राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, सर्किट बैंच
संख्या 2, राजस्थान, जयपुर
ं
परिवाद संख्याः 1124/2013
श्री इमरत पुत्र श्री मेवखां, नि0 जटियाना,जिला अलवर।
बनाम
जयपुर विघुत वितरण निगम लि0 जरिये चैयरमैन,जयपुर व अधिषाषी अभियन्ता तथा सहायक अभियन्ता,अलवर ।
समक्षः-
माननीय श्री विनय कुमार चावला, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्री लियाकत अली,सदस्य ।
उपस्थितः
श्री मोहित गुप्ता, अधिवक्ता अपीलार्थी ।
श्री बी0सी0षर्मा, अधिवक्ता प्रत्यर्थीगण ।
दिनंाक: 22.01.2015
राज्य आयोग, सर्किट बैंच नं0 02, राज. द्वारा-
यह अपील विद्वान जिला मंच अलवर के निर्णय दिनांक 30.10.2013 के विरूद्व प्रस्तुत हुई है,जिसके द्वारा उन्होनें परिवादी का परिवाद निरस्त कर दिया गया है।
प्र्रकरण के तथ्य इस प्रकार से है कि परिवादी ने विघुत कनैक्षन प्राप्त करने के लिये 30.12.2003 को आवेदन किया और 2575/-रू0 की आवेदन राषि जमा करायी, प्रत्यर्थी द्वारा डिमाण्ड नोटिस जारी करने पर 20850/-रू0 भी जमा करवा दिये । दिनांक 13.6.2013 को प्रत्यर्थी ने एक पत्र लिखकर परिवादी को यह सूचित किया कि उसे विघुत संबंध दिये जाने के संबंध मे उसके भाई सरदारा ने आपत्ति की है चूंकि जिस भूमि पर वह विघुत संबंध चाहता है वह षामलाती है जिस पर दोनो भाईयों का अधिकार है । इसके विरूद्व परिवादी ने एक परिवाद विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया, विद्वान जिला मंच का निष्कर्ष था कि परिवादी के भाई के द्वारा आपत्ति करने के कारण प्रत्यर्थी का कोई सेवादोष नही है।
विद्वान अधिवक्ता अपीलार्थी का यह तर्क है कि दोनो भाईयों के नाम से खसरा नम्बर 539, 540, 541, 543, 873, 897, 898, 903, 904 है तथा दोनो भाईयों मे एक मोखिक बटवारा हो गया था और विवादित खसरा नम्बर 903, 904 पर परिवादी का कब्जा है और वह इस पर खेती करता है, और इसी स्थान पर वह विघुत संबंध चाहता है, यह भी बताया गया है कि पूर्व मे उसके भाई सरदारा के नाम से एक विघुत संबंध है जो उसके कब्जे के खसरा नम्बर मे लगा हुआ है पहिले दोनो भाई सांझे मे खेती करते थे परन्तु अलग होने के कारण परिवादी अपना पृथक विघुत कनैक्षन लेना चाहता है । जब कि प्रत्यर्थीगण की और से उनके विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क दिया है कि परिवादी को तब तक कनैक्षन नही दिया जा सकता है जब तक कि वह अपनी भूमि का मालिकाना हक प्रस्तुत नही करें ।
हमने दोनो पक्षों के तर्को पर विचार किया, पत्रावली का अधोपान्त अवलोकन किया ।
हमारे मत मे प्रत्यर्थीगण द्वारा कनैक्षन नही दिया जाना सेवादोष की श्रेणी मे आता है । परिवादी व उसके भाई सरदारा के नाम सयुंक्त भूमि है और जब तक बंटवारा नही हो जाता है तब तक दोनो ही उक्त भूमि के मालिक है और मोखिक बटवारे के आधार पर वेें यदि अलग अलग खेतो पर कार्य कर रहे है तो प्रत्यर्थी द्वारा वहां पर परिवादी को विघुत संबंध लेने से नही रोका जा सकता है। जहां तक मालिकाना हक का प्रष्न है खसरा नम्बर 903 व 904 मे सरदार का भी पृथक मालिकाना हक नही है । हम विद्वान अधिवक्ता परिवादी के इस तर्क से सहमत है कि औपचारिक व विधिक बटवारे की न्यायिक प्रक्रिया मे काफी समय लगता है और जब तक यदि परिवादी को विधंुत संबंध नही मिलता है तो उसे अपूरणीय क्षति होगी । ऐसी स्थिति मे हमारा यह मत हैै कि प्रत्यर्थी को इस संबंध मे भूमि के मालिकाना हको का निर्धारण नही करना है । परिवादी ने खसरा गिरदावरी आदि प्रमाण प्रस्तुत किये है जिस पर वह खेती कर रहा है और उसके कब्जे की भूमि है । ऐसी स्थिति मे हम अपीलार्थी की अपील स्वीकार किये जाने योग्य समझते है।
परिणामतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर अपीलार्थी की अपील स्वीकार की जाकर प्रत्यर्थीगण को यह आदेष दिये जाते है कि वे एक माह के अन्दर परिवादी का विघुत संबंध स्थापित कर दे तथा परिवादी को 15000/-रू0 क्षति के रूप मे भी अदा करे ।
(लियाकत अली)
सदस्य
(विनय कुमार चावला)
पीठासीन सदस्य