जिला फोरम उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, झुन्झुनू (राजस्थान)
परिवाद संख्या - 274/14
समक्ष:- 1. श्री सुखपाल बुन्देल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती शबाना फारूकी, सदस्या।
3. श्री अजय कुमार मिश्रा, सदस्य।
रवि कुमार शर्मा उम्र 26 साल पुत्र गंगाधर शर्मा जाति ब्राहमण निवासी चूरू तहसील व जिला चूरू (राज.) - परिवादी
बनाम
1. वाईस चंासलर
2. रजिस्ट्रार
3. विभागाध्यक्ष, एम.टेक
4. परीक्षा इंचार्ज
श्री जगदीष प्रसाद झाबरमल टीबडे़वाल यूनिवर्सिटी, चूड़ेला तहसील मलसीसर जिला झुंझुनू (राज0) - विपक्षीगण
परिवाद पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1. श्री मदन सिंह गिल, अधिवक्ता - परिवादी की ओर से।
2. श्री भगवान सिंह शेखावत एवं श्री सुरेन्द्र कुमार भूपेष, अधिवक्ता - विपक्षीगण की ओर से।
- निर्णय - दिनांक:16.12.2015
परिवादी ने यह परिवाद पत्र मंच के समक्ष पेष किया, जिसे दिनांक 15.05.2014 को संस्थित किया गया।
विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी ने वर्ष, 2012-13 के लिये विपक्षीगण के विष्वविद्यालय में एम.टेक करने हेतु प्रवेष लिया तथा परिवादी ने जरिये रसीद 6572 दिनांक 01.10.2012 को 5000/-रूपये जमा करवाये तथा रसीद नम्बर 7707 दिनांक 15.12.2012 को 18,150/-रूपये तथा अन्य फीस जमा करवाई, जिस पर विपक्षी ने परिवादी को परिचय पत्र जारी किया। विष्वविद्यालय ने परिवादी को एनरोलमेंट नम्बर 2k12/7015 अलाट किया एवं परीक्षा शुल्क प्राप्त करने के बाद ंरोल नम्बर CS12708 जारी किया। परिवादी ने दिनांक 17.12.2012 से 22.12.2012 तक प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा दी परन्तु विपक्षीगण ने प्रथम सेमेस्टर के परीक्षा परिणाम की कोई अंक सूची जारी नहीं कर द्वितीय सेमेस्टर के लिये क्लास शुरू करवादी। परिवादी द्वितीय सेमेस्टर के नियमित अध्ययन के लिये उपस्थित होता रहा तथा फीस जमा करवायी लेकिन विपक्षीगण के यहां न तो एम.टेक. विद्याथियों के बैठने का कक्षा रूम है, न पढाने के लिये स्टाफ था। विपक्षीगण यू.जी.सी. के मापदण्डों की पालना नहीं कर रहे थे। परिवादी व अन्य छात्रों ने एच.ओ.डी. से अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिये निवेदन किया तो एच.ओ.डी. ई.सी.ई श्री वजीरसिंह ने दिनांक 08.06.2013 को अटेण्डेंस सीट बनाकर दे दी। विपक्षीगण ने माह जून, 2013 में होने वाली परीक्षा के लिये परिवादी से परीक्षा फार्म भरवाया तथा नो ड्यूज की मांग की। परिवादी ने दिनांक 07.06.2013 को नो ड्यूज लगाकर द्वितीय सेमेस्टर का फार्म भरा। विपक्षीगण द्वारा दिनांक 25 मई,2013 को दिनांक 10.06.2013 से 13.06.2013 तक के लिये द्वितीय सेमेस्टर परीक्षा का टाईम टेबल जारी कर दिया परन्तु परीक्षा नहीं करवाई, जिस पर एम.टेक. के विद्यार्थियों ने विपक्षीगण को दिनांक 17.06.2013 को प्रार्थना पत्र दिया तो विपक्षीगण ने पिछे की तारीख में दिनांक 07.06.2013 के हवाला से जून,2013 की परीक्षा पोस्ट पोण्ड करवाने तथा नई तिथि शीघ्र सूचित करने की सूचना नोटिस बोर्ड पर चस्पा करवादी। दिनांक 10.09.2013 को परिवादी व अन्य विद्यार्थियों ने विपक्षी रजिस्ट्रार से मिलकर फीस वापिस लौटाने हेतु आवेदन किया जिस पर विपक्षी रजिस्ट्रार ने दिनांक 11.09.2013 को परिवादी व अन्य विद्यार्थिेयों का प्रार्थना पत्र स्वीकार कर रसीद दी। विपक्षीगण ने अपनी गलती को छुपाने के लिये परिवादी को बैक डेट में पत्र जारी किया कि परिवादी ने 75 प्रतिषत कक्षाओं में उपस्थिति नहीं ली, इसलिये परिवादी सेकेण्ड सेमेस्टर में उपस्थित होने की योग्यता नहीं रखता है। विपक्षीगण एक फर्जी युनिवर्सिटी चला रहे हैं । यू.जी.सी. से सांठ-गांठ कर भिन्न-भिन्न कोर्स की फीस वसूल करते हैं। विपक्षीगण ने परिवादी के दो वर्ष खराब करवा दिये तथा परिवादी से 29,750/-रूपये फीस के प्राप्त कर लिये, जो विपक्षीगण के सेवा-दोष को दर्षाता है।
अन्त में विद्वान अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मय खर्चा स्वीकार कर परिवादी को विपक्षीगण से कुल 2,36,750/-रूपये दिलाये जाने का निवेदन किया।
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षीगण ने अपने जवाब के अनुसार बहस के दौरान परिवादी द्वारा उनके विष्वविद्यालय में एम.टेक. कोर्स के प्रथम सेमेस्टर में प्रवेष लिये जाने तथा परिवादी को एनरोलमेंट नम्बर व नियमानुसार फीस प्राप्त कर रोल नम्बर अलाट किये जाने के तथ्य को स्वीकार करते हुये कथन किया है कि प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा के बाद विष्वविद्यालय ने टी.आर. जारी करदी तथा परिवादी द्वितीय सेमेस्टर में पूर्णतया अनुपस्थित रहा। उक्त विष्वविद्यालय को यू.जी.सी. के पत्र दिनांक 25.08.2009 के जरिये मान्यता प्राप्त है, जिसके संबंध में राज्यपाल की अनुमति दिनांक 03.02.2009 के बाद गजट नोटिफिकेषन भी जारी हो चुका है। परिवादी को प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा के बाद युनिवर्सिटी ने रिजल्ट डिकलेयर कर अंकतालिका जारी करदी तथा उसके बाद ही एम.टेक. सेकिण्ड सेमेस्टर की क्लासेज शुरू की गई। द्वितीय सेमेस्टर की कक्षा में परिवादी अनुपस्थित रहा तथा कक्षा में अनुपस्थिति के कारण परिवादी ने द्वितीय सेमेस्टर की फीस जमा नहीं करवाई, इस कारण से विष्वविद्यालय ने परीक्षा रद्द कर दिया। विष्वविद्यालय यू.जी.सी के नियमों की पालना कर रहा है। यू.जी.सी. के नियमानुसार छात्र 75 प्रतिषत से कम उपस्थिति दर्ज करवाता है तो विष्वविद्यालय में परीक्षा में बैठने के लिये योग्य नहीं है। परिवादी को विष्वविद्यालय ने शुरूआत में सूचित कर दिया था कि 75 प्रतिषत कक्षा में उपस्थिति अनिवार्य है उसके बावजूद परिवादी कक्षा में अनुपस्थित रहा। परिवादी को विपक्षी द्वारा दिनांक 25.01.2013 को जरिये डाक पत्र द्वारा भी सूचना दी गई, उसके बाद भी परिवादी विष्वविद्यालय में अनुपस्थित रहा। विष्वविद्यालय द्वारा किसी भी विद्यार्थी के साथ कोई धोखा धड़ी नहीं की गई है बल्कि परिवादी की स्वंय की लापरवाही रही है।
अन्त में विद्धान् अधिवक्ता विपक्षीगण ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष के तर्को पर विचार कर पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया।
पत्रावली में यह निर्विवादित तथ्य उभरकर आया है कि परिवादी ने विपक्षी विष्वविद्यालय श्री जगदीष प्रसाद झाबरमल टीबड़ेवाल, चुडेला में एम.टेक. प्रथम सेमेस्टर में प्रवेष लेकर नियमानुसार फीस जमा कराई है। परिवादी उक्त विष्वविद्यालय में प्रथम सेमेस्टर में नियमित छात्र रहा है। विपक्षी विष्वविद्यालय द्वारा परिवादी को एनरोलमेंट नम्बर अलोट किया जाकर परीक्षा शुल्क लेकर रोल नम्बर जारी कर दिये गये । परिवादी द्वारा प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा दी गई।
पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट हुआ है कि विपक्षी विष्वविद्यालय ने यू.जी.सी. के मापदण्डों की पूर्ण पालना करते हुये एम.टेक. प्रथम सेमेस्टर की नियमानुसार फीस लेकर समय पर परीक्षा कराई गई और परिणाम घोषित किया गया। उक्त विष्वविद्यालय द्वारा एम.टेक. प्रथम वर्ष सेमेस्टर की अंकतालिका भी जारी की गई।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी का बहस के दौरान यह तर्क होना कि उक्त विष्वविद्यालय को एम.टेक. की मान्यता प्राप्त नहीं है तथा विपक्षी ने परिवादी से सेकिण्ड सेमेस्टर की फीस लेकर परीक्षा स्थगित करदीं।ं परिवादी को न तो परीक्षा में शामिल किया और न ही फीस वापिस लौटाई है।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी के उक्त तर्क से हम सहमत नहीं है। क्योंकि विपक्षी विष्वविद्यालय को यू.जी.सी. के पत्र दिनांक 25.08.2009 के जरिये मान्यता प्राप्त होना बताया है। विष्वविद्यालय द्वारा प्रथम सेमेस्टर की अंकतालिका भी जारी करदी गई तथा परीक्षा की समय सारणी नियत समय पर घोषित की जाकर नोटिस बोर्ड पर सूचना चस्पा करदी गई इसके अतिरिक्त परिवादी को सेमेस्टर में अनुपस्थिति बाबत नोटिस भी प्रेषित किया गया। इसके पश्चात भी परिवादी निरन्तर विष्वविद्यालय से अनुपस्थित रहा। परिवादी द्वारा द्वितीय सेमेस्टर की फीस भी जमा नहीं करवाई गई। परिवादी ने उक्त तथ्यों के खण्डन में कोई दस्तावेज पेष नहीं किया है। परिवादी किस प्रकार से विपक्षी से फीस वापिस प्राप्त करना चाहता है, इसका कोई युक्तियुक्त स्पष्टीकरण परिवादी की ओर से पेष नहीं किया गया है।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर परिणाम यह रहता है कि परिवादी ने उक्त विष्वविद्यालय से एम.टेक. प्रथम सेमेस्टर में प्रवेष के समय जो कॅासन मनी फीस 5000/-रूपये अदा की है, पत्रावली में संलग्न रसीद से भी स्पष्ट है। विपक्षी ने परिवादी को कासन मनी वापिस नहीं लौटाने का कोई युक्तियुक्त कारण नहीं बताया है। परिवादी, विपक्षी विष्वविद्यालय से नियमानुसार उक्त काॅसन मनी राषि वापिस प्राप्त करने का अधिकारी है।
अतः प्रकरण के तमाम तथ्यों व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये परिवादी का परिवादपत्र विरूद्ध विपक्षी संख्या 1 लगायत 4 आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि परिवादी उक्त विपक्षीगण से काॅसन मनी राषि 5000/-रूपये (अक्षरे रूपये पंाच हजार मात्र) नियमानुसार संयुक्त व पृथक-पृथक रूप से प्राप्त करने का अधिकारी है। परिवादी उक्त राषि पर संस्थित परिवाद पत्र दिनांक 15.05.2014 से ता वसूली 9 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है। इस प्रकार से प्रकरण का निस्तारण किया जाता है।
निर्णय आज दिनांक 16.12.2015 को लिखाया जाकर मंच द्धारा सुनाया गया।