AATIF KHAN filed a consumer case on 03 Dec 2013 against JAKA FORD AGENCI in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/77/2013 and the judgment uploaded on 20 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक- 77-2013 प्रस्तुति दिनांक-12.09.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
आतिफ खान, पिता श्री षाहिद खान,
उम्र 30 वर्श, निवासी-ग्राम टिकारी,
थाना तहसील, बरघाट, जिला सिवनी(म0प्र0)।.................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
जाका फोर्ड एजेंसी,
संचालक-जावेद अहमद खान,
कार्यालय, दमोहनाका, बस स्टेण्ड,
मिलौनीगंज, जबलपुर (म0प्र0)।...............................अनावेदकविपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 03.12.2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक से क्रय किये गये ए.सी.र्इ. ए.एक्स. 130 मषीन को उसे नर्इ कहकर, पुरानी मषीन बेचना कहते हुये और उसके स्थान पर नर्इ मषीन न दिये जाने को अनुचित व्यापार-प्रथा बताते हुये, नर्इ मषीन व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-उक्त मषीन का मूल्य 18,50,000- रूपये रहा है, जिसमें मार्जिन मनी परिवादी के द्वारा अदा की जानी थी, षेश राषि 12,50,000-रूपये फायनेंस कम्पनी से फायनेंस कराकर दिनांक-15.05.2012 को भुगतान की गर्इ थी, जो कि-मार्जिन मनी 6,50,000-रूपये में-से दिनांक-15.05.2012 को 1,25,000-रूपये का परिवादी ने, अनावेदक को भुगतान किया था। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-दिनांक-11.06.2012 को अनावेदक द्वारा, परिवादी को उक्त ए.सी.र्इ. बैकहोलोडर मषीन ए.एक्स 130 की डिलीवरी दी गर्इ थी और दिनांक-11.06.2012 को डिलीवरी के समय उक्त मषीन के वाहन का बांये तरफ का टायर-टयूब खराब होने, फयूल मीटर, रीडिंग मीटर बंद होने गेट के एक लाक व बिन्डो के फिटमेन्ट व सार्इड फिटमेन्ट सही न पाये जाने का उल्लेख सर्विस रिपोर्ट में किया गया था। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-दिनांक-02.08.2013 को जरिये अधिवक्ता परिवादी ने एक नोटिस अनावेदक को नर्इ मषीन प्रदान किये जाने बाबद भेजा था, जो अनावेदक को प्राप्त हो गया था।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-परिवादी ने अपने जीवकोपार्जन हेतु उक्त मषीन को सीरी इक्यूपमेन्ट फायनेंस कम्पनी से फायनेंस कराकर क्रय किया था, जो कि-अनावेदक के द्वारा, दिनांक-11.06.2012 को जबलपुर 6 बायपास, सिवनी में उक्त मषीन की डिलीवरी परिवादी को प्रदान की गर्इ, जो कि-दिनांक-15.05.2012 को 12,50,000-रूपये का डी.ओ. प्राप्त होने पर, अनावेदक ने उसी दिन परिवादी को मषीन प्रदान नहीं की, बलिक दिनांक-11.06.2012 को प्रदान किया। उक्त मषीन दिनांक-31.05.2012 से एक वर्श की अवधि के लिए ओरियण्टल इंष्योरेंस कम्पनी द्वारा बीमित रही है। इस तरह डिलीवरी देने में विलम्ब कर, सेवा में कमी की गर्इ। और दिनांक-11.06.2012 को भी परिवादी को नर्इ मषीन न देकर, पुरानी मषीन दी गर्इ, जिसका बांये तरफ का टायर-टयूब खराब था, फयूल मीटर व रीडिंग मीटर काम नहीं कर रहे थे, गेट लाक खराब थे, चारो बिन्डो खराब थे, उनके फिटमेन्ट भी खराब थे, जिसकी सर्विसिंग रिपोर्ट भी इंजीनियर द्वारा लेखकर प्रदान की गर्इ, जो कि-मषीन का बहुत सा सामान सर्विस इंजीनियर ने खराब पाया था, जो कि-पुरानी मषीन रही होना पाने पर, अनावेदक से षिकायत की गर्इ, तो उसने एक सप्ताह के अंदर नर्इ मषीन देने का आष्वासन दिया था और बार-बार निवेदन पर भी नर्इ मषीन नहीं दी गर्इ, तो दिनांक-02.08.2013 को जरिये अधिवक्ता नोटिस भी दिया गया था, फिर भी नर्इ मषीन प्रदान नहीं की गर्इ।
(4) अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-सौदे की मार्जिन मनी 6,50,000-रूपये परिवादी द्वारा अदा की जानी थी, जिसमें से दिनांक-15.05.2012 को 1,25,000-रूपये जमा कर, षेश राषि भुगतान हेतु परिवादी ने अवसर लिया, जिसके पष्चात दिनांक-24.05.2012 को केवल 1,00,000-रूपये भुगतान किया, षेश राषि भुगतान हेतु पुन: समय लिया और परिवादी के बार-बार यह आग्रह पर कि-उक्त मषीन से संबंधित व्यवसाय के बहुत से ग्राहकों के आर्डर हैं, जिससे परिवादी सीजन में उक्त मषीन से काम करवाना चाहता है, इसलिए षेश भुगतान की मोहलत देते हुये, दिनांक-11.06.2012 को मषीन परिवादी को देते हुये, अनावेदक ने जबलपुर में डिलीवरी दे-दिया था, षेश मार्जिन मनी 4,20,000-रूपये बार-बार मांगे जाने पर परिवादी टालमटोल करता रहा और बमुषिकल उसके द्वारा, 4,20,000-रूपये का केनरा बैंक षाखा सिवनी का एक चेक क्रमांक-214350 चेक का भुगतान हो जाने का आष्वासन देते हुये प्रदान किया गया, लेकिन परिवादी द्वारा खाते में रकम की व्यवस्था न करने से चेक अनादर हो गया, इस संबंध में अनावेदक द्वारा, परिवादी के विरूद्ध न्यायिक दण्डाधिकारी, जबलपुर के समक्ष नेगोसियेविन स्टोमेन्ट एक्ट की धारा 138 के तहत परिवाद पेष किया, जो वर्तमान में लमिबत है और परिवादी द्वारा अब-तक मषीन की पूरी कीमत अदा नहीं की गर्इ है, जो कि-इन तथ्यों को छिपाते हुये और दाणिडक परिवाद की कार्यवाही से बचने के लिए दुर्भावनापूर्वक परिवादी ने यह परिवाद पेष किया है, जो कि- अनावेदक की षर्तें थीं, जो कोटेषन के माध्यम से परिवादी को बतार्इ जा चुकी थीं कि-राषि के भुगतान के एक माह पष्चात ही मषीन का आधिपत्य क्रेता को सौपा जाता है, परिवादी ने पूरी राषि का भुगतान भी नहीं किया, फिर भी उसे मषीन का आधिपत्य दे-दिया गया था, उसके प्रति सेवा में कोर्इ कमी नहीं की गर्इ, जो कि-दिनांक-11.06.2012 को इंजीनियर की सर्विस रिपोर्ट में जो मषीन में मामूली व सामान्य तौर की खराबी थी, उसे दिनांक-17.06.2012 को सर्विस इंजीनियर के माध्यम से दुरूस्त कराते हुये भी कुछ सामान मषीन का बदल दिया गया था और परिवादी उससे संतुश्ट होते हुये दिनांक-17.06.2012 की रिपोर्ट में अपने हस्ताक्षर भी किया था, नर्इ मषीन की मौखिक मांग व आष्वासन की कहानी स्वीकार नहीं। परिवाद में दुर्भावनापूर्वक कपोल-कलिपत मिथ्या आधार कहे गये हैं। दिनांक-17.06.2012 के पष्चात भी निर्धारित षेडयूल के अनुसार, उक्त मषीन 50 घण्टे चलने पर, दिनांक-26.06.2012 को 110 घण्टे चलने पर, दिनांक-21.10.2012 को 700 घण्टे चलने पर, दिनांक-08.12.2012 को 1100 घण्टे चलने पर, दिनांक-02.01.2013 को एवं 1450 घण्टे चलने पर, दिनांक-06.03.2013 को नियमित रूप से षेडयूल अनुसार, सात फ्री सर्विसिंग, उक्त वाहन के सर्विस इंजीनियर के माध्यम से करार्इ गर्इं, जिनकी रिपोर्ट में स्वयं परिवादी द्वारा भी हस्ताक्षर किये जाते रहे हैं, जो कि-स्पश्ट है कि-मषीन निरन्तर चल रही है।
(5) उक्त बैंकहोलोडर, ए.एक्स. 130 की मषीन मिटटी की खुदार्इ लेवल करने, लोडिंग और अपलोडिंग करने आदि कामर्षियल उददेष्य के उपयोग में लार्इ जाती है, जो कि-मषीन का उपयोग कामर्षियल है और परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में विहित उपभोक्ता की परिभाशा के अनतर्गत नहीं आता है, उक्त मषीन को क्रय करने का समस्त समव्यवहार जबलपुर में किया गया, मषीन का आधिपत्य भी जबलपुर में ही सौपा गया, इसलिए मामला और विवाद की श्रवण की क्षेत्रीय अधिकारिता भी इस जिला के उपभोक्ता फोरम को नहीं है, जो कि-परिवाद युक्त मषीन से संबंधित वारंटी भी क्रय दिनांक से 12 माह या 2000 घण्टे, उपरोक्त में-से जो भी पहले हो, तब-तक के लिए ही रही है, जो कि-उक्त अवधि पष्चात परिवादी द्वारा मिथ्या षिकायत की गर्इ है और उक्त मषीन की ए.सी.र्इ. कम्पनी को पक्षकार के रूप में संयोजित नहीं किया गया है, उक्त सभी कारणों से परिवाद अपास्त किये जाने योग्य है।
(6) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हंंै कि:-
(अ) क्या परिवादी, उपभोक्ता की श्रेणी में है और
उसका यह परिवाद इस फोरम में संधारणीय है?
(ब) क्या अनावेदक ने, परिवादी को पुरानी मषीन, नर्इ
होना कहकर विक्रय कर, अनुचित व्यापार-प्रथा को
अपनाया है?
(स) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(7) उभयपक्ष की ओर से जो दस्तावेज व सामग्री, उक्त कथित परिवादी द्वारा क्रयषुदा मषीन के संबंध में पेष किये गये हैं, विषेशत: प्रदर्ष सी-9 और आर-1 में विवरण के संबंध में दी गर्इ जानकारियों से यह स्पश्ट है कि-उक्त मषीन-उत्खनन, खुदार्इ, लोडिंग, अनलोडिंग आदि के संबंध में चलायमान क्रेन या जे0सी0बी0 मषीन की तरह ही है, जो कि- मूलत: व्यवसायिक उपयोग की है, जो कि-परिवाद मात्र, परिवादी द्वारा जीवकोपार्जन के लिए उक्त मषीन खरीदे जाने का अविषिश्ट उल्लेख मात्र से परिवादी अधिनियम में वर्णित उपभोक्ता की श्रेणी में हो जाना संभव नहीं, जो कि-उक्त मषीन से होने वाली आय कितनी थी और उक्त के अतिरिक्त परिवादी का अन्य व्यवसाय क्या रहा है, आय के अन्य कौन-कौन से साधन उसके पास रहे हैं, इस बाबद तथ्यात्मक स्पश्ट व विषिश्ट उल्लेख जो किया जाना था, वह परिवाद में नहीं। परिवादी का ऐसा भी कोर्इ परिवाद में कथानक नहीं है कि-उक्त मषीनवाहन को परिवादी स्वयं चलाता रहा हो, परिवादी का कोर्इ ड्रायविंग लायसेंस रहा हो,ऐसा भी परिवादी-पक्ष की ओर से कहीं दर्षाया नहीं गया है और स्वनियोजन का भी कोर्इ अभिवचन परिवाद में नहीं, जबकि-सड़क, पुल, नाली, मेढ़ आदि के बड़े स्तर पर होने वाले निर्माण कार्य में खुदार्इ लोडिंग, अनलोडिंग आदि कार्यों में ऐसी मषीनों का उपयोग होता है, तो उक्त मषीन व्यवसायिक प्रयोजन हेतु बड़ी मात्रा में धन का लाभ उससे प्राप्त किये जा सकने के लिए ही परिवादी द्वारा क्रय किया जाना स्पश्ट है। न्यायदृश्टांत-ख्प्प्प् (2013) सी0पी0जे0 235 (एन0सी0) कैटरपिलर इंडिया प्रायवेट लिमिटेड जी.एम.एम. सी.ओ. लिमिटेड व अन्य बनाम संतोश पुरूसन व अन्य, प्ट (2012) सी0पी0जे0 220 (एन0सी0) जे.बी.सी. इंडिया बनाम मलप्पा संगप्पा मंत्री व अन्य, प्प् (2012) सी0पी0जे0 350 (एन0सी0) गुरवखन लाजिसिटक इंडिया बनाम एक्सन कान्स्टक्षन इकिवपमेन्ट लिमिटेड व अन्य, जो कि-परिवादी द्वारा, अनावेदक को भेजे गये प्रदर्ष सी-7 के नोटिस से परिवादी के पास कृशि भूमि व साधन भी होना वर्णित है, पर कृशि के साधन व कृशि आय के संबंध में भी परिवाद में परिवादी-पक्ष मौन रहा है, ऐसे में स्वनियोजन से मात्र परिवार के जीवकोपार्जन का साधन जुटाने के प्रयोजन हेतु उक्त मषीन की खरीदी परिवादी द्वारा किया जाना स्थापित नहीं पाया जाता है, इसलिए परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में होना स्थापित नहीं है। और फलत: उपभोक्ता फोरम में परिवादी का यह परिवाद संधारणीय होना नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(8) अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष दिनांक-17.06.2012 की सर्विस रिपोर्ट प्रदर्ष आर-13 जिसमें परिवादी के भी हस्ताक्षर हैं, उससे यह स्पश्ट है कि-परिवादी ने जो प्रदर्ष सी-2 की दिनांक-11.06.2012 की सर्विस रिपोर्ट की प्रति पेष की थी, उसमें दर्षार्इ गर्इ मषीन के पिछले टयूब खराब होने, इंस्ट्रमेंट कलस्टर खराब होने, बिन्डो काम न कर रहे होने की षिकायतों बाबद मषीन का पिछला टयूब इंस्ट्रमेन्ट कलस्टर, बिन्डो लाक और फलेषर बदलकर, त्रुटियों को दूर कर दिया गया था, जबकि-षेश छोटी-मोटी त्रुटि दिनांक-11.06.2012 को ही दुरूस्त कर दिया जाना प्रदर्ष सी-2 से भी दर्षित है और अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष प्रदर्ष आर-15 से आर-21 तक के प्रथम सात फ्री सर्विस के सर्विस रिपोर्ट, जिन सबमें भी परिवादी के हस्ताक्षर हैं, उनसे यह स्पश्ट हो जाता है कि-अगले 9 माह तक भी सभी फ्री सर्विस परिवादी द्वारा, उक्त वाहनमषीन की अनावेदक की सर्विस स्टेषन में अपनी संतुशिटयों में करार्इ जाती रही है और उक्त में-से किसी भी दस्तावेज में परिवादी द्वारा, वाहन पुराना दे-दिये जाने की कभी कोर्इ षिकायत लेख नहीं करार्इ गर्इ, जो कि-वारंटी अवधि में अभी कोर्इ अन्य खराबी वाहन में जुलार्इ-2012 या उसके बाद आर्इ हो, ऐसा उक्त किसी भी सर्विस रिपोर्ट से दर्षित नहीं। और परिवादी का भी ऐसा कोर्इ कथानक नहीं, तो परिवाद में बनार्इ गर्इ यह कहानी कि-परिवादी ने, अनावेदक से उसे पुराना वाहन दे-दिया जाना षिकायत किया था और आष्वासन दिया था, आधारहीन कहानी है।
(9) जो कि-वाहन की एक वर्श की वारंटी अवधि भी गुजर जाने के बाद, दिनांक-02.08.2013 को प्रदर्ष सी-7 के आषय का जरिये अधिवक्ता नोटिस परिवादी ने बिना किसी समुचित आधार के अनावेदक को क्यों भेजा, यह विचारणीय है और इसके कारण अनावेदक द्वारा पेष प्रदर्ष आर-6 से प्रदर्ष आर-12 व प्रदर्ष आर-22, आर-23 व आर-24 का अनावेदक द्वारा पेष दस्तावेजों से स्पश्ट हो जाता है कि-षेश मार्जिन मनी बाबद परिवादी ने जो 4,20,000-रूपये का चेक, अनावेदक को दिया था, उक्त चेक अनादर हो जाने के बावजूद, उक्त राषि परिवादी द्वारा अदा न किये जाने के संबंध में अनावेदक ने, परिवादी के विरूद्ध न्यायिक दण्डाधिकारी, जबलपुर के न्यायालय में जनवरी-2013 में जो परिवाद धारा 138 नेगोसिव एक्ट के तहत पेष किया, जिसमें परिवादी को पहले संमंस और फिर जमानती वारण्ट माह जनवरी से अप्रैल-2013 तक की पेषियों में उपसिथति बाबद जारी होते रहे। और स्पश्ट है कि-मात्र परिवादी के विरूद्ध अनावेदक-पक्ष द्वारा, उक्त दाणिडक कार्यवाही किये जाने के बाद, परिवादी द्वारा, अनावेदक को षेश राषि भुगतान न किये जाने का कारण निर्मित करने के प्रयोजन से ही प्रदर्ष सी-7 का नोटिस भेजकर यह परिवाद पेष कर दिया गया, जो कि-परिवादी ने वाहन का रजिस्ट्रेषन तो पेष नहीं किया है, लेकिन स्वयं उसके द्वारा पेष प्रदर्ष सी-3 के मोटरयान बीमा प्रमाण-पत्र की प्रति में भी उक्त वाहन का निर्माण वर्श-2012 ही दर्षाया गया है, जो कि-मर्इ-2012 में ही परिवादी ने उक्त वाहन भी क्रय किया है, तब परिवादी को नया वाहन कहकर, पुराने वाहन दे-दिये जाने के परिवाद के आक्षेप में कोर्इ सार होना दर्षित नहीं है।
(10) परिवादी की ओर से प्रदर्ष सी-11 की जो मार्जिन मनी रसीद पेष की गर्इ है, उसमें भी केनरा बैंक, सिवनी के चेक क्रमांक-214350 का दिया जाना ही दर्षाया गया है, उक्त चेक के माध्यम से परिवादी द्वारा, अनावेदक को भुगतान हुआ हो, ऐसा परिवादी-पक्ष का कोर्इ प्रमाण नहीं और उसी चेक के अनादर होने के संबंध में अनावेदक द्वारा, परिवादी के विरूद्ध धारा 135 परक्राम्य लिखित अधिनियम के तहत कार्यवाही किया जाना दर्षित है। तो मषीन की राषि का पूर्ण भुगतान न होना और 4,20,000-रूपये की राषि का भुगतान षेश होना अनावेदक-पक्ष ने स्थापित कर दिया है। अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष प्रदर्ष आर-2 के परिवादी को दिये गये कोटेषन से स्पश्ट है कि-डिलीवरी आर्डर होने के व ए.एक्स. वक्र्स राषि 18,50,000-रूपये भुगतान होने के बाद एक माह की अवधि में डिलीवरी वाहन की-की जानी थी, इसलिए परिवादी को अनावेदक द्वारा, वाहन की डिलीवरी किये जाने में कोर्इ अनुचित विलम्ब या सेवा में कमी किया जाना भी स्थापित नहीं।
(11) तब यह किसी भी तरह स्थापित नहीं पाया जाता है कि- अनावेदक ने परिवादी के प्रति कोर्इ अनुचित व्यापार-प्रथा को अपनाया है या परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी किया है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(12) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शों के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं, इसलिए उसका
परिवाद संधारणीय होना नहीं पाया गया और अनावेदक
द्वारा, परिवादी के प्रति कोर्इ अनुचित व्यापार प्रथा को
अपनाया जाना या सेवा में कमी किया जाना भी स्थापितनहीं, इसलिए परिवाद संधारणीय न होने से एवं अन्यथाभी स्वीकार योग्य न होने से निरस्त किया जाता है।
(ब) परिवादी ने यह परिवाद समुचित आधारों के बिना, महत्वपूर्ण तथ्य छिपा कर, अनावेदक को महज तंग करने के लिये पेष किया है, अत: परिवादी, अनावेदक
को 5,000-रूपये (पांच हजार रूपये) विषेश हर्जाना
अदा करे।
(स) परिवादी स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेगा और अनावेदक को कार्यवाही-व्यय के रूप में 2,000-रूपये
(दो हजार रूपये) अदा करेगा।
(द) उक्त सब अदायगी आदेष दिनांक से तीन माह की अवधि के अन्दर की जावे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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