Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :- 742/2010 (जिला उपभोक्ता आयोग, झांसी द्वारा परिवाद सं0-174/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 01/04/2010 के विरूद्ध) Smt. Geeta W/O Shri Hemant Rajput R/O House No. B. B-118, Deen Dayal Nagar, Jhansi. - Appellant
Versus Dr. Jyoti Chaube M.D. (Radio Diagnosis) Shanti Memorial Clinic Santa Kunj, In front of Ware House, Shivpuri Road Jhansi. समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री आलोक सिन्हा प्रत्यर्थी की ओर विद्वान अधिवक्ता:- श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव दिनांक:- 21.11.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह अपील जिला उपभोक्ता आयोग, झांसी द्वारा परिवाद सं0-174/2005 श्रीमती गीता बनाम डा0 ज्योति चौबे में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 01/04/2010 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने इलाज के दौरान सेवा में कमी न मानते हुए परिवाद खारिज किया है।
- परिवाद के तथ्यों के अनुसार दिनांक 07.11.2005 को डॉक्टर ज्योति चौबे को दिखाया गया, जिनके द्वारा अल्ट्रासाउण्ड किया गया और अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट मे एक गर्भ में शिशु होना बताया गया। यह रिपोर्ट तथा अल्ट्रासाउण्ड महिला चिकित्सक को दिखाया गया, जिन्होंने डा0 ज्योति की रिपोर्ट के आधार पर एक शिशु के अनुसार दवायें बतायीं, जिन्हें परिवादिनी सेवन करती रही, परंतु दवाइयों के सेवन ने 29.11.2005 घबराहट, खून का रिसाव एवं अन्य तकलीफें होने लगी तब नर्सिंग होम में चेकअप कराया, परंतु कोई आराम नहीं हुआ, परंतु इसके बाद जीवन ज्योति हॉस्पिटल के डॉक्टर जगदीश बोहरे एम0एस0 को दिनांक 01.12.2005 को दिखाया, जिनके द्वारा गर्भस्थ शिशु की जांच करने के निर्देश दिये। दिनांक 01.12.2005 को जांच कराने पर पाया गया कि गर्भ में 2 शिशु मौजूद हैं, इसके बाद प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्टर जगदीश बोहरे के निर्देशन में दिनांक 01.11.2005 को जीवन ज्योति हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, इसके बाद दोनों शिशुओं का एबार्शन दिनांक 03.11.2005 को हो गया और वादिनी मां के सुख से वंचित रह गयी। इलाज में 20,000/-रू0 खर्च हुआ। डॉक्टर ज्योति चौबे द्वारा गर्भस्थ शिशु के संबंध में गलत रिपोर्ट दी गयी और 2 के बजाए 1 शिशु का होना बताया, जिस कारण परिवादिनी उचित देखभाल के अभाव मे मातृत्व सुख से वंचित हो गयी।
- विपक्षी का कथन है कि वह विशेषज्ञ रेडियोलॉजिस्ट है। परिवादिनी ने डॉक्टर अलका प्रकाश का कोई पर्चा दाखिल नहीं किया है, जो पर्चे दाखिल किये गये हैं, उनके अनुसार संभवत: एर्बाशन रोकने के संबंध में दवायें लिखी गयी हैं। परिवादिनी भली-भांति जानती थी कि उसकी गर्भावस्था सही नहीं है। विपक्षी द्वारा केवल अल्ट्रासाउण्ड कराने से पूर्व की दवा लिखी गयी है। डॉक्टर अलका प्रकाश द्वारा जो सावधानी बतायी गयी है, उनका पालन परिवादिनी द्वारा नहीं किया गया। डॉक्टर बोहरे के पर्चे के अनुसार एर्बाशन रोकने की दवा लिखी गयी थी। डॉक्टर मनीष गुप्ता रेडियोलॉजिस्ट नहीं है, जबकि अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट केवल रेडियोलॉजिस्ट दे सकता है। डॉक्टर मनीष गुप्ता के पास केवल रूस के कॉलेज से प्राप्त एम0बी0 डिग्री है, जो एम0बी0बी0एस0 के बराबर है। इस रिपोर्ट को विशुद्ध रिपोर्ट नहीं माना जा सकता और यह तथ्य स्थापित नहीं है कि परिवादिनी के गर्भ में 2 शिशु थे। दिनांक 03.12.2005 के मुक्ति प्रमाण पत्र में यह अंकित नहीं है कि 2 गर्भस्थ शिशु का एबार्शन हुआ है, इसलिए यह तथ्य स्थापित ही नहीं है कि परिवादिनी गर्भ में 2 शिशु थे। अत: विपक्षी द्वारा दी गयी रिपोर्ट त्रुटिपूर्ण नहीं है। इसी तथ्य को जिला उपभोक्ता आयोग ने स्थापित मानते हुए परिवाद खारिज किया है।
- इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील में वर्णित तथ्य तथा मौखिक बहस का सार यह है कि जिला उपभोक्ता आयोग ने साक्ष्य के विपरीत निर्णय पारित किया है। परिवादिनी ने डॉक्टर अलका प्रकाश की सलाह पर अल्ट्रासाउण्ड कराया था, जिसमें एकल भ्रूण बताया गया, यह सभी रिपोर्ट डॉक्टर अलका प्रकाश को दिखाया गया, परंतु यथार्थ में गर्भ में 2 भ्रूण थे, इसके लिए उचित दवाओं तथा सावधानी की आवश्यकता थी, परंतु इस सूचना के अभाव में उचित दवायें तथा सावधानी नहीं बरती गयी, इसलिए परिवादिनी को असहनीय दर्द तथा पीड़ा हुई एवं दोनों गर्भस्थ शिशुओं का एबार्शन हो गया। डॉक्टर मनीष गुप्ता ने अपनी रिपोर्ट में 2 भ्रूण होने का स्पष्ट उल्लेख किया है, इसलिए विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी है।
- पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत किये गये अभिवचनों, जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय तथा अपील के ज्ञापन एवं मौखिक तर्कों के सार के आधार पर इस अपील के विनिश्चय के लिए एक विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या डॉक्टर ज्योति चौबे द्वारा लापरवाही के साथ अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट तैयार की गयी। इस प्रश्न का उत्तर देने के उद्देश्य से अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से डॉक्टर मनीष गुप्ता की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिनके द्वारा किये गये अल्ट्रासाउण्ड में दो भ्रूण होने का उल्लेख किया है। डॉक्टर ज्योति चौबे की अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट दस्तावेज सं 30 पर मौजूद है, जिसमें 16 सप्ताह 3 दिन का एक भ्रूण परिवादिनी के गर्भ में दर्शाया गया है। प्रश्न यह उठता है कि यदि यह मान लिया जाए कि दूसरे अल्ट्रासाउण्ड में परिवादिनी के गर्भाशय में 2 भ्रूण होना पाया गया है तब भी यह प्रश्न उठता है कि क्या प्रत्यर्थी के स्तर से कोई लापरवाही बरती गयी या प्रत्यर्थी के किसी कार्य की वजह से परिवादिनी को एबार्शन कारित हुआ है? इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक है। प्रत्यर्थी द्वारा जो अल्ट्रासाउण्ड किया गया है, उस अल्ट्रासाउण्ड में एक भ्रूण दिखाया गया है, इसलिए परिवादिनी पर गर्भाशय में एक भ्रूण होने के कारण जो दवाऐं ली गयी या जो सावधानी बरती गयी, उससे अधिक दवा असावधानी बरतने की कोई आवश्यकता परिवादिनी को उत्पन्न होती। इस संबंध में कोई विशेषज्ञ साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है, इसलिए यह निर्धारण करना संभव नहीं है कि यदि परिवादिनी के गर्भ में 1 के स्थान पर 2 भ्रूण होते तब विशेष प्रकार की दवाओं की आवश्यकता होती या विशेष सावधानी परिवादिनी द्वारा बरती जाती, इसके विपरीत यह तथ्य स्थापित है कि परिवादिनी का प्रारंभ से ही गर्भ संबंधी बीमारी मौजूद थी, इसलिए विवाह के लम्बे अंतराल के पश्चात इस गर्भाधान एबार्शन विपक्षी डॉक्टर ज्योति चौबे का कोई योगदान नहीं माना जा सकता। डॉक्टर मनीष गुप्ता ने अपनी रिपोर्ट में यदि 2 भ्रूण होने का कथन किया है तब तीसरी रिपोर्ट प्राप्त की जानी चाहिए थी क्योंकि दोनों मे से कोई भी एक रिपोर्ट सही हो सकती है और एक रिपोर्ट गलत हो सकती है। अत: इस स्थिति में यह नहीं माना जा सकता है कि केवल डॉक्टर ज्योति चौबे द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट गलत और डॉक्टर मनीष गुप्ता द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट सही है, जबकि विशेषज्ञता की दृष्टि से डॉक्टर ज्योति चौबे एक विशेषज्ञ रेडियोलॉजिस्ट है, जबकि डॉक्टर मनीष गुप्ता भारत से डिग्री प्राप्त डॉक्टर भी नहीं है, यह भी तथ्य स्थापित नहीं है कि भारत में प्रेक्टिस करने के लिए रसिया से डिग्री लेने के पश्चात कुशलता की परीक्षा प्राप्त की है या नहीं, इसलिए डॉक्टर ज्योति चौबे की रिपोर्ट के सामने केवल मनीष गुप्ता की रिपोर्ट को सही मानने का निष्कर्ष देना उचित नहीं है जब तक कि एक तीसरी रिपोर्ट पत्रावली पर मौजूद न हो। तीसरी रिपोर्ट के आधार पर यह स्थापित हो सकता था कि प्रथम दो रिपोर्ट में से कौन सी रिपोर्ट सही है। 2 बच्चों के एबार्शन कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है।
आदेश अपील खारिज की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश पुष्ट किया जाता है। उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे। प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2 | |