राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-3523/1999
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, फर्रूखाबाद द्वारा परिवाद संख्या-430/1996 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18-07-1998 के विरूद्ध)
प्रबंधक अजीज कोल्ड स्टोरेज पितौरा कायमगंज, जिला फर्रूखाबाद।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
जवर सिंह पुत्र श्री परसराम निवासी-दयालपुर, पोस्ट-टिकार, जिला हरदोई।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
1- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
1- अपीलार्थी की ओर से उपस्थित - श्री ए0 के0 पाण्डेय।
2- प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित - कोई नहीं।
दिनांक : 24-08-2017
मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय :
परिवाद संख्या-430/1996 जवर सिंह बनाम् प्रबन्धक अजीज कोल्ड स्टोरेज में जिला उपभोक्ता फोरम, फर्रूखाबाद द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 18-07-1998 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी प्रबंधक अजीज कोल्ड स्टोरेज पितौरा कायमगंज, जिला फर्रूखाबाद की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद संख्या-430/96 स्वीकार किया है तथा निर्णय के अंतिम प्रस्तर में दिये गये निर्देशानुसार विपक्षी को निर्देशित किया है कि वह परिवादी को उसके भण्डारित आलू की कीमत 45,000/-रू0 की धनराशि का भुगतान इस निर्णय की तिथि से एक माह के अंतर्गत परिवादी को कर दे।
संक्षेप में इस केस के सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी के शीतगृह में अपना आलू भण्डारण हेतु 50 बोरा दिनांक 15-03-
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1996 रसीद संख्या-4831 तथा 88 बोरा दिनांक 17-03-1996 जिनकी रसीद संख्या-4987 है, कुल 138 बोरा आलू भण्डारित किया। परिवादी के अनुसार इस 138 बोरे की क्रय कीमत 31,050/-रू0 बतायी गयी है। परिवादी दिनांक 23-07-196 को विपक्षी कोल्ड स्टोरेज में विक्रय हेतु कुल आलू निकालने गया परन्तु विपक्षी ने स्पष्ट रूप से यह कहा कि उसके द्वारा भण्डारित किया गया समस्त आलू सड़ गया है तथा परिवादी ने अपनी तकपट्टियों जब मांगी तो उसे भी नहीं दिया गया। परिवादी ने इस बात का स्पष्ट अंकन किया है कि उसने 5,000/-रू0 विपक्षी से इस आलू के भण्डारण के प्रति ऋण लि�या है विपक्षी ने 5000/-रू0 तथा उस पर 24 प्रतिशत ब्याज का तकाजा भी परिवादी से किया है। परिवादी द्वारा अपने जमा किये गये भण्डारित आलू को लेने हेतु बराबर प्रयास किया गया परन्तु विपक्षी ने उसे आलू नहीं दिया जो कि विपक्षी की सेवा में कमी है इसलि�ए यह परिवाद योजित किया गया है।
जिला मंच द्वारा विपक्षी पर नोटिस की तामीला पर्याप्त मानी गयी। विपक्षी ने न तो कोई प्रतिवाद पत्र ही दाखिल किया और न ही आकर अपना पक्ष जिला मंच के समक्ष रखा इसलि�ए वाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से की गयी।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री ए0के0 पाण्डेय उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया।
हमने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क सुने तथा आक्षेपित निर्णय और आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी/प्रत्यर्थी अपना आलू लेने स्वयं नहीं आया। अपीलार्थी द्वारा परिवादी को दिनांक 26-06-1996 को आलू ले जाने की सूचना दी तथा दिनांक 15-07-1996 को भी सूचित किया कि दिनांक 08-08-1996 को समय 12 बजे दिन में उपस्थित रहे अन्यथा आपकी अनुपस्थिति में आलू की नीलामी कर दी जायेगी। परिवादी फिर भी आलू लेने नहीं आया अत: आलू की नीलामी कर दी गयी और आलू की नीलामी से जो धनराशि प्राप्त हुई उससे परिवादी/प्रत्यर्थी को दिया गया 5,000/-रू0 का ऋण काट लिया गया तथा
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भण्डारित आलू का किराया रू0 5464.80 पैसे बताया है जो रू0 39.60 पैसे प्रति बोरे के हिसाब से होता है, को भी परिवादी ने अदा नहीं किया है।
परिवादी स्वयं आलू निकालने नहीं आया क्योंकि आलू की कीमत कम हो गयी थी। अपीलार्थी ने कोई सेवा में कमी नहीं की है। अत: अपील स्वीकार कर जिला फोरम के आदेश को निरस्त किया जाए।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से नोटिस के बाद भी कोई उपस्थित नहीं आया।
पत्रावली का परिशीलन यह दर्शाता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा विपक्षी/अपीलार्थी के कोल्ड स्टोरेज में 138 बोरे आलू रखना उभयपक्ष को स्वीकार है तथा 5,000/-रू0 परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा ऋण लिया जाना भी उभयपक्ष को स्वीकार है अब विवाद सिर्फ इस बात का है कि परिवादी/प्रत्यर्थी के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी ने आलू परिवादी को वापस नहीं किया जबकि अपीलार्थी का कथन है कि प्रत्यर्थी स्वयं आलू की कीमत कम होने के कारण आलू लेने नहीं आया। इससे स्पष्ट है कि अपीलार्थी द्वारा भण्डारित आलू प्रत्यर्थी/परिवादी को नोटिस दिये बिना ही नीलाम किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध नोटिस देखने से यह स्पष्ट है कि दिनांक 26-06-1996 को आलू ले जाने के लिए लिखा गया और यह भी लिखा है कि ट्रान्सफार्मर जल गया है जिससे आलू खराब होने की सम्भावना है। आलू निकालने की सूचना दिनांक 26-06-1996 को दी गयी है जो रजिस्टर्ड डाक से नहीं दी गयी बल्कि उसमें यू0पी0सी0 आदि का उल्लेख है जो विश्वसनीय नहीं है और ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलार्थी द्वारा यह बाद में तैयार की गयी है। अत: नीलामी व आलू निकालने की सूचना विश्वसनीय नहीं है। अपीलार्थी की सेवा में कमी स्पष्ट परिलक्षित होती है। परिवादी/प्रत्यर्थी ने अपने परिवाद पत्र में यह स्पष्ट लिखा है कि वह जब दिनांक 23-06-1996 को आलू लेने गया तो विपक्षी/अपीलार्थी ने स्पष्ट रूप से कहा कि समस्त आलू सड़ गया है और पट्टी भी देने से इंकार कर दिया है जो अपीलार्थी/विपक्षी की सेवा में कमी है। परिवादी/प्रत्यर्थी ने अपने परिवाद के
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पैरा-8 में 138 बोरी आलू की कीमत 31050/-रू0 बतायी है और वर्तमान कीमत रू0 50,000/-रू0 बताया है। जिला फोरम ने सभी तथ्यों पर विचार न करते हुए 45,000/-रू0 अदा करने का आदेश किया है जो न्यायसंगत नहीं है अत: हमारा मत है कि परिवादी/प्रत्यर्थी को आलू की कीमत 31050/-रू0 दिलाया जाना ही न्यायसंगत है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने 5,000/-रू0 पहले ही ऋण लिया है तथा आलू के कोल्ड स्टोरेज में भण्डारित आलू का किराया भी अपीलार्थी द्वारा अपील के पैरा-11 में रू0 5464.80 पैसे बताया गया है तथा परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा भी अपने परिवाद में यह नहीं कहा गया है कि कोल्ड स्टोरेज में भण्डारित आलू का किराया उसने अदा कर दिया है अथवा नहीं। अत: अपीलार्थी का यह भी कथन स्वीकार किये जाने योग्य है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता ने बहस के दौरान यह कथन किया है कि 5,000/-रू0 परिवादी/प्रत्यर्थी को इस आयोग के आदेश दिनांक 29-03-2000 के परिप्रेक्ष्य में अदा कर दिया गया है लेकिन ऐसा कोई साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है। अगर 5,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्राप्त कर लिया है तो अपीलार्थी 31,050/-रू0 से (5000+5464.80 = 10464.80) काटकर शेष धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को एक माह के अंदर अदा करें। यदि आयोग के आदेश से 5,000/-रू0 जमा किया गया है तो यह धनराशि भी 31,050/-रू0 में समायोजित की जायेगी। तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, फर्रूखाबाद द्वारा परिवाद संख्या-430/1996 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18-07-1998 को संशोधित करते हुए आलू की भण्डारित कीमत 45,000/-रू0 के स्थान पर 31050/-रू0 किया जाता है और अपीलार्थी को यह आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को आदेशित धनराशि 31,050/-रू0 में से (5000+5464.80= कुल 10464.80)
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काटकर शेष धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को एक माह के अंदर अदा करेगा और यदि आयोग के आदेश से 5,000/-रू0 जमा किया गया है तो वह धनराशि भी इस धनराशि में समयोजित की जायेगी।
उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
( उदय शंकर अवस्थी ) (बाल कुमारी)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-2,
प्रदीप मिश्रा, आशु0