जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
परिवाद संख्या- 705/2011
विजेन्द्र सिंह पुत्र श्री राजकुमार जाति जाट निवासी जणाउ मिठी तहसील राजगढ जिला चूरू
......प्रार्थी
1. जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड जरिये सहायक अभियन्ता राजगढ चूरू।
......अप्रार्थी
दिनांक - 03.02.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1. श्री ललित कुमार गौतम एडवोकेट - प्रार्थी की ओर से
2. श्री सांवरमल स्वामी एडवोकेट - अप्रार्थीगण की ओर से
1. प्रार्थी ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि विपक्षी के द्वारा एक विद्युत संबंध ज्ञानाराम पुत्र ख्यालीराम निवासी जणाउ मिठी तहसील राजगढ चूरू संयोजित किया हुआ है जिसके खातो सं. 1915-1613-0135 है जिसने अपनी कृषि भूमि में कृषि विद्युत कनेक्सन 10 एच पी का ले रखा था। खातेदार के द्वारा अपने समस्त बिल विपक्षी के यहाॅ जमा करवाये जाते रहे है। परिवादी विजेन्द्र के द्वारा 08.10.2007 को ज्ञानाराम से उसकी कृषि भूमि जरिये पंजिकृत बैनामा से कुआ व विद्युत कनेक्सन सहित खरीद कर ली गई तब से परिवादी ही विद्युत का उपभोग उपयोग कर रहा है परिवादी ने माह नवम्बर 2007 का बिल 458/-रू का जमा करवाया। फरवरी 2008 तक के बिल ज्ञानाराम के नाम से आते रहे जिनको परिवादी ने जमा करवाये है। परिवादी के द्वारा विद्युत खाते मे नाम परिवर्तन की फाईल जमा करवाई गई विपक्षी के द्वारा जनवरी 2009 का बिल परिवर्तित नाम से विपक्षी द्वारा भिजवाया गया जो 5885/-रू का परिवादी ने जमा करवाया इसके बाद मई 2010 का बिल 16211/-रू का भिजवाया जिस पर अधिक बिल की षिकायत करने पर निगम ने पार्ट पेमेन्ट 15,000/-रूपये जमा करवा लिये नवम्बर 2010 का बिल 13870/-रू जमा कवाया माह मई 2011 का बिल 45645/-रू का भिजवाये जानंे पर परिवादी ने इस बिल पर आपत्ति की तब विपक्षी ने वुनः 14000/-रू जमा ले लिये इसके बाद जुलाई 2011 मंे जो बिल भिजवाया गया है वह 33870/-रू का है इसके काॅलम नम्बर 22 में पिछले बिल की बकाया राषि 32793/-रू 40 पैसे दर्षाये है जबकि परिवादी ने अक्टूबर 2007 के बाद से अपने समस्त बिलो को जमा करवाये है जिस दिन बैनामा हुआ उस दिन तक कोई बिल बकाया नही होना बताया गया विपक्षी ने नवम्बर 2007 के बाद से जो भी बिल भिजवाये है उन बिलो मे किसी भी बिल में बकाया राषि का हवाला नही है। एैसी स्थिति मे बकाया राषि 32793/-रू परिवादी से वसूल करना कतई न्यायोचित नही है इस राषि को परिवादी से नही वसूलने बाबत ही यह परिवाद मंच मे पेष किया जा रहा है। विपक्षी सेवादोष का कृत्य कर ज्ञानाराम की बकाया राषि परिवादी से वसूल करना चाहता है। कोई बकाया राषि पूर्व उपभोक्ता ज्ञानाराम की है तो परिवादी उस राषि अदायगी के लिए जिम्मेवार नही है। ज्ञानाराम से ही निगम वसूल कर सकता है। अप्रार्थी विभाग प्रार्थी को उक्त बकाया राशि जमा करवाने हेतु अनावश्यक धमकी दे रहा है व प्रार्थी का विद्युत सम्बंध विच्छेद करने पर आमादा है। इसलिए प्रार्थी ने उक्त बकाया राशि 32793.40 रूपये को निरस्त करने, प्रार्थी का विद्युत सम्बंध नियमित रखने, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय की मांग की है।
2. अप्रार्थी ने प्रार्थी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश किया कि प्रार्थी का विद्युत कनेक्षन स्वीकृत भार 10 एच पी शुरू मे था तथा बाद में मार्च 2007 में जाॅच करने पर उपभोक्ता ज्ञानाराम का विद्युत भार 15 एच पी पाया गया। प्रार्थी का नाम परिवर्तन जनवरी 2009 मे किया गया है। 15 एच पी का विवाद पूर्व उपभोक्ता व प्रार्थी ने कभी नही किया क्योकि प्रार्थी स्वयं को जब ज्ञान था कि उसका भार 15 एच पी से भी अधिक काम मे ले रहा है। दिनांक 25.11.2009 को अधिषाषी अभियन्ता वितरण चूरू ने पुनः जाॅच की तो प्रार्थी का विद्युत भार 15 एच पी के स्थान पर 20 एच पी पाया गया उक्त जाॅच प्रार्थी के समक्ष की गई प्रार्थी का भार नियमन कर 15 एच पी के स्थान पर 20 एच पी किया जाकर नियमानुसार 20 एच पी के विपत्र जनवरी 2010 से भिजवाये जा रहे है। प्रार्थी बिना किसी विरोध के उक्त 20 एच पी के विपत्र जमा करवा रहा था। प्रार्थी का नाम परिवर्तन करना स्वीकार है तथा जब प्रार्थी के नाम से विपत्र भिजवाये जा रहे है तत्कालिन उपभोक्ता ज्ञानाराम का विद्युत सम्बंध माह मार्च 2003 मे 34510/-रू की बकाया राषि पर नियमानुसार बकाया पर विच्छेद किया गया था उसके बाद उपभोक्ता के खाता मे मय ब्याज लगातार उक्त विद्युत उपभोग की राषि बढती गई उपभोक्ता ज्ञानाराम ने दिनांक 02.02.2007 को पार्ट मे पेमेन्ट 32000रू जरिये रसीद नं. 07/02.02.2007 अपना विद्युत सम्बंध बहाल करवाष बाकि राषि उपभोक्ता व ब्याज गलती एवं भूलवष मार्च 2003 से जनवरी 2007 तक की वसूली हो पायी तथा उक्त राषि 31510रू तत्काहलन उपभोक्ता के खाता के डेबिट की जानी थी लेकिन गलती से उपभेाक्ता ज्ञानाराम के खाता संख्या 1617/135 में डेबिट न होकर खाता सं. 1613-145 में डेबिट हो गई उक्त तथ्य की जानकारी होने पर उक्त बकाया राषि प्रार्थी के खाता सं. 1613/135 मे जनवरी 2011 बिलिंग माह मे डेबिट की गई जिसको जमा करवाने का दायित्व प्रार्थी का है। विद्युत कनेक्शन की बकाया की वसुली खाताधारक व सम्पति से होती है। इस कारण प्रार्थी अपने दायित्व से बच नहीं सकता। प्रार्थी का विवाद उपभोक्ता विवाद नहीं है इसलिए इस मंच के क्षैत्राधिकार का नहीं है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने की मांग की।
3. प्रार्थी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, फोटो प्रति बिल नवम्बर 2007 से जुलाई 2011 व रसीद नाम परिवर्तन दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये है। अप्रार्थी विभाग की ओर से स्टेटमेन्ट आॅफ अकाउन्ट, वी.सी.आर. रिपोर्ट, विवरण पत्र दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है।
4. पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।
5. प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी ने प्रश्नगत विद्युत कनेक्शन संख्या 1915-1613-0135 भूमि धारक ज्ञानाराम से कृषि भूमि सहित दिनांक 08.10.2007 को क्रय किया था। फरवरी 2008 तक प्रार्थी ने ज्ञानाराम के नाम से जारी बिलों का भुगतान किया व फरवरी 2008 में प्रार्थी ने उक्त विद्युत सम्बंध अपने नाम से परिवर्तन करने हेतु आवेदन किया। जिस पर अप्रार्थी विभाग ने उक्त विद्युत कनेक्शन प्रार्थी के नाम से कर दिया व प्रथम बिल प्रार्थी को जनवरी 2009 में प्रार्थी के नाम से प्राप्त हुआ। इसी क्रम में जुलाई 2011 में अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी को जो बिल भिजवाया गया उसमें काॅलम नम्बर 22 में बिल की बकाया राशि 32793.40 रूपये दर्शाते हुए प्रार्थी से वसुल करने हेतु भिजवाया जिस पर प्रार्थी ने अप्रार्थी के यहां आपत्ति की तो अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी को बताया गया कि उक्त बकाया राशि पूर्व खाताधारक ज्ञानाराम की है जो माह मार्च 2003 से चली आ रही है। प्रार्थी अधिवक्ता ने आगे तर्क दिया कि विधि अनुसार अप्रार्थी प्रार्थी से उक्त बकाया राशि प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि उक्त राशि प्रश्नगत खाता के पूर्व खाताधारक ज्ञानाराम की बकाया है व उसी से वसूल की जा सकती है। यह भी तर्क दिया कि उक्त राशि करीब 10 वर्ष पूर्व की है जो विधि अनुसार वसूल योग्य नहीं है। उक्त आधार पर प्रार्थी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी से वर्ष 2003 की राशि बकाया हेतु बिल माह 2011 में अंकित करना अप्रार्थी का सेवादोष है। उक्त आधारों पर प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए मुख्य तर्क यही दिया कि प्रश्नगत राशि तत्कालीन उपभोक्ता ज्ञानाराम की माह मार्च 2003 से बकाया है। विधि अनुसार उक्त बकाया राशि जमीन या विद्युत खाता से ही वसूल की जानी होती है। यदि प्रार्थी ने विद्युत सम्बंध स्थापित जमीन व विद्युत कनेक्शन खरीद किया है तो उस पर देय दायित्व भी प्रार्थी पर इसलिए प्रार्थी उक्त राशि हेतु उत्तरदायी है। यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी का वाद उपभोक्ता विवाद नहीं है। इसलिए इस मंच के क्षैत्राधिकार का नहीं है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
6. हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण मंे विवादक बिन्दु केवल यह है कि क्या अप्रार्थी विभाग वर्ष 2003 की बकाया राशि वर्ष 2011 में वसूल कर सकता है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में तर्क दिया कि प्रश्नगत राशि 32793.40 प्रार्थी से पूर्व के खाताधारक ज्ञानाराम से वसूल योग्य थी जब प्रार्थी ने उक्त विद्युत कनेक्शन व जमीन क्रय करने के पश्चात उक्त खाता अपने नाम से स्थानान्तरित करवाया तो उस समय लिपिकीय भूल की वजह से उक्त बकाया का ध्यान नहीं रहा। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस के दौरान इस मंच का ध्यान विवरण पत्र जो कि कार्यालय सहायक अभियन्ता ग्रामीण के द्वारा तैयार किया गया है कि ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त विवरण पत्र में यह अंकित है कि प्रश्नगत बकाया राशि पूर्व खाताधारक ज्ञानाराम से 16 प्रतिशत अर्द्धवार्षिक ब्याज सहित वसूल की जानी थी जो नहीं की गयी व उक्त राशि बिलिंग माह सितम्बर 2007 में प्रार्थी के खाते में डेबिट की जानी थी लेकिन भूलवश उक्त राशि किशनाराम के खाता संख्या 1613-145 में डेबिट हो गयी। जो बाद में जनवरी 2011 में सुधार करते हुए उक्त राशि प्रार्थी के खाता में डेबिट की गयी। उक्त विवरण पत्र के आधार पर अप्रार्थी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उक्त भूलवश के कारण प्रार्थी अपने उत्तरदायित्व से बच नहीं सकता। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। प्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि विधि अनुसार उक्त राशि अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी से विद्युत कनेक्शन परिवर्तन के समय प्राप्त की जा सकती थी। एक बार अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी के नाम से विद्युत कनेक्शन कर दिया तो अब अप्रार्थी उक्त राशि वसूल नहीं कर सकते। हम प्रार्थी अधिवक्ता के उक्त तर्कों से सहमत है क्योंकि प्रार्थी ने अप्रार्थी विभाग में दिनांक 08.02.2010 को प्रश्नगत विद्युत खाता अपने नाम से परिवर्तन करने हेतु आवेदन दिया था। यदि पूर्व खाताधारक ज्ञानाराम के नाम से कोई बकाया राशि थी तो उक्त विद्युत सम्बंध प्रार्थी के नाम बिना बकाया वसूली के परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए था। नाम परिर्वतन के समय यदि प्रार्थी को उक्त बकाया के सम्बंध में बताया जाता तो प्रार्थी अवश्यक पूर्व खाताधारक से उक्त बकाया राशि अप्रार्थी विभाग में जमा करवाने हेतु निवेदन करता व अपने स्तर पर प्रयास करता। लेकिन अब करीब 4 साल बाद तत्कालीक खाताधारक किसी भी रूप से उक्त राशि प्रार्थी को अदा नहीं करेगा। यहां पर यह प्रश्न भी विचारणीय है कि अप्रार्थी विभाग ने वर्ष 2003 की बकाया राशि सीधे ही वर्ष 2011 के बिल में अंकित कर दी जबकि विधि अनुसार उक्त बकाया हेतु अप्रार्थी विभाग को प्रार्थी व तत्कालीक खाताधारक ज्ञानाराम को नोटिस दिया जाना आवश्यक था व प्रार्थी को सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिया जाता। परन्तु वर्तमान प्रकरण में अप्रार्थी विभाग द्वारा ऐसा कोई दस्तावेज या नोटिस की प्रति पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं की जिससे यह साबित हो कि अप्रार्थी विभाग ने प्रश्नगत बकाया राशि हेतु प्रार्थी व तत्कालीक खाताधारक को कोई नोटिस दिया हो। फिर अप्रार्थी अपनी ही गलती हेतु प्रार्थी को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते। विधि अनुसार अप्रार्थी 3 साल से अधिक समय से बकाया की वसूली नहीं कर सकते जबकि प्रश्नगत वसूली वर्ष 2003 की है जो अप्रार्थी वर्ष 2011 में वसूल करना चाहते है जिस हेतु अप्रार्थी ने प्रार्थी को ना कोई नोटिस दिया और ना ही सूनवाई का कोई अवसर दिया। अप्रार्थी ने अपने जवाब व दस्तावेज के समर्थन में किसी भी अधिकारी का कोई शपथ-पत्र भी पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया इसलिए अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज शपथ-पत्र के अभाव में विश्वसनीय व साक्ष्य में पढ़े जाने योग्य नहीं है। इसलिए अप्रार्थी अधिवक्ता का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि उक्त बकाया राशि हेतु प्रार्थी उत्तरदायी है।
7. अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि वर्तमान परिवाद इस मंच के क्षैत्राधिकार का नहीं है। अप्रार्थी अधिवक्ता का उक्त तर्क भी तर्क संगत नहीं है क्योंकि परिवाद में वर्णित खाता संख्या प्रार्थी ने दिनांक 08.02.2008 को प्रार्थना-पत्र देकर अपने नाम से परिवर्तन करवा लिया है और प्रार्थी नियमित रूप से अप्रार्थी विभाग द्वारा जारी बिलों का भुगतान कर रहा है। मंच की राय में अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी को जारी बिल माह जुलाई 2011 में बकाया राशि 32,793.40 रूपये जो कि वर्ष 2003 पूर्व के खाताधारक ज्ञानाराम के जिम्मे थी। प्रार्थी को जारी बिल माह जुलाई 2011 में बकाया राशि अंकित करते हुए विधि विरूद्ध रूप से मांग करना अप्रार्थी का सेवादोष है। अप्रार्थी द्वारा निकाली गयी विधि विरूद्ध राशि 32,793.40 रूपये निरस्त किये जाने योग्य है। इसलिए प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध स्वीकार किये जाने योग्य है।
अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर उसे मंच द्वारा निम्न अनुतोष दिया जा रहा है।
(क.) अप्रार्थी के द्वारा प्रार्थी को जारी बिल माह जुलाई 2011 के काॅलम नम्बर 22 में दर्शायी गयी राशि 32,793.40 रूपये निरस्त की जाती है।
(ख.) अप्रार्थी को आदेश दिया जाता है कि वह प्रार्थी को 2,000 रूपये मानसिक प्रतिकर व 2,000 रूपये परिवाद व्यय भी अदा करें।
अप्रार्थी को आदेष दिया जाता है कि वह उक्त आदेष की पालना आदेष कि दिनांक से 2 माह के अन्दर-अन्दर करें। अप्रार्थी विवादित राशि पूर्व खाताधारक ज्ञानाराम से वसूल करने हेतु स्वतन्त्र है।
सुभाष चन्द्र नसीम बानो षिव शंकर
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 03.02.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
सुभाष चन्द्र नसीम बानो षिव शंकर
सदस्य सदस्या अध्यक्ष