लापरवाही या सेवा में कमी कारित की गयी है, तो उस पर लगाये गये अर्थदण्ड की भरपाई बीमा कंपनी/विपक्षी सं0-4 करेगी। क्योंकि विपक्षी सं0-2 के द्वारा अपने व्यवसायिक कार्य के लिए विपक्षी सं0-4 से बीमा कराया गया है। परिवादिनी की ओर से विपक्षी सं0-2 पर यह आरोप लगाया गया है कि विपक्षी सं0-2 के द्वारा उसका सही तरीके से आपरेषन नहीं किया गया, इसलिए आपरेषन के पष्चात भी उसके पेट में लगाये गये टॉकों से बदबूदार रिसाव होता रहा और इसलिए विपक्षी सं0-3 के यहां जाकर विपक्षी सं0-3 से इलाज कराना पड़ा। विपक्षी सं0-2 के द्वारा भी उपरोक्त वर्णित चिकित्सा रिपोर्ट का सहारा लेते हुए विधि निर्णय 2012 ;1द्ध श्रप्ब् 120 ;।ससींंइंकद्ध श्रीमती सुदेष बनाम स्टेट ऑफ यू0पी0 एवं अन्य में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट करते हुए यह कहा गया है कि चूॅकि उक्त चिकित्साधिकारियों के पैनल के द्वारा विपक्षी सं0-2 को दोशी नहीं पाया गया है। इसलिए विपक्षी सं0-2 को परिवादिनी के द्वारा लगाये गये आरोपों से अवमुक्त किया जाये। मा0 न्यायालय द्वारा उपरोक्त विधि निर्णय में यह विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि क्लेम याचिका के समर्थन में राजकीय डाक्टरों के पैनल के द्वारा जारी चिकित्सा विषेशज्ञ की रिपोर्ट अवष्य होनी चाहिए। किन्तु इस सम्बन्ध में परिवादिनी की ओर से विधि निर्णय 2016 ;2द्ध ब्च्त् 557 ;छब्द्ध डा0 वी0के0 गुप्ता बनाम कृश्ण कुमार एवं अन्य में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है। जिसमें मा0 राश्ट्रीय आयोग द्वारा यह विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि प्रत्येक मामले में विषेशज्ञ की राय की आवष्यकता नहीं होती है। प्रस्तुत मामले के तथ्यों, परिस्थितियों के आलोक में मा0 राश्ट्रीय आयोग द्वारा 2016 में प्रतिपादित अद्यतन विधिक सिद्धांत प्रस्तुत मामले में लागू होता है। जिसका लाभ परिवादिनी को प्राप्त होता है। निष्चित रूप से फोरम का यह मत है कि विपक्षी सं0-2 के द्वारा  आपरेषन के दौरान  लापरवाही की
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गयी है। अन्यथा स्थिति में परिवादिनी को विपक्षी सं0-3 के द्वारा पुनः आपरेषन कराने की आवष्यकता न पड़ती। विपक्षी सं0-2 के द्वारा परिवादिनी का आपरेषन डा0 पी0के0 अग्रवाल के द्वारा किया जाना बताया गया है और स्वयं को मात्र उक्त आपरेषन में सहायक होना बताया गया है। किन्तु न ही विपक्षी सं0-2 ने और न ही तो परिवादिनी ने डा0 पी0के0 अग्रवाल को पक्षकार बनाया गया है। अतः डा0 पी0के0 अग्रवाल के विरूद्ध कोई आदेष पारित नहीं किया जा रहा है। फोरम का यह मत है कि चूॅकि विपक्षी सं0-2 द्वारा परिवादिनी के साथ सीधे तौर पर सेवा में कमी की गयी है। अतः विपक्षी सं0-2 परिवादिनी को क्षतिपर्ति अदायगी के लिए सीधे तौर पर उत्तरदायी है। विपक्षी सं0-2 चाहे तो विपक्षी सं0-4 से अपना क्लेम अलग से कर सकती है।
    परिवादिनी द्वारा विपक्षी सं0-3 डा0 सी0के0 सिंह के विरूद्ध एक आरोप यह लगाया गया है कि डा0 सी0के0 सिंह के द्वारा इलाज में परिवादिनी से रू0 20000.00 लिये गये है। जबकि परिवादिनी को मात्र रू0 8000.00 की रसीद दी गयी है। दूसरा आरोप परिवादिनी द्वारा विपक्षी सं0-3 के विरूद्ध यह लगाया गया है कि विपक्षी सं0-3 के द्वारा भी परिवादिनी को समुचित इलाज नहीं किया गया। परिवादिनी को आगे के इलाज के लिए संजय गांधी पी0जी0आई0 लखनऊ जाने की राय दी गयी। जबकि विपक्षी सं0-3 डा0 सी0के0 सिंह के द्वारा यह कहा गया है कि उनके द्वारा परिवादिनी का इलाज बिल्कुल ठीक प्रकार से किया गया है। उनका इलाज करने के उपरांत परिवादिनी को अन्यत्र कहीं इलाज कराने की आवष्यकता नहीं है। उपरोक्त कथन के समर्थन में उभय पक्षों द्वारा अपने-अपने षपथपत्र में किया गया है। परिवादिनी को विपक्षी सं0-3 से इलाज कराने के पष्चात यदि किसी डाक्टर से इलाज कराया गया है और जहां से परिवादिनी प्रष्नगत समस्याओं के लिए ठीक हुई है, उसके चिकित्सीय प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने चाहिए थे। किन्तु परिवादिनी द्वारा अपने उपरोक्त कथन के सम्बन्ध में षपथपत्र के अतिरिक्त अन्य कोई साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया गया है और न ही तो किसी अन्य  साक्ष्य से परिवादिनी 
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के उपरोक्त कथन की सम्पुश्टि होती है। अतः फोरम इस मत का है कि विपक्षी सं0-1 डाक्टर सी0के0 सिंह के विरूद्ध कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जा सका है। जिससे यह अवधारणा बनती है कि परिवादिनी विपक्षी सं0-3 डा0 सी0के0 सिंह के द्वारा किये गये इलाज से ठीक हुई है। विपक्षी सं0-4 की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके विपक्षी सं0-2 की ओर से प्रस्तुत किये गये जवाब दावा पर विष्वास किया गया है। किन्तु विपक्षी सं0-4 की ओर से विधि निर्णय 2014 ;2द्ध ।प्ब्ब् 1584 ;ैब्द्ध कान्ता बनाम टैगोर हर्ट केयर एण्ड रिसर्च सेंटर प्रा0लि0 एवं अन्य, विधि निर्णय 2008 ;2द्ध ज्ण्।ण्ब्ण् 167 ;छब्द्ध अजय गुप्ता बनाम डा0 प्रदीप अग्रवाल एवं अन्य में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट करते हुए यह कहा गया है कि विपक्षी सं0-2 एक योग्य डाक्टर है। उनके द्वारा आधुनिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार सभी सावधानियां लेते हुए परिवादिनी का इलाज किया गया है। अतः विपक्षी सं0-2 पर किसी प्रकार का अर्थदण्ड नहीं लगाया जा सकता। मा0 उच्चतम न्यायालय एवं मा0 राश्ट्रीय आयोग का संपूर्ण सम्मान रखते हुए स्पश्ट करना है कि निर्णय में ऊपर विपक्षी सं0-2 के संदर्भ में दिये गये निश्कर्श के आलोक में स्पश्ट होता है कि उपरोक्त विधि निर्णयों में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत प्रस्तुत मामले के तथ्यों के अनुकूल न होने के कारण उपरोक्त विधि निर्णयों में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत का लाभ विपक्षी सं0-2 एवं क्रमागत विपक्षी सं0-4 को प्राप्त नहीं होता है।
    उपरोक्तानुसार उभयपक्षों की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों का सम्यक विष्लेशणोपरान्त एवं उभयपक्षों की ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त निर्णयों के अवलोकनोपरान्त तथा उपरोक्तानुसार दिये गये कारणों से फोरम इस मत का है कि परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
    परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र के साथ मात्र 42,799.00 के बिल की छायाप्रति प्रस्तुत की गयी है। जबकि परिवादिनी द्वारा संपूर्ण चिकित्सा में व्यय की धनराषि रू0 2,50,000.00 बताया गया है। अतः ऐसी 
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स्थिति में परिवादिनी को परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किये गये बिलों की धनराषि 42,799.00 मय 8 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से परिवाद योजित करने की तिथि से तायूम वसूली तक दिलाये जाने हेतु स्वीकार किये जाने योग्य है। परिवादिनी द्वारा अपनी आर्थिक एवं मानसिक क्षतिपूर्ति के लिए रू0 2,00,000.00 की मांग की गयी है। निष्चित रूप से परिवादिनी को विपक्षी सं0-1 व 2 के द्वारा परिवादिनी का उपेक्षापूर्ण किये गये इलाज से उसे मानसिक एवं षारीरिक प्रताड़ना कारित हुई है। जिसके लिए परिवादिनी एकमुष्त क्षतिपूर्ति धनराषि रू0 1,50,000.00 दौरान मुकद्मा तायूम वसूली प्राप्त करने की अधिकारिणी है। परिवादिनी द्वारा मुकद्मा खर्चा रू0 30000.00 याचित किया गया है। फोरम का यह मत है कि परिवादिनी मामले के संचालित करने के लिए रू0 10000.00 परिवाद व्यय भी प्राप्त करने की अधिकारिणी है। जहां तक परिवादिनी की ओर से याचित अन्य उपषम का सम्बन्ध है-उक्त याचित उपषम के लिए परिवादिनी द्वारा कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण परिवादिनी द्वारा याचित अन्य उपषम के लिए परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।    
ःःःआदेषःःः
14.     उपरोक्त कारणों से परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी सं0-1 व 2 के विरूद्ध आंषिक रूप से इस अषय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षी सं0-1 व 2 परिवादिनी को, इलाज में व्यय रू0 42,799.00 मय 8 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर, से तायूम वसूली अदा करे एवं रू0 1,50,000.00 मानसिक एवं षारीरिक प्रताड़ना हेतु तथा परिवाद व्यय के रूप में रू0 10000.00 अदा करे। 
    विपक्षी सं0-3 के विरूद्ध परिवादिनी द्वारा कोई साक्ष्य न प्रस्तुत करने के कारण, विपक्षी सं0-3 को प्रस्तुत मामले से, आरोप सिद्ध न होने के कारण अवमुक्त किया जाता है। 
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    विपक्षी सं0-2 चाहे तो, उस पर अधिरोपित क्लेम, विपक्षी सं0-4 से नियमानुसार याचित कर सकती है।

  (पुरूशोत्तम सिंह)       ( सुधा यादव )         (डा0 आर0एन0 सिंह)
     वरि0सदस्य           सदस्या                   अध्यक्ष
 जिला उपभोक्ता विवाद    जिला उपभोक्ता विवाद        जिला उपभोक्ता विवाद       
     प्रतितोश फोरम          प्रतितोश फोरम                प्रतितोश फोरम
     कानपुर नगर।           कानपुर नगर                 कानपुर नगर।


    आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।

  (पुरूशोत्तम सिंह)       ( सुधा यादव )         (डा0 आर0एन0 सिंह)
     वरि0सदस्य           सदस्या                   अध्यक्ष
 जिला उपभोक्ता विवाद    जिला उपभोक्ता विवाद        जिला उपभोक्ता विवाद       
     प्रतितोश फोरम          प्रतितोश फोरम                प्रतितोश फोरम
     कानपुर नगर।           कानपुर नगर                 कानपुर नगर।


 

 
 
[HON'BLE MR. RN. SINGH]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Sudha Yadav]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. PURUSHOTTAM SINGH]
MEMBER

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