राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद सं0-११२/२०१४
प्रशान्त चन्द्रा पुत्र स्व0 श्री आर0सी0 श्रीवास्तव निवासी २६-१/जी, वजीर हसन रोड, लखनऊ। ............. परिवादी।
बनाम
१. जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड, रजिस्टर्ड आफिस स्थित जेपी ग्रीन्स, सैक्टर-१२८, नोएडा, उत्तर प्रदेश द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
२. मनोज गौड़, एक्जक्यूटिव चेयरमेन एण्ड चीफ एक्जक्यूटिव आफिस, जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड, रजिस्टर्ड आफिस स्थित जेपी ग्रीन्स, सैक्टर-१२८, नोएडा, उत्तर प्रदेश।
३. अशोक खरे, जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड, रजिस्टर्ड आफिस स्थित जेपी ग्रीन्स, सैक्टर-१२८, नोएडा, उत्तर प्रदेश।
४. आशीष बाजपेयी, जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड, रजिस्टर्ड आफिस स्थित जेपी ग्रीन्स, सैक्टर-१२८, नोएडा, उत्तर प्रदेश।
५. रमेश पँवार, निवासी फ्लैट नं0-५७, ग्राउण्ड फ्लोर, भगवान महावीर गवर्नमेण्ट हास्पिटल कैम्पस, निकट केशव महाविद्यालय, पीतमपुरा के सामने, दिल्ली-११००३४.
............ विपक्षीगण।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : सुश्री प्रीति पहवा विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं0-१ से ४ की ओर से उपस्थित : श्री प्रतुल प्रताप सिंह विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं0-५ की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- १७-०२-२०२१.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अन्तर्गत धारा-१२/१७ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ विपक्षीगण को फ्लैट सं0-A.N.M. 0101608, स्थित जे0पी0 अमन, नोएडा का भौतिक कब्जा बिना किसी ब्याज अथवा दाण्डिक ब्याज के एवं अभिलेखों में संशोधन कर परिवादी के नाम से दिलाए जाने, परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि पर जमा की तिथि से कब्जा देने की तिथि तक २४ प्रतिशत ब्याज दिलाए जाने, हर्जाना के रूप मं १०.०० लाख रू० दिलाए जाने, सितम्बर, २०१२ से १५,०००/- रू० प्रति माह मकान का कब्जा दिए जाने की तिथि तक दिलाए जाने, रू० ५०,०००/- वाद व्यय तथा अन्य अनुतोष जो आयोग उचित समझे दिलाए जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
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संक्षेप में परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण ने सेवा में कमी के साथ-साथ अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनाते हुए परिवादी को अत्यधिक क्षति कारित की है। विपक्षीगण ने मीडिया में प्रकाशित अपने कथन के अनुसार समय से योजना पूरी नहीं की और इसके विपरीत परिवादी पर दबाव डाल कर कुल मूल्य का ९५ प्रतिशत जमा कराया और इसके अतिरिक्त परिवाद पर ब्याज और दाण्डिक ब्याज भी लगाया।
विपक्षी सं0-१ एक कम्पनी है जिसका पंजीकृत कार्यालय जेपी ग्रीन्स, सैक्टर-१२८, नोएडा में है और विपक्षी सं0-२ इसका एक्जक्यूटिव चेयरमेन और सी0ई0ओ0 है। विपक्षी सं0-३ व ४ विपक्षी सं0-१ के अधिकारी हैं। विपक्षी सं0-५ वह व्यक्ति है जिससे विपक्षी सं0-२, ३ व ४ ने साजिश कर परिवादी की यूनिट का हस्तान्तरण किया और बाद में पुन: उसे वापस दिए जाने हेतु अभिलेखों को तैयार कराकर कार्य सम्पादित किया। विपक्षी सं0-१ लगायत ४ संयुक्त रूप से और अलग-अलग रूप से सेवा में कमी के लिए हर्जाना अदा किए जाने के लिए उत्तरदायी हैं।
विपक्षी पार्टी प्रचारित सम्बन्धी साक्ष्य पर ध्यान नहीं दे रही है और परिवादी को मजबूर होना पड़ा कि वह इस योजना से बाहर निकल कर यूनिट को विक्रय कर कहीं ओर पर क्रय कर ले क्योंकि उसे आवश्यकता थी। इसलिए उसने रमेश पवार से बातचीत कर उससे ५,०००/- रू० अग्रिम ले लिया। विपक्षी सं0-१ ने यूनिट हस्तान्तरित करने के सम्बन्ध में प्रक्रिया बना रखी थी जिसमें कई अभिलेखों के निष्पादन की आवश्यकता थी। परिवादी ने देवाशीष साहनी को पावर आफ अटार्नी के साथ विपक्षी सं0-१ के पास जा कर सारी सूचना लेने के लिए भेजा। विपक्षी पार्टी ने गुप्त तरीके से देवाशीष साहनी से कई अभिलेखों पर हस्ताक्षर करवाकर उसके यूनिट को रमेश पवार के पक्ष में हस्तान्तरित कर दिया जिसने केवल अग्रिम का भुगतान किया था और उसे शेष धनराशि अभिलेख पर हस्ताक्षर करने से पहले अदा करनी थी। यह हस्तान्तरण नोटोराइज्ड पावर आफ अटार्नी अधिकृत द्वारा नहीं किया गया। यह पावर आफ अटार्नी पंजीकृत अभिलेख नहीं था और इसे मात्र अभिलेखों के एकत्रित करने के उद्देश्य से एकत्रित किया गया था। विपक्षी सं0-२ व ४ ने उक्त खरीददार से दुरभि संधि कर गुप्त तरीके से बिना परिवादी की स्पष्ट
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सहमति के हस्तान्तरण कर दिया। इसके पश्चात् रमेश पवार ने परिवादी को सूचित किया कि वह इस यूनिट के हस्तान्तरण से सम्बन्धित धनराशि का भुगतान करने में समर्थ नहीं है तब यह जानकर कि वह इस यूनिट को नहीं खरीद सकता, परिवादी ने अन्य खरीददार से सम्पर्क किया क्योंकि उसे अपने लिए आवास की अत्यन्त आवश्यकता थी। छानबीन से पता चला कि यह यूनिट रमेश पवार के नाम से गैर पंजीकृत पावर आफ अटार्नी के माध्यम से जानबूझकर परिवादी को परेशान करने की नीयत से हस्तान्तरित की गई। जब उसने रमेश पवार से सम्पर्क किया तब उन्होंने अपने द्वारा दिए गये अग्रिम को वापस देने के लिए बहुत बड़ी धनराशि की मांग की। पावर आफ अटार्नी के आधार पर हस्तान्तरण अवैध है। परिवादी द्वारा २१-०८-२०१२ को एक पत्र भेजा गया कि यूनिट वापस की जाए जिसके उत्तर में विपक्षी के अधिवक्ता द्वारा दिनांक १०-०१-२०१३ को उत्तर दिया गया जिसमें कहा गया कि इस यूनिट का स्वामित्व उसके मुवक्किल के पास है। पुन: एक पत्र ३०-०८-२०१२ को विपक्षी को भेजा। इसके पश्चात् परिवादी विपक्षी के कार्यालय में मिला जहॉं कहा गया कि यह भूलवश हस्तान्तरित हो गया है और विपक्षी सं0-३ व ४ ने इसे वापस करने के लिए आश्वासन दिया। परिवादी रमेश पवार से मिला जो अभिलेख के पुन: निष्पादन हेतु तैयार हुआ और उन्होंने विपक्षी के कार्यालय जा कर सारे अभिलेख यूनिट पुन: वापसी के सम्बन्ध में निष्पादित किए। इसके पश्चात् परिवादी को बताया गया कि सम्बन्धित क्लर्क अवकाश पर चला गया, अब परिवादी को कार्यालय आने की आवश्यकता नहीं है। परिवादी ने बताया कि वह व्यक्तिगत रूप से नहीं आ सकता, अत: वह किसी को इस कार्य के लिए भेजेगा। परिवादी ने पावर आफ अटार्नी बनाकर श्री आदित्य कपूर को औपचारिकताऐं पूरी करने के लिए भेजा लेकिन विपक्षी पार्टियॉं कोई न कोई बहाना बनाती रहीं और फिर बताया गया कि जो एन0ओ0सी0 जारी हुई थी वह कालातीत हो गई। परिवादी ने पुन: एन0ओ0सी0 प्राप्त करने के लिए २५,०००/- रू० जमा किया। इसके पश्चात् पुन: एन0ओ0सी0 जारी की गई और परिवादी के अटार्नी विपक्षी के कार्यालय नोएडा पहुँचे। उन्हें बताया गया कि सम्बन्धित व्यक्ति विदेश चला गया है। इस बची रमेश पवार को
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हस्तान्तरित यूनिट पर उन्हीं का नाम और उनके द्वारा किश्त का अदा किया जाना दिखाया जा रहा था जबकि उसने कोई किश्त नहीं अदा की थी। जो विवरण रमेश पवार के नाम निर्गत हुआ उसमें बिना खाते में दिखाए ब्याज का लेना प्रदर्शित है। परिवादी के अटार्नी को सूचित किया गया कि ४,५०,२३३/- रू० जमा करें नहीं तो आगे ब्याज लग जाएगा। तद्नुसार ०६-११-२०१२ को उक्त धनराशि हस्तान्तरित की गई। यूनिट का कब्जा देने सम्बन्धी ३० महीने का समय सितम्बर २०१२ में समाप्त हो गया और आबंटन पत्र की शर्तों के अन्तर्गत परिवादी ५४/- रू० प्रतिवर्ग मी० प्रति माह पाने का अधिकारी था जो उसे अदा नहीं किया गया और यह सेवा में कमी है। रमेश पवार ने अग्रिम जमा धनराशि वाप लेनेके लिए उस पर २४ प्रतिशत ब्याज की मांग की जो उसे दिया गया। विपक्षी ने परिवादी के अटार्नी को बार-बार दौड़ाया और अभिलेख निष्पादित नहीं किए। किसी न किसी बहाने से यूनिट का हस्तान्तरण वापस परिवादी को नहीं किया गया। इसके बाद पुन: एन0ओ0सी0 जारी की गई ओर परिवादी को ७५,०००/- का भुगतान करना पड़ा।
इस प्रकार परिवादी को मिलने वाली यूनिट विपक्षी के कारण नहीं मिल सकी जो उससे अवैध धन की मांग कर रहा था। परिवादी ने अमन नोएडा में यूनिट सं0- A.N.M. 0101608 के आबंटन के लिए आवेदन किया था और इसके लिए ०१.५० लाख रू० प्रारम्भिक धनराशि जमा की गई। आबंटन पत्र दिनांक ३१-०३-२०१० के अन्तर्गत परिवादी ने मांग गई समस्त धनराशि जमा कर दी। परिवादी द्वारा कुल २७,७४,३४६/- रू० जमा किया गया जो यूनिट के कुल मूल्य का ९५ प्रतिशत है। आबंटन पत्र दिनांक ३१-०३-२०१० के अनुसार विलम्ब की स्थिति में विपक्षी को हर्जाना अदा करना था और उसके द्वारा सेवा में कमी को दर्शाता है। इससे स्पष्ट है कि विपक्षी ने समस्त आबंटियों से बहुत बड़ी धनराशि एकत्रित कर ली और इसका गबन किया। इनके द्वारा अनुचित व्यापार प्रथा की गई जिसके लिए वे उत्तरदाई हैं। अत: विपक्षी से उसे फ्लैट सं0- A.N.M. 0101608 स्थित जे0पी0 अमर, नोएडा दिलाया जाए और इस पर कोई ब्याज नहीं लगाए। विपक्षी उसे २४ प्रतिशत ब्याज भी अदा करे तथा १०.०० लाख रू० सेवा में कमी के लिए दें। इसके अतिरिक्त १०.०० लाख रू० बतौर हर्जाना तथा सितम्बर, २०१२ से कब्जा दिए जाने तक १५,०००/- रू० प्रति माह भी अदा करें।
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विपक्षी सं0-१ लगायत ४ ने अपने उत्तर में कहा कि वर्तमान परिवाद में कोई विधिक कारण नहीं है और वर्तमान परिवाद निरस्त होने योग्य है। विपक्षीगण के विरूद्ध कोई वाद का कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। परिवादी ने माननीय आयोग के सामने सही वस्तुस्थिति नहीं रखी है। वास्तविक तथ्य यह है कि अपार्टमेण्ट यूनिट सं0-ए0एन0एम0 ०१०१६०८ के लिए परिवादी ने अपना आवेदन पत्र दिनांक १२-०८-२००९ द्वारा आवेदन किया और अस्थायी आबंटन की शर्तों को स्वीकार किया। दिनांक ३१-०३-२०१० को अस्थायी आबंटन पत्र परिवादी को निर्गत किया गया जिसके अन्तर्गत उक्त अपार्टमेण्ट का कब्जा इस पत्र के दिनांक से ३० माह के अन्दर देने को कहा गया। दिनांक १२-१०-२०१२ को परिवादी ने विपक्षी सं0-१ को सूचित किया कि उसने इस अस्थायी आबंटन से सम्बन्धित अपने हितों और अधिकारों को श्री रमेश कुमार पवार और श्रीमती सज्जना देवी को हस्तान्तरित कर दिया है। इसके समर्थन में उसने एक नोटोराइज्ड शपथ पत्र भी दिया। इस शपथ पत्र में परिवादी से यह सुनिश्चित किया कि वह कथित अपार्टमेण्ट और अस्थायी आबंटन पत्र द्वारा निर्गत अपने अधिकार और हितों को श्री रमेश कुमार पवार और श्रीमती सज्जना देवी को हस्तान्तरित कर चुका है और उसने निवेदन को मानकर नामान्तरण कर दिया और उसके पश्चात् उसका कोई अधिकार कथित अस्थायी आबंटन में नहीं रह गया।
उसने विपक्षी सं0-१ को उक्त दोनों के नाम अपने स्थान पर लिखने के लिए अधिकृत किया। साथ ही साथ परिवादी ने दिनांक ३०-११-२०११ को पावर आफ अटार्नी का निष्पादन श्री देवराज साहनी के पक्ष में किया और उनको विपक्षी सं0-१ के कार्यालय में उपस्थित होकर उक्त अपार्टमेण्ट के हस्तान्तरण से सम्बन्धित अभिलेखों को प्रस्तुत करने के लिए अधिकृत किया। इसके अतिरिक्त अन्य जो आवश्यक कार्य हों उन्हें भी करने के लिए अधिकृत किया। श्री देवराज साहनी ने इस पावर आफ अटार्नी को विपक्षी सं0-१ के समक्ष प्रस्तुत किया और हस्तान्तरण के अभिलेखों का निष्पादन किया। इसके पश्चात् परिवादी और विपक्षी सं0-१ के बीच कोई संविदा नहीं रह गई। परिवादी तथा विपक्षी सं0-२ लगायत ४ के मध्य भी कोई संविदा नहीं रह गई। विपक्षी सं0-२ लगायत ४ ने विपक्षी संख्या-१ को सेवा देने में कोई कमी नहीं की। वास्तव में विपक्षी संख्या-२
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२ लगायत ४ द्वारा परिवादी को कोई सेवा प्रदान नहीं की गई और न ही उन्होंने परिवादी से कभी कोई प्रतिफल प्राप्त किया, अत: उनके विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत करने का कोई कारण उत्पन्न नहीं हुआ। परिवाद में पक्षकारों के कुसंयोजन का दोष है। परिवादी उपभोक्ता नहीं है क्योंकि उसे कथित यूनिट अस्थायी रूप से आबंटित की गई थी और उसके निवेदन पर इसके किसी अन्य को हस्तान्तरित कर दिया गया। वर्तमान परिवाद कालबाधित है। विपक्षीगण द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई और न ही कोई अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनाई गई। विपक्षीगण ने परिवादी को न तो कोई क्षति पहुँचाई और न ही उसकी हानि कारित की। उनके द्वारा किसी प्रकार की गलत मांग नहीं की गई और न ही कोई धनराशि अधिरोपित की गई। यह कहना गलत है कि विपक्षी सं0-२ लगायत ४ और विपक्षी सं0-५ ने आपस में दुरभि संधि करके यूनिट का हस्तान्तरण परिवादी को किया। उनके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई। परिवादी को जबरदस्ती इस परियोजना से अपनी यूनिट से हस्तान्तरित कर बेदखल नहीं किया गया। विपक्षी सं0-१ ने हस्तान्तरण की प्रक्रिया बताई थी जो आबंटी के हितों को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक थी। पावर आफ अटार्नी श्री देवराज साहनी को दी गई थी न कि श्री देवाशीष साहनी को और उन्हें विपक्षी के कार्यालय में उपस्थित होकर हस्तान्तरण सम्बन्धी अभिलेखों को देने के लिए अधिकृत किया था।
परिवादी का यह कहना गलत है कि उसने अटार्नीधारक को पहले कुछ सूचनाऐं एकत्रित करने के लिए कहा था और यदि ऐसा था तब अटार्नीधारक मूल अस्थायी अभिलेखों को दाखिल नहीं करता। यह कहना गलत है कि विपक्षीगण ने उक्त अटार्नी से विभिन्न अभिलेखों पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा था। वह परिवादी के निर्देशों के अन्तर्गत कार्य कर रहा था और विपक्षी सं0-१ ने उसके द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन किया। यह कहना गलत है कि विपक्षी सं0-२ लगायत ४ ने श्री रमेश पवार से मिलकर गुपचुप तरीके से बिना परिवादी की सहमति अथवा निवेदन के यूनिट को हस्तान्तरित कर दिया। इस बात का कोई ज्ञान नहीं है कि यूनिट के हस्तान्तरण के पश्चात् श्री रमेश पवार ने परिवादी को सूचित किया हो कि वह आवश्यक भुगतान करने के लिए आवश्यक व्यवस्था नहीं कर पा रहा है। विपक्षी संख्या-१ ने परिवादी और उसके अटार्नीधारक के
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निवेदन पर ही कार्य किया। परिवादी अपने यूनिट को छोड़ने के पश्चात्, उससे सम्बन्धित किसी भी सूचना को प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है और यह कहना गलत है कि उक्त यूनिट श्री रमेश कुमार पवार और उसकी पत्नी का नाम गलत तरीके से और छल-कपट करके हस्तान्तरित किया गया हो।
उक्त यूनिट परिवादी के निवेदन पर हस्तान्तरित की गई। पत्र दिनांकित ३०-०८-२०१२ एक अभिलेख है। दिनांक ३०-११-२०११ अथवा उसके आस-पास परिवादी ने विपक्षी सं0-१ को एक शपथ पत्र दिनांकित २३-११-२०११ प्रदान किया जिसमें परिवादी ने अन्य बातों के अलावा यह निश्चित किया कि उसने अपने सारे अधिकार और हितों को जो अस्थायी आबंटन पत्र में हैं, श्री रमेश पवार और श्रीमती सज्जना देवी के पक्ष में हस्तान्तरित कर दिया है और विपक्षी सं0-१ को अधिकृत किया कि वह उनके नाम परिवादी के स्थान पर अंकित कर दे। इसी शपथ पत्र में परिवादी ने यह भी कहा कि कम्पनी द्वारा उसके निवेदन को स्वीकार कर लेने और उसका नामान्तरण ट्रान्सफरी के पक्ष में करने के पश्चात् इस अस्थायी आबंटन पत्र में उसका कोई अधिकार या हित नहीं रह जाएगा। दिनांक ३०-११-२०११ अथवा उसके आस-पास परिवादी ने श्री देवराज साहनी के पक्ष में पावर आफ अटार्नी निष्पादित की जिसके पश्चात् समस्त अभिलेख प्राप्त होने पर हस्तान्तरण किया गया था। यह कहना गलत है कि विपक्षी सं0-३ व ४ ने परिवादी को यह यूनिट पुन: उसके नाम से पुनर्स्थापित करने का आश्वासन दिया हो। यह कहना गलत है कि श्री रमेश पवार और परिवादी, विपक्षी सं0-१ के कार्यालय में उपस्थित हुए और उन्हें विपक्षी सं0-१ ने एक निर्धारित फार्मेट हस्ताक्षर करने को दिया और यूनिट को पुनर्स्थापित करने के लिए प्रत्यावेदन लिया। परिवादी को किसी प्रकार से प्रताडि़त नहीं किया गया। परिवादी ने आदित्य कपूर के पक्ष में कोई पावर आफ अटार्नी निष्पादित नहीं की। यह यूनिट पुन: परिवादी के पक्ष में हस्तान्तरित नहीं की जा सकती क्योंकि कथित यूनिट हस्तान्तरित की जा चुकी है। विपक्षी सं0-५ और उसकी पत्नी द्वारा परिवादी के पक्ष में यूनिट के हस्तान्तरण सम्बन्धी निवेदन प्राप्त हुआ था। इस अनापत्ति प्रमाण पत्र दिनांक २५-१०-२०१२ में विपक्षी सं0-१ की ओर से कोई आपत्ति नहीं की गई थी।
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हमने उपस्थित विद्वान अधिवक्ताओं को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध कथनों, साक्ष्य तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
इस मामले में प्रशान्त चन्द्रा द्वारा एक पत्र दिनांक ३०-११-२०११ जय प्रकाश एसोसिएट्स लि0 को इस आशय से भेजा गया कि वह अस्थायी आबंटन पत्र दिनांकित ३१-०३-२०१० द्वारा अपार्टमेण्ट/प्लाट ए एम एन ०१०१६०८ जे0पी0 ग्रीन्स नोएडा में जो उनको दिया गया था वह उक्त प्लाट को श्री रमेश कुमार पवार पुत्र श्री करन सिंह तथा श्रीमती सज्जना देवी पत्नी श्री रमेश कुमार पवार निवासी फ्लैट सं0-५७, गाउण्ड फ्लोर, भगवान महावीर गवर्नमेण्ट हास्पिटल केम्पस, निकट केशव महाविद्यालय, पीतमपुरा क्लब के सामने, पीतमपुरा, दिल्ली-३४ के पक्ष में हस्तानान्तरित करना प्रस्तावित करते हैं और हस्तानान्तरण के पश्चात् इस सम्पत्ति पर उनका कोई हित नहीं रह जाएगा। इस अस्थायी आबंटन के सारे अधिकार कथित ट्रान्सफरी के पक्ष में हस्तानान्तरित कर दिए जाऐं।
इसके पश्चात् पत्रावली पर उपलब्ध एक पत्र रमेश कुमार पवार द्वारा जय प्रकाश एसोसिएट्स लि0 को भेजा गया जिसमें उन्होंने कहा कि वे फ्लैट/यूनिट जे0जी0 ए ए एन एम ०१०१६०८ जेपी ग्रीन्स को मूल आबंटी प्रशान्त चन्द्रा को हस्तानान्तरित करना चाहते हैं। इस पत्र पर कोई दिनांक नहीं पड़ा है।
एक शपथ पत्र दिनांक २३-१-२०११ का पत्रावली पर उपलब्ध है जो प्रशान्त चन्द्रा द्वारा शपथ आयुक्त के समक्ष कहा गया है। इसके अन्तर्गत प्रशान्त चन्द्रा ने कहा है कि वे अपने अस्थायी आबंटन कथित अपार्टमेण्ट/प्लाट का श्री रमेश कुमार पवार और श्रीमती सज्जना देवी के पक्ष में हस्तान्तरित कर चुके हैं। कम्पनी द्वारा मेरे निवेदन को स्वीकार कर और नामांकन करने के पश्चात् मेरा इस सम्पत्ति में कोई हित, अधिकारी किसी प्रकार का नहीं रह जाएगा। उनके द्वारा यह भी कहा गया कि इस पर कोई भार आदि नहीं है ओर वह जय प्रकाश एसोसिएट्स लि0/जे0पी0 इन्फ्राटेक लि0 को अपने नाम के बदले उक्त अपार्टमेण्ट/प्लाट पर ट्रान्सफरी का नाम प्रतिस्थापित करने के लिए अधिकृत करते हैं।
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इसके पश्चात् दिनांक ०७-१२-२०११ को एक अण्डरटेकिंग रमेश कुमार पवार द्वारा इस आशय की दी गई कि प्रशान्त चन्द्रा ने स्वयं को अस्थायी रूप से आबंटित अपार्टमेण्ट/प्लाट का हस्तानान्तरण उनके पक्ष में कर दिया है और वे इससे सम्बन्धित समस्त शर्तों को मानने के लिए अपने को आबद्ध करते हैं और लीज डीड की शर्तों से भी अपने को प्रतिबद्ध करते हैं। वे प्रतिफल का शेष, मेण्टीनेंस चार्ज तथा अन्य बकाया जो जय प्रकाश एसोसिएट्स लि0 को देय है, भुगतान करने के लिए विश्वास दिलाते हैं। वे कथित अपार्टमेण्ट/प्लाट के सम्बन्ध में समस्त स्टैम्प ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन चार्ज तथा विधिक आनुसांगिक व्यय को अदा करने के लिए स्वयं को आबद्ध करते हैं। ऐसी ही अण्डरटेकिंग रमेश कुमार पवार की पत्नी श्रीमती सज्जना देवी ने भी दिनांक ०७-१२-२०११ को दी।
यहॉं पर यह स्पष्ट है कि प्रशान्त चन्द्रा ने खुद ही एक पत्र, अपना शपथ पत्र अपने अस्थायी आबंटन को रमेश कुमार पवार और सज्जना देवी को हस्तानान्तरित करने के लिए विपक्षी को अधिकृत किया और विपक्षी ने परिवादी की इच्छानुसार उपरोक्त अपार्टमेण्ट/प्लाट से उसे सारे हितों, अधिकारों के साथ श्री रमेश कुमार पवार को हस्तानान्तरित कर दे। परिवादी अब यह नहीं कह सकता कि उसने तो अभिलेखों को देखने या लेने के लिए किसी को अधिकृत किया था।
पत्रावली पर एक पावर आफ अटार्नी ३०-११-२०११ का है जिसमें प्रशान्त चन्द्रा ने देवराज साहनी को पावर आफ अटार्नी प्रदान की और लिखा है कि वह उनकी ओर से जय प्रकाश एसोसिएट्स लि0 के आफिस में उपस्थित होंगे और प्लाट सं0-ए एम एन ०१०१६०८, जे0पी0 ग्रीन्स नोएडा में प्रशान्त चन्द्रा को आबंटित करने के सम्बन्ध में सभी अभिलेख प्रस्तुत करेंगे और इस हस्तानान्तरण के लिए कोई भी कार्य, अभिलेख या अन्य आवश्यकता होगी उसे पूरा करेंगे। इस पावर आफ अटार्नी में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि अटार्नी होल्डर मात्र अभिलेख देखेंगे, बल्कि स्पष्ट रूप से अंकित है कि वह प्लाट के ट्रान्सफर के लिए सारी कार्यवाही करेगा। इससे स्पष्ट होता है कि प्रशान्त चन्द्रा और रमेश कुमार पवार के बीच कोई न कोई बात अवश्य होगी जिसके कारण परिवादी ने
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उपरोक्त अपार्टमेण्ट/प्लाट को अपने को अस्थायी रूप से आबंटित, का हस्तानान्तरण रमेश कुमार पवार के पक्ष में किया जो पावर आफ अटार्नी के अतिरिक्त प्रशान्त चन्द्रा खुद के पत्र दिनांक ३०-११-२०११ और उनके शपथ पत्र दिनांक २३-११-२०११ से स्पष्ट है।
जब प्रकाश चन्द्रा अपना सारा हित, अधिकार आदि रमेश कुमार पवार के पक्ष में हस्तानान्तरित कर चुका है तब वह अब विपक्षी का उपभोक्ता नहीं रह गया बल्कि विपक्षी के उपभोक्ता रमेश कुमार पवार और श्रीमती सज्जना देवी हो गए।
रमेश कुमार पवार अब उसी अपार्टमेण्ट को पुन: प्रशान्त चन्द्रा को हस्तानान्तरित करना चाहता है और परिवादी का कथन है कि इसके लिए जय प्रकाश एसोसिएट्स लि0 उनको अनुमति नहीं दे रहा है। जब प्रशान्त चन्द्रा का सारा अधिकार उक्त प्लाट से खत्म हो चुका है तब उनका कोई विधिक स्थान नहीं है कि वह तृतीय पक्ष के लिए विपक्षी के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत कर वांछित अनुतोष प्राप्त करें।
परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि विपक्षी को आदेश दिया जाए कि वह इस फ्लैट सं0-ए एम एन ०१०१६०८, जे0पी0 अमन नोएडा का पुन: बिना किसी ब्याज अथवा दाण्डिक ब्याज के उसके नाम से अपने अभिलेखों को हस्तान्तरित करे। यह तर्क कहॉं तक उचित है क्योंकि मांगा गया अनुतोष उपभोक्ता आयोग से सम्बन्धित न हो कर दीवानी न्यायालय से सम्बन्धित है क्योंकि परिवादी आज्ञापक निषेधाज्ञा की मांग कर रहा है जो यहॉं से प्रदान नहीं की जा सकती क्योंकि वह अब विपक्षी का उपभोक्ता नहीं रह गया है। अन्य अनुतोषों में विभिन्न प्रकार के ब्याज, क्षतिपूर्ति आदि की मांग की गई है लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जब उक्त फ्लैट रमेश कुमार पवार को हस्तानान्तरित किया जा चुका है तब रमेश कुमार पवार इस फ्लैट को परिवादी के पक्ष में हस्तानान्तरित नहीं करता है तब तक यदि कोई अनुतोष है तो वह अनुतोष रमेश कुमार पवार तथा श्रीमती सज्जना देवी प्राप्त करने के अधिकारी हैं न कि परिवादी।
यह मामला अपने आप में एक विशिष्ट प्रकार का मामला है जहॉं पर परिवादी पहले अपनी इच्छा, शपथ पत्र और पावर आफ अटार्नी से स्वयं को अस्थायी रूप से आबंटित अपार्टमेण्ट/प्लाट का हस्तानान्तरण रमेश कुमार पवार के पक्ष कराने सम्बन्धी
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अभिलेख निष्पादित कर चका है और फिर बाद में रमेश कुमार पवार से उसे पुन: अपने पक्ष में हस्तानान्तरित करना चाहता है जो अभी तक हस्तानान्तरित नहीं हुआ है। जब परिवादी के स्थान पर कोई दूसरा आ गया है तब परिवादी इस मामले में पीडि़त पक्ष या बतौर परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता नहीं बना सकता है।
परिवाद के समस्त तथ्यों को देखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इस मामले में परिवाद का कोई विधिक आधार नहीं है और परिवाद पत्र सव्यय निरस्त होने योग्य है।
आदेश
परिवाद सव्यय निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-२.