Rajasthan

Churu

537/2011

HARI RAM - Complainant(s)

Versus

J.V.V.N.L.SADULPUR CHURU - Opp.Party(s)

RAKESH SHARMA

02 Feb 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 537/2011
 
1. HARI RAM
VPO JINAU MITTI TEH SADULPUR CHURU
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
 
परिवाद संख्या- 537/2011
हरिराम पुत्र श्री श्योकरण जाति जाट निवासी जनाउ मिठ्ठी तहसील सादुलपुर जिला चूरू (राजस्थान)
......प्रार्थी
बनाम
 
1.    सहायक अभियन्ता (ग्रामीण) जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, चूरू
2.    अधिक्षण अभियन्ता, जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, चूरू
                                                 ......अप्रार्थीगण
दिनांक-  12.02.2015 
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1.    श्री राकेष वर्मा एडवोकेट         - प्रार्थी की ओर से
2.    श्री सांवरमल स्वामी एडवोकेट     - अप्रार्थीगण की ओर से
 
 
1.    प्रार्थी ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थी हरिराम पुत्र श्री श्योकरण जाति जाट निवासी जनाउ मिठ्ठी तहसील सादुलपुर जिला चूरू का रहने वाला एक गरीब किसान है जो कि कृषि कार्य कर अपना तथा अपने परिवार का पालन पोषण करता है प्रार्थी द्वारा अपने खेत खसरा नं. 401 में एक कृषि कुॅए का निर्माण कर अप्रार्थीगण से विद्युत कनेक्सन जारी षुदा है जिसके वर्तमान खाता सं. 1613/0138 है जिसके मीटर नं 901569 प्रार्थी का उपरोक्त विद्युत कनेक्सन प्रार्थी के खेत खसरा नं. 401 में लगे सुपर ट्रांस्फर्मर के उपर ही लगा हुआ है जिससे प्रार्थी विद्युत का उपयोग एंव उपभोग कर अपनी फसल की सिंचाई करता चला आ रहा है तथा प्रार्थी अपने द्वारा दर्ज खर्च की गई विद्युत का बिल भी नियमित रूप से अप्रार्थीगण के यहाॅ जमा करवाता चला आ रहा है।

2.    आगे प्रार्थी ने बताया कि प्रार्थी द्वारा अपने खेत खसरा नं. 401 में बनाए गए कृषि कुॅए से पूरे कृषि क्षेत्र की सिंचाई कम पड़ जाने के कारण प्रार्थी द्वारा अपने इसी खेत खसरा नं. 401 मे एक और कुॅए का निर्माण करवाया तथा अपने पूर्व में जारीषुदा कृषि कनेक्सन जो कि अप्रार्थीगण द्वारा 15 एच पी का स्वीकृत षुदा है प्रार्थी द्वारा जब अपने कृषि क्षेत्र खेत खसरा नं. 401 में एक और कृषि कुॅए का निर्माण करवाया जा रहा था तक ही प्रार्थी द्वारा दिनांक 04.10.2010 को लोड़ इन्टरेक्सन हेतु आवेदन सहायक अभियन्ता (ग्रामिण) सादुलपुर, चूरू को जमा करवा दिया जिसके रसीद नं. 15 बुक नं. 403 राषि 75/-रू के साथ जमा करवा रखी है निर्माणाधीन दुसरे कुॅए तक विद्युत सप्लाई हेतु दो पोल की राषि भी प्रार्थी द्वारा अप्रार्थीगण के यहाॅ जमा करवा दी गई थी। प्रार्थी द्वारा अप्रार्थीगण को बार बार निवेदन किया जाता रहा कि आप मेरे द्वारा दिये गये आवेदन लोड़ इन्टरेक्सन को स्वीकृत कर लोड इन्टरेक्सन सेंक्सन जारी करे तो अप्रार्थीगण ने प्रार्थी को बार-बार आष्वासन दिया कि हम आपके यहाॅ आकर देखेंगे उसके बाद लोड इन्टरेक्सन स्वीकृति जारी करेंगे तब एक दिन दिनांक 17.11.2010 समय करीब बजे अप्रार्थी सं. 1 ने प्रार्थी के खेत ख.सं. 401 मंे पहॅूचे तथा प्रार्थी के द्वारा अपने दूसरे कुंए पर की जा रही फिटींग को देखकर लोड इन्टरेक्सन की स्वीकृति व प्रोजेक्ट के नाम पर अनुचित राषि की मांग की तथा न दिये जाने एवं विरोध किये जाने पर उक्त गलत रूप से वी. सी. आर. की कार्यवाही द्वेषपूर्ण रूप से की गई है। अप्रार्थीगण के कर्मचारी आये तथा प्रार्थी को नाॅन कंज्युमर मानकर गलतफहमी में वी. सी. आर. भरी तथा आरोप लगाया कि प्रार्थी अपने खेत के सामने स्थित ट्रॅास्फार्मर पर केबल डालकर कुंआ चला रहा था जबकि प्रार्थी तो विधिवत रूप से अप्रार्थीगण का उपभोक्ता है जिसके खाता संख्या 16131013 है इस प्रकार से प्रार्थी तो विधित अप्रार्थीगण का उपभोक्ता रहा है।

3.    आगे बताया कि अप्रार्थीगण द्वारा गलत रूप से वी. सी. आर. भरते समय प्रार्थी को एस. एल. विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 126 के तहत सुनवाई का समुचित अवसर दिये बिना 40,000 रू का अनुचित चार्ज किया गया। यही नहीं अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थी द्वारा प्रार्थी पर अनुचित दबाव देकर दिनांक 13.01.2011 का प्रार्थना-पत्र टंकित करवाया जाकर पेष करने को कहा एवं 40,000 रू की राषि जमा करवाने को कहा, ओर न जमा करवाने की सूरत में पूर्व से जारी कृषि कनेक्सन को विच्छेद करने की धमकी दी ओर यह भी कहा कि आपकी फसल कृषि कनेक्सन विच्छेद कर दिये जाने से समूल नष्ट हो जाएगी। जिस पर प्रार्थी अनुचित दबाव से अप्रार्थीगण ने दिनांक 20.01.2010 को जरिये बिल क्रमांक वी सी आर नं. 41/2356/17.11.2010 के 40,000 रू प्राप्त कर लिये जो राषि प्रार्थी मय 18 प्रतिषत ब्याज के वापस प्राप्ति का अधिकारी है। प्रार्थी द्वारा अप्रार्थीगण के यहाॅ जमा करवाए गये आवेदन लाॅड इन्टरेक्सन को स्वीकृत कर दिनांक 20.01.2010 को जरिये रसीद नं. 53 बुक नं. 7387 के राषि 40,916 रू प्रार्थी से अप्रार्थी सं. 1 ने प्राप्त कर लिये है। अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थी के विरूद्ध दिनांक 17.11.2010 को विद्युत नियमों का उल्लंघन करते हुए वी.सी.आर. भरी गयी जो प्रार्थी अथवा उसके परिवार के सदस्यों की अनुपस्थिति में भरी गयी इसलिए प्रार्थी ने वी.सी.आर. की राशि 40,000 रूपये दिलवाये जाने, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय दिलाने की मांग की है।

4.    अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेष कर बताया कि प्रार्थी ने एक अन्य कंुआ का निर्माण करवाया था जिसके लिए लोढ़ बढाने के लिए प्रार्थना-पत्र भी दिया था जिस पर कार्यवाही की जा रही थी तथा उक्त नये कुंऐ के कनेक्सन हेतु प्रार्थी के यहाॅ 40 के. वी. का ट्रॅास्फार्मर लगाकर सबस्टेषन तैयार करना था समस्त कार्यवाही चल रही थी। प्रार्थी ने उस समय तक कोई राषि जमा नहीं करवाई थी। न ही प्रार्थी का भार दुसरे कंुए को चलाने के लिए स्वीकृत ही हुआ। न ही उक्त कार्य का ही हुआ था उससे पहले ही प्रार्थी न अवैध रूप से बिना अप्रार्थीगण निगम की अनुमति एवं स्वीकृति के अवैध रूप से अपने नये कुंए पर तीन कोर कैबल डालकर डायरेक्ट विद्युत सप्लाई ले रखी थी तथा कुंआ चला रहा था जो कि दिनांक 17.10.2010 को विजलेन्स जाॅच के दौरान पकड में आया तथा उक्त नये कुए का अवैध भार 20 एच. पी. काम मंे लेे रहा था। जाॅच के वक्त प्रार्थी का भाई दलीप मौके पर मौजूद मिला जिसने उक्त कुआ अपना बताया इस प्रकार विद्युत चोरी करते पाये जाने पर प्रार्थी के भाई दलीप के समक्ष समस्त जाॅच कर जाॅच प्रतिवेदन तैयार किया गया जिस पर हस्ताक्षर से इन्कार कर दिया।

5.    आगे जवाब दिया कि जब प्रार्थी के कंुए पर अवैध रूप से विद्युत चोरी करते हुए पकडे जाने के दिनांक 17.11.2010 तक प्रार्थी को उक्त कुंए पर कोई विद्युत स्वीकृति नहीं मिली थी न ही प्रार्थी ने कोई डिमाण्ड नोटिस ही जमा करवाया था। प्रार्थी का डिमाण्ड नोटिस दिनांक 12.01.2011 को जारी हुआ उससे पहले चोरी करना पाया जाने पर 20 एच. पी. की कम्पाउंंिडग राषि 40,000 रू मांग की गई। उक्त डिमाण्ड नोटिस दिनांक 12.01.2011, 36710 रू का जारी किया गया जो प्रार्थी ने 20.01.2011 को जमा करवाया तथा प्रार्थी से पूर्व मे अवैघ रूप से विद्युत चोरी की राषि भी समझौता के तहत 40,000 रू अपनी स्वैच्छा से जमा करवा दी थी। उसी राषि को प्राप्त करने के लिए यह परिवाद पेष किया है जो चलने योग्य नहीं है। लौढ़ वृद्धि भी नियमानुसार प्राथमिकता से होती है तथा उसके लिए अलग से उच्चाधिकारियो कर स्वीकृति लेनी पड़ती है तथा सब स्टेषन वगैरह स्थापित कर कार्यवाही करनी पडती है जिसमें समय लगना स्भावकि है। प्रार्थी ने 04.10.2010 को पत्रावली भार वृद्धि हेतु जमा करवाई उस पर लाईन की फिजिबल्टी जाॅच, तकमिना, एस्टीमेट आदि में समय लगता है प्रार्थी का संयुक्त खातेदारी होने से अपने भाई-बहिनों के अनापति प्रमाण-पत्र 24.12.2010 को पेष किये है उसके बाद अधिषाषी अभियन्ता चूरू को पत्रावली स्वीकृति हेतु भिजवाई गई जो स्वीकृति दिनांक 06.01.2011 को मिली तो प्रार्थी को दिनांक 12.01.2011 को डिमाण्ड नोटिस जारी किया जिसको दिनांक 20.01.2011 को जमा करवाया गया उस पर दिनांक 21.01.2011 को जोब आर्डर जारी किया गया व मौके पर नई लाईन खींची गई। 25 के. वी. ए. का ट्राॅस्फार्मर पर उतारा गया फिर 31.01.2011 को दुसरा जोब आर्डर 40 के. वी. ए. का ट्रॅास्फार्मर रखने हेतु जारी किया गया तथा 31.01.2011 को ही नया ट्रांस्फार्मर रखकर कनेक्सन स्थापित कर दिया गया था। उक्त समय लगना स्वभाविक है उससे पूर्व ही प्रार्थी ने अवैध रूप से उक्त दुसरा कुंआ को चालु कर लिया जा कि अवैध व विद्युत चोरी की परिभाषा में आता है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने की मांग की।

6.    प्रार्थी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, रसीद दिनांक 04.10.2010, वी.सी.आर. की प्रति, बिल की प्रति, मांग पत्र दिनांक 12.01.2011, प्रार्थना-पत्र दिनांक 13.01.2011, रिपोर्ट दिनांक 14.01.2011, रसीद 20.01.2011, वी.सी.आर. की राशि की रसीद, जमाबन्दी दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया। अप्रार्थीगण की ओर से कुल 24 दस्तावेजात जवाब के समर्थन में प्रस्तुत किये है।

7.    पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।

8.    प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए मुख्य तर्क यही दिया कि प्रार्थी ने अपने खेत ख.न. 401 में कृषि क्षैत्र की सिंचाई कम पड़ जाने के कारण एक अन्य कुंऐ का निर्माण करवाया जिस हेतु प्रार्थी ने अप्रार्थीगण के यहां दिनांक 04.10.2010 को लोढ़ एक्सटेन्शन हेतु आवेदन प्रस्तुत किया। प्रार्थी ने अप्रार्थीगण को बार-बार लोढ़ एक्सटेन्शन की स्वीकृति हेतु निवेदन किया परन्तु अप्रार्थीगण प्रार्थी को आश्वासन देते रहे इसी दौरान दिनांक 17.11.2010 को अप्रार्थीगण प्रार्थी के खेत पर पहुंचे और प्रार्थी से लोढ़ एक्सटेन्शन की स्वीकृति हेतु अनुचित राशि की मांग की जिसका विरोध करने पर अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के विरूद्ध द्वेषपूर्ण वी.सी.आर. भरी गयी और जिसमें आरोप लगाया कि प्रार्थी अपने खेत के सामने स्थिति ट्रांसफार्मर पर केबल डालकर कुंआ चला रहा था। जबकि प्रार्थी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता है। आगे तर्क दिया कि अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के विरूद्ध विद्युत अधिनियम की धारा 126 के तहत बिना सुनवाई का अवसर दिये ही वी.सी.आर. की राशि अनुचित दवाब देकर वसूल कर ली। अप्रार्थीगण द्वारा जो वी.सी.आर. भरी गयी थी वह विधि विरूद्ध भरी गयी है। जबकि प्रार्थी ने कोई विद्युत की चोरी नहीं की उसके द्वारा पूर्व में स्थापित मीटर से ही अपने नये कुंऐ की फीटिंग की टेस्टींग की जा रही थी। उसके बावजूद भी अप्रार्थीगण ने द्वेषपूर्ण प्रार्थी के विरूद्ध वी.सी.आर. भर दी। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवादोष की श्रेणी में आता है। इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त आधारों पर परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए मुख्य तर्क यही दिया कि प्रार्थी ने अपने नये कुंऐ की स्वीकृति के बगैर ही अवैद्य रूप से बिना अप्रार्थीगण विभाग की अनुमति व स्वीकृति के अपने नये कंुऐ पर तीन कोर केबल डालकर सीधे ही विद्युत सप्लाई ले रखी थी तथा कुंआ चला रहा था और दिनांक 17.10.2010 को विजिलेन्स जांच के दौरान पकड़ा गया। प्रार्थी नये कुंऐ पर अवैद्य रूप से 20 एच.पी. भार काम में ले रहा था। प्रार्थी का उक्त कृत्य स्पष्ट रूप से विद्युत चोरी की परिभाषा में आता है और विद्युत चोरी से सम्बंधित प्रकरण इस मंच के क्षैत्राधिकार के नहीं है। यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी द्वारा वी.सी.आर. की राशि अप्रार्थी के यहां जमा करवायी जा चूकी है। उक्त राशि जबतक वी.सी.आर. गलत साबित नहीं हो वसूली नहीं की जा सकती। वी.सी.आर. सही व गलत का निस्तारण इस मंच के द्वारा नहीं किया जा सकता। उक्त आधारों पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।

9.    हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि प्रार्थी ने वी.सी.आर. दिनांक 17.11.2010 की राशि 40,000 रूपये अप्रार्थी निगम में जमा करवा दी है। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में प्रथम तर्क यह दिया है कि अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थी के विरूद्ध गलत रूप से द्वेषतापूर्वक वी.सी.आर. भरी है और प्रार्थी को धारा 126 के तहत बिना सुनवाई के वी.सी.आर. की राशि दवाब देकर भरवा ली। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि वी.सी.आर. सही गलत का निर्णय करने का अधिकार इस मंच का नहीं है। हमने प्रार्थी स्वंय द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज प्रार्थना-पत्र दिनांक 13.01.2010, 17.01.2010, बिल 20.01.2011 का अवलोकन किया। पत्र दिनांक 13.01.2010 जो कि स्वंय प्रार्थी द्वारा अप्रार्थीगण विभाग में अपने खेत में हुई वी.सी.आर. के प्रकरण को रिव्यू कमेटी में दर्ज करवा कर निस्तारण करने हेतु दिया था जिस पर अप्रार्थीगण विभाग ने दिनांक 17.01.2011 को प्रार्थी के प्रकरण को विस्तरित रिपोर्ट के साथ प्रार्थी के यहां 20 एच.पी. विद्युत भार अवैध रूप से प्रयोग करते हुए बनाया। जिसके अनुरूप प्रार्थी स्वंय ने दिनांक 20.01.2011 को 40,000 रूपये अप्रार्थीगण विभाग मंे जमा करवा दिये। इसलिए स्वंय प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के अवलोकन से स्पष्ट है कि अप्रार्थीगण विभाग द्वारा प्रार्थी को सुनवाई का अवसर दिया गया था और प्रार्थी स्वंय ने ही सुनवाई उपरान्त वी.सी.आर. की राशि अप्रार्थीगण के यहां जमा करवायी। यदि प्रार्थी अप्रार्थीगण विभाग के निर्णय से असंतुष्ट था तो उसे विद्युत अधिनियम की धारा 127 के तहत अपील करनी चाहिए क्योंकि धारा 126 के तहत किया गया निर्णय अर्द्धन्यायिक निर्णय है जिसके विरूद्ध इस मंच में विवाद नहीं लाया जा सकता। वर्तमान प्रकरण में यह स्वीकृति तथ्य है कि प्रार्थी के यहां विद्युत की चोरी करते हुए पकड़े जाने पर वी.सी.आर. भरी गयी और जहां विद्युत का अनाधिकृत प्रयोग करते हुए वी.सी.आर. भरी जाती है तो ऐसे प्रकरण में इस मंच को क्षैत्राधिकार नहीं रहता। वी.सी.आर. सही है या गलत इस विवादक बिन्दु के विचारण का भी अधिकार इस मंच को नहीं है। ऐसा ही मत माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त सिविल अपील संख्या 5466/2012 यू.पी. पावर निगम लिमिटेड बनाम अनीश अहमद में निर्धारित किया है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह निर्धारित किया है कि विद्युत चोरी के अपराध से सम्बंधित प्ररकण जिला मंच के अधिकारीता में नहीं है। वर्तमान प्रकरण भी विद्युत की चोरी से सम्बंधित है जिसका विवरण स्वंय प्रार्थी ने अपने परिवाद में दिया है चूंकि प्रार्थी वी.सी.आर. की राशि अप्रार्थीगण विभाग में जमा करवा चूका है और जिसकी वसूली वी.सी.आर. के गलत होने पर ही हो सकती है जिस हेतु विस्तृत साक्ष्य की आवश्यकता होगी। इस मंच में समस्त कार्यवाही संक्षिप्त प्रक्रिया के द्वारा की जाती है इसलिए मंच की राय में प्रार्थी का परिवाद क्षैत्राधिकार के अभाव में उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी में खारिज किये जाने योग्य है।

             अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकार प्रकरण का व्यय स्वंय अपना-अपना वहन करेंगे। प्रार्थी अपना प्रकरण सक्षम आॅथोरिटी/विशेष न्यायालय में प्रस्तुत करने हेतु स्वतन्त्र है।

 
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                षिव शंकर
  सदस्य                 सदस्या                     अध्यक्ष                         
    निर्णय आज दिनांक 12.02.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
    
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                षिव शंकर
     सदस्य                सदस्या                     अध्यक्ष     

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.