(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2478/2013
श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस कम्पनी लिमिटेड
बनाम
जगदीश प्रसाद
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री मनु दीक्षित, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री एस0पी0 पाण्डेय, विद्धान अधिवक्ता
दिनांक :10.08.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-15/2012, जगदीश बनाम श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस कं0लि0 में विद्वान जिला आयोग, हमीपुर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 22.03.2013 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है। जिला उपभोक्ता मंच ने प्रश्नगत वाहन का कब्जा 30 दिन के अंदर परिवादी को सुपुर्द करने का आदेश पारित किया है। इस आदेश में विफलता पर 1,48,000/-रू0 दिनांक 09.10.2009 से 10 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने के लिए आदेशित किया गया है।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपनी एक ट्रक सं0 यू0पी0 78 ए0टी0 0753, 4,30,000/-रू0 का फाइनेंस कराया था। 18,500/-रू0 32 किश्तों में ऋण की अदायगी करनी थी। परिवादी द्वारा 08 किश्तों में 1,48,000/-रू0 अदा किये गये, इसके पश्चात दिनांक 09.10.2009 को ट्रक अपने कब्जे में ले लिया, जिसका कोई अधिकार नहीं था।
3. अपीलार्थी/विपक्षी पर पंजीकृत डाक से नोटिस भेजी गयी, परंतु नोटिस प्राप्त नहीं की गयी, परंतु इस टिप्पणी के साथ वापस आयी कि सही पता नहीं है।
4. एकतरफा साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला मंच ने उक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया।
5. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्ता मंच ने तथ्य एवं साक्ष्य के विपरीत निर्णय पारित किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने किश्तों की अदायगी में विफलता पर स्वयं इस वाहन का समर्पण अपीलार्थी के समक्ष किया था, जिसे दिनांक 11.05.2010 को 2,35,000/-रू0 में विक्रय कर दिया गया। अवशेष राशि 2,05,963/-रू0 की वसूली के लिए लीगल नोटिस भेजा गया है। जिला उपभोक्ता मंच ने समयावधि से बाधित परिवाद को ग्रहण किया है, इसलिए यह निर्णय अपास्त होने योग्य है।
6. दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ता को सुना। निर्णय/आदेश और पत्रावली का अवलोकन किया गया।
7. अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि वाहन पर ऋण कानपुर में दिया गया है। कानपुर में ही ऋण देने की संविदा हुआ था, इसलिए हमीरपुर स्थित जिला उपभोक्ता आयोग ने सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी ट्रांसपोर्ट का कार्य करता है। वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता। प्रत्यर्थी/परिवादी ने नियमित रूप से ऋण राशि का भुगतान नहीं किया और ट्रक का समर्पण कर दिया, जिसे विक्रय किया जा चुका है। बलपूर्वक वाहन का कब्जा लेने के संबंध में कोई शिकायत नहीं की गयी। इस क्रय की कोई शिकायत 09.10.2009 को परिवाद प्रस्तुत करने तक कभी नहीं की गयी। ऋण की अदायगी के इंतजार में ट्रक 11.05.2010 केा विक्रय किया गया। 02 साल के अंदर परिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है, जो कि प्रस्तुत अपील वाहन को कब्जे में लेने की तिथि को उत्पन्न वाद कारण 09.10.2009 के पश्चात वर्ष 2012 में प्रस्तुत किया गया है, जो निश्चित रूप से समयावधि से बाधित है। देरी माफ करने का कोई आधार दर्शित नहीं किया गया। अत: स्पष्ट है कि यह परिवाद देरी से प्रस्तुत किया गया है।
8. स्वयं परिवाद पत्र के अनुमान से जाहिर होता है कि कानपुर नगर में ट्रक फाइनेंस कराया गया। कानपुर में ट्रक फाइनेंस करने की संविदा हुआ, इसलिए उपभोक्ता विवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार कानपुर जिला उपभोक्ता आयोग में निहित था न कि हमीरपुर में। अत: यह तथ्य भी साबित है कि क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर सुनवाई की गयी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं पैरा सं0 2 में उल्लेख किया है कि उसने केवल 08 किश्तें अदा की हैं, परंतु यह उल्लेख नहींकिया कि कितनी अवधि तक बकाया किश्तें जमा नहीं की गयी। केवल यह कथन किया है कि वह बकाया किश्तें अदा करने को तैयार है, परंतु चूंकि जब प्रत्यर्थी/परिवादी पर किश्तें बकाया हो गयी तब विपक्षी के स्तर से सेवा में कमी नहीं कहा जा सकता। नजीर मैग्मा फाइनेंस लिमिटेड बनाम शुभांकर सिंह I (2013) CPJ 27 (N.C.) में व्यवस्था की गयी है कि यदि हायर परचेज एग्रीमेंट के तहत पुनर्भुगतान में चूक की जाती है तब वाहन का कब्जा लिया जा सकता है और विक्रय किया जा सकता है। प्रस्तुत केस में स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वीकार किया है कि किश्तों की अदायगी में विफलता हुई है, इसलिए वाहन को कब्जे में लेने और सुपुर्द करने का निर्णय का अधिकार अपीलार्थी में निहित है। बलपूर्वक कब्जा लेने का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है। स्वयं इस आयोग के निर्णय गोमती प्रसाद तिवारी बनाम मैसर्स राम ट्रांसपोर्ट कम्पनी लिमिटेड अपील सं0 1644/2018 में यह निष्कर्ष दिया गया है कि किश्तें बकाया होने पर यह नहीं कहा जा सकता है कि ऋण प्रदाता कम्पनी द्वारा सेवा में कमी की गयी है। पक्षों के मध्य निष्पादित अनुबंध की शर्तों की पूर्ति का दायित्व दोनों पक्षों पर बराबर है। जब प्रत्यर्थी/परिवादी स्वयं विफल होता है तब वह सेवा में कमी के तर्क को नहीं उठा सकता।
9. अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या प्रत्यर्थी/परिवादी एक व्यापारी है, और व्यापारिक उद्देश्य से ट्रक क्रय करने के लिए ऋण प्राप्त किया गया है। परिवाद पत्र के अवलोकन से जाहिर होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में यह उल्लेख नहीं किया कि यह वाहन जीविकोपार्जन के लिए क्रय किया गया था, चूंकि परिवाद पत्र में यह कथन नहीं है कि वाहन स्वयं के जीविकोपार्जन के लिए क्रय किया गया है, इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि यह वाहन केवल जीविकोपार्जन के लिए था व्यापारिक उद्देश्य के लिए नहीं था। अत: यह तथ्य स्थापित है कि प्रत्यर्थी/परिवादी विधि के अंतर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। तदनुसार अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुशील कुमार)(राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
10.08.2023
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2