राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-801/2013
यूनियन आफ इण्डिया व अन्य
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
जगदीश प्रसाद मिश्रा व अन्य
प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1-मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी पीठासीन सदस्य।
2-मा0 श्री संजय कुमार सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित। विद्वान अधिवक्ता श्री एम0 एच0 खान।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित। श्री जे0 पी0 मिश्रा स्वयं परिवादी।
दिनांक 30-12-2014
मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी पीठासीन न्यायिक सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलकर्ता ने प्रस्तुत अपील विद्वान जिला मंच गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या-61/2008 जगदीश प्रसाद मिश्रा एवं अन्य बनाम भारत संघ जरिये महाप्रबंधक पूर्वोत्तर रेलवे एवं अन्य में पारित किये गये निर्णय दिनांक 15-03-2013 के विरूद्ध प्रस्तुत की है जिसमें कि विद्वान जिला मंच ने निम्न आदेश पारित किया है।
परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण स्वीकार किया जाता है। परिवादी विपक्षीगण से कुल 14435/-रू0 (चौदह हजार चार सौ पैतीस रूपये) प्राप्त करने के अधिकारी हैं। विपक्षी विभाग से अपेक्षा की जाती है कि उपरोक्त आज्ञप्ति की समस्त धनराशि रेल टिकट परीक्षक बी0 पनीर सेल्वम से वसूल किया जाए और इस कर्मचारी को बताया जाए कि भविष्य में यात्रियों के साथ सद्व्यवहार करे। विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि बी0 पनीर सेल्वम से यह धनराशि वसूल करके एक माह की अवधि के अन्तर्गत मंच के समक्ष प्रस्तुत करे, अन्यथा विधि अनुसार समस्त आज्ञप्ति की धनराशि मय 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक् ब्याज जो परिवाद प्रस्तुत करने के दिनांक से अंतिम वसूली तक देय होगा, विपक्षीगण से वसूल किया जाएगा।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी सं0 5-6 ब्रम्हानन्द मिश्रा एवं श्रीमती शारदा देवी जो परिवादी जगदीश के माता पिता हैं, को चारोधाम की यात्रा कराने के लिए परिवादीगण ने 5.5 लोगों के लिए चक्रीय टिकट खरीदा, जिसका संख्या 22008 लगायत 22012 थी और दिनांक 12-03-
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2006 से 49 दिन के लिए टिकट वैध था। परिवादीगण ने प्रत्येक टिकट के लिए 844/-रू0 और एक टिकट के लिए 614/-रू0 कुल 4834/-रू0 अदा किया था और टिकट खरीद कर दिनांक 12-03-2006 से 5012 अप गोरखपुर ट्रेन से यात्रा प्रारम्भ करनी थी। परिवादीगण को अगली यात्रा दिनांक 14-03-2006 को गाड़ी सं0 6713 अप सेतु एक्सप्रेस से करनी थी, लेकिन परिवादीगण द्वारा अपने परिवाद के साथ समय से न पहुँचने के कारण दिनांक 14-03-2006 को ट्रेन सं0 6713 अप छूट गई, जिसके कारण परिवादी ने दिनांक 15-03-2006 को उसी ट्रेन संख्या 6713 अप से रामेश्वर यात्रा शुरू की। परिवादीगण का कहना है कि परिवादीगण रामेश्वरम यात्रा दूसरे दर्ज की अनारक्षित यान कर रहे थे क्योंकि आरक्षित टिकट पर अंकित दिवस समाप्त हो गया था। ताम्बरम से रामेश्वर के बीच एक टिकट परीक्षक के द्वारा परिवादीगण से कहा गया कि सभी परिवादीगण बिना टिकट यात्रा कर रहे हैं और वह चक्रीय टिकट की वैधता मानने से इनकार कर दिया और डिब्बे से नीचे उतरने के लिए परिवादीगण को बाध्य किया। उक्त टिकट परीक्षक ने चक्रीय टिकट 49 दिन की वैधता मानने से इनकार कर दिया और परिवादीगण ने मजबूर होकर पैसे से व्यवस्था करके ताम्बरम से रामेश्वर का टिकट बनवाया जिससे परिवादी को अपने बहुमूल्य सामान बेचना पड़ा। परिवादीगण से 250/-रू0 प्रति टिकट की दर से टिकट निरीक्षक ने टिकट बनाया और विपक्षीगण के कर्मचारी ने अपने निर्धारित सेवा से अलग कृत्य किया जो निंदनीय एवं दण्डनीय है। इस सम्बन्ध में मुख्य सतर्कता अधिकारी, रेलवे को परिवादीगण ने पत्र भेजा, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई और अंतत: यह सूचित किया गया कि चूंकि 90 दिन का समय व्यतीत हो चुका है, इसलिए इस मामले में विचारण नहीं हो सकता है, इसलिए परिवादी ने परिवाद मंच के समक्ष प्रस्तुत करके उपरोक्त वर्णित अनुतोष चाहा है। परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में परिवादी सं01 जी0 पी0 मिश्रा का शपथपत्र प्रस्तुत किया है इसके अतिरिक्त परिवादीगण को जारी किये गए चक्रीय टिकट की प्रतियॉं व परिवादीगण को 2435/-रू0 वसूल किए गए उसकी रसीद मुख्य सतर्कता अधिकारी पूर्वोत्तर रेलवे को भेजे गए पत्र मुख्य वाणिज्य प्रबन्धक, दक्षिण रेलवे को भेजे गए पत्र की प्रति और ट्रेन सं0 6713 के आरक्षित टिकट की प्रति, दक्षिण रेलवे द्वारा 90 दिन का समय व्यतीत हो जाने के कारण कोई धनराशि वापस न किये जाने के संबंध में पत्र की प्रति प्रस्तुत की गयी है।
विपक्षी सं01 की ओर से लिखित बयान प्रस्तुत किया गया है और यह कथन किया गया है कि परिवादीगण को चक्रीय टिकट सं0 22008 लगायत 22012 जारी किया गया था जो 49 दिन के लिए वैध था। यात्रा गोरखपुर
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जंक्शन से प्रारम्भ होनी थी और वहीं समाप्त होनी थी। दिनांक 14-03-2006 के लिए ट्रेन सं0 6713 सेतु एक्सप्रेस ताम्बरम से रामेश्वरम के लिए टिकट जारी किया गया है। विपक्षी सं01 का कथन है कि यह सर्वमान्य नियम है कि जिस दिनांक के लिए टिकट जारी किया जाता है उसी दिनांक को यात्रा की जाती है। ब्रेक जर्नी के लिए इण्डोसमेंट कराया जाना कराया जाना चाहिए था, इसलिए 15-03-2006 को वैध टिकट पर परिवादीगण यात्रा नहीं कर रहे थे इसलिए 250/-रू0 प्रति व्यक्ति पेनाल्टी एवं 935/-रू0 परिवादीगण से प्राप्त किया गया था। रेलवे कर्मचारी ने अपनी ड्यूटी की इसलिए परिवादी का परिवाद अपास्त किया जाय।
विपक्षी सं02 की ओर से भी लिखित बयान प्रस्तुत किया गया है उपरोक्त तथ्य दुहराए गए है और यही कथन किया गया है कि चूंकि परिवादीगण के पास वैध टिकट दिनांक 15-03-2006 की यात्रा के लिए नहीं था, इसिलए टिकट परीक्षक ने उपरोक्त वर्णित धनराशि परिवादीगण से वसूल की है और रसीद जारी की। विपक्षी सं02 की ओर से यह भी कथन किया गया है कि टिकट परीक्षक ने कोई दुर्व्यवहार परिवादी से नहीं किया, इसलिए परिवादी का परिवाद अपास्त किया जाय।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने दिनांक 14-03-2006 को रिजर्वेशन टिकट ताम्बरम रेलवे स्टेशन से रामेश्वरम के लिए सेतु एक्सप्रेस से यात्रा की और जिस ट्रेन से उन्हें अपने टिकट पर यात्रा करनी थी उस पर नहीं की अत: ऐसी परिस्थिति में दिनांक 15-03-2006 को टी0 टी0 ई0 द्वारा उनको बिना टिकट पाया गया परिवादी ने दिनांक 15-03-2006 को सेतु एक्सप्रेस से जो यात्रा की जिसके लिए वह उस ट्रेन से यात्रा करने के लिए अधिकृत नहीं था और इसी कारण उसको बिना टिकट मानतें हुए उसे चार्ज किया गया और रसीद दी गयी।
अपीलकर्ता ने III (2002) सी0पी0जे0 308 मा0 राज्य आयोग उत्तर प्रदेश यूनियन आफ इण्डिया बनाम रामेश्वर पाण्डेय एवं II (2005) सी0पी0जे0 542 मा0 राज्य आयोग उत्तर प्रदेश यूनियन आफ इण्डिया बनाम राधा कृष्ण खन्ना पर विश्वास करते हुए यह तर्क दिया कि परिवादी द्वारा रेलवे के किराये को रिफण्ड किये जाने की शिकायत की गयी है जो कि उसे यात्रा के दौरान दिनांक 15-03-2006 को संबंधित टी0टी0 ई0 द्वारा चार्ज किया गया है, इस संबंध में उसके द्वारा रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा-13 (1) (बी) के अन्तर्गत परिवादीगण/प्रत्यर्थीगण को अपना परिवाद रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए था एवं उपरोक्त अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत किसी अन्य न्यायालय को श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है अत: ऐसी परिस्थिति में प्रश्नगत निर्णय
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निरस्त किये जाने योग्य है क्योंकि उपभोक्ता न्यायालय में परिवाद पोषणीय नहीं है।
श्री जगदीश प्रसाद मिश्रा प्रत्यर्थी/परिवादी ने तर्क दिया कि उसके पास चक्रीय टिकट होने के पश्चात भी उससे अवैध रूप से यात्रा के दौरान टिकट निरीक्षक ने टिकट बनाया अत: ऐसी परिस्थिति में विद्वान जिला मंच द्वारा विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी का यह भी तर्क है कि उसके द्वारा परिवाद में कहीं भी रिफण्ड के लिए नहीं आग्रह किया गया है केवल 2,435/-रू0 जो अवैध तरीके से वसूल किये गये हैं उसको वापिस दिलाये जाने हेतु अनुरोध किया गया है एवं मानसिक, शारीरिक कष्ट होने के लिए क्षतिपूर्ति तथा वाद व्यय दिलाये जाने का अनुरोध किया गया है अत: इस प्रकरण में उसका परिवाद रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा-13 (1) (बी) के अन्तर्गत नहीं आता है और न ही उपरोक्त धारा-15 के अन्तर्गत बाधित है।
प्रत्यर्थी/परिवादी का यह भी तर्क है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-3 के अन्तर्गत वह अपने परिवाद को प्रस्तुत कर सकता है एवं उपभोक्ता न्यायालय को श्रवण का क्षेत्राधिकार है। प्रत्यर्थी ने चक्रीय टिकट की फोटो प्रति भी दाखिल की है जो कि 49 दिन के लिए वैध है।
प्रश्नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया परिवादीगण के अनुसार जब दिनांक 14-03-2006 को वह गाड़ी संख्या 6713 अप सेतु एक्सप्रेस को पकड़ने के लिए पहुंचा तो उसकी गाड़ी छूट गयी जिसके कारण परिवादी ने दिनांक 15-03-2006 को ट्रेन संख्या 6713 अप से रामेश्वरम की यात्रा सेतु एक्सप्रेस से की परिवादीगण का कथन है कि रामेश्वरम की यात्रा दूसरे दर्जे के अनारक्षित यान से परिवादीगण यात्रा कर रहे थे क्योंकि आरक्षित टिकट पर अंकित दिवस समाप्त हो गया था। परिवादीगण दिनांक 15-03-2006 को सेतु एक्सप्रेस से रामेश्वरम की यात्रा दूसरे दर्जे के अनारक्षित यान से कर रहे थे और उसके पास चक्रीय टिकट था जो कि यात्रा के दिन भी वैध था और जिसके आधार पर यात्रा कर सकता था तथा ऐसी परिस्थिति में उसके चक्रीय टिकट को न मानते हुए उससे 250/-रू0 प्रति व्यक्ति पेनाल्टी एवं 935/-रू0 कुल मिलाकर 2435/-रू0 वसूल किये जैसा कि विपक्षी संख्या-1 भारत संघ जरिये महाप्रबन्धक पूर्वोत्तर रेलवे ने अपने प्रतिवाद पत्र में कहा है। परिवाद पत्र के देखने से यह विदित होता है कि परिवादी ने अवैध तरीके से वसूली गयी धनराशि मु0 2435/-रू0 जो कि उसने दिनांक 15-03-2006 को भुगतान किया था उसको वापस दिलाये जाने हेतु अनुतोष मांगा है जो कि रेलवे फेयर को वापिस किये जाने के सम्बन्ध में है अत: ऐसी परिस्थिति में
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रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा-13 (1) (बी) के अन्तर्गत परिवादीगण को अपना परिवाद/प्रतिवेदन उससे अवैध रूप से वसूल किये गये रेलवे टिकट के मूल्य को वापिस किये जाने हेतु करना चाहिए था क्योंकि रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 15 के अन्तर्गत किसी अन्य न्यायालय को इसके श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है उपरोक्त परिस्थिति में अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है, परिवाद संख्या-61/2008 जगदीश प्रसाद मिश्रा एवं अन्य बनाम भारत संघ जरिये महाप्रबंधक पूर्वोत्तर रेलवे एवं अन्य में पारित किये गये निर्णय दिनांक 15-03-2013 निरस्त किया जाता है। परिवादी/अपीलार्थी यदि चाहे तो अपना परिवाद/प्रतिवेदन सक्षम न्यायालय/अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। जो कि वर्णित परिस्थितियों में काल बाधित नहीं माना जाएगा।
वाद व्यय पक्षकार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(अशोक कुमार चौधरी) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
मनीराम आशु0-2
कोर्ट- 3