(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील सं0 :- 1212/2007
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-489/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 01/05/2007 के विरूद्ध)
मेसर्स मोहन इन्डेन गैस एजेन्सी-938-ए-हेमन्त बिहार-बर्रा-2-नगर व जिला कानपुर द्वारा प्रोपराइटर श्री विनोद कुमार मिश्रा।
- अपीलार्थी
बनाम
जितेन्द्र कुमार शुक्ल पुत्र श्री दया शंकर निवासी 370 मनोहर नरग-बर्रा नगर व जिला कानपुर।
समक्ष
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति:
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री आर0के0 गुप्ता
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- कोई नहीं
दिनांक:-22.03.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0 489/2006 जीतेन्द्र कुमार शुक्ल बनाम मे0 मोहन गैस एजेंसी में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.05.2007 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी से वैध कूपन द्वारा एक भरा हुआ गैस सिलेण्डर क्रय किया। उक्त सिलेण्डर में गैस का रिसाव हो रहा था। सिलेण्डर को बदलने के लिए गैस एजेंसी के मालिक से सम्पर्क किया तो कथित सिलेण्डर को अपने गैस एजेण्सी में रखवा लिया। दिनांक 28.10.2005 को गैस एजेंसी का कर्मचारी गैस सिलेन्डर लेकर आया और यह कहा कि थोड़ी बहुत गैस निकलती रहती है, माचिस लाइये, चेक कर देता हूं। प्रत्यर्थी/परिवादी की मां ने माचिस दी। कर्मचारी ने माचिस को गैस सिलेण्डर के ऊपरी भाग में जलाकर वापस ले गया, जिससे गैस सिलेण्डर में आग लग गयी और प्रत्यर्थी/परिवादी के घर में आग लग गयी। वादी ने पुलिस थाने में मुकदमा पंजीकृत कराया।
- अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि परिवादी अपीलार्थी का कनेक्शन धारक नहीं है। मूल कनेक्शन धारक श्री प्रेम दयाल हैं। जिन्हें पूर्व में पाल गैस सर्विस कानपुर द्वारा एस0बी0 संख्या 0979741 द्वारा कनेक्शन संख्या पी-14147 जारी किया गया था जो कि उन्होंने अपीलार्थी की गैस सर्विस पर ट्रांसफर कराया था। जहां कि उनका कनेक्शन संख्या एम-967 किया गया था। पाल गैस सर्विस द्वारा जारी रसीद दिनांक 24.01.2000 से स्पष्ट होता है कि उन्हें केवल एक सिलेन्डर व एक रेगूलेटर जारी किया गया था। जिसकी सिक्योरिटी के रूप में उन्होंने रू0 900/- व रू0 100/- जमा किये थे। ट्रांसफर लिस्ट के अवलोकन से भी यही स्पष्ट होता है। परिवादी अपीलार्थी के यहां कभी कनेक्शन का उपभोक्ता नहीं रहा था और न ही उसे कभी कोई सिलेन्डर जारी किया गया था। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र के समर्थन में उक्त श्री प्रेम दयाल के कागजात दाखिल किये हैं तथा उसी के आधार पर फर्जी मुकदमा तैयार किया है। परिवादी ने अपने परिवाद-पत्र में धारा 1 में अपने नाना श्री प्रेम दयाल के यहां रहना बताया है लेकिन जो राशन कार्ड की प्रति परिवाद पत्र के साथ संलग्न की है। उसमें कुल 05 सदस्य दिखाये गये हैं, जिसमें परिवादी के पिता श्री दया शंकर, माता श्रीमती मंजू व जितेन्द्र, शैलेन्द्र, धर्मेन्द्र के नाम अंकित है, जबकि प्रेमदयाल का नाम कहीं अंकित नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा घटना की तिथि दिनांक 28.10.2005 बतायी है जबकि कन्ज्यूमर कार्ड के अनुसार सिलेन्डर दिनांक 13.10.2005 को रिफिल कराया गया था तथा दुबारा दिनांक 04.11.2005 को रिफिल कराया गया था जो कि प्रेम दयाल ने कराया था चूंकि प्रेम दयाल एक ही सिलेन्डर धारक है तथा अपना सिलेन्डर स्वयं इस्तेमाल करते हैं। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी का अपीलार्थी द्वारा जारी सिलेन्डर के इस्तेमाल का कथन पूर्णरूप से गलत हो जाता है। दिनांक 13.10.2005 की रिफिल के 15 दिन बाद की कथित घटना बतायी गयी है।
- अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता को सुना गया। आदेश दिनांक 24.08.2017 द्वारा प्रत्यर्थी पर तामीला पर्याप्त माना जा चुका है। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया।
- इस संबंध में प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से दस्तावेज प्रस्तुत किये गये जिनमें गैस कनेक्शन की रसीद अपीलार्थी गैस एजेंसी के रजिस्टर की उपभोक्ताओं की लिस्ट की प्रतिलिपि प्रस्तुत की गयी है। इण्डेन कार्पोरेशन वितरण कार्ड की प्रतिलिपि भी प्रस्तुत की गयी है, जिसमें श्री प्रेम दयाल मिश्रा का नाम उपभोक्ता के रूप में दर्ज है, स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने परिवाद पत्र की धारा 1 में यह स्वीकार किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के नाना श्री प्रेम दयाल मिश्रा के नाम से यह गैस कनेक्शन था। इस प्रकार उपरोक्त दस्तावेजों से प्रत्यर्थी/परिवादी प्रश्नगत गैस एजेंसी का उपभोक्ता साबित नहीं होता है। अत: उसको प्रस्तुत परिवाद लाने का कोई वैध अधिकार धारा 12 (1) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्राप्त नहीं है। अत: परिवाद पोषणीय नहीं है। इसके अतिरिक्त प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा गैस के माध्यम से क्षति होने का कोई प्रमाण पस्तुत नहीं किया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद अस्वीकार एवं पोषणीयता के आधार पर निरस्त किये जाने योग्य है।
- उक्त तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने जो निर्णय व आदेश पारित किया है वह विधि एवं साक्ष्य के विपरीत है, जो अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
-
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय)(विकास सक्सेना)
संदीप आशु0कोर्ट नं0 3