rajesh filed a consumer case on 23 Feb 2015 against j.v.v.n.l. in the Tonk Consumer Court. The case no is cc/86/2014 and the judgment uploaded on 12 Mar 2015.
राजेश बनाम ज.वि.वि.नि.लि. व अन्य
परिवाद संख्या 86/2014
23.02.2015
दोनों पक्षों को सुना जा चुका है। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
परिवादी ने विपक्षी निगम का संक्षेप में यह सेवादोष बताया है कि उसकी आटा चक्की के विधुत कनेक्शन के सम्बन्ध में मार्च 2014 का बिल उपभोग से अधिक दिया गया है। पूर्व में दो माह का उपभोग 900 यूनिट से अधिक नही आया। अचानक मीटर तेज गति से चलने के कारण मार्च 2014 का बिल गलत है। वह आटा चक्की अपने स्वरोजगार के लिए स्वंय चलाता है। बिल अधिक आने पर उसने मीटर देखा तो वह जला हुआ पाया जिसकी शिकायत करने पर विपक्षी निगम ने राशि जमा करके दूसरा मीटर लगाया लेकिन मार्च 2014 के बिल को संशोधित नही किया जिससे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ।
विपक्षी निगम के जवाब का सार है कि मार्च 2014 का बिल मीटर में अंकित उपभोग के अनुसार ही जारी किया गया। शिकायत करने पर मीटर को बदल दिया गया तथा मार्च 2014 का बिल एवरेज के आधार पर संशोधित भी कर दिया गया उसके बावजूद गलत परिवाद प्रस्तुत किया गया। सेवा में कोई कमी नही की गई।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा पूर्व के बिलो की प्रति प्रस्तुत की है। विपक्षी निगम ने साक्ष्य में सम्बन्धित सहायक अभियन्ता रामगोपाल टाटावत के शपथ-पत्र के अलावा परिवादी के विधुत सम्बन्ध से सम्बन्धित सितम्बर 2010 से बिलींग विवरण एवं सितम्बर 2014 के बिल की प्रति प्रस्तुत की है।
हमने विचार किया।
विपक्षी निगम के अनुसार परिवादी के मार्च 2014 के बिल को संशोधित करते हुए औसत के आधार पर उसमें 12,516/- रूपये की छूट दी गई तथा उसका मीटर भी बदल दिया गया लेकिन मीटर बदलने व छूट देने का कोई कारण स्पष्ट नही किया गया। जबकि परिवादी यह स्पष्ट केस लेकर आया कि उससे पूर्व दो माह का बिल कभी-भी 900 यूनिट से अधिक नही आया था अर्थात इससे अधिक उपभोग उसके द्वारा नही किया जाता है। मार्च 2014 का बिल मीटर में अचानक दोष उत्पन्न होने से ही अधिक उपभोग का भेजा गया है।
हम पाते है कि विपक्षी निगम यह स्पष्ट नही कर सका कि मार्च 2014 में परिवादी का उपभोग अचानक असमान्य कैसे हुआ ? उनके द्वारा मीटर बदलने व उस माह के बिल में छूट देने से एक-मात्र निष्र्कष यही आता है कि वस्तुतः मीटर में अचानक कोई दोष आने से ही उसमें उपभोग अधिक अंकित हुआ। विपक्षी निगम ने उस बिल में छूट देने का कोई न्यायोचित आधार प्रकट नही किया गया है केवल यह बताया है कि एवरेज बिलींग की गई। परिवादी के उक्त कनेक्शन से सम्बन्धित जो बिलींग विवरण प्रस्तुत किया गया है उसके अवलोकन से स्पष्ट होता है कि पूर्व के तीन-चार वर्षो में परिवादी का दो माह का उपभोग कभी-भी मीटर सही होते हुए भी 900 यूनिट से अधिक नही आया इसलिए हमारी राय में माह मार्च 2014 का बिल संशोधित होना आवश्यक है तथा परिवादी से इस बिल के पेटे अधिकतम 900 यूनिट के उपभोग की ही राशि लिया जाना उचित है।
अतः विपक्षी निगम को निर्देश दिये जाते है कि परिवादी के विधुत कनेक्शन खाता संख्या 18490072 के मार्च 2014 के बिल को निरस्त किया जाकर उसके स्थान पर कुल 900 यूनिट उपभोग का ही संशोधित बिल जारी किया जावे तथा उसी अनुसार राशि ली जावे। यदि परिवादी द्वारा उक्त बिल के पेटे अधिक राशि जमा कराई गई है तब उसका समायोजन आगामी बिलों में किया जावे। इसके अलावा परिवादी को मानसिक संताप एवं परिवाद व्यय के पेटे 2,500/- रूपये का भुगतान एक माह में किया जावे।
आदेश खुले मंच में सुनाया गया। पत्रावली फैसल शुमार होकर रिकार्ड में जमा हो।
विष्णु कुमार गुप्ता किरण चैरसिया भगवानदास खण्डेलवाल
(सदस्य) (सदस्या) (अध्यक्ष)
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