( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :1363/2010
रामाधार सिंह पुत्र श्री रामेश्वर सिंह
बनाम्
जय किसान बीज भण्डार व अन्य
समक्ष :-
1-मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
दिनांक : 26-09-2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
प्रस्तुत अपील अत्यन्त पुरानी है और वर्ष 2010 से इस न्यायालय के सम्मुख सुनवाई हेतु लम्बित है। आज अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार सिंह उपस्थित आए जब कि प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री सुधीर कुमार श्रीवास्तव उपस्थित आए। अत: उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण को विस्तारपूर्वक सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण करने के पश्चात अपील का निस्तारण आज ही गुणदोष के आधार पर किया जा रहा है।
परिवाद संख्या-290/2009 रामाधार सिंह बनाम जय किसान बीज भण्डार व एक अन्य में जिला आयोग, शाहजहॉपुर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित 09-07-2010 के विरूद्ध प्रस्तुत अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख योजित की गयी है।
आक्षेपित निर्णय एवं आदेश के द्वारा विद्धान जिला आयोग ने परिवाद निरस्त कर दिया है।
जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी की ओर से यह अपील इस न्यायालय के सम्मुख योजित की गयी है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी संख्या-1 की दुकान से दिनांक 25-11-2007 को 343 पी0वी0डब्लू 32 बोरी 600 प्रति बोरी के हिसाब से बीज गेहूँ बुआई की बावत कुल 19,200/-रू0 नगद अदा करके क्रय किया और परिवादी ने सही
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मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करते हुए 30 एकड़ में 30 बोरी गेहूँ की बुआईं कर दी और अंकुरण के लिए इंतजार किया। 10-12 दिन के बाद बीज का अंकुरण मात्र 25 प्रतिशत हुआ जिसकी शिकायत परिवादी ने विपक्षी संख्या-1 से की, जिस पर विपक्षी संख्या-1 ने परिवादी से दो बोरी बीज जॉंच हेतु वापस मांगा जिसे परिवादी ने विपक्षी को दे दिया और जब परिवादी विपक्षी की दुकान पर सम्पर्क स्थापित करने गया तो दुकान बंद मिली और विपक्षी संख्या-1 के निवास पर जाने पर पता चला कि विपक्षी संख्या-2 ने किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति की अदायगी नहीं की है जब कि विपक्षी संख्या-2 द्वारा विपक्षी संख्या-1 के माध्यम से बेचा गया बीज 85 प्रतिशत अंकुरण मानक के अनुसार बताया गया था। विपक्षी संख्या-1 जो विपक्षी संख्या-2 के बीजों का सप्लायर है, द्वारा परिवादी को खराब गुणवत्ता का बीज उपलब्ध कराया जिससे परिवादी की फसल खराब हो गयी। जो कि विपक्षीगण के स्तर से सेवा में कमी है। अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के सम्मुख योजित किया है।
विपक्षी संख्या-1 की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करते हुए गेहूँ विक्रय स्वीकार किया गया और कम बीज अंकुरण की शिकायत किया जाना भी स्वीकार किया गया एवं शेष कथनों से इंकार करते हुए कथन किया गया कि बीज निर्माण में किसी प्रकार की त्रुटि हेतु वह उत्तरदायी नहीं है और परिवादी की शिकायत से विपक्षी संख्या-2 को अवगत कराया गया था और त्रुटिपूर्ण बीज की जिम्मेदारी विपक्षी संख्या-2 की है न कि विपक्षी संख्या-1 की, उनकी ओर से सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की गयी है।
विपक्षी संख्या-2 की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करते हुए स्वयं को गेहूँ का निर्माण होना कहा गया एवं प्रमाणित संस्था द्वारा प्रमाणित बीज बेचना स्वीकार किया गया और कथन किया गया कि परिवादी ने कभी भी परिवाद प्रस्तुत करने के पूर्व उसके यहॉं शिकायत नहीं की। प्रस्तुत परिवाद विपक्षी संख्या-1 एवं परिवादी की मिलीभगत से गलत तथ्यों के आधार पर योजित किया गया है क्योंकि किसी भी कृषक द्वारा त्रुटिपूर्ण बीज के संबंध में कभी भी कोई शिकायत नहीं की गयी है और यदि बीज खराब होता तो और भी किसानों द्वारा शिकायत की जाती किन्तु ऐसा नहीं किया गया, उनके द्वारा अच्छी किश्त के बीज बेचे जाते हैं। परिवादी द्वारा बीज बुलाई में स्वयं गलती कारित की गयी है। उनकी ओर से सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की गयी है।
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विद्धान जिला आयोग द्वारा उभयपक्ष को विस्तारपूर्वक सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त विपक्षीगण के स्तर पर सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी न पाते हुए परिवाद निरस्त कर दिया गया है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है और विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गहनतापूर्वक विचार किये बिना विधि विरूद्ध ढंग से निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है तदनुसार अपील स्वीकार करते हुए जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश को अपास्त किया जावे।
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गहनतापूर्वक विचार करने के पश्चात विधि अनुसार निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है अत: अपील निरस्त करते हुए जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जावे।
मेरे द्वारा उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण को विस्तारपूर्वक सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण को विस्तारपूर्वक सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि परिवादी को बेचे गये बीजों में किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं पायी जाती है और न ही परिवादी को खराब गुणवत्ता का बीज बेचा जाना पाया जाता है। तदनुसार विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्य एवं विधि के अनुसार है, जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है, तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील योजित करते समय अपीलार्थी द्वारा अपील में जमा धनराशि (यदि कोई हो) तो नियमानुसार अर्जित ब्याज सहित जिला आयोग को विधि अनुसार निस्तारण हेतु यथाशीघ्र प्रेषित की जावे।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1