राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-3030/2000
(जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम आगरा द्वारा परिवाद संख्या-176/1996 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 17.11.2000 के विरूद्ध)
अजय कुमार शर्मा पुत्र श्री बेनी प्रसाद शर्मा, निवासी 6/242, बालागंज, तिकोनिया, आगरा, डुइंग सर्विस एसबीआई, मेन ब्रांच, चिप्पीटोला, आगरा।
.........................अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2।
बनाम्
1. जसवंत सिंह पुत्र स्व0 श्री दर्शन लाल जी, निवासी 27/126बी, हवेली बहादुर खान, पोस्ट बालांगज, आगरा।
2. मेसर्स संयुक्त बैंक कर्मचारी (वेतन भोगी) सहकारी फाइनेन्स एवम सख समिति लि0, 99/6 बल्केश्वर कालोनी, आगरा।
3. महेश चंद शर्मा, सेक्शन एसबीआई, बरहन आगरा, निवासी 99/6, बल्केश्वर कालोनी, आगरा।
4. एस0के0 श्रीवास्तव, एडमिनिस्ट्रेटर, भारत पुर हाउस, आगरा।
5. प्रशांत कुमार सक्सेना, एक्स प्रसीडेंट, निवासी 26/52, जेवनी मण्डी, आगरा, केयर आफ इलाहाबाद बैंक, आगरा यूनिवर्सिटी, आगरा।
..........प्रत्यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी संख्या-1,3,4,5।
समक्ष:-
1. माननीय श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अरूण टण्डन, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 01.10.2014
माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अरूण टण्डन उपस्थित हैं। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को विस्तारपूर्वक सुना गया एवं उनके तर्कों के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली का परिशीलन किया गया।
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अपीलार्थी अजय कुमार शर्मा ने प्रस्तुत अपील जिला फोरम, प्रथम आगरा द्वारा परिवाद संख्या-176/1996 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 17.11.2000 के विरूद्ध दिनांक 12.12.2000 को योजित की गयी है।
पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी संख्या-1, जसवंत सिंह ने प्रत्यर्थी संख्या-2/विपक्षी संख्या-1 मे0 संयुक्त बैंक कर्मचारी (वेतन भोगी) सहकारी ऋण एवं सख समिति लि0 बल्केश्वर कालोनी आगरा से रू0 15,000/- की एक एफडीआर दिनांक 24.03.1992 को खरीदा था, जिसकी परिपक्व धनराशि रू0 17,048/- एवं परिपक्व तिथि 24.03.1993 थी। परिवाद में कहा गया है कि अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2 अजय कुमार शर्मा उक्त सोसायटी के अध्यक्ष थे तथा प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3, श्री महेश चंद शर्मा सचिव थे। शेष विपक्षीगण उक्त सोसायटी में अन्य रूपेण सम्बन्ध थे। परिवादी/प्रत्यर्थी संख्या-1 का कहना है कि उपरेाक्त एफडीआर के परिपक्व हो जाने पर उसके द्वारा उसे भुनाने के लिए सोसायटी के अधिकारियों से सम्पर्क किया गया, परन्तु उनके द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी एवं लगातार टाल-मटोल किया जाता रहा। अंतत: विवश होकर उनके द्वारा जिला फोरम में सेवा में कमी के आधार पर परिवाद योजित किया गया, जिसमें अधीनस्थ फोरम द्वारा सभी तथ्यों पर विचार-विमर्श करने के उपरान्त विपक्षीगण को संयुक्त रूप से तथा पृथक रूप से प्रश्नगत एफडीआर की सम्पूर्ण धनराशि मय 13 प्रतिशत वार्षिक ब्याज एवं अन्य उपशमों सहित वापस करने हेतु आदेशित किया गया है। इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील दाखिल की गयी है। अपीलार्थी का कहना है कि उनका इस सोसायटी से कोई सम्बन्ध अथवा वास्ता सरोकार नहीं है एवं प्रत्यर्थी संख्या-1/परिवादी जसवंत सिंह ने उन्हें अनावश्यक रूप से पक्षकार बनाया है, परन्तु अपीलार्थी द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं किया गया है, जिससे यह प्रमाणित हो सके कि वास्तव में उनका इस सोसायटी से कोई वास्ता सरोकार कभी नहीं रहा। प्रत्यर्थी संख्या-1/परिवादी जसवंत सिंह ने अपने कथन के समर्थन में शपथपत्र प्रस्तुत किया है एवं अन्य विपक्षीगण द्वारा इस बात से इंकार नहीं किया गया है। पत्रावली में इस बात का साक्ष्य उपलब्ध है कि प्रत्यर्थी संख्या-1/परिवादी जसवंत सिंह द्वारा रजिस्ट्रार आफ सोसायटीज से सम्बन्ध स्थापित करने पर यह सूचना रजिस्ट्रार द्वारा उपलब्ध करायी गयी थी कि अपीलार्थी उक्त सोसायटी का अध्यक्ष था एवं रजिस्ट्रार द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना के आधार पर परिवाद संस्थित किया गया था। अधीनस्थ फोरम द्वारा उपरोक्त सभी बातों पर विचार-विमर्श करने के उपरान्त प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है, जिसमें किसी प्रकार की विधिक अथवा तथ्यात्मक त्रुटि नहीं है। अत: इसमें हस्तक्षेप करने का प्रथम दृष्टया कोई आधार नहीं बनता है। वर्णित परिस्थितियों में यह अपील सारहीन होने के कारण निरस्त होने योग्य है।
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आदेश
यह अपील सारहीन होने के कारण निरस्त की जाती है। जिला फोरम, प्रथम आगरा द्वारा परिवाद संख्या-176/1996 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 17.11.2000 की पुष्टि की जाती है।
वाद व्यय के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है। इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये। पत्रावली दाखिल अभिलेखागार हो।
(आलोक कुमार बोस) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0-2
कोर्ट-5