Rajasthan

Churu

557/2011

MUKESH KUMAR - Complainant(s)

Versus

J.V.V.N.L. SARDARSHAR CHURU - Opp.Party(s)

Dhanna Ram saini

03 Sep 2014

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 557/2011
 
1. MUKESH KUMAR
ARJUN CLUB ROADWAYS BUS STAND KE PAS SARDARSHAR CHURU
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

प्रार्थी की ओर से श्री धन्नाराम सैनी अधिवक्ता उपस्थित।  अप्रार्थीगण की ओर से श्री विनोद दनेवा अधिवक्ता उपस्थित। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी ने एक दुकान किराये पर ले रखी है जिसमें प्रार्थी विद्युत सम्बंध लेने हेतु अप्रार्थीगण के यहां दिनांक 27.01.2011 को आवेदन किया था। आवेदन पत्र की जांच करने पर प्रार्थी को एक डिमाण्ड नोटिस दिनांक 05.03.2011 को जारी किया गया जिसमें 4100 रूपये जमा करवाने हेतु प्रार्थी को लिखा गया। आगे तर्क दिया कि अप्रार्थीगण ने जानबूझ कर उक्त डिमाण्ड नोटिस में दुकान मालिक से विद्युत सम्बंध बाबत सहमति पत्र पेश करने की शर्त अपने हाथों से अंकित कर दी जबकि विधि अनुसार मकान मालिक की सहमति की कोई आवश्यकता नहीं है। अप्रार्थीगण ने उक्त सहमति पत्र के बगैर प्रार्थी सेे 4100 रूपये जमा करने से मना कर दिया जिस पर प्रार्थी ने उक्त राशि जरीये डिमाण्ड ड्राफ्ट अप्रार्थीगण को भेज दी उसके बावजूद भी प्रार्थी का विद्युत कनेक्शन नहीं किया गया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य स्पष्ट रूप से सेवादोष की श्रेणी में आता है। उक्त आधार पर परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी जिस दुकान में विद्युत सम्बंध चाहता है उक्त दुकान के सम्बंध में अप्रार्थीगण विभाग को मालिक व किरायेदार के मध्य सिविल न्यायालय में विवाद होने के तथ्य से अवगत करवाते हुए किरायेदार ने नोटिस जारी किया। दुकान मालिक की सहमति के बगैर विधि अनुसार प्रार्थी को विद्युत कनेक्शन नहीं दिया जा सकता। प्रार्थी द्वारा भिजवायी गयी राशि पत्र दिनांक 06.04.2011 को वापस भिजवायी जा चूकी है इसलिए प्रार्थी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।

           प्रार्थी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, प्रदर्स सी 1 से प्रदर्स सी 5 दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये है। अप्रार्थीगण की ओर से डिमाण्ड नोटिस, अधिवक्ता नोटिस, पत्र दिनांक 06.04.2011 दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये है। पक्षकारान की बहस सुनी गई। पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। मंच का निष्कर्ष निम्न है।

           हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। प्रार्थी अधिवक्ता ने मुख्य तर्क यह दिया कि प्रार्थी वर्तमान में किराये की दुकान में अपना कारोबार कर रहा है। दुकान उसके कब्जें में है। विद्युत सेवा आवश्यक सेवा होने के कारण उक्त परिसर में कनेक्शन प्राप्त करने का अधिकारी है। अपनी बहस के समर्थन में प्रार्थी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान 2 सी.पी.जे. 2013 पेज 36 पश्चिम बंगाल राज्य आयोग के न्यायिक दृष्टान्त की ओर ध्यान दिलाया जिसका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। जिसमें माननीय राज्य आयोग ने यह अभिनिर्धारित किया कि अप्रार्थीगण विभाग द्वारा कम्प्लेनेन्ट को विद्युत सम्बंध किराये परिसर में नहीं देना उचित नहीं है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय राज्य आयोग ने उच्चतम न्यायालय के न्यायिक दृष्टान्त 2011 का हवाला दिया है जिसमें भी उच्चतम न्यायालय ने किराये के परिसर में विद्युत सम्बंध देने हेतु अप्रार्थीगण विभाग को निर्देश दिये थे। उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण के तथ्येां से भिन्न होने के कारण चस्पा नहीं होते क्योंकि वर्तमान प्रकरण में अप्रार्थीगण विभाग द्वारा जो डिमाण्ड नोटिस दिनांक 05.03.2011 को जारी किया गया था उसमें यह स्पष्ट अंकित था कि प्रार्थी दुकान मालिक से सहमति-पत्र प्राप्त कर पेश करे। प्रार्थी को अपना विद्युत कनेक्शन हेतु आवेदन पत्र पेश करने से पूर्व अपने प्रकरण की पूरी वस्तुस्थिति से अवगत करवाना चाहिए था। अप्रार्थीगण विभाग द्वारा प्रस्तुत विधिक नोटिस का अवलोकन किया। जिसमें यह स्पष्ट अंकित है कि प्रार्थी जिस दुकान में विद्युत सम्बंध चाहता हैं। दुकानदार व किरायेदार के मध्य किराया अदायगी व विद्युत उपभोग बिल की राशि नहीं भरने के आधार पर किराया निर्धारण अधिकरण/सिविल न्यायालय में विवाद विचाराधीन है और उक्त नोटिस स्वंय दुकानदार द्वारा अप्रार्थीगण विभाग को पेश किया है। यदि अप्रार्थीगण विभाग द्वारा उक्त नोटिस प्राप्ति की बावजूद विद्युत सम्बंध प्रार्थी को जारी करते है तो अप्रार्थीगण विभाग को अनावश्यक मुकदमों से जैरकार होना पड़ेगा। यदि प्रार्थी वास्तविक व सद्भाविक किरायेदार है तो वह उक्त सुविधा हेतु पूर्व में चल रहे किराया अधिकरण न्यायालय में प्रार्थना-पत्र पेश कर विद्युत कनेक्शन हेतु मांग कर सकता है। परन्तु प्रार्थी ने किराया अधिकरण न्यायालय को आधारभूत सुविधाओं के आदेश देने की शक्ति होते हुये भी वहां प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत न कर इस मंच में यह परिवाद पेश किया है जो कि किसी भी रूप से विधि सम्वत व सद्भाविक प्रतीत नहीं होता। इसलिए मंच की राय में प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध खारिज किये जाने योग्य है।

           अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकारान प्रकरण व्यय स्वंय अपना-अपना वहन करेंगे। पत्रावली फैसला शुमार होकर दाखिल दफ्तर हो।

 

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
MEMBER

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