Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/2365

Central Bank Of India - Complainant(s)

Versus

Jamuna Prasad Jaiswal - Opp.Party(s)

Zafar Aziz

16 Oct 2020

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/2365
( Date of Filing : 05 Dec 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Central Bank Of India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Jamuna Prasad Jaiswal
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 16 Oct 2020
Final Order / Judgement

सुरक्षित

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ

 

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, देवरिया द्वारा परिवाद संख्‍या 216 सन 2008 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 29.10.2011  के विरूद्ध)

 

अपील संख्‍या 2365 सन 2011

1; सेन्‍ट्रल बैक आफ इण्डिया, अंसारी रोड, देवरिया, द्वारा चीफ ब्रांच मैनेजर ।

2: सेन्‍ट्रल बैक आफ इण्डिया 15/16, बजाज भवन, रजनी पटेल रोड, नरीमन प्‍वांइट, मुम्‍बई ।

 

                                                  .......अपीलार्थी/प्रत्‍यर्थी

-बनाम-

 

1. जमुना प्रसाद जायसवाल पुत्र श्री देवी लाल जायसवाल, अप्‍सरा होटल एवं बार, रेलवे स्‍टेशन रोड, देवरिया ।

2. कलावती देवी पत्‍नी श्री जमुना प्रसाद, अप्‍सरा होटल एवं बार, रेलवे स्‍टेशन रोड, देवरिया ।

 

. .........प्रत्‍यर्थी/परिवादी

 

 

समक्ष:-

मा0   श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य  ।

मा0    श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य ।

 

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता  -  श्री जफर अजीज।

प्रत्‍यर्थी   की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता  -  श्री बी0के0 उपाध्‍याय।

 

दिनांक:-23-10-20

 

श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित

निर्णय

 

      प्रस्‍तुत अपील, जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, देवरिया द्वारा परिवाद संख्‍या 216 सन 2008 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 29.10.2011  के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी है ।

      संक्षेप में, प्रकरण के आवश्‍यक तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने जीविकोपार्जन हेतु अप्‍सरा होटल एवं बार चलाने के लिए विपक्षी से 20 लाख रू0 का ओ0डी0 ऋण लिया था जिसके लिए विपक्षी ने परिवादी के दो मकान बंधक रखे थे जिसमें रामगुलाम टोला में स्थित एक मकान 850 वर्ग फुट में निर्मित था जिसकी कीमत 08,09,750.00 रू0 तथा दूसरे मकान  की मालियत 32,28,000.00 रू0 थी। आर्थिक स्‍थति खराब हो जाने के कारण परिवादी ने 20 लाख रू0 की ओ0डी0 सीमा कम करके 10 लाख रू0 करने एवं रामगुलाम टोला में स्थित मकान के संबंध में 08 लाख रू0 जमा करवाकर अवमुक्‍त करने हेतु दिनांक 10.07.2007 को विपक्षी बैंक में आवेदन दिया ताकि उक्‍त भवन की बिक्री करके ओ0डी0 ऋण सीमा 10 लाख की जा सके तथा ऋण खाता रेगुलर किया जा सके परन्‍तु विपक्षी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी जिससे परिवादीगण पर ब्‍याज बढ़ता गया । परिवादी का कथन है कि यदि उसे स्‍वीकृति मिल गयी होती तो वह क्रेता को भवन का बैनामा करके उससे 08 लाख रू0 तत्‍काल लेकर जमा कर देता और उस पर ब्‍याज न पड़ता । परिवादी का कथन है कि वह दिनांक 10.07.2007 से उक्‍त ऋण पर ब्‍याज देने के लिए वह जिम्‍मेदार नहीं है।

      विपक्षी की ओर से जिला मंच के समक्ष अपना वादोत्‍तर प्रस्‍तुत कर उल्लिखित किया गया कि कानूनन एक बार जो सम्‍पत्ति व उससे  संबंधित कागजात जिस पक्ष के पक्ष में बंधक रखा जाता है और बंधक राशि मार्गेज मनी के रूप में प्राप्‍त की जाती है तो जब तक बंधक राशि मुताबिक बंधक पत्र व कानून अदा नहीं होता व कानूनन बंधक रखने का  प्रभाव समाप्‍त नही होता तब तक उक्‍त बंधक सम्‍पत्ति व उसके कागजात बंधक कानून से प्रभावित रहते हैं। विपक्षीगण का यह भी कथन है कि प्रश्‍नगत दस्‍तावेज बैंक के पक्ष में बंधक है। दोनो दस्‍तावेज और उसकी सम्‍पत्ति पर विपक्षी बैंक का चार्ज भार है। परिवादी पर ऋण खाता का रू0 1693414.00 रू0 बिना अपटूडेट इन्‍ट्रेस्‍ट  लगाए बाकी है। दोनों दस्‍तावेज व उसकी सम्‍पत्ति द्वारा ही उक्‍त बकाया धनराशि की अदायगी का परिवादीगण ने करार किया था ऐसी स्थिति में बिना ऋण अदायगी परिवादीगण को प्रतिपक्षी बैंक को किए गए उक्‍त बंधक सम्‍पत्ति भार मुक्‍त नहीं की जा सकती है। 

      जिला मंच ने उभय पक्ष के साक्ष्‍य एवं अभिवचनों के आधार पर यह अवधारित करते हुए विपक्षीगण बैंक के अधिकारियों ने हठधर्मिता के कारण परिवादीगण के आवेदन पर समय से विचार नहीं किया गया जिसके कारण परिवादीगण को अत्‍यधिक ब्‍याज धनराशि का भुगतान करना पड़ा है। यदि विपक्षीगण द्वारा प्रश्‍नगत भवन के दस्‍तावेज को 08 लाख रू0 जमा करवाकर अवमुक्‍त करने हेतु परिवादीगण द्वारा दिए गए आवेदन पत्र दिनांक 10.07.2007 पर त्‍वरित कार्यवाही की गयी होती तो परिवादी को आर्थिक क्षति नहीं होती। विद्वान जिला मंच ने आवेदन की तिथि  10.07.2007  के 20 दिन पश्‍चात अर्थात दिनांक 01.08.2007 से दस्‍तावेज बंधक से अवमुक्‍त करने की तिथि 24.11.2009 तक की अवधि का ब्‍याज, बैंक के सीसी लिमिट पर देय ब्‍याज की दर से जो लगभग 2,40,000.00 रू0 होती है, परिवादी के ऋण खाते में समायोजित करने संबंधी निम्‍न आदेश पारित किया :-

      '' परिवाद स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह रू0 दो लाख चालीस हजार परिवादीगण के प्रश्‍नगत सी0सी0 लिमिट खातें में दिनांक 24.11.2009 को समायोजित कर देवे तथा रू0 दो हजार पॉच सौ वाद व्‍यय के लिए परिवादीगण को अदा करे। परिवादीगण द्वारा याचित अन्‍य अनुतोष विधि सम्‍मत नहीं है। आदेश का अनुपालन विपक्षीगण एक माह में सुनिश्चित करें।''

      उक्‍त आदेश से क्षुब्‍ध होकर प्रस्‍तुत अपील सेन्‍ट्रल बैक आफ इण्डिया द्वारा योजित की गयी है।

अपील के आधारों में कहा गया है कि जिला मंच का प्रश्‍नगत निर्णय विधिपूर्ण नहीं है तथा सम्‍पूर्ण तथ्‍यों को संज्ञान में लिए बिना प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया गया है, जो अपास्‍त किए जाने योग्‍य है।

      हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क विस्‍तारपूर्वक सुने एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों का सम्‍यक अवलोकन किया।

      पत्रावली का अवलोकन करने से स्‍पष्‍ट होता है कि परिवादी ने विपक्षी से 20 लाख रू0 का ओ0डी0 ऋण लिया था जिसके लिए परिवादी ने विपक्षी के पास दो मकान बंधक रखे थे । आर्थिक स्‍थति खराब हो जाने के कारण परिवादी ने रामगुलाम टोला में स्थित अपने एक मकान के संबंध में 08 लाख रू0 जमा करवाकर अवमुक्‍त करने हेतु दिनांक 10.07.2007 को आवेदन दिया ताकि उक्‍त भवन की बिक्री करके ओ0डी0 ऋण सीमा 10 लाख की जा सके तथा ऋण खाता रेगुलर किया जा सके परन्‍तु विपक्षी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी जिससे परिवादीगण को 02,40,000.00 रू0 अधिक ब्‍याज देना पड़ा । जबकि विपक्षी कथन है कि प्रश्‍नगत दस्‍तावेज बैंक के पक्ष में बंधक है। दोनो दस्‍तावेज और उसकी सम्‍पत्ति पर विपक्षी बैंक का चार्ज भार है। परिवादी पर ऋण खाता का रू0 1693414.00 रू0 बिना अपटूडेट इन्‍ट्रेस्‍ट  लगाए बाकी है। दोनों दस्‍तावेज व उसकी सम्‍पत्ति द्वारा ही उक्‍त बकाया धनराशि की अदायगी का परिवादीगण ने करार किया था ऐसी स्थिति में बिना ऋण अदायगी परिवादीगण को प्रतिपक्षी बैंक को किए गए उक्‍त बंधक सम्‍पत्ति भार मुक्‍त नहीं की जा सकती है।

      उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्को को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों का सम्‍यक अवलोकन करने के उपरांत हम पाते हैं कि अपीलार्थी बैंक द्वारा परिवादी के ऋण संबंधी प्रार्थना पत्र पर समयावधि के अंदर विचार न करने एवं उसका निस्‍तारण न करने के कारण परिवादीगण को ऋण के संबंध में अधिक ब्‍याज चुकान पड़ा है। यदि समय से अपीलार्थीगण आवेदन पत्र का निस्‍तारण कर देते तो परिवादीगण अपना मकान बिक्री करके अपीलार्थी बैंक का ऋण समय से अदा कर देते तथा ब्‍याज देने से बच जाते। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला मंच में परिवाद दाखिल हो जाने के कारण वह ऋण संबंधी प्रार्थना पत्र का निस्‍तारण नहीं कर सके। लेकिन प्रार्थना पत्र के निस्‍तारण में निश्चित रूप से अपीलार्थी द्वारा सेवा में कमी की गयी है जिसके लिए बैंक द्वारा सीसी लिमिट से संबंधित ब्‍याज मु0 2,40,000.00 रू0 की पूर्ण वसूली करना न्‍यायोचित नहीं है।

      केस के तथ्‍य एवं परिस्थितियों के आधार पर हम यह पाते हैं कि जिला मंच द्वारा परिवादीगण के प्रश्‍नगत सी0सी0 लिमिट खातें में दिनांक 24.11.2009 से 2,40,000.00 रू0 (दो लाख चालीस हजार रू0)  को समायोजित करने संबंधी जो आदेश पारित किया गया है, वह अधिक है उसे 1,50000.00 रू0 (एक लाख पचास हजार रू0) में परिवर्तित करना न्‍यायोचित होगा, जिसके लिए प्रत्‍यर्थी/परिवादी सहमत है ।

 तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

                                    आदेश

      प्रस्‍तुत अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 29.10.2011  द्वारा आदेशित  2,40,000.00 रू0 (दो लाख चालीस हजार रू0) को 1,50000.00 रू0 (एक लाख पचास हजार रू0) में परिवर्तित करते हुए शेष आदेश की पुष्टि की जाती है।

      पक्षकारान अपना-अपना अपील व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेंगे।

   

                 

 

(गोवर्धन यादव)                                  (विकास सक्‍सेना)

     सदस्‍य                                                                                    सदस्‍य

    कोर्ट-2

 (S.K.Srivastav,PA)

 

 
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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