Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :-1814/2012 (जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-859/2004 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20/07/2012 के विरूद्ध) - Regency Hospital Limited, through its Managing Director, Dr. Atul Kapur, R/O A-2, Sarvodaya Nagar, Kanpur Nagar.
- Dr. Nadim Farooqui, R/O 8th Floor Commerce Centre, Chunniganj, Kanpur Nagar.
- Dr. Gautam Dutta, R/O 120/847 Lajpat Nagar, Kanpur Nagar.
- Appellants
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- Jai Singh S/O Tara Singh Sanger, R/O Village & Post-Girsi, Tehsil & Thana Khatampur, District Kanpur Nagar.
- Gandhi Memorial and Associated Hospital, Lucknow.
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता:-श्री मनीष मेहरोत्रा की कनिष्ठ सहायक सुश्री मांडवी मेहरोत्रा प्रत्यर्थी सं0 1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री एस0पी0 सिंह प्रत्यर्थी सं0 2 की ओर से विद्धान अधिवक्ता:- श्री जे0एन0 मिश्रा दिनांक:- 30.07.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-859/2004 जय सिंह बनाम रीजेन्सी हास्पिटल लि0 व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20/07/2012 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर सभी पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। जिला उपभोक्ता आयोग ने इलाज के दौरान लापरवाही के कारण 2,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है।
- परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के पुत्र संजय सिंह सेंगर दिनांक 25.08.2003 को ट्रैक्टर से हुई दुर्घटना के कारण घायल हो गया। घायल अवस्था में दिनांक 25.08.2003 को विपक्षी सं0 1 के अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां पर दिनांक 25.08.2003 से दिनांक 27.08.2003 तक परिवादी के पुत्र को आई0सी0यू0 में रखा गया। इलाज विपक्षी सं0 2 द्वारा किया गया। इलाज के दौरान परिवादी के पुत्र के पैर का ऑपरेशन किया गया। प्लास्टिक सर्जरी की गयी तथा स्थिति गंभीर बनी रही, जिसे देखते हुए दिनांक 27.08.2003 को अस्पताल से अवमुक्त कर दिया, उसी दिन परिवादी ने अपने पुत्र को वर्मा अस्पताल कानपुर में दिखाया, लेकिन वहां के डॉक्टर ने संजय सिंह की स्थिति को देखते हुए एस0जी0पी0जी0आई0 या गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल को रेफर कर दिया। दिनांक 28.08.2003 को गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल लखनऊ में भर्ती कराया गया। मरीज को देखने के बाद बताया गया कि विपक्षी सं0 1 लगायत 3 द्वारा घोर लापरवाही इलाज के दौरान बरती गयी है और सेप्टिक विकसित हुआ है, जिसका समय पर इलाज नहीं किया गया है। दिनांक 30.08.2003 को परिवादी के पुत्र की मृत्यु हॉस्पिटल में हो गयी। परिवादी के पुत्र के इलाज के दौरान बरती गयी लापरवाही के कारण सेप्टिक विकसित हुई है और इसी बीमारी से मृत्यु कारित हुई है।
- विपक्षीगण का कथन है कि भर्ती के समय घायल की स्थिति अत्यधिक दयनीय थी। पल्स तथा ब्लड प्रेशर को भी रिकार्ड नहीं किया जा रहा था। इलाज के दौरान लापरवाही का कोई खुलासा नहीं किया गया। यथासंभव सावधानीपूर्वक दुरूस्त करने का प्रयास किया गया। परिवादी के पुत्र के जीवन को बचाने के लिए समस्त दवायें दी गयी, जिस समय अस्पताल से अवमुक्त कराया गया, उस समय सेप्टिक विकसित नहीं हुआ था। परिवादी के पुत्र के शरीर में Tetanus Toxoid injection लगाया गया था। इलाज के दौरान कोई लापरवाही नहीं बरती गयी, इसलिए परिवाद खारिज कर दिया गया।
- पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि विपक्षी सं0 4 द्वारा जो लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है, उसके संबंध में सेप्टिक होने का कथन किया गया है, इसलिए इलाज में लापरवाही के तथ्य को साबित मानते हुए 2,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया गया है।
- इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्यविहीन है। मरीज को मेडिकल राय के विपरीत अपीलार्थी के अस्पताल से डिस्चार्ज कराया गया और उनके अस्पताल में रहते हुए कभी भी सेप्टिक विकसित नहीं हुआ, इसलिए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है। बहस के दौरान भी उपरोक्त वर्णित तथ्य के संबंध में तर्क प्रस्तुत किया गया है।
- इस अपील के विनिश्चय के लिए एकमात्र विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या अपीलार्थीगण के स्तर से परिवादी के पुत्र के इलाज के दौरान लापरवाही बरती गयी, जिसके कारण सेप्टिक उत्पन्न हुआ और परिणामत: परिवादी के पुत्र की मृत्यु हो गयी?
- परिवाद पत्र में इलाज के दौरान लापरवाही के संबंध में स्पष्ट उल्लेख किया गया है। दिनांक 27.08.2003 को परिवादी ने अपने पुत्र को डिस्चार्ज करा लिया। डिस्चार्ज स्लिप पर भी यह उल्लेख अंकित है कि मेडिकल राय के विपरीत डिस्चार्ज कराया गया है। डिस्चार्ज कराये जाने तक लापरवाही के किसी तथ्य का उल्लेख नहीं किया गया है। केवल यह शब्द अंकित किया गया है कि इलाज में घोर लापरवाही बरती गयी, परंतु क्या लापरवाही बरती गयी, इस तथ्य को स्पष्ट नहीं किया गया, साबित करने का प्रश्न ही नहीं उठता, इसलिए जब तक परिवादी द्वारा डॉक्टर स्तर से कारित लापरवाही का विवरण् प्रस्तुत न किया गया हो एवं उस विवरण को साबित न किया गया हो तब तक डॉक्टर के स्तर से लापरवाही स्थापित नहीं होती, विशेषत: उस स्थिति में जबकि मरीज को मेडिकल राय के विपरीत अस्पताल से अवमुक्त कराया गया हो। प्रस्तुत केस में यही स्थिति मौजूद है।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने अपना निर्णय विपक्षी सं0 4 के पत्र पर आधारित किया है। विपक्षी सं0 4 द्वारा लिखित कथन में उल्लेख किया गया है कि उनके स्तर से कोई लापरवाही नहीं बरती गयी, अपितु जिन डॉक्टर द्वारा मरीज का प्रारंभ में इलाज किया गया, उनके असावधानी के कारण सेप्टिक विकसित हुआ है। अपीलार्थी का कथन है कि रेजीडेंसी हॉस्पिटल में भर्ती के दौरान कभी भी सेप्टिक विकसित नहीं हुआ। परिवाद पत्र में स्वयं उल्लेख है कि दिनांक 28.05.2003 को दुर्घटना में परिवादी का पुत्र गंभीर रूप से घायल हुआ था। इस गंभीर स्थिति को लिखित कथन में भी स्पष्ट किया गया है, जिसमें अंकित किया गया है कि भर्ती के समय मरीज की पल्स तथा ब्लड प्रेशर की गणना करना भी संभव नहीं था तथा दुर्घटना के कारण स्थिति अत्यंत गंभीर थी। एण्टीसेप्टिक इंजेक्शन भी मरीज के शरीर मे लगाने का सशपथ कथन किया गया है। मरीज को मेडिकल राय के विपरीत अवमुक्त कराना परिवादी के स्तर से कारित लापरवाही है न कि डॉक्टर के स्तर से कारित लापरवाही। परिवादी की ओर से ऐसा कोई सबूत दाखिल नहीं किया गया, जिसके आधार पर यह सुनिश्चित हो सके कि मेडिकल सलाह के विपरीत मरीज को अस्पताल से अवमुक्त कराते समय सेप्टिक उत्पन्न हो चुका था। यह सही है कि विपक्षी सं0 4 की ओर से सेप्टिक पूर्व में उत्पन्न होने का कथन किया गया है, परंतु चूंकि उनके द्वारा भी इलाज किया गया है। विपक्षी सं0 4 के अस्पताल में मरीज की मृत्यु हुई है, इसलिए वह अपना उत्तरदायित्व किसी अन्य पर सुगमता से डाल सकते हैं। अत: उनके कथन को विपक्षीगण के विरूद्ध लापरवाही का द्योतक नहीं माना जा सकता। दिनांक 27.08.2003 के पत्र में मरीज के तीमारदार द्वारा स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है कि- ''मैं अपने मरीज को आर्थिक समस्या होने के कारण अस्पताल से ले जा रहा हूं। अस्पताल से हमें कोई समस्या नहीं है। मरीज की जिम्मेदारी हमारी है।'' अत: उपरोक्त उल्लेख स्पष्ट करता है कि मरीज को अवमुक्त कराते समय अस्पताल के विरूद्ध किसी प्रकार की शिकायत नहीं थी, इसलिए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा लापरवाही के तथ्य को साबित किये बिना निर्णय पारित किया गया है, जो अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है। प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए। उभय पक्ष अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0 2 | |