(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1915/2013
महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लिमिटेड, महेन्द्रा टावर, फैजाबाद रोड, लखनऊ।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
जितेन्द्र तिवारी पुत्र स्व0 राम नगीना तिवारी, निवासी ग्राम दलपतपुर, बरिया, परगना द्वाबा, जिला बलिया।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री ए.के. श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित : श्री ए.के. मिश्रा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 03.03.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-77/2009, जितेन्द्र तिवारी बनाम महेन्द्रा एंड महेन्द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लि0 में विद्वान जिला आयोग, बलिया द्वारा पारित बहुमत निर्णय/आदेश दिनांक 26.04.2013 के विरूद्ध यह अपील देरी से प्रस्तुत की गई है। इस देरी को माफ करने के लिए आवेदन मय शपथ पत्र के प्रस्तुत किया गया है। अत: अपील प्रस्तुत करने में हुई देरी माफ की जाती है।
2. प्रश्नगत परिवाद पर अध्यक्ष एव सदस्यों द्वारा अलग-अलग निर्णय पारित किए गए हैं, जहां अध्यक्ष द्वारा परिवाद खारिज किया गया है, परन्तु दो सदस्यों द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादी से वाहन अवैध रूप से छीन लिया गया, इसलिए दिनांक 25.09.2008 तथा दिनांक 01.04.2009 तक के बीच के बकाया किश्तों की अदायगी का दायित्व परिवादी पर नहीं है। क्षतिपूर्ति के रूप में अंकन 40 हजार रूपये अदा करने का आदेश दिया गया है।
-2-
3. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क कि उपभोक्ता ने स्वंय गाड़ी को समर्पण किया है, यह समर्पण पत्र पत्रावली पर मौजूद है, जिसके अवलोकन से जाहिर होता है कि गाड़ी खींचने का चार्ज भी परिवादी पर लगाया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि स्वयं फाइनेन्स कंपनी द्वारा वाहन खींचा गया है, जिस दस्तावेज के आधार पर समर्पण करना कहा गया है, ऐसे दस्तावेज ऋण प्रदान करते समय ही बैंक/फाइनेन्स कंपनी द्वारा हस्ताक्षरित करा कर सुरक्षित रख लिए जाते हैं, इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान इस पीठ द्वारा लिया जा सकता है। चूंकि मात्र 40 हजार रूपये की रकम बकाया रखने पर बगैर नोटिस दिए वाहन को परिवादी के कब्जे से खींचना, इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि ऋण प्रदाता कंपनी द्वारा मनमाना आचरण किया गया है। यदि यह वाहन परिवादी के पास रहता तब जो राशि बकाया थी, उसका भुगतान भी सुगमता से परिवादी द्वारा कर दिया जाता। अत: विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश जो बहुमत के आधार पर पारित किया गया है, में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। अपील तदनुसार निरस्त होने योग्य है।
आदेश
4. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
अपीलार्थी द्वारा अपील प्रस्तुत करते समय अपील में जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित विधि अनुसार संबंधित जिला आयोग को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3