Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/1516

Mahindra & Mahindra Financial Service - Complainant(s)

Versus

Jwala Singh - Opp.Party(s)

Gopal Jee sarivastav

14 Aug 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/1516
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Mahindra & Mahindra Financial Service
-
...........Appellant(s)
Versus
1. Jwala Singh
-
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Chandra Bhal Srivastava PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Jugul Kishor MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-1516/2013

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, द्वितीय (अतिरिक्‍त्‍ पीठ) लखनऊ द्वारा परिवाद संख्‍या-445/2009 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 27.05.2013 के विरूद्ध)

 

महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेस लि0, महेन्‍द्रा टावर द्वितीय तल, गोपाल तीरथ प्‍लाजा, फैजाबाद रोड, लखनऊ।

 

अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1                                           

बनाम्

1. ज्‍वाला सिंह पुत्र सूरज बक्‍स सिंह, निवासी सराय शजादी, बंथरा, जिला लखनऊ।

2. नेशनल इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लिमिटेड, ब्रांच आफिस-II, सी-1759-सी-ब्‍लाक क्रासिंग, इन्दिरा नगर, लखनऊ।

               प्रत्‍यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी सं0-2                                              

समक्ष:-

1. माननीय श्री चन्‍द्र भाल श्रीवास्‍तव, पीठासीन सदस्‍य।

2. माननीय श्री उदय शंकर अवस्‍थी, सदस्‍य।

3. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित  : श्री गोपाल जी श्रीवास्‍तव, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित    : श्री एस0पी0 पाण्‍डेय, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित    : कोई नहीं।

दिनांक 24.02.2016

माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

     यह अपील, जिला फोरम, द्वितीय (अतिरिक्‍त्‍ पीठ) लखनऊ द्वारा परिवाद संख्‍या-445/2009 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 27.05.2013 के विरूद्ध योजित की गयी है, जिसके अन्‍तर्गत जिला फोरम ने निम्‍नवत् आदेश पारित किया है :-

     '' परिवादी का परिवाद विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध निर्णीत किया जाता है और आदेश दिया जाता है कि विपक्षी सं0-1 परिवादी को निर्णय से दो माह के भीतर बीमित धनराशि 3,79,564/- रू0 दावा दायर करने की तिथि से रकम अदा होने की तिथि तक मय 9 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के हिसाब से अदा करेगा तथा 40,000/-रू0 मानसिक कष्‍ट व 3,000/- रू0 वाद व्‍यय भी अदा करेगा। ''

       अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री गोपाल जी श्रीवास्‍तव तथा प्रत्‍यर्थी सं0-1 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री एस0पी0 पाण्‍डेय उपस्थित हैं। प्रत्‍यर्थी सं0-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। अत: दोनों पक्षों की बहस सुनी गयी एवं पत्रावली का परिशीलन किया गया।

     पत्रावली के परिशीलन से यह स्‍पष्‍ट होता है कि परिवादी/प्रत्‍यर्थी सं0-1 ने महेन्‍द्रा बोलेरो गाड़ी जून 2005 में क्रय करते समय रू0 50,000/- मार्जिन मनी के रूप में जमा किया तथा रू0 3,71,735/- का ऋण विपक्षी सं0-1/अपीलार्थी द्वारा दिया गया तथा यह भी आश्‍वासन दिया गया कि जब तक गाड़ी की किश्‍तें पूरी तरह चुकता नहीं हो जायेंगी, तब तक उनकी फाइनेन्‍स कम्‍पनी उक्‍त गाड़ी का सम्‍पूर्ण बीमा करायेगी। उक्‍त गाड़ी की बीमा करवाने हेतु विपक्षी सं0-1/अपीलार्थी के प्रबन्‍धक ने दिनांक 23.06.2005 को परिवादी/प्रत्‍यर्थी सं0-1 से रू0 15,699/- लेकर दिनांक 23.08.2005 से दिनांक 22.06.2006 तक का बीमा विपक्षी सं0-2/प्रत्‍यर्थी सं0-2 नेशनल इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0 द्वारा करा दिया और अगले वर्ष के बीमा हेतु दिनांक 22.06.2006 को विपक्षी सं0-1/अपीलार्थी के मैनेजर को परिवादी/प्रत्‍यर्थी सं0-1 ने दोबारा रू0 15,699/- बीमा हेतु दिया, परन्‍तु उक्‍त गाड़ी बीमा अवधि में ही दिनांक 23.04.2007 को चोरी हो गयी, जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट परिवादी/प्रत्‍यर्थी सं0-1 ने उसी दिन दिनांक 23.04.2007 को ही मु0अ0सं0 137/2007 में धारा 379 आईपीसी के तहत दर्ज करायी थी। विपक्षी सं0-1/अपीलार्थी ने परिवादी को उक्‍त गाड़ी के बीमा के दो कागज दिये, जिन पर लिखा था उक्‍त गाड़ी का बीमा दिनांक 22.06.2006 की बजाय दिनांक 23.12.2007 से दिनांक 22.12.2007 तक के लिये करवाया गया था, जबकि परिवादी ने अगले वर्ष के बीमा हेतु दिनांक 22.06.2006 को ही रू0 15,699/- का भुगतान कर दिया था, इसके बावजूद विपक्षी सं0-1/अपीलर्थी ने धोखाधड़ी करके दिनांक 23.12.2006 से दिनांक 22.12.2007 तक के लिए तृतीय पक्ष का बीमा कराया था, जबकि परिवादी/प्रत्‍यर्थी सं0-1 ने प्रथम पक्ष बीमा का भुगतान किया था। इस संबंम मे परिवादी/प्रत्‍यर्थी सं0-1 ने विपक्षी सं0-1/अपीलार्थी से बात की तो कोई संतोषजनक उत्‍तर नहीं मिला, जिससे क्षुब्‍ध होकर प्रश्‍नगत परिवाद योजित किया गया। विपक्षी सं0-1/अपीलार्थी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद पत्र का विरोध करते हुए यह अभिवचित किया कि परिवादी ने रू0 50,000/- मर्जिन मनी वाहन विक्रेता को अदा किया है तथा रू0 3,80,000/- का ऋण परिवादी ने समस्‍त नियम व शर्तों को जानबूझकर ही विपक्षी सं0-1/अपीलार्थी से लिया है। विपक्षी सं0-1/अपीलार्थी ने यह भी अभिवचित किया कि उसका प्रश्‍नगत वाहन के बीमा के संबंध में कोई रोल नहीं है। वह एक फाइनेन्‍स कम्‍पनी है और केवल ऋण प्रदान करने का काम करती है। इसके अतिरिक्‍त्‍ यह भी अभिवचित किया गया कि परिवादी ने कभी भी किश्‍तें समय पर अदा नहीं की है और मार्च 2007 से उसने किश्‍तें देना बंद कर दिया है। अत: विपक्षी सं0-1 की ओर से कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है। विपक्षी सं0-2/प्रत्‍यर्थी सं0-2 ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद पत्र का विरोध करते हुए मुख्‍यत: यह अभिवचित किया कि विपक्षी सं0-1 द्वारा उससे केवल रू0 926/- विवादित वाहन के लिये तृतीय पक्ष का बीमा दिनांक 23.12.2006 से दिनांक 22.12.2007 तक कराने हेतु दिया गया। अत: विपक्षी सं0-2 की ओर से कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है। जिला फोरम ने पत्रावली का परिशीलन करने के उपरान्‍त उपरोक्‍त निर्णय पारित किया है।

     अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री गोपाल जी श्रीवास्‍तव द्वारा जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27.05.2013 के विरूद्ध यह कहते हुए अपील प्रस्‍तुत की गयी है कि अपीलार्थी एक महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा फाइनेन्सियल कम्‍पनी है, जिसने सिर्फ परिवादी को ऋण रू0 3,71,735/- दिया था और परिवादी ने 50,000/- रू0 की मार्जिन मनी वाहन विक्रेता को अदा की थी और ऋण लेने के पश्‍चात परिवादी द्वारा ही अपने वाहन का बीमा करवाता था। परिवादी को रू0 3,71,735/- का ऋण देने के पश्‍चात रू0 60818/- का फाइनेन्‍स चार्ज लगाकर पूर्ण संतुष्टि में वाहन दे दिया था, जिसकी प्रतिमाह किश्‍त रू0 9,553/- थी, जिसे परिवादी ने कभी भी समय से अदा नहीं किया तथा मार्च 2007 से किश्‍तें अदा नहीं की हैं। परिवादी का रू0 1,07,761/- अदा करने हेतु एक विधिक नोटिस भेजी गयी, जिसे परिवादी ने अदा नहीं किया उसके उपरान्‍त विपक्षी ने रू0 1,26,927/- जमा करने हेतु एक विधिक नोटिस भेजी गयी उसको भी परिवादी द्वारा जमा नहीं किया गया। इस प्रकार परिवादी द्वारा अभी तक ऋण की पूरी किश्‍तें भी पूरी तरह अदा नहीं की हैं। अपीलार्थी के विद्वान अध्विाक्‍ता द्वारा यह भी तर्क किया गया कि अपीलार्थी और परिवादी/प्रत्‍यर्थी सं0-1 के बीच ऋण संविदा दिनांक 30.06.2005 को हुई थी, जिसका स्‍पष्‍टया उल्‍लंघन परिवादी द्वारा किया गया है। अपीलार्थी द्वारा यह भी तर्क किया गया कि परिवादी को ऋण अदा करने हेतु एक विधिक नोटिस दिनांक 06.12.2007 को भेजी गयी और कहा गया कि महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा फाईनेन्सियल सर्विसेज लि0 एवं परिवादी/प्रत्‍यर्थी के मध्‍य दिनांक 01.07.2005 को एक हायर परर्चेज/लोन अनुबन्‍ध सं0-328708 निष्‍पादति हुआ था, जिसमें हायरर एवं प्रेषिती नं0 2 गारण्‍टर हैं, जिसके अनुशरण में आपको एक वाहन महेन्‍द्रा बोलेरो GLX 2 WD MM   खरीदने के लिए हायरर परर्चेज सिस्‍टम के तहत वित्‍तीय सहायता प्रदान की गयी है और दिनांक 01.07.2005 से कुल 46 किश्‍तों में रू0 4,40,818/- हायर चार्ज संयुक्‍तत: या पृथक पृथक अदा करना था। उक्‍त नोटिस में स्‍पष्‍ट लिखा है कि वाहन 107;761/- व अतिरिक्‍त अविलम्‍ब शुल्‍क कम्‍पनी को अदा करें तथा भविष्‍य में नियमित किश्‍तों की अदायगी सुनिश्चित करें, परन्‍तु परिवादी द्वारा ऐसा न करके जिला फोरम के समक्ष गाड़ी की चोरी की क्षतिपूर्ति पाने हेतु परिवाद प्रस्‍तुत कर दिया और जिला फोरम ने अपीलार्थी के विरूद्ध रू0 बीमित धनराशि 3,79,564/- रू0 दावा दायर करने की तिथि से रकम अदा होने की तिथि तक मय 9 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के हिसाब से अदा करने तथा 40,000/-रू0 मानसिक कष्‍ट व 3,000/- रू0 वाद व्‍यय भी अदा करने का आदेश पारित कर दिया, जो कि विधि विरूद्ध है।

     जिस पर प्रत्‍यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्‍ता श्री एस0पी0 पाण्‍डेय द्वारा अवगत कराया गया कि महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा फाइनेनिस्‍यल सर्विसेज कम्‍पनी के प्रबन्‍धक परिवादी के बंथरा स्थित ढाबे पर आये और उनकी बोलेरो गाड़ी को क्रय करने हेतु कहा और यह भी आश्‍वासन दिया कि कम्‍पनी की ओर से 03 वर्ष की आसान किश्‍तों में परिवादी को ऋण देगा, जिसे वह आसान किश्‍तों में अदा कर सकता है तथा ब्‍याज की धनराशि भी बहुत कम (06 प्रतिशत) देय है, अत: महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेस कम्‍पनी के प्रबन्‍धक के आश्‍वासन पर परिवादी ने बोलेरो गाड़ी के लिए रू0 50,000/- मार्जिन मनी के रूप में वाहन विक्रेता के पास जमा किये। अपीलाथी कम्‍पनी ने ऋण रू0 03,71,735/- स्‍वीकृत किया तथा ऋण लेकर मई 2005 में क्रय की। गाड़ी क्रय करते समय अपीलार्थी कम्‍पनी की ओर से दिनांक 23.06.2005 को परिवादी से रू0 15,669/- लेकर दिनांक 23.08.2005 से दिनांक 22.06.2006 तक के लिए गाड़ी का बीमा विपक्षी सं0-2 नेशनल इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0 से कराया और इसके पश्‍चात अगले वर्ष के लिए परिवादी से रू0 15,669/- लिया गया था। इसी बीच परिवादी की गाड़ी दिनांक 23.04.2007 को चोरी हो गयी। परिवादी द्वारा जब चोरी गयी गाड़ी की क्षतिपूर्ति हेतु कागजात की जानकारी की गयी तब पता चला कि अपीलार्थी कम्‍पनी के प्रबन्‍धक ने दिनांक 22.06.2006 के बजाय परिवादी की गाड़ी का बीमा दिनांक 23.12.2006 को एक वर्ष के लिए दिनांक 22.12.2007 तक कराया था तथा बीमा किश्‍त रू0 15,669/- के बजाय मात्र रू0 926/- जमा करते हुए थर्ड पार्टी का बीमा कराया गया था, जो कि परिवादी के साथ स्‍पष्‍टया धोखाधड़ी की गयी है। प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह भी अवगत कराया गया कि जिला फोरम के समक्ष नेशनल इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0 की ओर से दाखिल लिखित अभिकथन में यह स्‍वीकार किया गया है कि अपीलार्थी कम्‍पनी की ओर से मात्र रू0 926/- वाहन सं0- UP41 F 1808 का थर्ड पार्टी का बीमा कराने हेतु दिनांक 23.12.2006 को दिया गया और बीमा दिनांक 22.12.2007 तक के लिए कराया गया, इसलिए इसमें बीमा कम्‍पनी की कोई देयता नहीं बनती है प्रश्‍नगत बीमा थर्ड पार्टी का कराया गया था।

     दोनों विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्कों के परिप्रेक्ष्‍य में पत्रावली का परिशीलन किया गया, जिसमें पाया गया कि वाहन सं0- UP41 F 1808 जो श्री ज्‍वाला सिंह के नाम से पंजीकृत है एवं महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा बोलेरो जीप के रूप में दर्ज है। प्रश्‍नगत वाहन का हाईपोथिकेशन महेन्‍द्रा एण्‍ड महेनद्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज कम्‍पनी को प्राप्‍त है और महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज कम्‍पनी द्वारा दिनांक 23.12.2006 से दिनांक 22.12.2007 तक के लिए थर्ड पार्टी का बीमा कराया गया था। बीमा अवधि के दौरान ही परिवादी का प्रश्‍नगत वाहन दिनांक 23.04.2007 को चोरी चला गया। प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा अपने कथन के समर्थन में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा I (2014) CPJ 262 (NC) Indian Overseas & Bank Vs Ms. Sheba & Anr. में पारित निम्‍नलिखित विधिक सिद्धान्‍त का उद्धरण प्रस्‍तुत किया, जो कि निम्‍नवत है :-

     " Consumer Protection Act, 1986-Section 2(1)(g), 2(1)(d), 21 (b)-Insurance - Policies taken through Bank-Liability of Bank-Loan advanced by taking insurance as security-Loss suffered in fire accident - Bank denied liability for cost of ice-cream stocked in cold storage-claim repudiated-Deficiency in service-District Forum allowed complaint-State Commission dismissed appeal-Hence revision-Petitioner had as security for the loan advanced taken insurance of machinery and accessories-Petitioner/Bank had assured complainant that all her interest and also the interest of bank are fully protected-Complainant has correctly stated that she never signed any proposal form or taken any policy personally and that she had never received policies with terms and conditions-Bank and Insurance Company both were rightly directed to pay compensation."

     इसके अतिरिक्‍त प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा अपने कथन के समर्थन में मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा  (1999) 8 Supreme Court Cases 229 Delhi Electric Supply Undertaking  Vs Basanti Devi and Another में पारित निम्‍नलिखित विधिक सिद्धान्‍त का उद्धरण प्रस्‍तुत किया, जो कि निम्‍नवत है :-

          " Agent in Section 182 means a person employed to do any act for another, or to represent another in dealings with third persons and the person for whom such act is done, or who is so represented, is called the principal.  Under Section 185 no consideration is necessary to create an agency.  As far as Bhim Singh is concerned, there was no obligation cast on him to pay premium direct to LIC.  Under the agreement between LIC and DESU, premium was payable to DESU who was to deduct every month from the salary of Bhim Singh and to transmit the same to LIC.  DESU had, therefore, implied authority to collect premium from Bhim Singh on behalf of LIC.  There was, thus, valid payment of premium by Bhim Singh.  The authority of DESU to collect premium on behalf of LIC is implied.  In any case, DESU had ostensible authority to collect premium from Bhim Singh on behalf of LIC.  So far as Bhim Siingh is concerned DESU was an agent of LIC to collect premium on its behalf. "

          प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता ने अपने कथन के समर्थन में प्रत्‍यर्थी एवं अपीलार्थी, महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लि0 के बीच एग्रीमेंट हुआ, जिसके मुख्‍य अंश निम्‍नवत् है :-

     " The Borrower shall at his own cost insure and keep insured with an insurance company of the Lender's choice the Product during the entire tenure of the contract and also till it has paid all amounts under this agreement to the satisfaction of the Lenders dully insured covering comprehensive risks including but not limited to civil commotion riot, flood, tempest, earthquake, and unlimited third party risk.  If the Borrower falls to so insure the Product or to keep it so insured, the Lender, without prejudice to any of its rights under this Agreement in consequence of the said failure though not bound, may Insure the Product and keep it insured for which the Borrower shall reimburse to the Lender on demand all charges and expenses as may be incurred for such insurance by the Lender.  The Borrower shall produce evidence of such insurance as the Lender may require.  The Borrower hereby irrevocably appoints the Lender as his agent for the purpose of receiving all moneys payable under the said policy of insurance and to do all acts for that purpose and giving discharge thereof and the Lender may notify the insurers of this conditions.

          The Borrower shall as per the request of the Lender give to the Lender post dated cheques (PDC's) favoring the insurance company of the Lenders choice in respect of the premia payable for the renewals of insurance required to be effected punctually so as to ensure that the insurance policy remains in force, and valid throughout the tenures of this agreement, and the Borrower shall ensure that the cheques are not dishonored for any reason whatsoever.  The PCD"s to be given by the Borrower to the Lender may be at the Lender"s dierection be in favour of the Lender towards the amount of the insurance premium, Payable, Monthly/Quarterly/Semi Annually/Annually so as to enable the Lender to keep the Product insured.  However it is agreed and confirmed by the Borrower that notwithstanding the furnishing of the PCD"s  for the insurance premium directly in favour of the insurance company or the Lender the obligation of the Borrower to keep the Product insured as per the provisions of Clause 4.1 above is the absolute obligation and duty of the Borrower and by giving the PCD"s as hereinabove stated, does in no way absolve the Borrower from ensuring that the Product is properly insured and keep it so insured as stated in clause 4.1 hereinabove.

          The Borrower shall use the Product of himself and through his servants and agents strictly in accordance with the terms and conditions of the insurance policy and not do permit to be done any act or thing which may render such insurance invalid and use the Product legitimately and not engage in any unlawful or illegal activity by which the ownership or custody of the Product is in any way jeopardized."

          प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह भी कहा गया कि अपीलार्थी, महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लि0 एवं प्रत्‍यर्थी के बीच हुए एग्रीमेंट के तहत यह तथ्‍य निर्विवाद था कि यदि प्रत्‍यर्थी वाहन का बीमा नहीं कराता है तो बीमा कराने की जिम्‍मेदारी अपीलार्थी, महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लि0 की होगी। उक्‍त्‍ शर्तों के अनुसार अपीलार्थी, महेन्‍द्रा एण्‍ड महेन्‍द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लि0 ने प्रश्‍नगत वाहन का बीमा तो कराया, परन्‍तु बीमा थर्ड पार्टी का कराया गया, जो कि अनुचित व्‍यापार पद्धति में आता है, क्‍योंकि वाहन सिर्फ दो वर्ष पुराना था और दो वर्ष पुराने वाहन का बीमा थर्ड पार्टी का कराया गया, जो कि नियम व विधि विरूद्ध है। स्‍पष्‍टया यह कृत्‍य अपीलार्थी की सेवा में कमी का द्योतक है। तदनुसार पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों एवं विधिक सिद्धान्‍त तथा लोन एग्रीमेंट का परिशीलन करने के उपरान्‍त हम जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय में कोई विधिक त्रुटि नहीं पाते हैं, अत: अपील निरस्‍त होने योग्‍य है।

आदेश

प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है। जिला फोरम, द्वितीय (अतिरिक्‍त्‍ पीठ) लखनऊ द्वारा परिवाद संख्‍या-445/2009 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 27.05.2013 की पुष्टि की जाती है।

पक्षकारान अपना-अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वंय वहन करेंगे।

 

 

(चन्‍द्र भाल श्रीवास्‍तव)     (उदय शंकर अवस्‍थी)       (जुगुल किशोर)

     पीठासीन सदस्‍य               सदस्‍य                   सदस्‍य

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0

    कोर्ट-1

 
 
[HON'BLE MR. Chandra Bhal Srivastava]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Jugul Kishor]
MEMBER

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