राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(सुरक्षित)
अपील सं0- 2633/2018
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0- 86/2014 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18.09.2015 के विरुद्ध)
1. Engineer-in-Chief, Public Works Department, Uttar Pradesh, Lucknow.
2. Chief Engineer, Public Works Department, Varanasi.
3. Executive Engineer, Public Works Department, Sonebhadra, District Sonebhadra.
4. Assistant Engineer, Rural Area, Ghorawal, Public Works Department, Robertsganj Sonebhadra.,
……….Appellants.
Versus
Janardan Prasad, son of Shri Nageshwar Prasad, resident of Dumariya Bharauli, Tehsil Ghorawal, District Sonebhadra.
……….Respondent
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री आलोक रंजन,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री सुधीर कुमार श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 18.09.2024
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 86/2014 जर्नादन प्रसाद बनाम इंजीनियर इन चीफ सार्वजनिक निर्माण विभाग (पी0डब्लू0डी0) व तीन अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, सोनभद्र द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 18.09.2015 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रश्नगत निर्णय व आदेश के माध्यम से निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवादी का परिवाद पत्र एक पक्षीय रूप से विपक्षीय के विरूद्ध आंशिक तौर पर स्वीकार किया जाता है, तथा विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी की परिवाद में वर्णित भूखण्ड की क्षतीपूर्ति राशि मु0 2,25,000/- (दो लाख पच्चीस हजार रू0) सड़क निर्माण कराये जाने की तिथि से परिवादी को क्षतिपूर्ति अदा करने की तिथि मय 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ एक महीने के अन्दर परिवादी को अदा करें। इसके अतिरिक्त विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी को मानसिक एवं शारिरिक क्षति के लिये मु० 10,000/00 रू० तथा वाद व्यय के लिये 2000/00 भी परिवादी को एक महीने के अन्दर अदा करे। उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि विपक्षीगण एक महीने के अन्दर परिवादी को अदा करें।’’
प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी आ0नं0- 35ख रकबा 2150 हे0, मौजा डुमरिया, भरौली, परगना बडहर, तहसील-घोरावल, जिला सोनभद्र का संक्रमणीय भूमिधर मालिक व काबिज है, लेकिन उक्त आराजी मौके पर सड़क है अपीलार्थीगण/विपक्षीगण सरकार के प्रतिष्ठान पी0डब्लू0डी0 के अफसर हैं। प्रत्यर्थी/परिवादी उक्त भूमि घोरावल बाजार से कोहरथा जाने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित है लगभग 20 वर्ष पूर्व अपीलार्थीगण/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी की उक्त आराजी का बिना अधिग्रहण बिना मुआवजा दिये उस पर पनकी सड़क बना दिया है और आराजी बतौर सड़क बीसों वर्ष से उपयोग की जा रही है, जबकि प्रत्यर्थी/परिवादी सरकार को उक्त भूमि का लगान भी दे रहा है। उक्त भूमि की सरकारी मालियत बारह लाख रूपया एकड़ अर्थात तीन लाख रूपया बीघा है, जबकि उक्त भूमि का बजारू रेट साढ़े तीन लाख रूपया बीघा है। उक्त पूरी भूमि 0.2150 हे0 अर्थात पन्द्रह विस्वा की कीमत सरकारी दर से दो लाख पच्चीस हजार रुपया होती है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थीगण सं0- 3 व 4/विपक्षीगण सं0- 3 व 4 से लिखित एवं मौखिक रूप से बार-बार याचना किया कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण उसके उक्त भूमि नं0 35ख रकबा 0.2150 हे0 का मुआवजा प्रत्यर्थी/परिवादी को दे देवें। अपीलार्थीगण सं0- 3 व 4/विपक्षीगण सं0- 3 व 4 उसे भरोसा दिलाते रहे कि उच्चाधिकारियों से लिखा-पढ़ी की जा रही है। मुआवजा स्वीकृत होने के करीब है जैसे ही मंजूर होगा प्रत्यर्थी/परिवादी को क्षतिपूर्ति धनराशि दे देगें। इस कारण प्रत्यर्थी/परिवादी इंतजार करता रहा।
प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा यह भी कहा गया है कि वाद का कारण माह अगस्त 2014 के दूसरे सप्ताह में उस समय उत्पन्न हुआ जब अपीलार्थीगण/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी की भूमि का मुआवजा देने से साफ तौर पर इंकार कर दिया। इस प्रकार फोरम को सुनवाई का हक प्राप्त है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने 2,25,000/-रू0 मुआवजा राशि तथा 50,000/-रू0 मानसिक व शारीरिक क्षतिपूर्ति एवं 5000/-रू0 मय ब्याज तथा खर्चा मुकदमा दिलाने की याचना किया है। साथ ही यह भी कथन किया है कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण बिना नोटिस व बिना सहमति उसकी उक्त भूमि पर सड़क बनाकर सेवा के पार्ट पर घोर कमी किये हैं। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के यहां जवरीया सड़क बनाने की तिथि लगभग 20 वर्ष पूर्व से मुवावजा के लिये लिख-पढ़ी व दौड़-धूप करता चला आ रहा है, परन्तु मुआवजा राशि 2,25,000/-रू0 एवं 50,000/-रू0 मानसिक एवं शारीरिक क्षतिपूर्ति, 5,000/-रू0 मय ब्याज एवं वाद व्यय के अलावा अन्य जिन दो प्रतिकरों का मुख्त हक दिलाये जाने हेतु यह परिवाद योजित किया है।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा नोटिस जारी की गई तदोपरांत अपीलार्थीगण/विपक्षीगण दि0 23.02.2015 को जरिये पैरोकार उपस्थित हुये, परन्तु उनकी ओर से कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया।
हमारे द्वारा अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक रंजन एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री सुधीर कुमार श्रीवास्तव को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परीक्षण व परिशीलन किया गया।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा मुख्य रूप से इस तर्क पर बल दिया गया कि उभयपक्ष के मध्य का विवाद उपभोक्ता संरक्ष्ाण अधिनियम की परिधि में नहीं आता है एवं विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग को प्रस्तुत परिवाद को ग्रहण करने और निस्तारण का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा यह कथन किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी किसान है और उसके खेत की भूमि सार्वजनिक निर्माण विभाग ने सरकारी सड़क बनाते समय बिना अधिग्रहण किये और बिना मुआवजा दिये हुये भूमि पर सड़क बना दी। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा मुआवजे की धनराशि मांगी गई। परिवाद का कारण तब उत्पन्न होना बताया है जब मुख्य अभियंता सार्वजनिक निर्माण विभाग एवं विभाग के अन्य अधिकारियों द्वारा मुआवजा देने से इंकार कर दिया गया। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं की भूमि अधिग्रहण न होने और सीधे इस पर सड़क बना देने का वाद का कारण दर्शाया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी सार्वजनिक निर्माण विभाग से किसी सेवा का लिया जाना अथवा किसी माल को प्रतिफल के बदले क्रय किये जाने का कोई कथन नहीं किया है। धारा 2(1)डी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में उपभोक्ता की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार से दी गई है:-
‘’उपभोक्ता से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जो-
(i) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत संदाय किया गया है. और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है, और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न, जो ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है या भागत: वचन दिया गया है या आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन माल का क्रय करता है ऐसे माल का कोई प्रयोगकर्ता भी है. जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है किन्तु इसके अन्तर्गत ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो ऐसे माल को पुन: विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्त करता है: और
(ii) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है. या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है) और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न जो ऐसे किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागत: संदाय किया गया है और भागतः वचन दिया गया है या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है) ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है जब ऐसी सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है, (किन्तु इसके अंतर्गत ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो ऐसे माल को पुनः विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्त करता है, और
(iii) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है और भागतः वचन दिया गया है, या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है) और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न जो ऐसे किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है) ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है जब ऐसी सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है, (किन्तु इसके अंतर्गत ऐसा व्यक्ति नहीं आता है जो किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए ऐसी सेवाएं प्राप्त करता है।)
(स्पष्टीकरण इस खंड के प्रयोजनों के लिए, "वाणिज्यिक प्रयोजन" के अतर्गत किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे माल या सेवाओं का उपयोग नहीं है जिन्हें वह स्व: नियोजन द्वारा अपनी जीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिए अनन्य रूप से लाया है और जिनका उसने उपयोग किया है और उसने जो सेवाएं प्राप्त की है)"
प्रस्तुत मामले में धारा 2(1)(डी) की परिभाषा के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी सार्वजनिक निर्माण विभाग से कोई सेवा लिया जाना अथवा माल खरीदने का कोई वर्णन नहीं है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता की परिभाषा में नहीं आता है एवं अपीलार्थी/विपक्षी किसी प्रकार सेवा प्रदाता की श्रेणी में नहीं आता है। अतएव यह विवाद उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के मध्य न होने के कारण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा इस बिन्दु पर विचार नहीं किया गया है। चूँकि प्रश्नगत निर्णय व आदेश क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर पारित किया गया है। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य एवं अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है।
उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुधा उपाध्याय)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3