Rajasthan

Nagaur

CC/226/2014

Ms Laxmi Stone - Complainant(s)

Versus

JVVNL - Opp.Party(s)

Sh RK Dhaka

10 May 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/226/2014
 
1. Ms Laxmi Stone
Ladnu,Nagaur
...........Complainant(s)
Versus
1. JVVNL
Jodhpur
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal PRESIDENT
 HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya MEMBER
 HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya MEMBER
 
For the Complainant:Sh RK Dhaka, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर

 

परिवाद सं. 226/2014

 

मैसर्स लक्ष्मी स्टोन, प्रोपराईटर, जगदीष राम पुत्र श्री अर्जुनराम, जाति-जाट, निवासी-सुनारी, तहसील-लाडनूं, जिला- नागौर (राज.)।                                                                                                                                                                                                                                                                               -परिवादी     

1.            अध्यक्ष/प्रबन्ध निदेषक, जे.वी.वी.एन.एल., जोधपुर।

2.            अधीक्षण अभियंता, जे.वी.वी.एन.एल., चुरू, तहसील व जिला-चुरू।

3.            सहायक अभियंता, जे.वी.वी.एन.एल., लाडनूं, तहसील-लाडनूं व जिला-नागौर।

                                               

                                                    -अप्रार्थीगण 

 

समक्षः

1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।

2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।

3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।

 

उपस्थितः

1.            श्री रमेष कुमार ढाका, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।

2.            श्री ठाकुर प्रसाद राठी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।

 

    अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986

 

                                  निर्णय                           दिनांक 10.05.2016

 

 

1.            परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी मैसर्स लक्ष्मी स्टोन का प्रोपराईटर है, जिसने अप्रार्थीगण से एस.आई. श्रेणी का विद्युत कनेक्षन ले रखा है। जिसके उपखण्ड 1935 एवं खाता संख्या 1801-0352 है। परिवादी, अप्रार्थीगण द्वारा जारी किये गये बिलों का समय-समय पर भुगतान करता आ रहा है। इसके बावजूद भी परिवादी को दिनांक 27.06.2014 को अप्रार्थीगण द्वारा भेजा गया नोटिस मिला, जिसमें 2,63,664/- रूपये बकाया होना बताया तथा इस बारे में आपति प्रस्तुत करने का कहा गया। परिवादी को उक्त नोटिस मिलने पर वह अप्रार्थी संख्या 3 के पास गया तथा लिखित में आपति पेष करते हुए बताया कि उसके यहां लगा मीटर संख्या 580411 लम्बे समय से खराब था जिसकी जानकारी निगम को षुरू से ही थी फिर भी मीटर निगम द्वारा क्यों नहीं बदला गया, इसके अलावा दूसरा मीटर संख्या 9352500 लगाया गया, जिसका डिस्प्ले खराब है तो उसको बदलने की जिम्मेदारी भी निगम की थी तथा मीटर खराब होने पर औसत बिल दिया गया, जिसका भुगतान परिवादी लगातार करता आ रहा है। उसके द्वारा लगाई गई मषीन ग्रामीण क्षेत्र में है, जो महिने में औसतन 20 से 24 घण्टे ही चलती है। परिवादी खराब मीटर संख्या 580411 में उपलब्ध डाटा के अनुसार राषि जमा कराने को तैयार है। मीटर खराब होने की स्थिति में पिछले वर्श के उसी माह या पिछले साल के एवरेज रीडिंग से बिलिंग का प्रावधान है या फिर नया मीटर लगाकर आगे के आगे के 3 या 4 माह का एवरेज लिया जा सकता है। जिसे परिवादी जमा कराने को तैयार है। परिवादी के यहां पर लगे मीटर संख्या 580411 को उतारते समय न तो अप्रार्थी संख्या 3 ने कपडे की थैली में डालकर सील मोहर किया और न ही नियमानुसार उपभोक्ता को नोटिस देकर उसके सामने जांच की गई। अप्रार्थीगण ने गलत आंकडे बनाकर परिवादी को 2,63,664/- रूपये का नोटिस जारी किया है।

परिवादी की ओर से जवाब पेष किये जाने के बावजूद अप्रार्थीगण ने उसके यहां कोई जांच नहीं की और न ही गलत आधार पर भेजे गये नोटिस को निरस्त किया तथा उक्त राषि को आगे के बिलों में जोडकर भेज दिया गया। जबकि नियमानुसार अप्रार्थीगण को परिवादी की सुनवाई करनी चाहिए थी। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य गंभीर सेवा दोश की श्रेणी में आता है।

इन सबके बावजूद अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से परिवादी को दिनांक 14.11.2014 को एक और नोटिस भेजा गया, जिसमें बताया कि उक्त राषि का भुगतान कर दिया जाए अन्यथा परिवादी का विद्युत कनेक्षन विच्छेद कर दिया जायेगा। इस प्रकार गलत रूप से भेजे गये नोटिस के आधार पर अप्रार्थीगण जबरन राषि वसूलने को आमाद है तथा अप्रार्थीगण ने उक्त राषि को परिवादी के सितम्बर, 2014 एवं नवम्बर, 2014 के बिलों में जोडकर भेज दिया है। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा दोश की तारीफ में आता है। अतः अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी को गलत तौर पर 2,63,664/- रूपये बकाया बताते हुए दिनांक 27.06.2014 को भेजे गये नोटिस तथा दिनांक 14.11.2014 व आगामी बिलों में अंकित राषि को निरस्त किया जावे। इसके अलावा परिवाद में अंकितानुसार अनुतोश दिलाये जावे।

 

2.            अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि परिवादी को सही नोटिस दिया गया है। जो किसी भी सूरत में निरस्त किये जाने योग्य नहीं है। परिवादी ने अप्रार्थीगण की ओर से जारी नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया है। अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी के यहां से लगे मीटर संख्या 580411 को उतारा ही नहीं गया था कारण कि उक्त मीटर परिवादी के यहां स्थापित सुपर ट्रांसफाॅर्मर में लगा है जो आज दिन भी इसी ट्रांसफाॅर्मर में लगा हुआ है।

अप्रार्थीगण ने जवाब में यह भी कहा कि परिवादी के यहां लगा विद्युत मीटर लम्बे समय तक खराब था, लेकिन परिवादी ने इसकी कोई सूचना अप्रार्थीगण के कार्यालय में नहीं दी। तत्पष्चात् आॅडिट द्वारा निरीक्षण करने पर मामला पकड में आया तथा आॅडिट पार्टी ने गणना कर 2,63,663.70 रूपये की राषि बकाया निकाली, जिस पर परिवादी को नोटिस दिनांक 27.06.2014 दिया गया तथा बकाया राषि को वसूली के लिए आगामी बिलों में जोडा गया। विद्युत अधिनियम, 2003 के अनुसार इस प्रकार से गणना की गई राषि के सम्बन्ध में कोई कार्यवाही न्यायालय में नहीं की जा सकती।

परिवादी विद्युत मीटरों के साथ छेडछाड कर मीटरों के डिस्प्ले व सीलें तोड देता है। परिवादी ने सबसे पहले सुपर ट्रांसफाॅर्मर में लगे मीटर के साथ छेडछाड कर उसके डिस्प्ले को बन्द कर दिया। इसके बाद दूसरा मीटर संख्या 9358500 सुपर ट्रांसफाॅर्मर के उपर लगाया गया। इसे भी नहीं चलने देने के लिए परिवादी ने एलटी बुसिंग से सीधे तार जोड लिये। इसकी जानकारी मिलने पर एलटी बुसिंग पर एम षील लगाई गई मगर परिवादी ने इसे भी घीसकर चोरी का प्रयास किया। दिनांक 31.12.2014 को परिवादी के मीटर की जांच की गई तो रीडिंग 10,118/- यूनिट पाई गई। यह रीडिंग मात्र पांच माह की बनती है। लेकिन परिवादी विद्युत उपकरणों के साथ छेडछाड कर चोरी करता है। परिवादी के यहां स्वीकृत भार 20 एचपी का है, जबकि मौके पर जांच करने पर विद्युत उपभोग भार 27.32 एचपी पाया गया है। इस प्रकार स्वीकृत भार से अधिक विद्युत उपभोग करना भी विद्युत चोरी की परिभाशा में आता है।

अप्रार्थीगण ने अपने जवाब में यह भी बताया कि परिवादी के यहां लगा विद्युत कनेक्षन काॅमर्षियल श्रेणी का है, जहां पर बडे स्तर पर पत्थर कटिंग का कार्य किया जाता है। परिवादी का उक्त व्यवसाय किसी भी तरह से स्वरोजगार की श्रेणी में नहीं आता है बल्कि इस व्यवसाय पर कई मजदूर लगे हुए हैं जिससे परिवादी को बडे स्तर पर लाभ अर्जित हो रहा है। इस प्रकार यह प्रकरण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की परिधि में नहीं आता है। अतः इसे खारिज किया जावे।

 

3.            दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।

 

4.            बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण द्वारा नोटिस दिये जाने पर परिवादी ने आपति प्रस्तुत करते हुए लिखित जवाब दिया लेकिन उस पर कोई सुनवाई नहीं की गई बल्कि दिनांक 14.11.2014 को एक अन्य नोटिस इस आषय का दिया गया कि बकाया राषि एक सप्ताह में जमा नहीं कराने पर विद्युत सम्बन्ध विच्छेद कर दिया जाएगा। उनका तर्क रहा है कि मीटर लम्बे समय से खराब होने की जानकारी होने के बावजूद अप्रार्थीगण द्वारा मीटर नहीं बदला गया। जबकि मीटर बदलने की जिम्मेदारी अप्रार्थीगण की थी। यह भी तर्क दिया गया कि अप्रार्थीगण द्वारा बकाया राषि की गणना नियमानुसार नहीं की गई तथा अब भी नियमानुसार गणना करने पर जो बकाया राषि बनती हो उसे परिवादी जमा कराने को तैयार है। परिवादी की ओर से अपने परिवाद के साथ नोटिस प्रदर्ष 1 व प्रदर्ष 2, दिनांक 14.07.2014 को दिया गया जवाब प्रदर्ष 3 तथा सितम्बर, 2014 व नवम्बर, 2014 के दो बिल प्रदर्ष 4 व 5 भी पेष किये एवं तर्क दिया गया कि अप्रार्थीगण द्वारा दिये गये नोटिस व उसके बाद जारी बिल निरस्त किये जावें।

 

5.            अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी के यहां जो विद्युत सम्बन्ध लगा हुआ है वह काॅमर्षियल श्रेणी का है तथा परिवादी बडे स्तर पर पत्थर कटिंग का कार्य कर बडे स्तर पर लाभ अर्जित कर रहा है तथा विद्युत मीटर लम्बे समय तक खराब होने पर भी कोई सूचना नहीं दी गई। तब सम्पूर्ण प्रकरण एवं रेकाॅर्ड पर नजर रखते हुए आॅडिट पार्टी द्वारा गणना कर बकाया राषि 2,63,663/- रूपये षेश बकाया होने के कारण दिनांक 27.06.2014 को नोटिस दिया गया लेकिन निष्चित समयावधि में कोई जवाब पेष नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में वसूली की कार्रवाई की जा रही है। जो कि उपभोक्ता विवाद का मामला नहीं है। अप्रार्थीगण की ओर आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1, नोटिस प्रदर्ष ए 2, मीटर चैंज करने का आदेष प्रदर्ष ए 3, निरीक्षण रिपोर्ट प्रदर्ष ए 4 पेष करने के साथ ही खराब मीटर एवं मौके की स्थिति बाबत् छाया चित्र प्रदर्ष ए 6 से प्रदर्ष ए 12 पेष किये हैं तथा बहस के दौरान निरीक्षण रिपोर्ट प्रदर्ष ए 13, मीटर चेंज करने का आदेष प्रदर्ष ए 14, तथा मीटर बाईंडर की रिपोर्ट प्रदर्ष ए 15 भी पेष की है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि नियमानुसार आॅडिट रिपोर्ट अनुसार बकाया राषि की गणना कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया है। ऐसी स्थिति में यह परिवाद उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जावे।

 

6.            पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर उनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजात का भी अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवादी ने अपने व्यवसाय स्थल मैसर्स लक्ष्मी स्टोन पर एस.आई.पी. श्रेणी का विद्युत कनेक्षन ले रखा है तथा इस विद्युत कनेक्षन पर लगा मीटर लम्बे समय तक खराब रहा है, जिसे बार-बार बदला भी गया है लेकिन उसके बावजूद मीटर का डिस्प्ले खराब हो जाने के कारण मीटर की रिडिंग सही प्राप्त नहीं हुई, ऐसी स्थिति में  परिवादी को एवरेज यूनिट के बिल जारी हुए हैं। मीटर बाईंडर की रिपोर्ट एवं आॅडिट रिपोर्ट का अवलोकन करने पर स्पश्ट है कि परिवादी के व्यवसाय स्थल पर छह घण्टे विद्युत आपूर्ति से लोड फैक्टर के आधार पर मई, 2012 से मार्च, 2014 तक का औसत निर्धारण कर परिवादी के खाता में 2,63,663/- रूपये बकाया पाये जाने पर दिनांक 27.06.2014 को परिवादी को एक नोटिस प्रदर्ष ए 2 जारी कर बताया गया कि मात्र सात दिवस के भीतर आंतरिक अंकेक्षण दल के समक्ष अपनी परिवेदना/आपति प्रस्तुत करें। लेकिन यह स्वीकृत स्थिति है कि निर्धारित सात दिवस में परिवादी द्वारा आंतरिक अंकेक्षण दल के समक्ष कोई परिवेदना या आपति प्रस्तुत नहीं की गई। परिवादी द्वारा उपर्युक्त नोटिस प्रदर्ष ए 2 एवं उसके बाद वसूली हेतु दिनांक 14.11.2014 को जारी नोटिस को निरस्त करवाने हेतु ही यह परिवाद पेष किया गया है। जबकि पत्रावली के अवलोकन पर स्पश्ट है कि मीटर बाईंडर की रिपोर्ट एवं मौका रिपोर्ट अनुसार मीटर के लम्बे समय तक खराब रहने की स्थिति में ही आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा नियमानुसार बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया है। 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि ब्वउचसंपदज ंहंपदेज ंेेमेेउमदज उंकम नदकमत ैण् 126 वत ंबजपवद जंामद ंहंपदेज जीवेम बवउउपजजपदह वििमदबमे नदकमत ैेण् 135 जव 140 व िम्समबजतपबपजल ।बजए 2003ए ीमसकए पे दवज उंपदजंपदंइसम इमवितम ं ब्वदेनउमत थ्वतनउ. ब्पअपस बवनतजष्े रनतपेकपबजपवद जव बवदेपकमत ं ेनपज ूपजी तमेचमबज जव जीम कमबपेपवद व िंेेमेेपदह वििपबमत नदकमत ैण् 126ए वत ूपजी तमेचमबज जव ं कमबपेपवद व िजीम ंचचमससंजम ंनजीवतपजल नदकमत ैण् 127 पे इंततमक नदकमत ैण् 145 व िम्समबजतपबपजल ।बजए 2003ण्

इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा भी अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014 के पैरा संख्या 7 में अभिनिर्धारित किया है किः-

7ण् प्ज पे ंसेव ंद ंकउपजजमक ंिबज जींज जीम वनजेजंदकपदह ंउवनदज पद जीम कपेचनजमक मसमबजतपब इपसस बींससमदहमक इल जीम बवउचसंपदंदज ींे इममद ेवनहीज तिवउ ीपउए ींे इममद बवउचनजमक वद जीम इंेपे व िंनकपज तमचवतजण् ज्ीपे ब्वउउपेेपवद पद ंचचमंस छव्ण् 1496ध्1995 जपजसमक त्ैम्ठ टेण् क्ंससन त्ंउ कमबपकमक वद 01ण्11ण्1999 ींे ीमसक जींज ंद ंउवनदज बंद इम तमबवअमतमक तिवउ जीम बवदेनउमत वद जीम इंेपे व िंनकपज तमचवतज ंदक जीम अंसपकपजल व िजीम ंनकपज तमचवतज बंद इम बींससमदहमक पद ं ब्पअपस ब्वनतजए इनज ेनबी ं कमउंदक बंददवज इम जमतउमक ंे ं कमपिबपमदबल पद ेमतअपबमण्

माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी मीटर बाईंडर की रिपोर्ट एवं मौका रिपोर्ट के अवलोकन के पष्चात् आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है।

 

 

 

आदेश

 

7.            परिणामतः परिवादी मैसर्स लक्ष्मी स्टोन द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा- 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र होगा।

 

8.            आदेश आज दिनांक 10.05.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

 

।बलवीर खुडखुडिया।        ।ईष्वर जयपाल।           ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।

     सदस्य                   अध्यक्ष                        सदस्या

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya]
MEMBER

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