राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-1255/2011
(जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या-213/2007 में पारित निर्णय दिनांक 16.12.2010 के विरूद्ध)
Hindustan coca cola beverages private LTD. A company duly incorporated
under the provisions of companies act having its registered office at 13 abul
fazal road, Bengali market delhi inter alia one of its office/plant at f-8
industrial area panki kanpur nagar. .........अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
1. Sri jagdish singh, adult s/o Sri Sumer singh r/o village kumheria. post
hasanpur kathia, P.S amroha dehat district jyotiba phule nagar (J.P nagar)
U.P.
2. Sri Ram Prasad adult s/o not known to the appellant shop owner kath
road gram kurikhana, tehsil kath, district moradabad, U.P .......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री विवेक निगम, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :कोई नहीं।
दिनांक 26.07.16
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम प्रथम मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या 213/2007 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 16.12.2010 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। जिला मंच द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया:-
'' विपक्षी सं0 2 के विरूद्ध परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या 2 को आदेशित किया जाता है कि वह आदेश की तिथि से एक माह के अंदर परिवादी को रू. 25000/- क्षतिपूर्ति के रूप में तथा रू. 1000/- वाद व्यय के रूप में अदा करें। विपक्षी संख्या 1 के विरूद्ध परिवाद खारिज किया जाता है।''
संक्षेप में परिवादी का कथन है कि वह दि. 18.05.07 को अपनी दुकान कांठ रोड गांव खुशहालपुर से करीब दोपहर 2 बजे अपने घर वापस आ रहा था तो वह विपक्षी संख्या 1 की दुकान पर जाकर बैठा। परिवादी के साथ उसका कम्पान्डर अली अहमद तथा एक लड़की कु0 नीलम भी थी। परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 से ठंडा पेय पदार्थ मांगा तो विपक्षी ने तीन बोतल कोका कोला(लिम्का) की दी, जिसमे से एक बोतल में कीटाणु व गन्दगी थी और कीड़े तैर रहे थे। परिवादी ने विपक्षी से बोतल बदलने के लिए कहा तो विपक्षी ने मना
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किया और 15 रूपये ले लिये तथा परिवादी को बताया कि बोतल कंपनी से आयी है। अगर परिवादी उक्त बोतल का सेवन कर लेता तो वह अवश्य ही जीवन मृत्यु से खेल जाता। विपक्षी संख्या 2 उक्त बोतल के निर्माता हैं, विपक्षीगण की लापरवाही से किसी भी व्यक्ति को जान जोखिम हो सकता था।
पीठ द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी गई तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों एवं साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
जिला मंच का आदेश दि. 16.12.10 का है जबकि अपील दि. 13.07.11 को प्रस्तुत की गई है। इस प्रकार लगभग 180 से अधिक दिन के विलम्ब से अपील प्रस्तुत की गई है। अपीलार्थी ने विलम्ब को क्षमा करने का एक प्रार्थना पत्र दिया है, परन्तु इसमें पर्याप्त कारण नहीं बतलाया गया है कि अपील को प्रस्तुत करने में इतना अधिक विलम्ब क्यों किया गया। जिला मंच के आदेश से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी जिला मंच के समक्ष उपस्थित आया है, उसने लिखित उत्तर भी प्रस्तुत किया है तथा उसके द्वारा जिला मंच के समक्ष बहस भी की गई है, अत: यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलार्थी को जिला मंच के निर्णय की कोई जानकारी नहीं थी।
IN Mahindra & Mahindra Financial Services Ltd. Vs. Naresh Singh, I (2013) CPJ 407 (NC), Where the delay was of 71 days only, it was held by the Hon'ble National Commission that :-
Condonation cannot be a matter to routine and the petitioner is required to explain delay for each and every date after expiry of the period of limitation.
The Hon'ble Apex Court has observed in Civil Appeal No. 2474-2475 of 2012, Chief Post Master General and Ors. Vs. Living Media India Ltd. and Anr, that:
In our view it is the right to time inform all the government bodies, their agencies and instrumentalities that unless they have reasonable and acceptable
explanation for the delay and there was bonafide effort, there is not need to accept the usual explanation that the file was kept pending for several months/years due to considerable degree of procedural red tape in the process. The government departments are under a special obligation to ensure that they perform their duties with diligence and commitment. Condonation of delay is an exception and should not be used as an anticipated benefit for government departments. The law shelters every one under the same light and should not be swirled for the benefit of a few. Considering the fact that there was not proper explanation offered by the department for the delay except mentioning of various dates, according to us, the department has miserably failed to give any acceptable and cogent reasons sufficient to condone such a huge delay. Accordingly, the appeals are liable to be dismissed on the ground of delay.
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Similarly, in U.P. Avas Evam Vikas Parishad Vs. Brij Kishore Pandy, IV (2009) CPJ 217 (NC), the delay of 111 days was not condoned as day-to-day delay was not explained. In Delhi Development Authority Vs. V.P. Narayanan, IV (2011) CPJ 155
(NC), where the delay was of only 84 days, it was held that "this is enough to demonstrate that there was no reason for this delay, much less a sufficient cause to warrant its condonation. In
Anshul Agarwal Vs. NOIDA, IV(2011) CPJ 63 (SC), it has been observed by the Hon'ble Apex Court at para 7 that:
"it is also apposite to observe that while deciding an application filed in such cases for condonation of delay, the court has to keep in mind that the special period of limitation has been prescribed under the Consumer Protection Act, 1986 for filing appeals and revisions in consumer matters and the object of expeditious adjudication of the consumer disputes will get defeated if this court was to entertain highly belated petition filed against the orders of the Consumer Fora."
मा0 राष्ट्रीय आयोग व मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों के परिप्रेक्ष्य में हम यह पाते हैं कि अपीलार्थी ने अपील को दायर करने में हुए अत्यधिक विलम्ब के संबंध में कोई प्रभावशाली अकाट्य एवं पर्याप्त कारण नहीं दर्शाए हैं, जिससे इतने अधिक विलम्ब को क्षमा किया जा सके।
उपरोक्त विवेचना के दृष्टिगत हम यह पाते हैं कि यदि इतनी अधिक देर से दाखिल की गई अपीलों को स्वीकार किया जाता है तो उपभोक्ता विवाद के शीघ्र निपटारे के लिए जो व्यवस्था बनाई गई है उसका उल्लंघन होगा, अत: अपील भारी रूप से कालबाधित होने के कारण निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील कालबाधित होने के कारण निरस्त की जाती है।
पक्षकारान अपना-अपना अपील व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(राम चरन चौधरी) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-3