Uttar Pradesh

StateCommission

A/1999/1868

Union of India - Complainant(s)

Versus

Janardan Mishra - Opp.Party(s)

24 Nov 1999

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1999/1868
( Date of Filing : 23 Nov 1999 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Union of India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Janardan Mishra
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 24 Nov 1999
Final Order / Judgement

  राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।                                                           

सुरक्षित

अपील सं0-१८६८/१९९९

 

(जिला मंच, बलिया द्वारा परिवाद संख्‍या-१८६/१९९७ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१-०५-१९९९ के विरूद्ध)

 

१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा दी सैक्रेटरी, डिपार्टमेण्‍ट आफ पोस्‍ट, नई दिल्‍ली।

२. सीनियर सुपरिण्‍टेण्‍डेण्‍ट आफ पोस्‍ट आफिसेज, बलिया डिवीजन, बलिया। 

                                          .............अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।

बनाम

१. जनार्दन मिश्र पुत्र स्‍व0 वाम देव मिश्र, लेक्‍चरर, टाउन पॉली‍टेक्निक, बलिया।

  ............     प्रत्‍यर्थी/परिवादी।

२. दी ब्रान्‍च मैनेजर, लाइफ इंश्‍योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, बलिया।

                                           ............     प्रत्‍यर्थी/विपक्षी सं0-३.

समक्ष:-

१-  मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य।

२-  मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्‍य।

 

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : डॉ0 उदय वीर सिंह विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा                       

                              अधिकृत अधिवक्‍ता श्री श्रीकृष्‍ण पाठक।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित   : कोई नहीं।

 

दिनांक :-  २१-०६-२०१९.

 

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत अपील, जिला मंच, बलिया द्वारा परिवाद संख्‍या-१८६/१९९७ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१-०५-१९९९ के विरूद्ध योजित की गयी है।

संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं प्रत्‍यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी टाउन पालीटेक्निक, बलिया में प्रवक्‍ता है। उसकी बीमा पालिसी की परिपक्‍वता अवधि पूर्ण होने के पश्‍चात् पालिसी सं0-४६३२९२५२ का चेक सं0-६७८०६१३ दिनांक १७-०२-१९९७ मु0 २०,११८/- रू० का रजिस्‍ट्री सं0-२२७५ द्वारा प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम ने अपीलार्थी डाक विभाग के माध्‍यम से भेजा। रजिस्‍ट्री पर पता जनार्दन मिश्र टाउन पालीटेक्निक, बलिया अंकित था जिसको परिवादी को प्राप्‍त कराने का दायित्‍व    अपीलार्थी सं0-२ का था। अपीलार्थी सं0-२ के कर्मचारियों द्वारा मिलीभगत करके रजिस्‍ट्री

 

 

-२-

व चेक परिवादी को नहीं दिया गया तथा पता लगाने पर सही जानकारी भी नहीं दी  गई। बाद में पता लगाने पर यह पता लगा कि पोस्‍ट आफिस के लोगों ने मिल-मिलाकर रजिस्‍ट्री नं0-२२७५ को अनधिकृत व्‍यक्ति को दे दिया है और उन लोगों ने कपटपूर्वक पोस्‍ट आफिस में नया खाता सं0-४७२५०३ खोलकर उसमें चेक जमा कर दिया। उक्‍त खाता अनधिकृत व्‍यक्ति जनार्दन मिश्र पुत्र शंकर मिश्र, कदम चौराहा के नाम से खोला गया जिसकी पहचान डाकघर के एजेन्‍ट जितेन्‍द्र मिश्र पुत्र जनार्दन मिश्र हरिपुर, बलिया द्वारा की गई। उक्‍त जानकारी होने पर परिवादी ने अपीलार्थी सं0-२ को सूचना दी तथा उक्‍त खाता सं0-४७२५०३ में जमा धनराशि निकालने पर प्रतिबन्‍ध भी लगवा दिया तथा परिवादी ने अपना रूपया प्राप्‍त करने के लिए अपीलार्थीगण के कार्यालय में लिखित तथा मौखिक रूप से प्रार्थना की किन्‍तु परिवादी को पालिसी के चेक का रूपया नहीं दिलवाया गया। अन्‍तत: दिनांक २६-०७-१९९७ को अपीलार्थी सं0-२ द्वारा रूपया दिलाए जाने से इन्‍कार कर दिया गया। अत: परिवाद पालिसी सं0-४७३२९२५२ का २०,११८/- रू० जो गलत तौर पर खाता सं0-४७२५०३ में अपीलार्थीगण के यहॉं जमा है, को दिलाए जाने तथा १०,०००/- रू० परिवादी को विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाए जाने हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया।

अपीलार्थी सं0-२ द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया। अपीलार्थी सं0-२ के कथनानुसार परिवादी डाक विभाग का उपभोक्‍ता नहीं है, अत: परिवाद पोषणीय नहीं है। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि परिवाद भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ के अनुसार अपीलार्थीगण के विरूद्ध बाधित है। शाखा प्रबन्‍धक, भारतीय जीवन बीमा निगम, बलिया द्वारा एक पंजीकृत पत्र सं0-२२७५ दिनांक २२-०२-१९९७ को बलिया सिटी डाकघर से जारी किया गया जो भारतीय जीवन बीमा निगम के कथनानुसार जनार्दन मिश्र प्रवक्‍ता टाउन पालीटेक्निक, बलिया के नाम से था और उसमें एक चेक सं0-६७८०६१३ दिनांकित १७-०२-१९९७ मु0 २०,११८/- रू० का भेजा गया था। उक्‍त पंजीकृत पत्र प्रधान डाकघर में आने के पूर्व ही कहीं गायब हो गया और उसके स्‍थान पर      एक अन्‍य लिफाफा जिस पर क्रमांक २२७५ लिखा हुआ था, प्राप्‍त हुआ था जिस पर पता

 

 

 

 

-३-

गलत होने के कारण उसका वितरण नहीं किया गया तथा उसे रिटर्न लैटर आफिस को भेज दिया गया। परिवाद की जानकारी मिलने पर वह लिफाफा मंगाया गया तथा उसकी विभागीय जांच करायी जा रही है। परिवादी से प्राप्‍त सूचना के आधार पर जांच कराने पर यह ज्ञात हुआ कि चेक की धनराशि को प्रधान डाकघर बलिया में बचत खाता सं0-४७२५०३ में जमा किया गया है। परीक्षण करने पर यह भी ज्ञात हुआ कि उक्‍त बचत खाता श्री जनार्दन मिश्र पुत्र शंकर मिश्र कदम चौराहा बलिया के नाम में फर्जी आदमी के द्वारा खोला गया है, क्‍योंकि उस पते पर इस नाम का कोई आदमी नहीं है। इस खाते को खोलने वाले व्‍यक्ति की पहचान जितेन्‍द्र मिश्र बचत अभिकर्ता द्वारा की गई है। जितेन्‍द्र मिश्र बचत अभिकर्ता के पिता का नाम भी जनार्दन मिश्र है जो हरपुर बलिया के निवासी हैं। इस बचत खाते से लेन-देन पर रोक लगा दी गई है।

प्रश्‍नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि प्रत्‍यर्थी सं0-२ मूल परिवाद के विपक्षी सं0-३, शाखा प्रबन्‍धक, भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा भी प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया। भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा अपीलार्थी सं0-२ के माध्‍यम से चेक भेजा जाना स्‍वीकार किया गया। प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से प्रस्‍तुत किए गये प्रतिवाद पत्र की प्रति अपील में दाखिल नहीं की गई है।

प्रश्‍नगत निर्णय द्वारा जिला मंच ने अपीलार्थी सं0-२ को निर्देशित किया कि वह परिवादी को चेक की धनराशि २०,११८/- रू० तथा इस धनराशि पर दिनांक २७-०२-१९९७ से भुगतान की तिथि तक १२ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज जोड़कर निर्णय की तिथि से ०२ माह के अन्‍दर भुगतान करे। साथ ही मानसिक एवं शारीरिक सन्‍ताप के परिशमन के लिए १,०००/- रू० तथा वाद व्‍यय के रूप में ५००/- रू० भी निर्धारित अवधि में अपीलार्थी सं0-२, परिवादी को भुगतान करे।    

इस निर्णय से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी है।

हमने अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता डॉ0 उदय वीर सिंह द्वारा अधिकृत श्री श्रीकृष्‍ण पाठक एडवोकेट के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।

 

 

-४-

प्रत्‍यर्थी सं0-१/परिवादी पर नोटिस की तामील के बाबजूद उसकी ओर से तर्क प्रस्‍तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ। प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा अपील के विरूद्ध आपत्ति प्रस्‍तुत की गई किन्‍तु उसके बाद प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।  

अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रत्‍यर्थी सं0-१/परिवादी अपीलार्थीगण का उपभोक्‍ता नहीं है क्‍योंकि प्रश्‍नगत पंजीकृत पत्र की बुकिंग प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा की गई थी। प्रत्‍यर्थी सं0-१/परिवादी इस पत्र का मात्र प्राप्‍तकर्ता था। प्रश्‍नगत पंजीकृत डाक द्वारा भेजे गये चेक के सन्‍दर्भ में जनार्दन मिश्र नाम के व्‍यक्ति के नाम से खोले गये खाते के फर्जी होने के सन्‍दर्भ में परिवादी द्वारा की गई शिकायत की जांच कराने पर ज्ञात हुआ कि खाता फर्जी पाये जाने पर यह खाता सील कर दिया गया। जिला मंच ने प्रश्‍नगत परिवाद पोषणीय न होने के बाबजूद प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया है।

अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि परिवाद भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ से बाधित है। इस धारा के अन्‍तर्गत भेजी गई डाक की गलत डिलीवरी होने, डिलीवरी न होने, डिलीवरी विलम्‍ब से होने की स्थिति में जब तक यह प्रमाणित नहीं हो कि डाक विभाग के किसी कर्मचारी अथवा अधिकारी द्वारा जानबूझकर अथवा कपटपूर्वक डाक का वितरण नहीं किया गया, डाक विभाग क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु उत्‍तरदायी नहीं होगा। अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि बीमा धनराशि की अदायगी का दायित्‍व अपीलार्थीगण का नहीं है।

अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता ने यूनिट ट्रस्‍ट आफ इण्डिया बनाम रवीन्‍दर कुमार शुक्‍ला व अन्‍य, (२००५) ७ सुप्रीम कोर्ट केसेज ४२८ के मामले में मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया। उक्‍त निर्णय का हमने अवलोकन किया। उक्‍त निर्णय में यू0टी0आई0 द्वारा चेक रजिस्‍टर्ड डाक द्वारा प्रेषित किया गया जो वास्‍तविक व्‍यक्ति को न प्राप्‍त कराके किसी अन्‍य व्‍यक्ति को प्राप्‍त      कराया गया। ऐसी स्थिति में मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने यह माना कि पोस्‍ट आफिस ने

 

 

 

 

-५-

यू0टी0आई0 के एजेण्‍ट के रूप में कार्य किया, अत: क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु यू0टी0आई0 को उत्‍तरदायी माना गया। मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने उपरोक्‍त निर्णय में यह मत व्‍यक्‍त किया - ‘’Thus the law is that in the absence of any contract or request from the payee, mere posting would not amount to payment. In cases where there is no contract or request, either express or implied, the post office would continue to act as the agent of the drawer. In that case the loss is of the drawer. ‘’

      प्रस्‍तुत मामले के तथ्‍य भी मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा निर्णीत किए गये उपरोक्‍त मामले के तथ्‍यों के समान ही हैं। प्रस्‍तुत मामले में चेक अपीलार्थी डाक विभाग के माध्‍यम से प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी को भेजा जो उसे नहीं मिला तथा डाक विभाग द्वारा किसी दूसरे व्‍यक्ति को वितरित कर दिया गया तथा इस चेक का भुगतान प्राप्‍त करने हेतु अपीलार्थी सं0-२ डाक विभाग में ही फर्जी खाता खोला गया तथा इस चेका भुगतान उक्‍त खाते में प्राप्‍त किया गया। प्रस्‍तुत प्रकरण में प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम का यह कथन नहीं है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के अनुरोध पर चेक उसे पंजीकृत डाक से भेजा गया। ऐसी परिस्थिति में मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दिए गये उपरोक्‍त निर्णय द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्‍त के आधार पर अपीलार्थीगण का कार्य भारतीय जीवन बीमा निगम के एजेण्‍ट के रूप में किया गया कार्य माना जायेगा तथा यह माना जायेगा कि भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी को चेक की धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। पंजीकृत डाक किसी गलत व्‍यक्ति को डिलीवरी किए जाने के सन्‍दर्भ में अपीलार्थीगण, प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम के प्रति उत्‍तरदायी होंगे। कथित चेक की धनराशि की बसूली हेतु प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम कार्यवाही किए जाने हेतु हमारे विचार से स्‍वतन्‍त्र होगा किन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादी को अपीलार्थीगण का उपभोक्‍ता नहीं माना जा सकता।

      यह तथ्‍य निर्विवाद है कि प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा २०,११८/- रू० का चेक प्रत्‍यर्थी/परिवादी की बीमा पालिसी के परिपक्‍व होने के उपरान्‍त

 

 

 

-६-

परिवादी को भेजा गया किन्‍तु पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य से यह प्रमाणित है कि इस चेक का भुगतान प्रत्‍यर्थी/परिवादी को प्राप्‍त नहीं हुआ। ऐसी परिस्थिति में प्रश्‍नगत चेक की धनराशि का मय ब्‍याज भुगतान प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम से प्रत्‍यर्थी/परिवादी को कराया जाना न्‍यायसंगत होगा।

उल्‍लेखनीय है कि स्‍वयं अपीलार्थीगण यह स्‍वीकार करते हैं कि प्रश्‍नगत चेक का भुगतान प्रधान डाकघर, बलिया द्वारा बचत खाता सं0-४७२५०३ में प्राप्‍त किया गया है तथा यह चेक, किसी फर्जी व्‍यक्ति द्वारा खोले गये खाते में जमा किया गया है। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थीगण से यह अपेक्षित है कि इस खाते में जमा समस्‍त धनराशि का मय ब्‍याज भुगतान प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम को किया जाना सुनिश्चित करेंगे।

उपरोक्‍त तथ्‍यों के आलोक में हमारे विचार से अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है तथा अपीलार्थीगण के विरूद्ध जिला मंच द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय अपास्‍त किए जाने योग्‍य है किन्‍तु प्रश्‍नगत परिवाद, प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम के विरूद्ध आंशिक रूप से स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।     

आदेश

      प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला मंच, बलिया द्वारा परिवाद संख्‍या-१८६/१९९७ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१-०५-१९९९ अपास्‍त किया जाता है। मूल परिवाद के विपक्षी सं0-३/प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम के विरूद्ध परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है। प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय की प्रति प्राप्ति की तिथि से ४५ दिन के अन्‍दर २०,११८/- रू० मय ब्‍याज प्रत्‍यर्थी/परिवादी को भुगतान करे। प्रत्‍यर्थी/परिवादी इस धनराशि पर प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम से प्रश्‍नगत चेक जारी किए जाने की तिथि १७-०२-१९९७ से भुगतान की तिथि तक ०८ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज प्राप्‍त करने का अधिकारी होगा। इसके अतिरिक्‍त निर्धारित अवधि में प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम, परिवादी को १,०००/- रू० वाद व्‍यय के रूप में भी भुगतान

 

 

-७-

करे। उपरोक्‍त धनराशि की अदायगी प्रत्‍यर्थी/परिवादी को किए जाने के उपरान्‍त प्रत्‍यर्थी/परिवादी को भुगतान की गई धनराशि की बसूली के सन्‍दर्भ में प्रत्‍यर्थी सं0-२ भारतीय जीवन बीमा निगम अपीलार्थीगण के विरूद्ध कार्यवाही किए जाने हेतु स्‍वतन्‍त्र होगा।

      इस अपील का व्‍यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्‍वयं वहन करेंगे।

      उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्‍ध करायी जाय।

 

                                                (उदय शंकर अवस्‍थी)

                                                  पीठासीन सदस्‍य

 

 

                                                  (गोवर्द्धन यादव)

                                                      सदस्‍य

 

 

प्रमोद कुमार,

वैय0सहा0ग्रेड-१,

कोर्ट नं.-२.  

 

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
MEMBER

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