जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
तरूण अग्रवाल, 332/31, पटेल नगर, तोपदड़ा, अजमेर ।
- प्रार्थी
बनाम
जयपुर जंगल, 6ठा माला, श्रीनाथ माॅल(मिराज माॅल) क्रिष्चयनगंज, अजमेर जरिए कैषियर/प्रबन्धक
- अप्रार्थी
परिवाद संख्या 27/2016
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री एस.के.गोयल, अधिवक्ता, प्रार्थी
2. श्री विष्वेन्द्र सिंह, प्रतिनिधि(जवाब प्रस्तुतकर्ता)
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 09.12.2016
1. प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि उसके द्वारा अपने परिवार सहित अप्रार्थी के यहां दिनांक 22.10.2015 को खाना खाने का बिल क्रमांक 4784 राषि रू. 1265/- का दिए जाने पर उसने उक्त राषि जमा करा दी । किन्तु जब उसने उक्त बिल को ध्यान से देखा तो पाया कि उक्त बिल में जो सेवा कर की राषि रू. 70.84 पै. जोड़ी है , उस पर भी अप्रार्थी ने वेट की राषि वसूल की है । इस संबंध में षिकायत किए जाने पर उसे अवगत कराया गया कि बिल कम्पयूटर के सोफ्टवेयर से आॅटोमेटिक तैयार होता है और इसमें वे कोई सहायता नहीं कर सकते । इस प्रकार अप्रार्थी ने अनुचित व्यापार व्यवहार अपनाते हुए उससे अनुचित रू से राषि रू. 3.52 पै अनाधिकृत रूप से वसूल की है । प्रार्थी ने इस अप्रार्थी की सेवाओं में कमी बताते हुए परिवाद पेष कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जताने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन मेंप्रार्थी ने स्वयं का ष्षपथप. पेष किया है ।
2. अप्रार्थी ने जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रारम्भिक आपत्तियों में दर्षाया है कि उत्तरदाता द्वारा जो भी टैक्स की राषि प्राप्त की जाती है वह सरकार के निर्देषानुसार सरकार को जमा कराई जाती है । प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत करने से पूर्व न तो किसी प्रकार की कोई षिकायत की है और ना ही कोई नेाटिस भिजवाया । प्रार्थी ने उत्तरदाता को हैरान परेषान करने की नियत से यह परिवाद प्रस्तुत किया है । आगे मदवार जवाब प्रस्तुत करते हुए कथन किया है कि प्रार्थी से जरिए बिल जो भी राषि प्राप्त की गई है , वह राजस्थान सरकार व भारत सरकार के नियमों के तहत ली गई है जो नियमानुसार सरकार को जमा कराई जाती है । उसके स्तर पर कोई सेवा में कमी नहीं की गई है । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है ।
3. प्रार्थी पक्ष का एक मात्र तर्क है कि अप्रार्थी सेवाकर की राषि पर वेट नहीं ले सकता है । ऐसा करते हुए उसने अनुचित व्यापार व्यवहार प्रक्रिया को बढ़ावा दिया है । विनिष्चय टमससमल भ्वजमस - त्मेवतजे टे ब्वउउमतबपंस ज्ंगए क्मीतंकनद में माननीय उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के निर्णय दिनांक 10.4.2014 पर अवलम्ब लिया है ।
4. अप्रार्थी ने खण्डन में अपने जवाब में तर्क प्रस्तुत किया है कि जो भी टैक्स की राषि प्राप्त की गई है वह राज्य सरकार के निर्देषानुसार प्राप्त की गई है तथा सरकार को ही जमा करवाई जाती है ।
5. हमने विचार किया एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के साथ साथ प्रस्तुत विनिष्चय में प्रतिपादित न्यायिक दृष्टान्त का भी ध्यानपूर्वक अवलोकन किया ।
6. प्रमुख विचारणीय मुद्दा यह है कि क्या किसी भी बिल पर ऐसी सामग्री के उपयोग उपभोग के बाद दिए गए बिल में उसके उत्पाद मूल्य के अलावा सर्विस टैक्स को जोड़ने के साथ ही इस राषि पर वेट लिया जाना न्यायसंगत है ?
7. हस्तगत प्रकरण में प्रार्थी ने अप्रार्थी के रेस्टोरेंण्ट में खाना खाने के बाद दिए गए बिल में सर्व की गई खाद्य सामग्री की ष्षुद्व राषि पर सर्विस टैक्स की राषि रू. 70.84 पैेेसे तो जायज बताई है किन्तु इस पर 5 प्रतिषत वेट की राषि रू. 66.79 पै. को जोड़ना अनुचित बताया है । वेट के संबंध में प्रचलित कानून वेट एक्ट, 2005 है तथा इसकी धारा 2(36) में ैंसम च्तपबम को परिभाषित किया गया है , जो निम्न प्रकार से है -
’’ ैंसम च्तपबम’’ उमंदे जीम ंउवनदज चंपक वत चंलंइसम वत ं कमंसमत ंे बवदेपकमतंजपवद वित जीम ेंसम व िंदल हववके समेे ंदल ेनउ ंससवूमक इल ूंल व िउल ापदह व िकपेबवनदज वत तमइंजम ंबबवतकपदह वज मी चतंबजपबम दवतउंससल चतमअंपसपदह पद जीम जतंकमए इनज पदबसनेपअम व िंदल ेजंजनजवतल समअल वत ंदल ेनउ बींतहमक वित ंदलजीपदह कवदम इल जीम कमंसमत पद तमेचमबज व िजीम हववके वत ेमतअपबमे तमदकमतमक ंज जीम जपउम वत इमवितम जीम कमसपअमतल जीमतमवएि मगबमचज जीम जंग पउचवेमक नदकमत जीपे ।बजण्
8. इस प्रकार उपरोक्त परिभाषा के अनुसार किसी भी उत्पाद के ैंसम च्तपबम में ैजंजनजवतल समअल भी सम्मिलित होगी एवं इस अधिनियम के तहत अधिरोपित टैक्स सम्मिलित नहीं होगा अर्थात यदि राज्य सरकार इस ैंसम च्तपबम में किसी प्रकार का कोई टैक्स लगाती है , जैसे कि वेट अधिरोपित करती है तो यह अवैध नहीं होगा । । कहने का तात्पर्य यह है कि ैंसम च्तपबम में सर्विस टैक्स को जोड़ते हुए यदि इस मूल राषि में वेट लगाया जाता है तो ऐसा करना अनुचित नहीं है । जो विनिष्चय प्रस्तुत हुए है में प्रमुख रूप से निम्नानुसार निर्धारित किया गया है -
टंसनम ंककमक जंग बंद इम पउचवेमक वद ेंसम व िहववक - दवज वद ेमतअपबमण् ैमतअपबम बंद इम जंगमक इल ेमतअपबम जंग सवूे३३३३ण्
9. उक्त विनिर्धारण के अनुसार भी वेट को उत्पाद के विक्रय में अधिरोपित किया जाना बताया है । इसमें जिस आॅथोरिटी को वेट अधिरोपित करने के लिए सक्षम बताया गया था, ने अपने आप को ’’ सेवा क्या है, इसके निर्धारण हेतु भी सक्षम मान लिया था । ’’ माननीय उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने ऐसी परिस्थिति में रेस्टोरेंट में खाद्य पदार्थो के बिल में सर्विस टैक्स पर वेट अनुचित पाया था । हमारे समक्ष हस्तगत प्रकरण में ऐसी स्थिति नहीं है । हमारी राय में यह विनिष्चय तथ्यों की भिन्नता के कारण प्रार्थी के लिए सहायक नहीं है ।
10. कुल मिलाकर जिस प्रकार अप्रार्थी ने प्रष्नगत बिल में खाने के आईटम पर सर्विस टैक्स जोड़ते हुए इस पर जो वेट लगाया है, वह अनुचित नहीं माना जा सकता । मंच की राय में परिवाद अस्वीकार होकर खारिज होने योग्य है एवं आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
11. प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 09.12.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष