राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
पुनरीक्षण सं0-६५/२००९
(जिला मंच, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-४०१/२००३ में पारित आदेश दिनांक १३-०२-२००९ के विरूद्ध)
१. सहारा इण्डिया, ब्रान्च आफिस, सोनबरसा (कोड नं0-२०७९)
२. सहारा इण्डिया, रीजनल आफिस, सिनेमा रोड, पो0आ0 सदर, जिला गोरखपुर द्वारा रीजनल मैनेजर वर्कर द्वारा अधिकृत हस्ताक्षरी।
..............पुनरीक्षणकर्तागण/विपक्षीगण।
बनाम्
१. जगदीश गुप्ता पुत्र श्री लक्ष्मन ग्राम डुमरी खासी, टोला-लक्ष्मीपुर, पोस्ट डुमरी खास, थाना-चौरीचौरा, जिला गोरखपुर (यू.पी.)।
............... प्रत्यर्थी/परिवादी।
२. राम दास गुप्ता एजेण्ट कोड नं0-१६७४०००९९, सहारा इण्डिया, ब्रान्च आफिस सोनबरसा, जिला गोरखपुर (यू.पी.)।
............... प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-३(औपचारिक पक्षकार)।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 राज कमल गुप्ता, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित :- श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित :-श्री अम्बरीश कौशल श्रीवास्तव विद्वानअधिवक्ता।
दिनांक : २३-०२-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत पुनरीक्षण, जिला मंच, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-४०१/२००३ जगदीश गुप्ता बनाम क्षेत्रीय प्रबन्धक, सहारा इण्डिया इण्डिया व अन्य में पारित आदेश दिनांक १३-०२-२००९ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि श्रीमती बेचना पत्नी श्री राम कुमार गुप्ता ने पुनरीक्षणकर्ता की सहारा ५-१० आप्सन(आप्सन-ए) योजना के अन्तर्गत दिनांक २०-०१-१९९९ को ३,०००/- रू० निवेशित किया। निवेशकर्ता की मृत्यु दिनांक २६-०९-२००२ को हो जाने के कारण परिवादी जगदीश गुप्ता ने निवेशकर्ता के नामिनी होने के आधार पर
-२-
पुनरीक्षणकर्तागण से डेथ हैल्प की मांग की। पुनरीक्षणकर्तागण द्वारा इसे अस्वीकार कर दिए जाने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी ने पुनरीक्षणकर्तागण के विरूद्ध जिला मंच के समक्ष परिवाद योजित किया। पुनरीक्षणकर्तागण के कथनानुसार निवेशकर्ता/बॉण्डधारक श्रीमती बेचना तथा पुनरीक्षणकर्तागण के मध्य हुए इकरारनामा के अन्तर्गत पक्षकारों के मध्य योजना से सम्बन्धित विवाद की स्थिति में विवाद मध्यस्थ को सौंपा जायेगा तथा मध्यस्थ द्वारा दिया गया निर्णय पक्षकारों पर बाध्यकारी होगा। इकरारनामे की शर्तों के अनुसार परिवाद से सम्बन्धित विवाद मध्यस्थ वरिष्ठ अधिवक्ता श्री रवि भूषण श्रीवास्तव को सुपुर्द किया गया। परिवादी ने मध्यस्थ के समक्ष अपनी आपत्ति भी प्रस्तुत की। मध्यस्थ द्वारा विवाद का निस्तारण करते हुए एवार्ड दिनांक ०८-०९-२००६ को पारित किया गया। तदोपरान्त पुनरीक्षणकर्ता ने जिला मंच के समक्ष दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा-११ के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र इस आधार पर प्रस्तुत किया कि विवाद का निस्तारण मध्यस्थ द्वारा कर दिए जाने के कारण परिवाद प्रांग न्याय के सिद्धान्त से बाधित था, किन्तु विद्वान जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्तागण द्वारा प्रस्तुत यह प्रार्थना पत्र प्रश्नगत आदेश दिनांकित १३-०२-२००९ द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। गया। विद्वान जिला मंच के इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह पुनरीक्षण योजित की गयी है।
हमने पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव एवं प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अम्बरीश कौशल श्रीवास्तव तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी सं0-२ की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी के ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया कि निवेशकर्ता/बॉण्डधारक श्रीमती बेचना तथा पुनरीक्षणकर्तागण के मध्य हुए इकरारनामे में विवाद का निबटारा मध्यस्थ द्वारा किए जाने का कोई प्रावधान उल्लिखित नहीं था। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि परिवाद वर्ष २००३ में योजित किया गया, जबकि मध्यस्थ की नियुक्ति वर्ष २००६ में की गयी। इस प्रकार मात्र परिवाद की कार्यवाही को निष्प्रभावी करने के उद्देश्य से मध्यस्थ की नियुक्ति की गयी। ऐसी परिस्िथति में मध्यस्थ द्वारा मामले के निबटारे के प्रयास का विरोध प्रत्यर्थी सं0-
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१/परिवादी ने मध्यस्थ के समक्ष भी प्रकट किया। इसके बाबजूद भी मध्यस्थ द्वारा अवार्ड दिनांक ०८-०९-२००६ को पारित किया गया।
पुनपरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-३ के प्रावधान अन्य अधिनियमों के प्रावधानों के अतिरिक्त हैं न कि अन्य अधिनियमों के अल्पीकरण के लिए। अत: पक्षकारों द्वारा निष्पादित इकरारनामे की शर्तों के अनुसार प्रश्नगत विवाद मध्यस्थ के सम्मुख विचारणीय है, जिला मंच के समक्ष परिवाद की सुनवाई सम्भव नहीं है।
उपभोक्ता संरक्षण मंच एक पूरक मंच प्रदान करता है, किसी अन्य मंच द्वारा दिये गये निर्णय पर अपनी अधिकारिता प्रदान नहीं करता, क्योंकि वर्तमान प्रकरण में आर्बीट्रेशन एवं कन्सीलिएशन अधिनियम की धारा-८ के अन्तर्गत सभी प्रक्रियाओं को पूर्ण होने के उपरान्त मध्यस्थ द्वारा अन्तिम निर्णय दे दिया गया है, अत: उन्हीं तथ्यों पर दोबारा विचारण करना उचित नहीं होगा। पक्षकारों के मध्य विवाद का निबटारा मध्यस्थ ने अपने एवार्ड दिनांकित ०८-०९-२००६ द्वारा कर दिया है। अत: परिवाद में आगे कोई कार्यवाही किए जाने का कोई औचित्य नहीं है। विद्वान जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्ता का प्रार्थना पत्र निरस्त करके विधिक त्रुटि की है। पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने दी इन्स्टालमेण्ट सप्लाई लि0 बनाम कंगरा ऐक्स-सर्विसमेन ट्रान्सपोर्ट कं0 व अन्य, २००६(३) सीपीआर ३३९ (एनसी) के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया।
यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत परिवाद वर्ष २००३ में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा योजित किया गया था, जबकि मध्यस्थ की नियुक्ति दिनांक ०२-०२-२००६ को अर्थात् परिवाद योजित किए जाने के उपरान्त की गयी। स्काई पैक कोरियर्स लि0 बनाम टाटा केमिकल्स (२०००) ५ एससीसी २९४ के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित इकरारनामा में आर्बीट्रेशन क्लॉज की उपस्थिति उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद योजन को प्रतिबन्धित नहीं करती, क्योंकि इस अधिनियम के अन्तर्गत विवाद निस्तारण की व्यवस्था अन्य अधिनियमों के प्राविधानों के अतिरिक्त की गयी है। जब प्रत्यर्थी/परिवादी ने विवाद
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निस्तारण हेतु उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद योजित कर दिया था तब पुनरीक्षणकर्तागण से यह अपेक्षित था कि विवाद निस्तारण के सन्दर्भ में अपना पक्ष विद्वा जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत करते, किन्तु पुनरीक्षणकर्तागण ने विद्वान जिला मंच के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत न करके परिवाद के लम्बित रहने के मध्य, मध्यस्थ द्वारा विवाद निबटाये जाने का प्रयास किया। ऐसी परिस्थिति में विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष कि वस्तुत: पुनरीक्षणकर्तागण ने जिला मंच की कार्यवाही को निष्प्रभावी करने के उद्देश्य से मध्यस्थ द्वारा विवाद के निबटारे का प्रयास किया, हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है।
पुनरीक्षणकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित इन्स्टालमेण्ट सप्लाई लि0 बनाम कंगरा ऐक्स-सर्विसमेन ट्रान्सपोर्ट कं0 व अन्य, २००६(३) सीपीआर ३३९ (एनसी) के मामले में दिये गये निर्णय से सम्बन्धित वाद के तथ्य प्रस्तुत प्रकरण के तथ्यों से भिन्न हैं, उस वाद में परिवाद के संस्थित होने से पूर्व ही मध्यस्थ द्वारा एवार्ड पारित किया जा चुका था, जबकि प्रस्तुत प्रकरण में परिवाद के लम्बित रहने के मध्य मध्यस्थ की नियुक्ति किया जाना बताया गया है।
यह भी उल्ल्ेखनीय है कि प्रश्नगत मामले में यह तथ्य भी विवाद है कि बॉण्डधारक एवं पुनरीक्षणकर्तागण के मध्य हुए इकरारनामे में विवाद के मध्यस्थ द्वारा निर्णीत किए जाने के सम्बन्ध में कोई प्राविधान था अथवा नहीं। प्रश्नगत आदेश के अवलोकन से यह विदित होता है कि प्रश्नगत परिवाद के सम्बन्ध में इस सन्दर्भ में कोई साक्ष्य विद्वान जिला मंच के समक्ष पुनरीक्षणकर्तागण द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया।
ऐसी परिस्थिति में प्रश्नगत मामले के सन्दर्भ में मध्यस्थ द्वारा पारित एवार्ड के आलोक में परिवाद की कार्यवाही धारा-११ दीवानी प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत बाधित होनी नहीं माना जा सकती। हमारे विचार से विद्वान जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्तागण के प्रश्नगत प्रार्थना पत्र को निरस्त करके कोई त्रुटि नहीं की है। पुनरीक्षण में बल नहीं है।
परिणामस्वरूप, पुनरीक्षण निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण निरस्त किया जाता है। जिला मंच, गोरखपुर द्वारा परिवाद
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संख्या-४०१/२००३ जगदीश गुप्ता बनाम क्षेत्रीय प्रबन्धक, सहारा इण्डिया इण्डिया व अन्य में पारित आदेश दिनांक १३-०२-२००९ की पुष्टि की जाती है।
पुनरीक्षण व्यय-भार के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(राज कमल गुप्ता)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.